महाराष्ट्र में एग्रोनेट द्वारा 40,000 गाँवों को जोड़ने का स्टेट गवर्नमेंट का प्लान है जिससे कृषि संबंध जानकारी वितरित की जा सके। सामयकी एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड जो हैदाराबाद, आंध्रप्रदेश में है 18 एग्रीटेक सेंटर संचालित करती है जो किसानों के लिये कृषि सहायता सेवा सर्विस चला रही है एवं इस सेवा के लिये कुछ चंदा वसूलती है। यह सेवा कृषि विशेषज्ञों द्वारा चलाई जा रही है ये सभी कम्प्यूटर से इंटरनेट द्वारा जुड़े हुए हैं।
विभिन्न शोधों के प्रकाशन से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, मानवतिकी तथा समाजशास्त्र एवं अन्य सभी विषयों में सूचनाओं का अम्बार लग गया है एवं यह अम्बार दिनों-दिन बड़ा होता जा रहा है जिससे इसके प्रबंधन में कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर प्राइमरी जरनल्स की कीमतों में दिनों-दिन बढ़ोत्तरी एवं पुस्तकालयों के घटते बजट के कारण शोधार्थियों को आवश्यक सूचना पहुँचना कठिन हो रहा है एवं कई-एक शोधार्थी इन सूचनाओं से वंचित रह जाते हैं, इसका परोक्ष रूप से असर आगे सूचना उत्पत्ति पर पड़ता है एवं सूचना की गुणवत्ता में गिरावट आती है। अत: सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं उचित उपयोग को सुचारू बनाने हेतु दुनिया भर के सूचना वैज्ञानिकों, पुस्ताकालय कर्मियों एवं सूचना प्रौद्योगिकीविदों ने विश्वस्तर पर अनेकों प्रयास किये हैं जिससे उक्त समस्या का समाधान हो सके। इन प्रयासों में से जो मुख्य हैं उनको संक्षिप्त में वर्णित किया जा रहा है।1. सूचना एवं संचार तकनीकें
इक्कीसवीं सदी में सूचना एवं ज्ञान, समाज की गरीबी दूर करने एवं विकास के लिये अहम तत्व हैं। सूचना एवं ज्ञान को ग्रहण करने के लिये सूचना एवं संचार तकनीकें एक अहम माध्यम की भूमिका प्रदान करती हैं।सामाजिक एवं आर्थिक विकास जो स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, कृषि, व्यापार एवं स्थानीय संस्कृति जैसे ढेरों आयामों से संबंधित हो सकता है, उस पर आईसीटीज द्वारा प्रभाव डाला जाता है।
सूचना एवं संचार तकनीकों में कम्प्यूटर, इंटरनेट, रेडियो, दूरदर्शन, दूरभाष, पब्लिक एड्रैस सिस्टम एवं सूचना के स्रोत समाचार पत्र आदि तत्व सम्मिलित हैं।
विकसित एवं अविकसित समाज : दुनिया के समाज को दो भागों में बाँटा जा सकता है एक तो वे लोग या देश जिनके पास सूचनाओं का अम्बार होता है एवं आईसीटीज का भरपूर उपयोग करते हैं- इस तरह के लोगों या देशों को विकसित समाज कहा जाता है। दूसरे वे लोग या देश जिनके पास सूचना संसाधन नहीं होते हैं एवं आईसीटीज के उपयोग से वंचित रहते हैं, उन्हें अविकसित समाज की श्रेणी में रखा जाता है। विकसित समाज के पास आगे और बढ़ने की क्षमता होती है। इस तरह ज्ञान ही समाज को आगे बढ़ाता है एवं अज्ञानता समाज को पिछड़ेपन या गरीबी की ओर हमेशा ढकेलती रहती है। इसे अंग्रेजी भाषा में ‘‘नॉलेज गैप’’ कहते हैं।
इसी संदर्भ में अंग्रेजी का दूसरा शब्द है ‘‘डिजिटल डिवाइड’’ इसमें कुछ सामाजिक कठिनाइयों के कारण एक समाज आईसीटीज का उपयोग नहीं कर पाता एवं दूसरा समाज इसका भरपूर उपयोग कर सकता है एवं विकास के क्षेत्र में हमेशा अग्रसर रहता है।
