इकोमार्क

इकोमार्कसरकारी स्तर पर ‘एगमार्क’ और ‘आईएसआई’ के मार्का लगे उत्पाद वस्तु की उत्कृष्टता और प्रामाणिकता का मानक होते हैं। वस्तुओं और उत्पादनों पर एक नया चिन्ह इकोमार्क भी जरूरी हो गया है। उत्पादों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए ही पर्यावरण और वन मंत्रालय ने अनुकूल उत्पाद का लेबल इकोमार्क सगाने निर्देश दिए हैं। इसका मकसद उत्पादों के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए निर्माताओं और आयात करने वालों को प्रोत्साहन देना है।

पर्यावरण के मुताबिक विभिन्न उत्पादों को इकोमार्क देने की संकल्पना विकसित देशों में भी अपनाई जा रही है। इसके तहत, जो उत्पाद पर्यावरण के हितकारी हैं, उन्हें इकोमार्क दिया जा सकता है। पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लेबल लगाने का अर्थ है उत्पादों का चयन करते समय विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए उपभोक्ताओं को जानकारी उपलब्ध कराकर पर्यावरणीय समस्याओं को कम करना। पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार करना और संसाधनों के चिरस्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना ही इस इकोमार्क का उद्देश्य है।

इकोमार्क के चिन्ह को मिट्टी के घड़े के रूप में चित्रित किया गया है, जो हमारी भारतीय सभ्यता जितना ही प्राचीन है। सदियों से घड़े के आकार में परिवर्तन हुए हैं, लेकिन उसके मूलभूत तत्वों और बनाने की प्रक्रिया आज भी वही है। चिकनी मिट्टी के घड़े का उपयोग पानी भरने या खाद्यान्न वगैरह रखने के लिए किया जाता है। इसकी छिद्रिल दीवारें, मृदा, जल और वायु पारस्परिक प्रभाव के उदाहरण हैं। घड़ा विशुद्ध भारतीय होने के नाते देश के विभिन्न भागों में इसके उपयोग के आधार पर इसकी आकृति बदलती रहती है। इसके ठोस और आकर्षक रूप से इसकी मजबूती और भंगुरता दोनों ही प्रदर्शित होती है। वर्तमान परिस्थितियों में नि:संदेह इकोमार्क पर्यावरण संरक्षण में उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

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