अपने विकास आरंभ से ही मनुष्य विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वन्यजीवों का शिकार करता चला आ रहा है। मानव द्वारा वन्यप्राणियों के शिकार का एक लम्बा इतिहास रहा है। मानव सभ्यता के शुरुआती चरणों में भोजन एवं मांस के लिए जंगली जीव-जंतुओं का शिकार किया जाता था। जंगलों, गुफाओं और शिलाश्रयों में रहने वाला आरंभिक मानव जानवरों का शिकार कर ही अपना भरण-पोषण करता था। खूंखार प्राणियों से स्वयं की सुरक्षा हेतु भी मानव द्वारा उनका शिकार किया जाता था। हालाकि धीरे-धीरे मनुष्यों ने खानाबदोश जिंदगी छोड़ खेती करना सीख लिया और पशुपालन भी करने लगा लेकिन शिकार की आवश्यकता फिर भी उसे हमेशा बनी रही। जंगली जीवों से अपने पालतू पशुओं और फसलों की रक्षा के लिए शिकार करना एक प्रमुख कारण था। जानवरों का शिकार कर मनुष्यों ने उनके हड्डियों से तरह-तरह के औजार एवं आभूषण भी बनायें। समय के साथ-साथ कई बदलाव हुए और वन-वन भटकने वाला मानव जंगलों एवं गुफाओं की दुनिया को छोड़ गांवों, कस्बों व नगरों में रहने लगा।
जैसे-जैसे मानव सभ्यता तेजी से विकसित होने लगी शिकार अब उसकी परंपरा और संस्कृति का भी एक अहम हिस्सा बन गया। पहले जहां शिकार मांस, भोजन व औजार के उद्देश्य से किया जाता था वहीं अब शिकार ने सांस्कृतिक रूप धारण कर लिया। विभिन्न मानव संस्कृतियों में विवाह आदि अनेकों उत्सवों तथा खेल एवं शौक के लिए जानवरों का शिकार किया जाने लगा। प्राचीन काल में राजाओं-महाराजाओं एवं शासकों द्वारा जंगली जीवों का शिकार करना उनका शौक बन गया। शेर, बाघ, हाथी आदि जीवों के शिकार को राजा की शान एवं प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाने लगा। मुगल शासकों ने भारत में 'शाही शिकार' की परंपरा को जन्म दिया। शिकार के शौक की हद इतनी बढ़ गयी कि एक ही दिन में सैकड़ों-हजारों परिन्दों को मौत के घाट उतार दिया गया। भारत में ब्रिटिश शासकों ने भी जंगली जानवरों का बड़ी बेरहमी से शिकार किया। अंधाधुंधा शिकार के चलते जीव-जंतुओं की आबादी तेजी से घटने लगी और कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर आ पहुंची। वैज्ञानिक शोधों ने चेताया कि यदि वन्यजीवों का शिकार नहीं थमा तो धरती पर समस्त जीव-जगत का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। धीरे-धीरे लोग जीव-जंतुओं के महत्व को लेकर जागरूक हुए और सरकारों द्वारा वन्यप्राणियों के संरक्षण हेतु कानून भी बनाये गये। इसके बावजूद भी शिकार का ये सिलसिला खत्म नहीं हुआ और आज जंगली जीवों का शिकार दुनियाभर के कई देशों में आर्थिक कमाई का एक प्रमुख जरिया बन गया है।
आधुनिक युग में वन्यजीवों का शिकार वैश्विक स्तर पर अवैध तस्करी एवं काले धंधो का खतरनाक रूप ले चुका है और इसने जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों के अस्तित्व को बेहद खतरे में डाल दिया है। वन्यजीवों की तस्करी आज दुनिया के सबसे बड़े अवैध व्यापारों में से एक है और ये सैकड़ों देशों में व्यापक रूप से फैला हुआ है। वैश्विक स्तर पर वन्यजीवों के अवैध व्यापार का कारोबार प्रतिवर्ष करीब 20 अरब डॉलर का है। हथियार, ड्रग्स और मानव तस्करी के बाद वन्यजीव व्यापार आज दुनिया का चौथा सबसे बड़ा अवैध व्यापार है। वन्यजीव तस्करी का तात्पर्य किसी भी वन्यजीव को जीवित अथवा मृत रूप में वैध या अवैध तरीके से एक देश से दूसरे देश में भेजना है जिसके अंतर्गत पौधे एवं जंतु दोनों सम्मिलित हैं। संरक्षित प्रजातियों के वन्यजीवों को पकड़ना, उन्हें कैद में रखना, उनका शिकार करना, आयात-निर्यात करना, तस्करी व खरीद-फरोख्त करना, उन्हें पालतू बनाना और उनके मांस का उपभोग करना आदि गतिविधियाँ अवैध वन्यजीव व्यापार की श्रेणी में गिनी जाती हैं। वन्यजीवों के अवैध शिकार एवं तस्करी के पीछे अनेकों कारण हैं जिनमें सबसे मुख्य कारण है जीव-जंतुओं के बारे में प्रचलित मिथक।