कोफी अन्नान ने सन 2002 में कहा था कि नई सूचना एवं संचार तकनीकें ‘‘ग्लोबलाइजेशन’’ हेतु परिचालन शक्ति हैं। ये लोगों को, देशों को नजदीक ला रही हैं एवं नीति निर्माताओं को विकास के नये औजार प्रदान कर रही हैं। इसी समय में उन्होंने यह आशंका जताई कि जो लोग या देश जिनके पास सूचनाओं का भंडार है एवं जिनके पास सूचनाओं का भंडार नहीं है यह दूरी बढ़ रही है अत: जिनके पास सूचना नहीं है वे ‘‘नॉलेज-बेस्ड ग्लोबल इकोनॉमी’’ से वंचित रह सकते हैं।
‘‘डिजिटल डिवाइड’’ शिक्षा, स्वास्थ्य, धन, गृह, रोजगार, साफ पानी एवं उचित खाद्य पदार्थ आदि को प्रभावित करती है। इस प्रकार आईसीटीज जो सूचनाओं के आदान प्रदान में आधार प्रदान करती हैं, विकास की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती हैं।
सूचना एवं संचार तकनीकों का उपयोग
1. स्थानीय सूचनाओं का आदान-प्रदान
भारत में ग्रामीण साइबर कैफे निम्न सेवाएं प्रदान कर सकते हैं- आवश्यक वस्तु बिक्री सूचना तंत्र, आमदनी प्रमाण पत्र, स्थाई प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, किसानों के जमीन एवं ऋण संबंधी पास बुक, ग्रामीण हिंदी ई-मेल, जनता की समस्या समाधान, सरकारी स्कीमों के फार्म, गरीबी से नीचे रहने वालों की सूची, रोजगार समाचार, ग्रामीण वैवाहिक विज्ञापन, ग्रामीण हाट, ग्रामीण अखबार, सलाह एवं ई-शिक्षा।
2. स्वास्थ्य सूचनाएँ एवं आईसीटीज
आईसीटीज द्वारा बहुत से स्वास्थ्य प्रोग्राम चलाये जा रहे हैं। एक ग्रामीण क्षेत्र के रोगी को तकनीक का उपयोग करके शहर में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाएं दिलाई जा सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कई इसी तरह के प्रोग्राम चलाये गये हैं। अपोलो अस्पताल द्वारा टेलीमैडिसन केंद्र से आंध्रप्रदेश के दूर-दराज के क्षेत्रों में ये सेवाएं दी जा रही हैं। एक्सरे को आईसीटीज के द्वारा विशेषज्ञों के पास भेजा जाता है एवं मरीज को फायदा पहुँचाया जाता है।
3. आईसीटीज एवं शिक्षा
दूरदर्शन, रेडियो, इंटरनेट, टेलीकान्फ्रेसिंग आदि इस क्षेत्र में भूमिका निभा रहे हैं।
4. व्यापार एवं ई-वाणिज्य एवं एम-कॉमर्स हेतु आईसीटीज
खरीद-फरोख्त एवं ई-व्यापार तथा ई-वाणिज्य का क्षेत्र एक अहम क्षेत्र है। इसमें एस.एम.एस. इंटरनेट आदि का प्रयोग अच्छी तरह से हो रहा है।
5. अच्छे प्रशासन हेतु आईसीटीज
अशक्ति, किसी की आवाज न सुनना एवं गरीबी आदि का डर आदि के निराकरण हेतु सूचना एवं संचार तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। प्रशासन के हर क्षेत्र में इन तकनीकों का उपयोग हो रहा है।
6. कृषि के क्षेत्र में आईसीटीज
फसल की सुरक्षा, पशुधन की सुरक्षा, खादों की जानकारी, सूखे से निपटना, फफूँद, वायरस एवं चूहे आदि से फसल का बचाव, सिंचाई की जानकारी, मौसम के बदलाव की जानकारी, बीज संबंधी जानकारी, हाट संबंधी जानकारी आदि में आईसीटीज का उपयोग किया जा रहा है। किसानों की समस्याओं को सुनना एवं सहकारी कार्यक्रमों संबंधी जानकारी का अच्छी तरह आईसीटीज द्वारा वितरित करना मुख्य कार्य है।
