जाड़े की गर्मी से रबी, वर्षा की कमी से खरीफ की फसल का नुकसान


जिसका डर था, वही होने जा रहा है। धान के बाद अब गेहूँ और दलहन-तिलहन की उपज भी कम होने जा रही है। मौसम की मार से किसान बेहाल हैं। कड़ाके की ठंड नहीं पड़ने से रब्बी फसलों की उपज बहुत कम होने की आशंका है। धान की सरकारी खरीद में देर होने, बोनस की घोषणा नहीं किये जाने या डीजल अनुदानों के वितरण में गड़बड़ी होने के आरोप-प्रत्यारोप में असली दर्द छुप गया है।

जाड़े के मौसम में बिहार में कभी इतनी गर्मी नहीं रही। वर्ष 1091 से आँकड़े मौजूद हैं। नवम्बर से तापमान सामान्य से अधिक अधिक बना रहा है।

राज्य के विभिन्न इलाकों में डेढ़ डिग्री से लेकर छह डिग्री के बीच बना रहा है। जाड़े के समय वर्षा भी आधी हुई। बरसात में कम वर्षा होने से धान की फसल बर्बाद हुई। पहले वर्षा के इन्तजार में और फिर नलकूप से सिंचाई करके फसल लगाने और फिर बचाने की कवायद में देर भी हुई और खर्च भी अधिक हुआ। वर्षा आखिर तक नहीं हुई। इसलिये हर स्तर पर सिंचाई करनी पड़ी।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम का असर फसल की पैदावार में होगा। जाड़े में होने वाली सभी फसलों-गेहूँ, दालें और तिलहन पर असर पड़ा है और उपज में दस से बीच प्रतिशत गिरावट निश्चित है। पुषा राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के कृषि-मौसम विज्ञानी डॉ. सत्तार ने कहा कि इस क्षेत्र के जलवायु में गम्भीर परिवर्तन का प्रभाव एकदम स्पष्ट है। कई वर्षों से वर्षा अनियमित हो गई है। कम वर्षा हो रही है और विभिन्न महीनों में उनका वितरण भी असामान्य होता है।

गेहूँ की फसल बिहार के 60 से 70 प्रतिशत इलाके में पूरी तरह वर्षा पर निर्भर करती है। पर इस वर्ष सितम्बर के आखिर से अक्टूबर भर वर्षा नहीं हुई। इसका असर पौधों के अंकुरण पर हुआ। मिट्टी में नमी का अभाव होने से पौधे कम निकले। तापमान अधिक होने से उपज कम हुई। पूरी ठंड के मौसम में यह स्थिति बनी रही।

गेहूँ की बेहतर फसल के लिये न्यूनतम तापमान आठ डिग्री सेल्सियस और अधिकतक 22 डिग्री सेल्सियस के बीच रहना चाहिए। इस वर्ष तापमान 11 डिग्री सेल्सियस से कभी नीचे नहीं गया। अधिकतम तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बना रहा। तापमान अधिक रहने से पौधों में फूल जल्दी लग गए और वर्षा नहीं होने का असर दाना बनने और परिपक्व होने पर पड़ने वाला है।

बिहार में औसतन हर साल लगभग 60 लाख टन गेहूँ की उपज होती है। लगभग 22 लाख हेक्टेयर में गेहूँ की खेती होती है और औसतन 26.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है। दलहन और तिलहन की फसल पर भी जाड़े की गर्मी का असर पड़ा है। विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक डॉ. बीसी चौधरी ने कहा कि ऊँचे तापमान के साथ-साथ पछुआ हवा चलने से संकट बढ़ गया। इससे हवा में मौजूद नमी घट गई और फसल को नुकसान हुआ। इस वर्ष किसान सचमुच समस्या में हैं।

मौसम कार्यालय के निदेशक ए.के. सेन ने बताया कि पूरे जाड़े में लगातार तापमान अधिक बना रहा है। यह नवम्बर से ही तकरीबन हर जगह लगातार डेढ़ डिग्री अधिक बना रहा। कई बार यह छह डिग्री उपर तक चला गया। वर्षा में करीब 50 प्रतिशत गिरावट रही। जनवरी में 9.4 एमएम वर्षा हुई जबकि सामान्य वर्षा 14.3 एमएम होती है। केवल इस एक महीने में 34 प्रतिशत कमी हुई।

मौसम के बदले चक्र के कारण धान की फसल पर गहरा असर पड़ा। कटनी की प्रारम्भिक रिपोर्टों के आधार पर कहा जा सकता है कि उपज आधी हो गई है। धान की पैदावार में 40 लाख टन की कमी का अनुमान है। समर्थन मूल्य के आधार पर हिसाब लगाएँ तो किसानों को 56 अरब का नुकसान हुआ। रबी फसल से इसकी भरपाई होने की उम्मीद समाप्त हो गई है।
 

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Post By: RuralWater
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