इको फ्रेंडली शब्द ने फिर रोशन किया पारम्परिक दीये का बाजार

पारम्परिक दीये
पारम्परिक दीये


नईदिल्लीः दिवाली में जगमग करने वाले दीये का बाजार इको फ्रेंडली शब्द ने रोशन कर दिया है। पारम्परिक दीये की माँग मिट्टी से बनने के कारण बढ़ गई है, जिस कारण दीये की खरीद में इस बार तेजी देखी गई है।

खास बात यह है कि ई-कॉमर्स कम्पनियों से लेकर पारम्परिक बाजार तक में इनकी काफी बिक्री हो रही है। चीन से आयातित फैंसी दीये और इलेक्ट्रॉनिक लाइटिंग जैसी सामाग्रियाँ भी इनकी बिक्री को फीका नही कर सकीं।

वहीं, ई-कॉमर्स कम्पनियों के प्रवक्ताओं ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि ऑनलाइन पोर्टल पर भी पारम्परिक दीये खूब बिक रहे हैं। इसकी वजह इको फ्रेंडली शब्द है।

कई साल से चल रहा अभियान

पर्यावरण और स्वास्थ्य के मद्देनजर देशभर में बड़े पैमाने पर पारम्परिक दीये जलाने और पटाखों से परहेज करने पर कई संगठनों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया है।

सेफ एनजीओ के पर्यावरणविद विक्रान्त तोगड़ ने कहा इलेक्ट्रॉनिक लड़ियों और फैंसी मोमबत्तियों के ई-वेस्ट एवं कचरे से बचाव के लिये गैर सरकारी संगठन पारम्परिक दीये जलाने का देशभर में कई साल से अभियान चला रहे हैं।

फेडरेशन ऑफ ऑल इण्डिया व्यापार मंडल

राष्ट्रीय महासचिव वीके बंसल ने कहा कि पारम्परिक दीये की बिक्री पिछले वर्षों की तुलना में बढ़ी है। हालांकि, चीन से आयातित सजावटी उत्पादों की बिक्री को कोई कमी नहीं आई है।

पारम्परिक बाजार के मुकाबले ई-कॉमर्स कम्पनियों की वेबसाइट पर पारम्परिक और सजावटी दीये काफी महँगे बिक रहे हैं-

99-499 रुपए में ऑनलाइन बिक रहे हैं दीये
25-200 रुपए में पारम्परिक बाजार में
 

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