केंचुओं का इस्तेमाल कर कचरे को वर्मीकंपोस्ट में बदल कर जैविक खाद बनाई जाती है। वर्मीकंपोस्ट की यह विधि शेखावाटी से प्रचलित होकर समूचे राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश तक पहुंच गई है। मुकेश गुप्ता कहते हैं कि यह मोरारका फाउंडेशन और मोरारका ऑर्गेनिक की लगन का ही नतीजा है कि विकसित केंचुओं का निर्यात हम दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों को कर पा रहे हैं।
कुछ वक्त पहले तक हम भारतीयों में से ज्यादातर ऑर्गेनिक फूड की खूबियों से वाकिफ तक नहीं थे। यह विदेशियों की ज्यादा पसंद हुआ करता था, पर अब हालात बदल चुके हैं। अब भारतीय बाजार न सिर्फ ऑर्गेनिक उत्पादों से अटे पड़े हैं, बल्कि बहुतायत में ऑर्गेनिक उत्पादों की खेती भी की जा रही है। भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों के तेजी से विस्तार का श्रेय देश के मशहूर उद्योगपति कमल मोरारका द्वारा संचालित मोरारका फाउंडेशन को जाता है। मोरारका फाउंडेशन ने अपने अथक और सतत प्रयास के जरिए आज ऑर्गेनिक खेती को आंदोलन का रूप दे दिया है। फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक मुकेश गुप्ता बताते हैं कि जैविक खेती पैदावार, बचत और स्वास्थ्य के नजरिए से भी किसानों के लिए फायदेमंद है। लिहाजा किसान जैविक खेती की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। इससे न सिर्फ पैदावार बढ़ती है, बल्कि उत्पादों की गुणवत्ता में भी बेतहाशा इजाफा होता है। इतना ही नहीं, जैविक खेती करने वाले किसानों की फसलों को अन्य फसलों की तुलना में कीमतें भी ज्यादा मिलती हैं, जिससे किसान आर्थिक रूप से भी संपन्न बनता है। फिलहाल मोरारका फाउंडेशन कुल पंद्रह राज्यों में जैविक खेती करा रहा है। मुकेश गुप्ता इंटरनेशनल कंपीटेंस सेंटर फॉर ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर (आइसीसीओए) के भी अध्यक्ष हैं। आइसीसीओए ऑर्गेनिक उत्पादों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग करने का काम करती है। मुकेश गुप्ता बताते हैं कि वर्ष 2008 तक भारत में 8.65 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर ऑर्गेनिक खेती हो रही थी, जो भारत के कुल 14.2 करोड़ हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का महज 0.61 प्रतिशत है। लेकिन, यह भारतीयों के अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने का ही नतीजा है कि यह आंकड़ा 2012 तक 20 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाने की उम्मीद की जा रही है। मुकेश गुप्ता बताते हैं कि भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों का कारोबार हर वर्ष दोगुना होता जा रहा है। इस रफ्तार से यह भरोसा बंधा है कि वर्ष 2012 तक भारत से जैविक खाद्यान्नों का निर्यात 4500 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
फिलहाल देश खाद्यान्न की कमी से भी जूझ रहा है। खाद्य पदार्थों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। और, ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी देश में हर साल करीब 60 हजार करोड़ रुपये के खाद्यान्न की बर्बादी हो रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन जैविक खेती के जरिए इस बर्बादी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि ऑर्गेनिक फूड लंबे समय तक खराब नहीं होते। उनके संरक्षण के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता नहीं पड़ती। जैविक खेती के माध्यम से सूखे जैसी स्थितियों से भी निपटा जा सकता है, क्योंकि जैविक खेती में फसलों की सिंचाई के लिए पानी की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। जैविक खेती से मिट्टी की पौष्टिकता बढ़ती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहती है।
