कृषि कार्य में पहले की अपेक्षा अब बदलाव दिखने लगा है। घाटे का कार्य होने के बाद भी राज्य में कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो जैविक खेती का नए प्रयोग कर मिट्टी से सोना उपजा रहे हैं। साथ ही अभावों के बीच सफलता की नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं।
ऐसे ही सफल किसानों में से एक हैं रोहतास जिले के सासाराम प्रखण्ड के महद्दीगंज निवासी किसान दिलीप सिंह। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कड़ी मेहनत व लगन से खेती की जाये, तो निश्चित ही किसान अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर कर सकता है। वे 60 एकड़ जमीन पर खुद सब्जी की खेती की बदौलत सालाना लगभग चालीस लाख रुपए कमा रहे हैं। साथ ही हजारों किसानों को प्रेरित भी किया। उन्हें कई राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
सासाराम के कई गाँवों में खेती
42 वर्षीय इस युवा किसान की खेती जिला मुख्यालय सासाराम के आसपास के मिश्रीपुर, शुंभा, अहराँव, नीमा, तारगंज, भदौरिया, धुआँ आदि गाँवों में फैली है। ये गाँव इनके घर से एक से आठ किमी दूर हैं। इनकी दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरू होकर रात के आठ बजे तक चलती रहती है।
प्रतिवर्ष 15 एकड़ टमाटर, बैंगन पाँच एकड़, मिर्च छह एकड़, प्याज 10 एकड़, मसूर दो एकड़, सरसों तीन एकड़, धान 30 एकड़, गेहूँ 10 एकड़, ब्रोकली व शिमला मिर्च की खेती करते हैं। मसूर प्रति एकड़ 20 क्विंटल, धान 55 से 60 क्विंटल तथा गेहूँ 18 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन करते हैं।
गेहूँ व धान की खेती श्री विधि व परम्परागत विधि से करते हैं। इनके धान के एक पौधे से 40 से 90 कल्ले तक निकलते हैं। दिलीप सिंह का कहना है कि एक एकड़ बैगन की खेती से आठ से 10 माह तक फल प्राप्त करते हैं। सवा लाख तक लाभ होता है। बैगन का बीज स्वयं तैयार करते हैं। देशी बैगन का 100 ग्राम बीज तैयार करने के लिये 8 से 10 बैगन की जरूरत होती है।
पूरे वर्ष फलती है भिंडी
इनकी भिंडी एक बार लगा देने से पूरे एक वर्ष तक फलता है। इस भिंडी का पौधा चार पत्तियों का होने पर फल देने लगता है। एक एकड़ भिंडी के पौधे में 10 से 15 हजार रुपए तक लागत आती है और एक वर्ष में एक से सवा लाख रुपए की आय होती है। बीज की खासियत यह होती है कि इसके पौधे से 60 दिनों में फल प्राप्त होने लगता है। पौधे के बढ़ते तने की प्रत्येक गाँठ से पाँच से छह फल मिलता है। साथ ही एक वर्ष तक फलन होता रहता है। अपनी खेती से जो बीज ज्यादा होता है, उसे आसपास के किसानों को पाँच सौ रुपए किलो की दर से बेच देते हैं। दूसरे राज्यों में आई हाईब्रिड भिंडी की कीमत जब दस रुपए होती है, तो इनके खेत में उत्पादित भिंडी की कीमत 20 रुपए प्रति किलो होती है।
मिर्च की खेती लाजवाब
दिलीप सिंह द्वारा उत्पादित हरी मिर्च भी देखने लायक होती है। मिर्च से एक वर्ष में प्रति एकड़ एक लाख की आय होती है। यदि टमाटर की बात करें, तो बीज स्वयं तैयार करते हैं। लगभग 15 वर्षों से उपयोग में लाया जा रहा है, जिसे गुलशन कहा जाता है। इस बीज को यह क्रॉस कर तैयार करते हैं। इस कारण उत्पादन अच्छा होता है। टमाटर एक पौधे से एक किलो से लेकर तीन किलो तक फल मिलता है।
प्याज का भण्डारण आसान
प्याज की खेती के लिये अच्छा किस्म का बीज लगाया जाता है। इनके द्वारा उत्पादित प्याज स्वादिष्ट, देखने में आकर्षक एवं भण्डारण के लिये ज्यादा टिकाऊ होता है। डेढ़ किलो बीज से तैयार पौधे को एक एकड़ में लगाकर दो सौ क्विंटल उत्पादन प्राप्त करना इनकी विशेष उपलब्धि है। ब्रोकली के एक पौधे से दिलीप सिंह को 10 फूल मिले। इनके खेत में शिमला मिर्च का उत्पादन भी राज्य के अन्य किसानों की अपेक्षा अधिक होती है। इस मिर्च की खेती एक बीघा में करते हैं। इसकी रोपनी नवम्बर में करते हैं। इससे मार्च तक फल प्राप्त होता है।