महाराष्ट्र में एग्रोनेट द्वारा 40,000 गाँवों को जोड़ने का स्टेट गवर्नमेंट का प्लान है जिससे कृषि संबंध जानकारी वितरित की जा सके। सामयकी एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड जो हैदाराबाद, आंध्रप्रदेश में है 18 एग्रीटेक सेंटर संचालित करती है जो किसानों के लिये कृषि सहायता सेवा सर्विस चला रही है एवं इस सेवा के लिये कुछ चंदा वसूलती है। यह सेवा कृषि विशेषज्ञों द्वारा चलाई जा रही है ये सभी कम्प्यूटर से इंटरनेट द्वारा जुड़े हुए हैं। इस सेवा द्वारा सदस्य किसानों को बीज, खाद, पेस्टीसाइड, मशीनरी, टूल्स, भूमि एवं जल विश्लेषण, मौसम, खेत का साप्ताहिक परीक्षण आदि के माध्यम से सहायता दी जाती है।
7. रोजगार पैदा करने में आईसीटीज का महत्व
आईसीटीज को रोजगार के क्षेत्र में दो प्रकार से प्रयोग में लाया जा सकता है पहला रोजगार ढूंढने में दूसरा आईसीटीज की प्रक्रिया में ट्रेनिंग लेकर आईसीटीज के क्षेत्र में काम करने में।
इसके अलावा आईसीटीज का उपयोग कैपेसिटी एवं कैपेबिलिटी सुधार के लिये हो सकता है जो किसी व्यक्ति विशेष या संस्था से संबंधित हो सकता है। स्थानीय संस्कृति एवं कल्चर में भी आईसीटीज का उपयोग हो रहा है।
2. डिजिटल सूचना केंद्र एवं सेवाएं
किसी भी प्रकार की आनलाईन सेवा प्रदान करने के लिये सूचनाओं का डिजिटल फारमेट में होना आवश्यक है। डिजिटल संग्रह के निम्नांकिन कार्य हैं।
1. बहुत बड़े संग्रह को अभिगमन किया जा सकता है।
2. बहु-माध्यम (मल्टी-मीडिया) के स्वरूप में होता है।
3. नेटवर्क से अभिगमन
4. प्रयोगार्थी-अनुसार संयोजन (इंटरफेस)
5. स्थानीय/बाहरी सूचनाओं हेतु ‘‘लिंक्स’’ प्रदान करता है (हाइपरटेक्सट)
6. सहमत खोज एवं पुन: प्राप्तीकरण का अनुसरण
7. बहुत लंबे समय तक सूचनाएं उपलब्ध रहती हैं।
8. पारम्परिक पुस्तकालयों (संग्रहों) के मिशन जैसे संग्रह विकास, संगठन, अभिगमन एवं सूचनाओं का संरक्षण करना।
9. संपादन, प्रकाशन, एनोटेशन एवं सूचनाओं के इंटीग्रेशन का अनुसरण करना।
10. व्यक्तिगत, ग्रुप, एंटरप्राइज एवं पब्लिक डिजिटल संग्रहों का एकीकरण करना।
डिजिटाइजेशन प्रक्रिया
एक डिजिटल चित्र में पिक्सैल्स के ग्रिड की लाईन एवं कॉलम होती हैं। हर एक पिक्सैल चित्र के एक सूक्ष्म भाग का अनुसरण करता है एवं एक टोनल वैल्यू को दर्शाता है जो काली, सफेद एवं किसी अन्य रंग या ग्रे रंग का शेड होता है। ये टोनल वैल्यू द्विआयामी कोड से जानी जाती है जैसे शून्य या एक। इसलिए एक डिजिटल चित्र शून्य एवं एक की ग्रिडों से बनता है। बाइनरी डिजिट्स हर एक पिक्सल के लिये बिट्स कहलाते हैं एवं क्रम में छपते हैं।
डिजिटल सामग्री तैयार करने के लिये स्कैनर्स, ओसीआर सॉफ्टवेयर, दोबारा टाइप करना, डिजिटल फोटोग्राफी आदि तकनीकों का आवश्यकतानुसार उपयोग होता है।
सॉफ्टवेयर एवं अन्य जरूरतें
डिजिटाइजेशन के लिये निम्नांकित सॉफ्टवेयरों को आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाया जा सकता है।
1. हार्डवेयर-पीसी, स्केनर (ओसीआर)
2. ऑपरेटिंग सिस्टम-विन्डोज (नेटवर्क वर्जन), यूनिक्स, लाइनक्स या मैक
3. स्टोरेज- डाटाबेस या फाइल संरचना जैसे ओरेकिल, एमएसक्यूएल एवं एमवाईएसक्यूएल या कोई ओपन सोर्स साफ्टवेयर जैसे ग्रीनस्टोन, डी स्पेस, गणेश आदि।