दुनियाभर के कई देशों में जीव-जंतुओं और उनके शारीरिक अंगों के उपयोग को लेकर सदियों से तमाम तरह की भ्रांतियाँ फैली हुई हैं जिसने वन्यजीव तस्करी को प्रमुखता से बढ़ावा दिया है। पारंपरिक चिकित्सा, जानवरों को पालतू बनाने, जादुई उपयोग, मांस सेवन, जैविक अंगो के सजावटी उपयोग, औषधीय निर्माण आदि कारणों के चलते दुनियाभर में वन्यजीवों की बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है। बाघ और तेंदुएं की खाल, गैंडे के सींग, हाथियों के दांत, सांपो की केंचुल, हिरनों के खुर, पैंगोलिन के शल्क, मॉनिटर लिजार्ड के जननांग, मेढक की टांग, शार्क के पंख, कस्तूरी मृग की कस्तूरी और नेवले के बाल आदि शारीरिक अंगों की अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग के चलते वन्यप्राणियों का बेरहमी से शिकार कर उनकी तस्करी की जाती है।
अनुमान है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर साल दुनियाभर में 10 करोड़ वन्यजीवों एवं पौधों की तस्करी होती है। आज दुनियाभर के कई देशों में वन्यजीव अपराधी गिरोहों का विशाल नेटवर्क फैला हुआ है। भारत सहित चीन, वियतनाम, थाईलैंड, म्यांमार, दक्षिण अफ्रीका, लाओस, मैक्सिको, युगांडा, केन्या, इंडोनेशिया, यूएसए, पूर्वी यूरोप, जापान, मंगोलिया, रूस आदि एशिया, अफ्रीका, अमेरिका और यूरोप महाद्वीपों के सैकड़ों देशों में अवैध वन्यजीव व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है। वर्तमान समय में चीन अवैध वन्यजीव व्यापार का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है। चीन में ही वन्यजीव तस्करी के दुनिया के सबसे बड़े बाजार स्थित हैं और चीन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीवों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। चीन के इन बाजारों में वन्यजीव उत्पादों की खुलेआम बिक्री होती है जहां भालू के पित्त से लेकर गैंडे के सींग और बाघ की हड्डियों से लेकर पैंगोलिन का शल्क तक सब कुछ बड़ी आसानी से पाया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिक तौर पर वन्यजीवों के अंगों का कोई भी प्रामाणि एक औषधीय मूल्य नहीं है इसके बावजूद पारंपरिक चिकित्सा हेतु चीन में वन्यजीवों की भारी मांग निरन्तर बनी हुई है। चीन के बाद वियतनाम अवैध वन्यजीव व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में लाओस, म्यांमार और थाईलैंड इन तीनों देशों के मिलन वाला सीमावर्ती क्षेत्र जो कि 'स्वर्णिम त्रिभुज' (गोल्डन ट्रिएंगल) कहलाता है अवैध वन्यजीव व्यापार के लिए वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा कुख्यात है। यहाँ स्थित काले बाजार, कैसिनो और जुआघर अब वन्यजीव तस्करी के केंद्र के रूप में भी तेजी से उभर रहे हैं। गोल्डन ट्रिएंगल के शॉपिंग मॉल और होटलों में बाघ, तेंदुआ, भालू, हाथी, गैंडा, पैंगोलिन, कछुआ, हॉर्नबिल जैसे संकटग्रस्त वन्यजीवों के अंगों की धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त की जाती है। हमारे भारत देश के घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव बाजार जो कि शहरों में स्थित हैं अवैध वन्यजीव तस्करी के प्रमुख अढ्ढे हैं।
