तमिलनाडु के एक छोटे गाँव का गरीब किसान अब समृद्ध हो गया है। ज्यादा लागत और कम उपज वाली रासायनिक खेती को छोड़कर वह जैविक खेती की ओर मुड़ा और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता गया। अब वह खुद ही नहीं बल्कि दूसरों को भी जैविक खेती के तौर-तरीके सिखाता है। वह एक गुमनाम किसान नहीं, जाना-माना जैविक खेती का ट्रेनर बन गया है।
यह कहानी है जयप्पा की, जो कृष्णागिरी जिले के तली गाँव का रहने वाला है। उसके पास 3 एकड़ जमीन है। यह जमीन पथरीली व रेतीली है। वह 15 साल से अपने खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करता है। पूरी तरह जैविक खेती करते हैं, प्राकृतिक व केंचुआ खाद पर आधारित है।
65 वर्षीय जयप्पा शुरू से रासायनिक खेती करते थे पर उनके जीवन में तब नया मोड़ आया जब उन्हें बंगलुरु के कृष्णा प्रसाद मिले। आज देशी बीज मेला और कृषि मेला के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये कृष्णा प्रसाद की कीर्ति फैल गई है।
1998 की बात है। एक शाम जयप्पा के गाँव बंगलुरु से कृष्णा प्रसाद आए। उनकी नजर जयप्पा के घर रखे कद्दू पर पड़ी। वह मन्तू कद्दू (स्थानीय नाम) देशी था और बाकियों से कुछ अलग था। उनकी पारखी नजर ने उसे पहचान लिया।
वहाँ से लौटकर कृष्णा प्रसाद ने कद्दू के बारे में लेख लिखा और उसमें जयप्पा का सम्पर्क पता दिया। कुछ ही दिनों में जयप्पा के पास चिट्ठियों का ताँता लग गया और लिफाफे में अतिरिक्त डाक टिकट भी लोगों ने भेजे और इन डाक टिकट के बदले में कद्दू के बीज माँगे। क्योंकि इतनी कम राशि का मनीआर्डर करना उचित नहीं था।
एक कद्दू में करीब 750 बीज निकले। इन बीजों के बदले जयप्पा को 360 रुपए के डाक टिकट प्राप्त हुए। उसने वापसी डाक से लिफाफे में एक-एक, दो-दो बीज सबको भेज दिए और जो डाक टिकट उसे मिले थे, उन्हें कृष्णा प्रसाद को भेज दिये जिन्हें उन्होंने आफिस के कामकाज में इस्तेमाल कर लिया।
इसके बाद से जयप्पा का जैविक खेती व कृष्णा प्रसाद के काम पर भरोसा बढ़ गया। कृष्णा प्रसाद गाँव-गाँव घुमकर जैविक खेती को बढ़ावा देने का काम कर रहे थे। जयप्पा भी जैविक खेती के मिशन में जुड़ गए।
जयप्पा और उनकी पत्नी शारदाम्मा दोनों मिलकर खेती का काम करते हैं। हालांकि जयप्पा ने बातचीत में खेती का सारा श्रेय पत्नी को दिया। जब मैं मई के दूसरे हफ्ते में उनके घर गया तब शारदाम्मा गाय चराने के लिये खेत गई थीं। उनके पास तीन गाएँ हैं।खेत में आम, इमली कटहल, आँवला, मुनगा, जामुन, चीकू, अमरूद, हनुमान फल, नींबू, जम्बू आदि के हरे-भरे पेड़ हैं। आम की कई किस्में थीं- मल्लिका, सेंदुरा, बादामी, तोतापरी, रसपुरी, केसर, बैंगनपल्ली और दशहरी। आम फलों से लदे हुए हैं। इसके साथ वे मोटे अनाज- रागी और दालों की खेती भी करते हैं।
जयप्पा ने घर की बाड़ी में केला, रामफल, नारियल, पुदीना, स्ट्राबेरी, मीठी नीम, मिर्ची, करेला, राजगिरा, पपीता, इलाइची, कटहल, काली मिर्च इत्यादि। साथ ही, कई प्रकार की हरी सब्जियाँ- पालक, लाल भाजी, बैंगन, टमाटर, राजमा, राजगिरा, तुरई और कद्दू।
