इस व्यापारी को प्यास बहुत है।

बांधएक तरफ बर्बाद बस्तियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ डूबती कश्तियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है सूखी नदियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनिया- एक तरफ हो तुम।

अजी वाह! क्या बात तुम्हारी
तुम तो पानी के व्यापारी
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी,
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी

सारा पानी चूस रहे हो,
नदी-समन्दर लूट रहे हो
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो

उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी
चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलेगी ये धरती
सर से निकलेगी सब मस्ती

महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूंद-बूंद को तरसोगे जब
बोल व्यापारी-तब क्या होगा?

नगद-उधारी-तब क्या होगा??
आज भले ही मौज उड़ा लो
नदियों को प्यासा तड़पा लो
गंगा को कीचड़ कर डालो
लेकिन डोलेगी जब धरती-बोल व्यापारी-तब क्या होगा?

विश्व बैंक के टोकन धारी-तब क्या होगा?
योजनाकारी-तब क्या होगा?
नगद-उधारी तब क्या होगा?
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ-एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनिया-एक तरफ हो तुम।

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