भारत का ज्यादातर सीमापार अवैध वन्यजीव व्यापार चीन, नेपाल और पूर्वोत्तर राज्यों की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं में फैला हुआ है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वर्ष 2014-2021 की वाइल्डलाइफ क्राइम रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और कर्नाटक सात प्रमुख भारतीय राज्य हैं जहाँ वन्यजीव अपराध के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। चूँकि भारत जैवविविधता की कृष्टि से बेहद समृद्ध राष्ट्र है जहां दुनिया की 7-8 फीसदी प्रजातियाँ पायी जाती हैं इसलिए वन्यजीव तस्करी करने वाले बड़े-बड़े अन्तर्राष्ट्रीय गिरोहों की निगाहें हमेशा हमारे देश पर टिकी रहतीं हैं।
ग्रामीण एवं जनजातिय इलाकों से लेकर शहरों, बंदरगाहों, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं एवं हवाई अढ्ढों पर वन्यजीवों की तस्करी को अंजाम दिया जाता है। सड़क, हाइवे, रेलमार्ग जैसे परिवहन के साधानों का तेजी से विकास और नये-नये आधुनिक उपकरण॥जैसी तकनीकी सुविधाओं ने तस्करों एवं शिकारियों हेतु वन्यजीवों के अवैध व्यापार को बेहद आसान बना दिया है। आर्थिक असमानता, गरीबी और बेरोजगारी भी कहीं न कहीं अवैध वन्यजीव व्यापार के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। अफ्रीका और एशिया के देश जैवविविधता की कृष्टि से तो बेहद धानी हैं लेकिन आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं। यही कारण है कि इन विकासशील देशों के गरीब और पिछड़े तबके के मुख्यतः जनजाति समुदाय के लोग अपनी रोजी-रोटी हेतु वन्यजीव तस्करी जैसे अवैध कारोबार में शामिल हो जाते हैं। निर्धन लोगों की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठाकर वन्यजीवों की तस्करी करने वाले बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय गिरोह इन्हें अपने खेमों में शामिल कर लेते हैं।
वास्तव में देखा जाये तो वन्यजीवों का शिकार आजीविका के लिए कम बल्कि पैसे की लालच के उद्देश्य से ही ज्यादातर किया जाता है। अवैध वन्यजीव व्यापार को कई आतंकी संगठनों से भी सहयोग एवं समर्थन मिलता है। चूँकि आतंकी सरगनाओं की पहुंच अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक होती है और इन्हें अपने उद्देश्यों के लिए धन की जरूरत होती है अतः ये वन्यजीव अपराधियों को तस्करी हेतु साधान उपलब्ध करवाते हैं। आज दुनियाभर में अधिकांश अवैध वन्यजीव व्यापार उन प्रजातियों का किया जाता है जो गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और जिन पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। पैंगोलिन जिसे चींटीखोर के नाम से जाना जाता है विश्व में सबसे ज्यादा तस्करी किया जाने वाला स्तनधारी प्राणी है।
चीटियों और दीमकों की संख्या को नियंत्रित कर प्रकृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला ये सीधा-सादा प्राणी अंधाधुंधा शिकार के चलते आज विलुप्त होने के कगार पर आ चुका है। पारंपरिक चिकित्सा, मांस एवं शल्क के लिए चीन और वियतनाम के अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में इसकी भारी मांग है। एशिया और अफ्रीका में पायी जाने वाली पैंगोलिन की सभी आठों प्रजातियाँ आईयूसीएन की लाल सूची में शामिल है। भारत में पैंगोलिन की दो प्रजातियाँ इंडियन पैंगोलिन और चीनी पैंगोलिन पायी जाती हैं और दोनों ही अवैध तस्करी के कारण बेहद खतरे में हैं। वन्यजीवों पर निगरानी रखने वाली ट्रैफिक (TRAFFIC) संस्था की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले पांच सालों में 1000 से भी ज्यादा पैंगोलिन अवैध वन्यजीव व्यापार का शिकार हुई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 24 भारतीय राज्यों से पैंगोलिन तस्करी की खबरें सामने आयी हैं और इसके मांस, शल्क, जननांग आदि का कुल 885 किलोग्राम उत्पाद तस्करों से जब्त किया गया है। हर साल लाखों पैंगोलिन अपने शल्कों जैसी खुरदरी स्केल्स के लिए अवैध रूप से पकड़े और बेचें जातें हैं।
