इलाहाबाद से पहले भी है गंगा यमुना का संगम

गंगनाणी कुंड
गंगनाणी कुंड


शायद किसी ने कभी सुना ही होगा या स्थानीय लोग जानते होंगे कि गंगा और यमुना का संगम इलाहाबाद से पहले भी होता है। यह संगम है यमुना नदी के किनारे उतरकाशी जनपद के अन्तर्गत गंगनाणी नामक स्थान पर। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन दोनों नदियों की जल धाराएँ प्रयाग से पहले गंगनाणी में भी संगम बनाती हैं।

यदि ये दन्त कथाएँ सही हैं तो यमुना नदी के किनारे एक और स्थान भी गंगनाणी नाम से जाना जाता है। जहाँ फिर से गंगा-भागीरथी की जलधारा यमुना नदी से संगम बनाती है। यही वजह है कि हिन्दी वार्षिक कैलेंडर के अनुसार वर्ष की पहली संक्रांत को यहीं गंगनाणी नामक स्थान में एक भव्य मेले का आयोजन होता है। यह मेला पूर्ण रूप से धार्मिक मेला है। क्योंकि यहाँ पर स्थानीय लोक देवताओं की डोली को लोग अपने-अपने गाँवों से उक्त दिन स्नान करवाने बाबत ढोल, गाजे-बाजों के साथ पहुँचते हैं।

ज्ञात हो कि उत्तरकाशी जिले के रवांई घाटी के यमुना तट पर स्थित गंगनाणी नामक स्थान पर एक प्राचीन कुण्ड है जिसे लोक मान्यताओं के अनुसार गंगा का जल कहा जाता है और यहीं पर यमुना के साथ केदार गंगा नामक नदी भी संगम बनाती है तो वहीं गंगाजल से भरा कुण्ड भी यमुना से संगम बनता है। इसी त्रिवेणी का नाम है गंगनाणी।

स्थानीय लोग इस स्थान को प्रयागराज जैसी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप पूजते हैं। आस्था ऐसी कि लोग इस कुण्ड के पानी को गंगाजल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। बता दें कि यह त्रिवेणी संगम बड़कोट शहर से लगभग सात किमी के फासले पर यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इस गंगनाणी कुण्ड के बारे में केदारखण्ड में भी उल्लेख मिलता है। हालांकि कुण्ड के जल को लेकर अभी तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है, किन्तु इस कुण्ड के जल की प्रकृति पूर्ण रूप से गंगाजल के ही समान है।

गंगनाणी कुंड की पूजा करने के लिये एकत्रित ग्रामीणस्थानीय नौजवानों का कहना है कि प्रमाणिकता के लिये उन्होंने गंगा-भागीरथी का जल और यहीं गंगनाणी कुण्ड का जल अलग-अलग बर्तनों में कई दिनों तक रखा, लेकिन यह जल गंगाजल के समान ही स्वच्छ और साफ ही पाया गया। इसलिये उनका विश्वास अब पक्का हो चुका है कि गंगनाणी कुण्ड का जल भी ‘गंगाजल’ ही है। अब तो वे गंगनाणी कुण्ड से जुड़ी दन्त कथा पर विश्वास करते हैं। स्थानीय युवा शान्ती टम्टा, परशुराम जगुड़ी, दिनेश भारती, बीना चौहान, अम्बिका चौहान का कहना है कि शीतकाल में गोमुख से ही गंगा-भागीरथी का जलस्तर कम हो जाता है तो यहाँ पर भी गंगनाणी कुण्ड का जलस्तर कम हो जाता है, वहीं बरसात में गंगा -भागीरथी का रंग मटमैला होता है तो इस कुण्ड का रंग भी मटमैला हो जाता है। यह आम प्रमाण है जिस कारण लोग गंगा यमुना का संगम इसी गंगनाणी नामक स्थान को एक अटूट विश्वास के साथ मानते हैं।

वेद व्यास द्वारा रचित धार्मिक पुस्तक केदार खण्ड में ऐसा एक प्रसंग है कि जब परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि महामुनि के वृद्ध अवस्था के चलते उनकी पत्नी रेणुका को गंगाजल की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने अपने तप से यहीं गंगनाणी नामक स्थान पर गंगा-भागीरथी की जलधारा उत्पन्न करवा दी। क्योंकि यह स्थान पूर्व से ही ऋषि जमदग्नि की तपस्थली थी। ऐसा भी उल्लेख है कि ऋषि जमदग्नि से ईर्ष्या करने वाले राजा सहस्त्रबाहू ने एक बार गंगाजल लेने गई रेणुका को परेशान किया था। इसलिये ऋषि ने अपने तप के बल पर गंगा भागीरथी की एक जलधारा यमुना तट पर प्रवाहित करवा दी। जो की आज गंगनाणी नाम से प्रसिद्ध है। यही नहीं इस प्रसंग के चलते आज भी कई प्रमाण इस क्षेत्र में मौजूद हैं।