मोरारका फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक मुकेश गुप्ता बताते हैं कि ऐसे वक्त में जब खाने की तमाम वस्तुओं में मिलावट होने से लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है, तब ऑर्गेनिक फूड की महत्ता बेहद बढ़ जाती है, क्योंकि जैविक उत्पादों में शुद्धता की गारंटी है। भारत वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का निर्यातक बन सके, इसके लिए बेहद जरूरी है कि लोगों को जागरूक किया जाए। उन्हें समझाया जाए कि जैविक उत्पाद वस्तुतः है क्या। प्राकृतिक तरीके से बगैर किसी रासायनिक खाद, कीटनाशक और उर्वरक के इस्तेमाल के पैदा किए गए खाद्यान्न सेहत के लिए कितने लाभकारी हैं। इसके अलावा ऑर्गेनिक फूड सेहत के साथ-साथ पर्यावरण का भी दोस्त है।
देश के शीर्ष उद्योगपति एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल मोरारका के मोरारका फाउंडेशन ने पिछले 15 वर्षों में इस दिशा में क्रांतिकारी काम किया है। जैविक खेती के विकास और जैविक मिट्टी की उपयोगिता के महत्व को समझते हुए मोरारका फाउंडेशन ने राजस्थान के अपने पैतृक स्थान शेखावाटी क्षेत्र समेत देश के कई हिस्सों में काम करना शुरू किया। गोष्ठियां कीं, सेमिनार किए। घर-घर जाकर किसानों को जैविक खेती के फायदे के बारे में बताया और समझाया। क्षेत्र की बंजर मिट्टी, पानी, बाजार आदि पर शोध करके फाउंडेशन ने उसका सीधा फायदा क्षेत्र के किसानों को पहुंचाया। प्रशिक्षण शिविरों के मार्फत किसानों को जैविक खेती की पद्धति का बारीक प्रशिक्षण दिया। जिसका सुपरिणाम यह हुआ कि आज शेखावाटी का पूरा इलाका रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह हो गया है।
दूर-दूर तक हरी-हरी फसलें लहलहाती नजर आती हैं। खाद्यान्नों में दलहन और तिलहन ही नहीं, बल्कि हरी सब्ज़ियां भी बहुतायत में पैदा हो रही हैं। फाउंडेशन की कोशिशों के परिणाम इतने उत्साहवर्द्धक हैं कि साल के बारहों महीने शेखावाटी क्षेत्र में पैदा हुई हरी सब्ज़ियां मसलन टमाटर, बैगन, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन, गाजर, करेला, मटर इत्यादि मुंबई और दिल्ली के बाजारों में सीधे पहुंच रही हैं। यह काम मोरारका फाउंडेशन के निर्देशन में ही संभव हो पाता है। कृषि फार्म के एक काश्तकार नेक राम बताते हैं कि जैविक खेती से सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि खेती की लागत 80 फीसदी कम हुई है और कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। किसानों की आमदनी 30 से 40 प्रतिशत बढ़ गई है।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि मोरारका फाउंडेशन का मकसद ही है कि किसानों को कृषि से व्यवसाय जैसी आमदनी हो। इसके लिए मोरारका फाउंडेशन किसानों को विभिन्न उपयोगी सलाह देता है, मसलन फसल का चुनाव, खेती करने के उन्नत तरीके, कृषि संबंधी आधुनिक सूचनाएं, फसल कटने के बाद वे कैसे बेहतर मूल्य पा सकते हैं। साथ ही वह फसल का बीमा, खाद और बीज की उपलब्धता आदि के बारे में शिविरों के माध्यम से बराबर प्रशिक्षण देता है। इसके लिए मोरारका फाउंडेशन ने नवलगढ़ कस्बे में बस स्टैंड, तहसील, पंचायत समिति और कोर्ट के पास एक एग्री बिजनेस सेंटर भी स्थापित किया है। सबसे बड़ा कदम मोरारका फाउंडेशन ने जो उठाया है, वह यह कि मुंबई में ऑर्गेनिक उत्पादों का देश में पहला और सबसे बड़ा रिटेल स्टोर अपने ऑर्गेनिक ब्रांड डाउन टू अर्थ शुरू किया है। वैसे भी मोरारका के उत्पाद अपनी बेहतरीन गुणवत्ता और शुद्धता के लिए देश और विदेशों में जाने जाते हैं। इस ऑर्गेनिक स्टोर में दो सौ से ज्यादा ऑर्गेनिक उत्पाद हमेशा उपलब्ध रहते हैं। मुकेश गुप्ता का कहना है कि इस वक्त देश में ऑर्गेनिक उत्पादों के लगभग 30 मिलियन उपभोक्ता हैं, लेकिन उन्हें इन उत्पादों को खरीदने में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए मोरारका ऑर्गेनिक्स की योजना है कि वह देश भर में ऐसे रिटेल स्टोर शुरू करे, ताकि उपभोक्ताओं के साथ-साथ किसानों को भी फायदा हो सके। इस पहल से किसान बिचौलियों के चंगुल में आए बिना अपनी फसल का उचित मूल्य पाते हैं।