चीन और कई दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में मान्यता है कि इसके शल्क औषधीय गुणों के लिहाज से बेहद मूल्यवान हैं। बाघ अवैध रूप से तस्करी किये जाने वाले प्रमुख वन्यजीवों में से एक है। जंगल के पर्यावरण और खाद्य-श्रृंखलामें बाघ की बेहद अहम भूमिका है लेकिन खाल, हड्डि व मांस प्राप्ति हेतु आज इस शानदार वन्यप्राणी का धड़ल्ले से शिकार किया जा रहा है। ट्रैफिक की वर्ष 2000 -2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 23 वर्षों में दुनियाभर में बाघों की तस्करी के कुल 2,205 मामले सामने आये हैं और इनमें 34 फीसदी भारत में दर्ज किये गये हैं।
हर साल सैकड़ों बाघों और उनके अंगों की तस्करी की जाती है। पारंपरिक चिकित्सा में प्रयोग के उद्देश्य से गैंडो को उनके सींगों के लिए बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है। वियतनाम गैंडे के सींगों का सबसे बड़ा आयातक है। सजावट एवं आभूषण की वस्तुओं के निर्माण हेतु हाथियों के दांतों का कई दशकों से अवैध व्यापार जारी है। शिकारी हाथियों के दांत प्राप्त करने के लिए उन्हें बेरहमी से मार डालते हैं अथवा अपंग बना देतें हैं। स्टार कछुआ और दोमुंहा सांप (रेड सैंड बोआ) की तस्करी धन-संपदा व भाग्योदय जैसी भ्रांतियों के चलते की जाती है। दोमुहां सांप एक बेहद सीधा-सादा और विषहीन सर्प है जो कि चूहों का नियंत्रण कर फसलों की सुरक्षा करता है लेकिन अवैध तस्करी के संकटों के कारण आज ये कृषक मित्र सर्प आईयूसीएन की लाल सूची में शामिल हो गया है।
लाल चंदन और आर्किड प्रजाति के कई पौधों का अवैध व्यापार इनकी प्रजातियों के लिए बड़ा खतरा है। इसी तरह मॉनिटर लिजार्ड जिसे विषखोपड़ा और मगरगोह आदि कई नामों से जाना जाता है तस्करी के कारण संकट से जूझ रहा है। मॉनिटर छिपकली की हत्या कर उसके जननांग को निकालने के बाद उसे हत्थाजोड़ी बताकर तस्करों द्वारा बेंचाजाता है। वास्तव में हत्थाजोड़ी बाघनखी (Martynia annua) नामक पौधो की जड़ को कहते हैं जिसे भ्रांतियों में जकड़े अंधविश्वासी लोग भाग्य चमकाने के भ्रम में खरीदते हैं। तोते सबसे ज्यादा तस्करी किये जाने वाले पक्षी हैं जिन्हें अक्सर बंद पिंजरे में कैद कर बाजारों में बेचा जाता है।
वन्यजीवों का अवैध व्यापार आज जीव-जंतुओं के अस्तित्व के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। वन्यजीवों की अंधाधुंधा तस्करी के चलते जीव-जंतुओं की आबादी में तेजी से गिरावट आ रही है जिससे कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। आईयूसीएन के एक अनुमान के मुताबिक पांच हजार से भी ज्यादा प्रजातियाँ अवैध व्यापार एवं उपभोग के चलते खतरे में हैं। बाघ, तेंदुआ, पैंगोलिन, हाथी, गैंडे जैसे वन्यजीव जो कि पहले से ही अत्यधिक संकटग्रस्त हैं अवैधतस्करी के कारण उनके वजूद पर और भी ज्यादा खतरा बढ़ गया है। प्राकृतिक आवासों के विनाश के बाद वन्यजीव तस्करी आज जैवविविधता में गिरावट के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारण है। एक शोध अध्ययन के मुताबिक वैध एवं अवैध व्यापार की वजह से वन्यजीवों की करीब 62 फीसदी आबादी में गिरावट आयी है। अवैध वन्यजीव व्यापार कृषि, अर्थव्यवस्था, मानव-स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं जैवविविधता के लिये भी गहरे संकट पैदा कर रहा है। जंगली जीवों की एक देश से दूसरे देश में तस्करी के माध्यम से पहुंच रही प्रजातियाँ वहां की देशज प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्ध कर उनका खात्मा कर रहीं हैं जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होने का खतरा बढ़ गया है।
