अगर लंदन की टेम्स नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है तो फिर यमुना को क्यों नहीं। ये कहना है कि मुम्बई के 37 वर्षीय कलाकार भूषण कल्प का। भूषण अपनी कला के जरिए दिल्ली में यमुना नदी किस तरह खत्म हो रही है, इस पर रोशनी डाल रहे हैं। भूषण ने बताया कि किस तरह कला बदलाव का सबसे महत्त्वपूर्ण जरिया बन सकती है। इसकी मदद से लोग ये समझेंगे कि यमुना को पुनर्जीवित करने के लिये क्या करने की जरूरत है। इसमें सोशल मीडिया भी अहम भूमिका निभा रहा है।
नदी भी हमें वही दे रही है, जो हमने इसे दिया
भूषण ने यमुना की गिरती हुई स्थिति को दिखाने के लिये कला को माध्यम के तौर पर क्यों चुना इसे लेकर वो कहते हैं कि मुम्बई के सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट का वर्ष 2003 का बैच ‘लॉस्ट एंड फाउंड’ की थीम पर अपना प्रोजेक्ट लेकर आया था इसे देखकर ही मैंने सोचा कि मैं इस थीम को यमुना नदी के लिये इस्तेमाल करूँगा। इस उम्मीद के साथ कि मेरे इस प्रयास से नदी की तत्कालीन स्थिति सुधरेगी और यह फिर से जीवंत हो उठेगी। बाकी नदियों की तरह यमुना समुद्र में नहीं मिलती। यह आपके पापों, आपकी गन्दगी को निगल तो लेती है पर खुद इससे उबर नहीं पाती और इसलिये अब ये नदी भी हमें वही चीजें दे रही है, जो हमने इसके साथ किया।
पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया बदलाव का एक बड़ा कारक बनकर उभरा है। अब हर सामाजिक या जागरुकता अभियान की शुरुआत सोशल मीडिया कैम्पेन से होती है। हालाँकि सोशल मीडिया ही नहीं कला के जरिए भी इतिहास में इस तरह के बदलाव आते रहे हैं। तब सोशल मीडिया का नामोनिशान नहीं था। कला के जरिए जागरुकता फैलाने का यही काम भूषण कल्प भी कर रहे हैं। वह अपनी कला को माध्यम बनाकर यमुना नदी की धीरे-धीरे होते अन्त को दिखा रहे हैं। सोशल मीडिया को बदलाव के कारक के रूप में इस्तेमाल किए जाने को लेकर भूषण कहते हैं कि यह बदलाव के टूल के तौर पर उभरा है, जो अच्छा है।
हालाँकि सदियों से हमारे जीवन का हिस्सा रहे कला और संस्कृति के महत्त्व को भी झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन मेरे लिये इसका इस्तेमाल करें या उसका ये वाली स्थिति नहीं है, बल्कि मुझे जागरुकता फैलाने के लिये दोनों का इस्तेमाल करना है। लोग सोशल मीडिया पर ताजमहल के बारे में बातें करते हैं। लेकिन अगर आपको इसे देखना है, महसूस करना है तो वहाँ जाना होगा। लोग इसे देखने भी जाएँ इसलिये हमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर छोटे-बड़े हर तरह के कल्चरल सेंटर्स, आर्टिस्ट्स और आर्ट ऑर्गनाइजेशंस की जरूरत है। मैं कायापलट, पूरी तरह से रूपान्तरण में यकीन करता हूँ। इसे लेकर मैं जुनूनी हूँ और यही बात कलाकार की किसी बात को व्यक्त करने की शक्ति को प्रेरित करती है। कला ने हमेशा से ही प्रेरक शक्ति के तौर पर काम किया है।
ये दिल्ली के लोगों की जिम्मेदारी है
लंदन की टेम्स नदी को आज से करीब 50 साल पहले जैविक तौर पर मृत घोषित कर दिया गया था। लेकिन ये नदी फिर से जीवंत हो उठी। इसका भी कायापलट हुआ। अगर टेम्स को दोबारा जीवन मिल सकता है तो फिर यमुना को क्यों नहीं। दिल्ली के लोगों को इस बात को लेकर जागरुक होना होगा कि वह कैसे नदी को दूषित कर रहे हैं और यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि नदी को दूषित होने से बचाएँ। उन्हें नदी में कुछ भी नहीं फेंकना चाहिए। दूसरा कदम ये उठाना चाहिए कि जवाबदेही लें। कोई भी सीवर यमुना में न जाए और तब नदी की सफाई शुरू करनी चाहिए। इसके लिये हर नागरिक को संवेदनशील बनना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि इसके लिये नागरिकों पर जुर्माना लगाया जाए, बल्कि उन्हें जागरुक करना जरूरी है। इसके लिये सरकार को स्लमों में टॉयलेट बनवाने होंगे, जिससे यहाँ के लोग नदी के किनारे जाकर खुले में शौच ना करें।
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