फिलहाल फाउंडेशन करीब एक लाख एकड़ भूमि में ऑर्गेनिक खेती का विकास कर चुका है। इसके लिए फाउंडेशन वर्मीकल्चर का अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रहा है। वर्ष 1995 में राजस्थान सरकार ने राज्य के दस हजार किसानों के साथ जैविक खेती की शुरुआत करने का प्रस्ताव मोरारका फाउंडेशन के साथ किया था। आज दो लाख से ज्यादा किसान इस फाउंडेशन के साथ जुड़कर जैविक खेती कर रहे हैं। ये किसान जैविक खादों का प्रयोग कर बेहतरीन गुणवत्ता के फल, सब्ज़ी, दलहन, तिलहन और मसालों का उत्पादन कर रहे हैं।
मुकेश गुप्ता बताते हैं कि केंचुओं का इस्तेमाल कर कचरे को वर्मीकंपोस्ट में बदल कर जैविक खाद बनाई जाती है। वर्मीकंपोस्ट की यह विधि शेखावाटी से प्रचलित होकर समूचे राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश तक पहुंच गई है। मुकेश गुप्ता कहते हैं कि यह मोरारका फाउंडेशन और मोरारका ऑर्गेनिक की लगन का ही नतीजा है कि विकसित केंचुओं का निर्यात हम दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों को कर पा रहे हैं। हमारी जो कोशिशें हैं, उनमें आने वाले दिनों में भारत विश्व स्तर पर जैविक खेती में निश्चित तौर पर नए आयाम स्थापित करेगा।
शेखावाटी उत्सव जैविक भोज की मची धूम
पिछले पंद्रह वर्षों से होने वाले शेखावाटी उत्सव की खास पहचान बन चुका है मोरारका फाउंडेशन द्वारा आयोजित जैविक उत्पादों से तैयार किए गए लजीज व्यंजनों का जैविक भोज। मेले के दूसरे दिन दोपहर में होने वाले इस भोज का जायका लेने दूरदराज से गणमान्य अतिथि पहुंचते हैं, जिनमें विदेशी अतिथियों और मीडियाकर्मियों की खासी उपस्थिति रहती है। इस भोज में शेखावाटी में ही उत्पादित जैविक खाद्यान्नों के पकवानों को परोसा जाता है। बाजरे और मक्के की रोटी, गुड़, मक्खन, चावल, गेहूं की रोटी, कढ़ी, खीर, लहसुन-मिर्च की चटनी, कैर की सब्ज़ी, आलू मटर गोभी टमाटर की लाजवाब सब्ज़ी, सांगरी, दही, छाछ, राबड़ी आदि। ये सभी व्यंजन अपनी मनमोहक खुशबू और स्वाद से अतिथियों को अपना मुरीद बना लेते हैं।
इस ऑर्गेनिक भोज के माध्यम से फाउंडेशन, शेखावाटी उत्सव में दूरदराज से आए लोगों को ऑर्गेनिक फूड के महत्व और उपयोगिता के बारे में जागरूक करता है। इस भोज में परोसे गए खानों की एक और बेहद खास बात होती है। जैविक होने की वजह से ये खाद्यान्न पकने के बाद भी अपनी असली रंगत नहीं छोड़ते, जिसकी वजह से ये सुपाच्य और स्वादिष्ट तो हो ही जाते हैं, देखने में भी बड़े आकर्षक लगते हैं। शेखावाटी के रहने वाले नवल किशोर अग्रवाल कहते हैं कि यहां के लोगों को हर साल इस भोज का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए इस भोज में उन्हीं के द्वारा तैयार किए गए व्यंजन परोसे जाते हैं।
जैविक खेती करने वाले या जैविक खेती करने के इच्छुक किसान इस सिलसिले में अगर कोई सलाह-मशविरा चाहते हैं या उन्हें जैविक खेती करने में किसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो वे नीचे लिखे पते पर इस क्षेत्र में मील का पत्थर बन चुके मोरारका फाउंडेशन से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा किसान भाईयों को अपने उत्पादों के विपणन या मार्केटिंग में भी किसी समस्या से दो चार होना पड़ रहा है तो भी मोरारका फाउंडेशन उनकी पूरी सहायता करने को तत्पर है।
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