वैश्विक स्तर पर अवैध वन्यजीव तस्करी के कारण दुनियाभर में जूनोटिक रोगों का संचार हो रहा है। तस्करी के जरिये किसी देश या क्षेत्र में पहुंचे संक्रमित जीव वहां के पशुओं एवं मनुष्यों में कई तरह की संक्रामक बीमारियों को फैला रहे हैं जिसके दुष्परिणामस्वरूप वैश्विक महामारी फैलने का खतरा पहले से कहीं ज्यादा भयावह हो सकता है। देश-दुनिया के कई देशों में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीवों की अवैध तस्करी व शिकार पर लगाम लगाने के प्रयास निरन्तर जारी हैं। इस दिशा में साइट्स आज एक प्रभावशाली वैश्विक पहल है। 'वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन' (CITES) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
जिसका प्रमुख उद्देश्य वन्यजीवों की अवैध तस्करी एवं व्यापार को पूरी तरह से रोकना है। ये वैश्विक समझौता 1975 में लागू हुआ और भारत भी 20 जुलाई 1976 को इस समझौते का भागीदार बना। वर्तमान में इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते में भारत सहित दुनियाभर के 184 देश सदस्य हैं। वन्यजीवों को अतिदोहन व व्यावसायिक शोषण से बचाने हेतु आज दुनिया की 40 हजार से भी ज्यादा प्रजातियों को साइट्स के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है जिनमें लगभग 6600 प्रजातियाँ जंतुओं की और करीब 34,000 प्रजातियाँ वनस्पतियों की हैं। हिम तेंदुआ, पैंगोलिन, एक सींग वाला गैंडा, हाथी, बाघ, लाल पांडा, डॉल्फिन, दोमुंहा सांप, आर्किड आदि हजारों संकटग्रस्त प्रजातियों को साइट्स ने सूचीबद्ध कर उनके अवैध व्यापार के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। भारत में वन्यजीव अपराध के रोकथाम हेतु 'भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972' बनाया गया है। ये अधिनियम वन्यप्राणियों के संरक्षण हेतु एक कानूनी बाध्यकारी नियम है। वन्यप्राणियों की सुरक्षा हेतु इस अधिनियम के अंतर्गत कई भारतीय पक्षियों, सरीसृपों, स्तनधारियों आदि जीवों को संरक्षित श्रेणी में रखा गया है और यदि कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम की संरक्षण सूची में शामिल जीव-जंतुओं का शिकार, तस्करी एवं व्यापार करते हुए पाया जाता है तो उसके लिए सख्त दण्ड व जुर्माने का प्रावधान है।
भारत में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) वन्यजीवों के संरक्षण हेतु एक वैधानिक संस्था है जो समय-समय पर वन्यजीव तस्करी के बारे में सरकार को सलाह एवं परामर्श देती है साथ ही अपराधियों को कानूनी सजा दिलाती है। इस संस्था द्वारा अवैध तस्करी करने वाले गिरोहों का पर्दाफाश करने और तस्करों को पकड़ने हेतु 'आपरेशन टर्टशील्ड' 'आपरेशन क्लीन आर्ट' जैसे मिशन बेहद कारगर साबित हुए हैं। पिछले दो दशकों के दौरान 'ऑपरेशन क्लीन आर्ट' के तहत इस संस्था ने नेवले के बालों की तस्करी वाले देश के विभिन्न अड्डों पर कई बार छापे मारे हैं। पेंटिंग ब्रश के निर्माण हेतु हर साल हजारों नेवलों को उनके बालों की मांग के चलते मार दिया जाता है।
वर्ष 2019 में ब्यूरों के अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान आदि राज्यों के कारखानों व गोदामों पर छापे मारे जिसमें 50 हजार से भी ज्यादा पेंटिंग ब्रश और सैकड़ों किलोग्राम नेवले के कच्चे बाल जब्त किए गए। विश्व वन्यजीव कोष (WCCB) द्वारा स्थापित 'ट्रैफिक' वैश्विक स्तर पर अवैध वन्यजीव व्यापार पर निगरानी रखने वाला विशाल नेटवर्क है जिसकी शाखाएँ भारत सहित सैकड़ों देशों में फैली हुई हैं और ये वन्यजीव अपराधियों का भंडाफोड़ करने और उन्हें कठोर दण्ड दिलवाने के लिए लगातार प्रयत्नशील है। वन्यजीवों की मानव जीवन में अहम भूमिका