जैविक खेती के गुर सिख रहे है किसान

जैविक खेती के गुर सिखा रहे है किसान
जैविक खेती के गुर सिखा रहे है किसान

भारत के पूर्वी तट पर स्थित उड़ीसा राज्य  में  किसानों के कल्याण और कृषि क्षेत्र के विकास के लिए फाउंडेशन फ़ॉर इकोलॉजिकल संस्था और  उड़ीसा कृषि विभाग के द्वारा ओडिशा आजीविका मिशन के तहत किसानों को  जैविक खेती पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ताकि वह अपनी फसलों की  पैदावार बेहतर कर सके। 

कृषि मित्र ग्रामीण इलाकों में जाकर  किसानों को फसलों की अच्छी पैदावार की जानकारी देने के साथ उन्हें प्रशिक्षित भी करते हैं।भारतीय गरिया भी एक प्रशिक्षित कृषि मित्र है और उन्होंने एफइएस (F E S)  से लंबे समय तक कि जाने वाली खेती पर प्रशिक्षण लिया है। और अब वह खरीफ और धान की फसलों को बढ़ावा देने के लिए जैविक कृषि, बीज चयन , बीजामृत बनाना, बीज उपचार और गैर- रासायनिक उर्वक और कीटनाशकों आदि पर किसानों को जागरूक कर रही है।

वही मुरीबहल ग्राम पंचायत के किसनों को भारती द्वारा फसलों के उत्पादन को लेकर जो प्रशिक्षण दिया गया था उसका प्रयोग उन्होंने अपनी खेती में  भी किया। जिससे उनकी फसलों का  उत्पादन  अच्छा हो पा रहा है ।भारती कहतीं है कि वह  उन गांव और किसनों के  खेतों में गई जहाँ पानी काफी कम इस्तेमाल होता है उन्होंने मुरीबल ग्राम पंचायत के किसानो को न्यूट्री गार्डन के बारे में बताया और  जैविक कीटनाशको को बढ़ावा देने के लिये उन्हें  अज्ञेयस्त्र जीवामृत और हांडी खाता को बनाने और उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया ।

जिन किसानों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया आज उन्हें अच्छा लाभ  के साथ बेहतर परिणाम भी मिल रहे हैं  एफइएस (F E S)  फील्ड से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए हर 15 दिन में  एक सत्र का आयोजन करता है । जहाँ हमे फील्ड की चुनौतियों और सवालों का आसनी से जवाब मिल जाता है। 

एफइएस (F E S)  ने हमें विभिन्न नई चीजों पर प्रशिक्षित किया है और इसलिए मैं। एफइएस (F E S)  को अपनी और पंचायत की और से धन्यवाद करती हूं

वही नीलांबर बिस्वाल ओड़िया पाली ग्राम पंचायत में कृषक साथी  के अलावा एक किसान भी है नीलांबर बिस्वाल कहते है कि एफइएस (F E S)  के द्वारा जो वर्चुअल प्रशिक्षण का आयोजन कराया जा रहा है उसमें बहुत सी चीजें  सीखने को मिल रही  है जैसे जीवामृत और विभिन्न अर्क को गौ मूत्र से बनाकर उसका इस्तेमाल हरे चने की फसल और अन्य खेती में किया जाए। इसके अलावा लाइन बुवाई की तकनीकों के बारे में भी   प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 

नीलांबर कहते है प्रशिक्षण से जो भी सीखते है उसे हम किसनों के पास ले जाते है और वे भी उससे प्रशिक्षत हो रहे है। संस्था द्वारा जल बजट पर एक और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिसमें हमें  कम पानी के चलते  जो  किसान जूझ रहे है वहाँ खेती से पहले पानी की जांच और बजट करना होगा।

इसलिये हमारे लिए ये जरूरी है कि हम पानी की उपलब्धता को जांचे और खेती के लिए एक योजना बनाएं। हम प्रशिक्षण से सीखकर मूंग की खेती को हाइलैंड और धान तराई क्षेत्रों में बढ़ावा देने के लिए किसानो को पानी का बजट बनाने के लिये मना रहे हैइसके साथ ही हम जूम सत्र में।नियमित रूप से भाग लेकर जो सीखते है उससे किसनों की समस्या का समाधान कर पाते है । इन सत्र से हम तो  बहुत कुछ सीख ही रहे है साथ ही  किसानो को भी सीखने को  मिल रहा है. 

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Post By: Shivendra
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