जादुई चावल


देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में उन्नत बीजों की अहम भूमिका रही है। 50 साल पहले बेहतर पैदावार देने वाली धान की एक किस्म आईआर8 विकसित हुई थी, जिसने न सिर्फ दुनिया को भुखमरी से बचाया बल्कि भारत में हरित क्रांति के बीज बो दिए

1. आज आईआर8 की क्या अहमियत है?
यह धान की एक उच्च उपज वाली किस्म है, जिसे मिरेकल राइस यानी जादुई चावल भी कहा जाता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद एशिया भीषण खाद्य संकट से जूझ रहा था। लेकिन साठ के दशक में आईआर8 ने एशियाई देशों में चावल उत्पादन में क्रांति ला दी, जिससे दुनिया को अकाल और भुखमरी की चुनौती से निपटने में मदद मिली। गत नवम्बर में 50 साल पूरे कर चुका यह धान आज कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा में विज्ञान के योगदान का प्रतीक है। इसके कारण विश्व में धान उत्पादन 1966 में 25.7 करोड़ टन से बढ़कर 2015 में 74 करोड़ टन तक पहुँच गया।

2. यह किस्म परम्परागत चावल से कैसे अलग थी?
उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में परम्परागत तौर पर चावल के पौधे का तना लम्बा और कमजोर होता है। जब किसान खाद डालते तो ये पौधे गिर जाते थे, जिससे इनमें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बन्द हो जाती थी। पौधों के गिरने से अनाज या तो मिट्टी में मिलकर खराब हो जाता या फिर इसे चूहे बर्बाद कर देते थे। इसलिये एक बौने पौधे की जरूरत थी, जो बिना गिरे खाद-पानी प्राप्त करे और कटाई तक सीधा रहे। यह काम आईआर8 ने कर दिखाया, जिससे चावल उत्पादन कई गुना बढ़ गया।

3. इसकी खोज कब और कैसे हुई?
पचास के दशक में दुनिया की आधी आबादी वाला एशिया खाद्य संकट से जूझ रहा था क्योंकि आबादी में बढ़ोत्तरी के मुकाबले धान जैसे प्रमुख अनाज का उत्पादन नहीं बढ़ रहा था। इस चुनौती से निपटने के लिये अमेरिका के फोर्ड एवं रॉकफेलर फाउंडेशन ने फिलीपींस सरकार के साथ मिलकर इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। संस्थान के वैज्ञानिक पीटर जेनिंग, तेजु चांग और हांक बीचेल ने सन 1963 में धान की हजारों किस्मों की क्रास ब्रीडिंग के बाद 28 नवम्बर, 1966 को इसे जारी किया। भारतीय विज्ञानी एसके डे दत्ता ने 1966 में पहली बार इसे फील्ड में प्रमाणित करने वाले दल में अहम भूमिका निभाई थी।

4. इसकी उत्पादकता क्या थी?
आईआर8 ने चावल उत्पादन में क्रांति ला दी थी। उस समय भारत में किसान एक हेक्टेयर में डेढ़ से दो टन चावल पैदा करते थे। लेकिन इस नई किस्म ने एक झटके में पैदावार बढ़ाकर 7-10 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुँचा दी। इससे पहले कभी एक प्रयास में धान की पैदावार दोगुना भी नहीं हुई थी। इसलिये आईआर8 को मिरेकल राइस या जादुई धान का नाम दिया गया।

5. कैसे बना जादुई चावल
बौनी किस्म होने की वजह से सूर्य से पोषण की अधिक मात्रा अनाज बनने में खर्च होती है। इसलिये हर पौधे में ज्यादा दानें उगते हैं और पौधा जमीन पर भी नहीं गिरता। इसी खूबी के चलते यह बीज दुनिया भर में बहुत तेजी से लोकप्रिय हुआ। हालाँकि, इसके अत्यधिक प्रसार के चलते जैव-विविधता प्रभावित हुई और उर्वरकों का उपयोग बढ़ा।

6. भारतीय कृषि के लिये आईआर8 के क्या मायने हैं?
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत आईआर8 की सफलता के साथ ही हुई। आज भारत चीन के बाद दुनिया में सबसे बड़ा चावल उत्पादक और प्रमुख निर्यातक देश है। देश को इस स्थिति में पहुँचाने का बड़ा श्रेय आईआर8 जैसे उन्नत बीजों को जाता है। आईआर8 के बाद भारत की औसत चावल पैदावार में तीन गुना बढ़ोत्तरी हुई। 1960 के दशक में जहाँ औसत पैदावार दो टन प्रति हेक्टेयर थी वह बढ़कर नब्बे के दशक में छह टन प्रति हेक्टेयर हो गई।

7. भारत में इसकी शुरुआत कहाँ से हुई?
आन्ध्र प्रदेश के अताचंता गाँव में एन सुब्बा राव नाम के किसान ने 1967 में पहली बार दो हजार हेक्टेयर से अधिक खेत में आईआर8 बोया था। अगले साल इसी गाँव के अन्य किसानों ने 1600 हेक्टेयर में यह बीज उगाया। इसके बाद ये बीज देश भर में पहुँच गए। सुब्बा राव ‘मिस्टर आईआर8’ और यह गाँव ‘बीज ग्राम’ के तौर पर मशहूर हो गया।

8. आईआर8 में भारतीय वैज्ञानिकों का क्या योगदान है?
आईआर8 की सफलता के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने धान की कई उन्नत किस्में विकसित कीं। सन 1967 में आईआरआरआई में शामिल हुए गुरदेव सिंह खुश ने आईआर8 की तर्ज पर चावल आईआर20, आईआर36 और आईआर50 जैसी 300 से ज्यादा किस्में विकसित करने वाले दल में अहम भूमिका निभाई।

9. आईआर8 से खाद्य सुरक्षा कैसे बढ़ी?
आईआर8 से धान की पैदावार कई गुना बढ़ने से एक तरफ किसानों की आय बढ़ी, जबकि दूसरी तरफ लोगों को सस्ता अनाज मुहैया हो पाया। सत्तर के दशक में जहाँ अन्तरराष्ट्रीय बाजार में चावल का दाम 550 डॉलर प्रति टन था, जो नब्बे के दशक में घटकर 200 डॉलर से भी कम हो गया। हरित क्रांति से पहले के दौर की तुलना में आज चावल का दाम आधा है। अस्सी के दशक में एशिया की 50 फीसदी आबादी भूखी थी, जो अब घटकर 12 फीसदी रह गई है।

10. आईआर8 के बाद क्या?
आईआर8 की कामयाबी के बाद गुरदेव सिंह खुश जैसे वैज्ञानिकों का जोर चावल की गुणवत्ता में सुधार, रोग व कीटों का सामना करने में सक्षम और कम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों पर रहा है। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना करने में सक्षम किस्मों की जरूरत है। विश्व भर के वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं।

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