को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान में भी प्रकृति एवं वन्यजीव संरक्षण के प्रति नागरिकों एवं राज्यों हेतु कुछ दायित्व निर्धारित किये गये हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51 (d) में शामिल 11 मूल कर्तव्यों में से 7वें मौलिक कर्तव्य में नागरिकों से कहा गया है कि- 'प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्द्धन करे तथाप्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखे।' ठीक इसी तरह से राज्यों हेतु भी भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत सम्मिलित अनुच्छेद-48 (d) में उल्लिखित है। कि-राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण और संवर्द्धन का तथा वन और वन्यजीवों की सुरक्षा का प्रयास करेगा।' वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 3 मार्च को 'विश्व वन्यजीव दिवस' और भारत में अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में 'वन्यजीव सप्ताह' मनाया जाता है।
हालांकि भले ही अवैध वन्यजीव व्यापार के खिलाफ भारतीय वन्यजीव अधिनियम और साइट्स द्वारा कानूनी प्रतिबंध लगाये गये हैं लेकिन अभी ये कायदे-कानून ज्यादा सशक्त एवं प्रभावी नहीं है। यही कारण है कि कमजोर कानूनों के चलते अपराधियों में डर नहीं है और खुलेआम देशी-विदेशी जीव-जंतुओं की तस्करी जारी है। सरकारों को चाहिए कि वो हवाई अड्डों व अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर कड़े पहरे लगाये ताकि वन्यजीवों की सीमापार तस्करी को रोका जा सके। दण्ड एवं जुर्माने की प्रक्रिया को और अधिक सख्त बनाने की आवश्यकता है ताकि वन्यजीव अपराधियों के दिलोदिमाग में कानून का खौफ बना रहे। जनजाति समुदाय के शिकारियों एवं तस्करों को टूरिस्ट गाइड, वन संरक्षक एवं सफारी-ड्राइवर जैसे रोजगार प्रदान कर सरकार उन्हें इस काले धंधो से बाहर निकाल सकती है।
आज इस बात की बेहद जरूरत है कि लोग वन्यजीवों की पर्यावरणीय भूमिका को समझें और स्वयं जागरूक बने। हम सभी मनुष्यों का अस्तित्व भी जीव-जंतुओं से प्राकृतिक रूप से जुड़ा हुआ है अतः हमें खुद इस बात की फिक्र होनी चाहिए कि आखिर जब धरती ग्रह पर जीव-जंतु ही नहीं रहेंगे तो फिर भला हमारा अस्तित्व भी कैसे कायम रह सकता है? वन्यजीवों को भी आजाद रहने का नैसर्गिक अधिकार है जो उन्हें ईश्वर द्वारा प्राकृतिक रूप से प्रदान किया गया है। अपने स्वार्थ के लिए पंछियों एवं कछुओं को कैद रखना प्राकृतिक एवं नैतिक दोनों रूपों से अनुचित है। हमारा फर्ज है कि हम वन्यजीवों के अंगों एवं उत्पादों से बनी वस्तुओं को ना खरीदें और जहां कहीं भी शिकार व तस्करी की घटनाएँ दिखें शीघ्र ही पुलिस अथवा वन विभाग को सूचित करें। एक तो पहले से ही जंगलों के विनाश, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, प्रदूषण आदि कारणों के चलते हजारों-लाखों जीव-जंतुओं पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और आज अवैध तस्करी ने उन्हें विलुप्ति के कगार पर ला दिया है।ऐसी स्थिति में भी यदि हम अवैध वन्यजीव व्यापार को रोकने में किल रहे तो आने वाले समय में हम वन्यजीवों की कई प्रजातियों को सदा सदा के लिए खो देंगे और इसके दुष्परिणामस्वरूप जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र में गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो जायेगा जिसका खामियाजा पूरे मानव समुदाय को भुगतना पड़ेगा।
संपर्क- पर्यावरण शोधकर्ताए, विन्धय इकोलॉजी एण्ड नेचुरल हिस्ट्री फांउडेशन, उत्तर प्रदेश 212306,ईमेल - harendrasrivastava356@gmail.com
स्रोत :- विज्ञान संप्रेषण
/articles/illegal-wildlife-trade-serious-threat-biodiversity-and-environment