आम के 120 पेड़, इमली के 5, कटहल के 60, आँवला के 15, नींबू के 5 पेड़ हैं। इनके फलों को वे बंगलुरु में जैविक उत्पादों को खरीदने वाली मार्केटिंग कम्पनी सहज बीज को बाजार से अधिक दामों में बेच देते हैं। केंचुआ खाद से उन्हें करीब 15 हजार सालाना की आय हो जाती है।
जैविक खेती को बढ़ावा देने में बरसों से जुटे शेनाय ने बताया कि जयप्पा के पास दूर-दूर से किसान जैविक खेती के तौर-तरीके सीखने आते हैं और वे कई तरह के देशी बीज व केंचुआ खाद भी उपलब्ध कराते हैं।
जयप्पा ने एक पेड़ के पास रुककर बताया कि इसे चिड़ियाँ बहुत पसंद करती हैं और यही चिड़ियाँ फसलों को कीट प्रकोप से बचाती हैं। यह वाटर एप्पल का पेड़ था।
जयप्पा ऋषि –मुनियों की तरह पेड़-पौधों के बारे में बहुत जानकारी रखते हैं। वे उनके गुण धर्म से लेकर स्वाद और भोजन बनाने की विधियाँ सब कुछ बताते हैं।
पिछले कुछ समय से खेती-किसानी का संकट गाँव-घर तक पहुँच गया है। इसके मद्देनज़र दक्षिण भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में जैविक खेती का आन्दोलन जोर पकड़ रहा है। यहाँ बड़े सशक्त किसान आन्दोलन भी रहे हैं। जयप्पा की तरह और भी किसान जैविक खेती की ओर मुड़ रहे हैं, जिनकी तादाद बड़ी है।
रासायनिक खाद से अपनी उर्वर शक्ति खोती जा रही भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिये जैविक खेती की जरूरत है। इसके लिये फसल चक्र में बदलाव, हरी खाद व कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया जाता है।
अधिक उत्पादन के लालच में बेजा रासायनिक खादों के इस्तेमाल ने हमारी भूमि की उर्वरक शक्ति व पारिस्थिकी को खासा नुकसान पहुँचाया है, इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है।
मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों का सन्तुलन बना रहना जरूरी है। साथ ही मिट्टी में सक्रिय केंचुओं, मित्र कीटों व जीवाणुओं की प्रक्रियाएँ जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, उसे भुरभुरा व अधिक जल संग्रहण क्षमता वाला बनाती हैं। इस दृष्टि से कम्पोस्ट व प्राकृतिक खाद जो गोबर व सड़ी-गली पत्तियों से मिलती है, उपयोगी है।
यानी रासायनिक खाद पर निर्भरता खत्म कर प्राकृतिक खाद, केंचुआ खाद की ओर मुड़ना उचित है। जैविक खेती में हानिकारक कीट प्रकोप से बचने के लिये नीम, राख, गोमूत्र व इनके मिश्रणों आदि का उपयोग किया जाता है।
जैविक खेती को कम खर्च की खेती, सस्ती खेती व आत्मनिर्भरता की खेती से जोड़ना जरूरी है। इसके साथ यदि जल संरक्षण होगा तो हरियाली बढ़ेगी तभी पशु रखे जा सकेंगे तभी प्राकृतिक व जैविक खाद प्राप्त हो सकेगी, जो जयप्पा के पास सहज उपलब्ध है।
जयप्पा की जिन्दगी अब बदल गई है। उसका पक्का घर बन गया है। उसके दो बेटे बंगलुरु में नौकरी कर रहे हैं जो अब खेती सम्भलने के बाद नौकरी छोड़कर अपनी खेती में काम करने की सोच रहे हैं। माँ-बाप से दूर रहकर वे खुश नहीं हैं। यह बताते हुए जयप्पा की आँखों में चमक आ जाती है।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि खेत में मेहनत करके जैविक खेती के साथ अच्छे से जिन्दगी जी सकते हैं। जैविक खेती जयप्पा जैसे छोटे किसानों के लिये बहुत उपयोगी है। इससे किसान आत्मनिर्भर बनेंगे। पर्यावरण बचेगा और साथ ही उजड़ते गाँव भी बचेंगे।
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