4. सर्च इंजन-स्वयं अपना या कोई व्यावसायिक
5. सुरक्षा-फाइल प्रिविलेजेज
6. अभिगमन-या स्टेंडर्ड एचटीएमएल मेटाडेटा
7. प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज जैसे- सीजीआई स्क्रिप्ट्स, जावा स्क्रिप्ट, पर्ल एचटीएमएल, एक्सएमएल, एसजीएमएल, सीएसएस
8. स्टेंडर्ड्स- मार्क या मार्क 21, डबलिन कोर, मेटाडेटा, जैड 39.50
ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर उत्पादकों द्वारा बिना किसी अन्तरराष्ट्रीय हद के डवलप किये जाते हैं जो इंटरनेट कम्यूनीकेशन में प्रयोग किये जा सकते हैं। ये सॉफ्टवेयर मुफ्त में या लाइसेंस द्वारा प्रयोग में लिए जा सकते हैं एवं इनमें आगे कोई भी बदलाव किया जा सकता है या किसी अन्य उपयोगकर्ता को भी दिये जा सकते हैं। ग्रीनस्टोन एवं डीस्पेस नामक दो सॉफ्टवेयर मुख्य-रूप से प्रयोग किये जा रहे हैं।
ग्रीनस्टोन : ग्रीनस्टोन एक डिजिटल संग्रह के उत्पादन एवं वितरण के लिये प्रयोग में लाया जाता है एवं इंटरनेट या सीडी- रोम पर सूचनाओं को प्रकाशित करता है। यह न्यूजीलैंड डिजिटल लाइब्रेरी प्रोजेक्ट द्वारा बैकाटो विश्वविद्यालय में बनाया गया एवं इसे यूनेस्को एवं ह्यूमन इन्फो एनजीओ द्वारा विकसित एवं वितरित किया जाता है। यह ओपन सोर्स, बहुभाषी सॉफ्टवेयर है जिसे जीएनयू जनरल पब्लिक लाइसेंस के अंतर्गत निर्गत किया जाता है। यह युनीकोड गुण वाला होता है इसलिए सूचनाएँ एवं इंटरफेज किसी भी भाषा की हो सकती है जिनके लिये इसे प्रयोग में लाया जा सकता है।
डीस्पेश : डीस्पेश के द्वारा डिजिटल फारमेंट में अनुसंधान नतीजों को एकत्रित किया जा सकता है, सूचीकृत किया जा सकता है, संरक्षित किया जा सकता है एवं दुबारा वितरित किया जा सकता है। एमआईटी पुस्तकालयों एवं हैवलेट- पैकर्ड (एचपी) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किये गये डीस्पेश को मुफ्त में दुनिया के अनुसंधान संस्थानों को दिया जा सकता है जिसे उपयोगार्थी अपने अनुसार परिवर्तित कर सकते हैं।
3. ओपन एक्सेस (खुला अभिगमन) :
ओपन एक्सेस प्रकाशन हेतु दुनिया में कई प्रमुख संस्थानों ने प्रयत्न किये हैं जैसे- आई सी एस यू, यूनेस्को, कोडाटा आदि। बुदापेस्ट ओपन एक्सेस इनीशिएटिव 2002 सबसे प्रथम प्रयास था जो ओपन सोसायटी इंस्टीट्यूट द्वारा लिया गया। मुख्यरूप से ओपन एक्सेस मॉडल के सिद्धांत निम्नवत हैं :
1. ओपन एक्सेस सूचना, डिजिटल ऑनलाइन, मुफ्त, कॉपीराइट मुक्त एवं लाइसैन्सिंग से मुक्त होती है।
2. ओ. ए. (ओपन एक्सेस) द्वारा मूल्य बाधा (सबस्क्रिप्शन, लाइसैन्सिंग फीस, हर बार देखने की फीस), इजाजत बाधा (कॉपीराइट एवं लाइसैन्सिंग बाधाएँ) से मुक्ति मिल जाती है।
3. ओ.ए., प्रतिलिप्याकार एवं पीयर समालोचला, आमदनी (लाभ सहित), प्रकाशन, प्रस्तुतीकरण, प्रतिष्ठा, भविष्य-उन्नति, सूचीकरण एवं अन्य गुण एवं सहयोगात्मक सेवाएं जो परंपरागत साहित्य से संबंधित है के समान ही होता है। प्रमुख अंतर यह होता है कि पाठक द्वारा बिल अदा नहीं करना पड़ता अत: अभियान में रुकावट नहीं होती।
4. ओ.ए. का कनूनी आधार या तो प्रतिलिप्याधिकारक की अनुमति या पब्लिक डोमेन होता है, आमतौर पर प्रतिलिप्याधिकारक की अनुमति।