गंगनाणी के समीप थान गाँव में महामुनि जमदग्नि ऋषि की तपस्थली जो बताई जाती थी वहाँ आज भी महामुनि जमदग्नि ऋषि का मन्दिर है। उसके चारों ओर बारहमास फल देने वाला कल्प वृक्ष भी है। इससे आगे चलकर सरनौल गाँव में माँ रेणुका का भव्य मन्दिर है। रेणुक और जमदग्नी का एक ही क्षेत्र में मन्दिर होने पर इस बात का प्रमाण देता है। वैसे पूरे देश में रेणुका और जमदग्नी का मंदिर थान गाँव और सरनौल गाँव के सिवाय कहीं पर भी नहीं है। इसके अलावा गंगनाणी से 12 किमी पहले आज के बड़कोट शहर में सहस्त्रबाहु राजा की राजधानी के अवशेष कई बार लोगों को खुदाई करने से मिलते रहते हैं। बड़कोट गाँव में तो राजा सहस्त्रबाहु के नाम से पत्थरों से नक्कासीदार एक जल कुण्ड भी है।

सहस्त्रबाहू कुंडस्थानीय लोगों में इस स्थान के प्रति गंगा-यमुना के संगम की धार्मिक मान्यताएँ कूट-कूटकर भरी है। जो लोग प्रयागराज नहीं जा सकते वे गंगनाणी में पहुँचकर अपने को पुण्य कमाते हैं। वैसे भी यहाँ पर मकर संक्रांति के दिन का पुण्य माना जाता है। उक्त दिन यहाँ पर लोगों का तांता लगा रहता है। जबकि अन्य दिन गंगनाणी में चूड़ाक्रम व पित्र विसर्जन आदि कर्मकाण्ड यहीं पर वर्ष भर सम्पन्न होते हैं। इसके अलावा आर्थिक स्थिति से कमजोर लोग भी इस स्थान पर विवाह की रश्में गंगाजल को आचमन करके पूरी करते हैं।

कुछ वर्ष पूर्व इस स्थान का सौन्दर्यीकरण हुआ है। लोग यहाँ मकर संक्रांती के दूसरे माह की संक्रांती पर ‘कुण्ड की जातर’ नाम से एक ऐतिहासिक मेले का आयोजन सदियों से करते आये हैं। सो अब उतरकाशी जिला पंचायत इस मेले का आयोजन करता है। कुछ सालों से मेले के आयोजन के लिये सरकारी वित्तीय मदद भी उत्तरकाशी जिला पंचायत के मार्फत उपलब्ध हो रही है इसलिये इस अवसर पर विभिन्न विभागों द्वारा अपने स्टाल भी लगावाए जाते हैं। यात्रा काल के दौरान यमुनोत्री धाम जाने वाले हजारों तीर्थ-यात्री गंगनाणी से स्नान करने के साथ ही यहीं पर गंगा, यमुना व केदार गंगा त्रिवेणी संगम के दर्शन करके पुण्य प्राप्त करते हैं।

इस कारण अब स्थानीय लोगों को इस पर्यटन व्यवसाय से रोजगार प्राप्त होने लगा है। कुल मिलाकर स्थानीय सहभागिता के अनुसार इस स्थान को तीर्थ-यात्रियों के लिये सुलभ बनाया गया, मगर सरकार की उदासीनता के कारण इस स्थान का सर्म्पूण विकास नहीं हो पा रहा है। प्रचार-प्रसार के अभाव में इस स्थान तक पहुँचने पर लोगों को कई समस्या का सामना करना पड़ता है। फिर भी स्थानीय लोगों ने इस स्थान की महत्ता बनाई रखी है।


जशोदा राणाजशोदा राणागंगनाणी कुण्ड और उसकी धार्मिक महत्ता को बरकरा रखते हुए जिला पंचायत उत्तरकाशी इस स्थान को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करना चाहता है। शुरुआती प्रयास किये जा रहे है। जैसे यात्रियों के लिये विश्रामगृह आदि। गंगनाणी मेले को जिला पंचायत उत्तरकाशी ने भव्य रूप दिया है।
यशोदा राणा, अध्यक्ष जिला पंचायत उत्तरकाशी

 

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