प्रशिक्षण व वैज्ञानिक सहयोग
भारतीय सब्जी अनुसन्धान, अदलपुरा (वाराणसी) में नासिक द्वारा प्रायोजित सब्जी उत्पादन की उन्नतशील तकनीक प्रशिक्षण-2005 में शामिल होकर प्रशिक्षण प्राप्त किया। साथ ही इन संस्थानों के वैज्ञानिकों के सहयोग से खेती को मूर्त रूप दे रहे हैं।
कई राज्यों में बाजार
दिलीप सिंह ने कहा कि हमारा प्याज कोलकाता में अधिक बिकता है। टमाटर, बैंगन, मिर्च तथा भिंडी खरीदने के लिये झारखण्ड, वाराणसी, गाजियाबाद तथा हरियाणा के व्यापारी आते हैं। उन्हें हम अपनी शर्तों पर अपना उत्पादन बेचते हैं। 80 प्रतिशत खेती जैविक होती है, जिससे अधिक कीमत के साथ प्राथमिकता के आधार पर उत्पादक बेचता है।
बड़े स्तर पर उत्पादन करने से उत्पादन लागत कम होने के साथ देश की बड़ी मंडियों में भेजने में सहूलियत होती है। इनकी 90 प्रतिशत खेती किराए की भूमि पर होती है। दिलीप सिंह ने कहा कि हमारी खेती में सब्जी से प्रति एकड़ आय 50 हजार से लेकर 1.25 लाख रुपए तक है। वैसे नफा-नुकसान अच्छी फसल व बाजार में अधिक मूल्य मिलने पर निर्भर करता है। इनके खेत में प्रतिदिन 50 से अधिक महिला व पुरुष कामगार काम करते हैं।
पुरस्कार व सम्मान
भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, दिल्ली के वैज्ञानिकों का सहयोग एवं भारतीय सब्जी अनुसन्धान, अदलपुरा (वाराणसी) में 2008 में डीन डॉ. आरपी सिंह द्वारा एक किसान के रूप में विशेष जानकारी होने के लिये रजत पदक प्रदान किया गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सह कृषि प्रदर्शनी में बैंगन (लंबा) के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिये पहला स्थान प्राप्त किया। अगस्त, 2010 में पटना में आयोजित ‘सब्जी की ऑर्गेनिक खेती व प्रमाणीकरण’ कार्यशाला में भाग लेकर प्रमाणपत्र प्राप्त किया। 2005 में भारतीय सब्जी अनुसन्धान, वाराणसी द्वारा आयोजित सब्जी उगाने वाले महोत्सव में भी उन्हें पुरस्कार मिला। इंटरनेशनल फूड प्रोसेसिंग का पुरस्कार- 2010 में मिला। 2011 में अमेरिका में अन्तरराष्ट्रीय इनोवेटिव किसान नाबार्ड ने भी राज्य स्तरीय किसान पुरस्कार-2011, जगजीवन अभिनव किसान पुरस्कार- 2012 में दिया गया। 2012 में ही बिहार कृषि विश्वविद्यालय से इनोवेटिव कृषक अवार्ड मिला। इसके अलावा अच्छी खेती के लिये देश व विदेश स्तर पर भी कई पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं।
सब्जी के पौधे के पत्ते तथा डंठल को सड़ाकर खेत तैयार करते हैं। धान की नर्सरी 15 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म के धान की फसल रोपनी के 90-95 दिनों बाद काटने लायक हो जाती है। इसका उत्पादन लगभग 50 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। दिलीप सिंह ने बताया कि एक बार रोपनी के समय जैविक खाद डालते हैं तथा दूसरी बार बाली निकलते समय। कीटनाशी के रूप में सिर्फ 500 मिली प्रति एकड़ नीम तेल का छिड़काव करते हैं। इससे पौधे में अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। इससे उत्पादन अधिक होता है।
जैविक तकनीक से देसी हाइबिड्र टमाटर के साथ चेरी टमाटर, शिमला मिर्च, गाँठ गोभी, प्याज, हरी मिर्च, बन्दगोभी, भिंडी, धनिया, ब्रोकली आदि का उत्पादन कर बिहार के कई जिलों के साथ दिल्ली, उत्तर प्रदेश उत्तराखण्ड आदि प्रदेशों में भेजते हैं। एक एकड़ जमीन पर 1200 पपीते के पौधे भी लगाए। एक पेड़ से कम-से-कम एक हजार रुपए का लाभ मिल जाता है। खस आदि औषधीय पौधे भी लगाए हैं। अन्य किसानों को अपने खेतों पर बुलाकर इन्हें सब्जी उगाने की तकनीक बताते हैं। किसानों से ये सब्जी लेकर उसे दूसरे प्रदेशों की मंडियों तक पहुँचाते हैं। सब्जी के बीज भी खुद तैयार करते हैं। सामान्य तौर पर टमाटर 20 से 22 टन प्रति एकड़ उत्पादन होता है, जबकि दिलीप 40 से 50 टन प्रति एकड़ उत्पादन ले लेते हैं।
/articles/jaaivaika-khaetai-kara-alaga-pahacaana-banaai-dailaipa-nae