5. ओ.ए. हेतु अभियान का केंद्र बिंदु साहित्य होता है जो लेखक द्वारा दुनिया को दिया गया होता है जो बिना किसी लेनदेन के होता है।
6. ओ.ए. साहित्य मुफ्त प्रकाशन एवं उत्पत्ति के लिये नहीं होता।
7. ओ.ए. साहित्य की पीयर- समालोचना आवश्यक है एवं अधिकतर ओ. ए. पहले जो विज्ञान एवं स्कालरी साहित्य से संबंधित हैं इसकी अहमियत युक्त होती है।
8. शोध लेखों के ओ. ए. की डिलीवरी के लिये दो प्राथमिक वाहक होते हैं- ओ.ए. जरनल्स एवं ओ. ए. आर्काइब्स या रिपोजीटरीज।
इस प्रकार इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, आई. आई. टीज, आई एस आई, सी एस आई आर एवं इण्डियन कॉसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आई आई एम्स एवं अन्य बहुत से संस्थानों द्वारा ओपन एक्सेस इंस्टीट्यूशनल रिपोजीटरीज बनाई गई हैं जिनसे वे अपने शोध को वितरित कर रहे हैं (सारिणी)।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान एवं सूचना तंत्र
इस संस्थान द्वारा उत्पन्न सूचनाएँ जैसे : हिमालय का पर्यावरण, हिमालय का भू-संरक्षण, हिमालय का भू-स्खलन, हिमालय की भू-भौतिकी, विवर्तनिकी, जैवस्तरिकी, भू-रसायनिकी, अवसादिकी, हिमनद अध्ययन आदि से वैज्ञानिक दृष्टि से संपूर्ण दुनिया में इस सूचना तंत्र की अहमियत का अहसास हो रहा है एवं इस संस्थान में सूचना स्रोत जैसे विशिष्ट वैज्ञानिक, यहाँ के प्रकाशन/प्रलेखन, पुस्तकालय, फोटोग्राफी, नक्सानफीशी, कम्प्यूटर अनुभाग, वेबसाइट की आवश्यकता निरंतर बढ़ रही है।
इन उदाहरणों से जाहिर है कि वर्तमान सूचना समाज, सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके उन्नति के रास्ते पर अग्रसर है एवं समाज का रहन-सहन सुधर रहा है, मनुष्य की जीने की आयु बढ़ गई है। सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग करने से ‘‘ग्लोबलाइजेशन’’ हो रहा है यानी हर देश, हर मनुष्य, हर विषय, हर संस्था एक दूसरे के करीब आ रहे हैं एवं एक दूसरे के विचारों से, संसाधनों से फायदा उठा रहे हैं।
सारिणी : भारत में ओ. ए. जरनल प्रकाशन के विषय में ब्यौरा | |||
प्रकाशक/संस्थान | यूआरएल | जरनलों की संख्या | विषय |
इण्डियन नेशनल साइंस एकेडमी (इनसा) | 4 | विज्ञान-बहुआयामी, गणित आदि | |
इण्डियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएएस) | 11 | विज्ञान-बहुआयामी, विज्ञान वेब. द्वारा सूचीकृत | |
इण्डियन मेडलर्स सेंटर | 38 | मैडिकल एवं संबंधित विज्ञान IND Med में सूचीकृत | |
मेडनोप्रकाशन | 27 | मेडिसिन, 15 ए. आई सेवाओं द्वारा सूचीकृत | |
इण्डियाजरनल्स. काम | 8 | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी,मेडिसिन | |
कमला-राज एंटरप्राइजेज | 5 | मानविकी एवं समाज शास्त्र | |
जरनल ऑफ इण्डियन इंस्टीटयूट ऑफ साइंस | 1 | विज्ञान-बहुआयामी | |
संख्या इण्डियन इंस्टीटयूट द्वारा | 1 | सांख्यिकी | |
समीक्षा ट्रस्ट द्वारा इकोनॉमिक एवं पोलिटिकल वीकली | 1 | इकोनॉमिक एवं पोलिटिकल सांइस | |
बायोमेडिकल, इन्फोर्मेटिक्स बायोइन्फार्मेशन जरनल | 1 | जीवविज्ञान खोज आदि |
सम्पर्क
वी. पी. सिंह
वाड़िया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून।
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