पानी पर सही शुल्क लगाना और वसूलना हुआ जरूरी

पानी पर सही शुल्क लगाना और वसूलना हुआ जरूरी
पानी पर सही शुल्क लगाना और वसूलना हुआ जरूरी

कुछ साल पहले कर्नाटक के एक शहर की मेयर ने मुझसे पूछा था कि नगरपालिका द्वारा मुहैया कराए जा रहे पानी से अपने प्रांगण, दीवार और वाहन को धोने से वह लोगों को कैसे रोक सकती हैं? उन्होंने मुझे बताया कि जागरूकता अभियान चलाए गए, जल संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा दिया गया, यहां तक कि नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से भी समझाया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जब मैंने उनसे पूछा कि लोग पानी के लिए कितना भुगतान करते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि प्रति कनेक्शन मासिक शुल्क सौ रुपये से भी कम है, पर वसूली को सख्ती से लागू नहीं किया गया है। जब मैंने उन्हें बताया कि इसी कारण से उनके संरक्षण के प्रयास असफल रहे, तो वह अचंभित रह गईं।

कम कीमत वाले संसाधनों का अत्यधिक उपभोग किया जाता है। पूरे देश में यही तो हो रहा है, जहां कम कीमत वाले पानी और बिजली के कारण लोग अधिकतम सीमा से अधिक उपभोग कर रहे हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम जल संकट से जल महा-संकट की ओर जा रहे हैं। पानी को केवल तभी संरक्षित किया जा सकता है, जब इसकी कीमत सही लगाई जाए। 

बेंगलुरु में आवासीय पाइप से पानी की कीमत सात रुपये से 45 रुपये प्रति 1,000 लीटर के बीच है। जिन घरों में नगरपालिका जल आपूर्ति की सुविधा नहीं है, वे सामान्य
लगभग 150 रुपये और जलाभाव के दिनों में 250 रुपये तक में टैंकरों से पानी खरीदते हैं। इस प्रकार पानी की सीमांत लागत या सही कीमत वास्तव में नगरपालिका द्वारा आपूर्ति होने वाले जल की कीमत से 20 से 35 गुना ज्यादा है। यदि जल की कीमत बढ़ती है, तो लोग संरक्षण के तमाम उपाय भी आजमाने लगेंगे। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने निर्णय किया था कि हरेकइंसान को घर से एक किलोमीटर या 30 मिनट से कम दूरी के स्रोत से प्रतिदिन 50 से 100 लीटर पानी पाने का अधिकार होना चाहिए। ऐसे देश में, जहां काफी सारे गरीब और कम आय वाले परिवार हैं, यह पानी भुगतान करने की क्षमता की परवाह किए बिना उपलब्ध होना चाहिए। गरीब परिवारों को पानी की यह बुनियादी मात्रा मुफ्त उपलब्ध कराने का मामला है।

यह जन-धन, आधार व मोबाइल (जेएएम) की त्रिमूर्ति ने वह बुनियादी ढांचा मुहैया करा दिया है, जिससे पानी की उचित कीमत वसूली जा सकती है और गरीबों को इसे खरीदने के लिए धन उपलब्ध कराया जा सकता है। भारतीय शहरों को कुछ वर्षों पर पानी की कीमतें बढ़ानी चाहिए, जब तक कि वे इसकी सीमांत लागत या सही कीमत के करीब न पहुंच जाएं। इसके साथ ही, गरीब परिवारों को पानी के वाउचर का अधिकार देना चाहिए। ऐसे वाउचरों (या सब्सिडी) को राज्य सरकार के बजट के माध्यम से वित्त पोषित किया जा सकता है, जब तक कि नगर निगम या जल निगम अपने स्वयं के धन से उन्हें सब्सिडी देने में सक्षम नहीं हो जाते हैंप्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 100 लीटर पानी उपलब्ध कराना अनिवार्य होना चाहिए। जब तक हम इस मुकाम पर नहीं पहुंचते हैं, तब तक पाइप, बोरवेल, टैंकर या बोतलों का उपयोग करना उन पर आधारित होना चाहिए। मूल्य निर्धारण से जल विवादों का भी समाधान हो सकता है। जो राज्य ज्यादा पानी पर दावा करते हैं, उनके लिए ज्यादा भुगतान करना अनिवार्य हो और जो राज्य अपने कोटे से कम पानी लेते हैं, उन्हें नकद भुगतान किया जा सकता है। मूल्य निर्धारण से पानी की बचत को प्रोत्साहन मिलेगा उसका आवंटन बह ज़्यादा कुशल होगा।  

जल नीति का निर्धारण कठिन नहीं है और जल परियोजनाओं को वित्तीय रूप से व्यावहारिक बनाया जा सकता है। यहां सबसे बड़ी बाधा राजनीतिक व्यवस्था है, जो लोक-लुभावनवाद की आदी हो चुकी है। भारतीय राजनेता सशुल्क चीजों को मुफ्त करना जानते हैं। वे मुफ्त चीजों को शुल्क योग्य बनाने के विचार से अपरिचित हैं। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए, देश में मूल्य निर्धारण ने ही एक बड़ा और बेहतर सड़क नेटवर्क तैयार किया है। पानी की कीमत इसलिए नहीं तब की जानी चाहिए कि यह सरकारों के लिए राजस्व का नया स्रोत बन जाए, बल्कि इसलिए करनी चाहिए कि यह जल संरक्षण को बढ़ावा दे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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Post By: Shivendra
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