इधर सूखा, उधर डूब


प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति अपने देश में इस हद तक बढ़ गई है कि देश का कोई न कोई हिस्सा उनकी मार झेलने के लिये अभिशप्त हो चला है। कुदरत का कोप देखिए कि इधर सूखे की भयावह मार से झारखंड के प्राण सूख रहे हैं तो उधर दक्षिण भारत में सौ साल की रिकार्ड तोड़ बारिश से चेन्नई समेत तमिलनाडु का एक बड़ा हिस्सा और पॉन्डिचेरी डूब क्षेत्र बन गए हैं। मौसम विभाग का एक चिन्ताजनक आकलन यह भी सामने आया है कि अगले 24 घंटे में दक्षिण आंध्र प्रदेश में भारी बारिश हो सकती है। इसके अलावा वापसी के मानसून के उल्टे कदम 6-7 दिसम्बर को केरल में भी कहर ढा सकते हैं...

अब अलग-अलग रूपों में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति अपने देश में इस हद तक बढ़ गई है कि देश का कोई न कोई हिस्सा उनकी मार झेलने के लिये अभिशप्त हो चला है। कुदरत का कोप देखिए कि इधर सूखे की भयावह मार से झारखंड के प्राण सूख रहे हैं तो उधर दक्षिण भारत में सौ साल की रिकार्ड तोड़ बारिश से चेन्नई समेत तमिलनाडु का एक बड़ा हिस्सा और पॉन्डिचेरी डूब क्षेत्र बन गए हैं। चिन्ता की बात यह भी है कि मौसम विभाग के मुताबिक केन्द्रीय तमिलनाडु के तटीय इलाकों में हालात अभी और बुरे हो सकते हैं, क्योंकि पॉन्डिचेरी और नागापत्तनम में भारी बारिश हो रही है। ऐसे में अभी यह नहीं कहा जा सकता कि चेन्नई से खतरा टल गया है, उल्टे केन्द्रीय तमिलनाडु में हालात और गम्भीर हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि चेन्नई के पास एक कम दबाव का क्षेत्र बना हुआ है, जो लगभग ठहर गया है। यही वजह है कि तमिलनाडु के तटीय इलाकों में अभी भारी बारिश होने की सम्भावना है।

मौसम विभाग का कहना कि मौसम प्रणाली तेज हो गई है और अभी भारी बारिश के लिये बहुत अधिक नमी है। गौरतलब है कि चेन्नई में एक महीने के दौरान जल प्रलय जैसे हालात पैदा करने वाली 1558.9 मिलीमीटर बारिश हुई है। मौसम विभाग का एक चिन्ताजनक आकलन यह भी सामने आया है कि अगले 24 घंटे में दक्षिण आन्ध्र प्रदेश में भारी बारिश हो सकती है। इसके अलावा वापसी के मानसून के उल्टे कदम 6-7 दिसम्बर को केरल में भी कहर ढा सकते हैं। चेन्नई की आपदा कितनी बड़ी है, इसको इसी से समझा जा सकता है कि अबतक पौने तीन सौ लोगों को बाढ़ ने निगल लिया है। करोड़ों की क्षति अबतक हो चुकी है। इसका भी ठीकठाक आकलन तो तभी हो पाएगा, जब मौसम सामान्य हो और मुकम्मल तौर पर जमीनी पड़ताल की जा सके। अभी तो ऐसी हालत ही नहीं है।

अब इधर झारखंड की बात करें तो अंतत: राज्य सरकार को पूरा सूबा ही सूखाग्रस्त घोषित करना पड़ा है। गृह व आपदा प्रबंधन विभाग से मिली सूखे की विभीषिका वाली रिपोर्ट पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है और तय हुआ है कि अल्प वर्षा के चलते फसलों को हुए नुकसान और अभी से सूखते तालाबों व भूजल स्तर में तेज गिरावट को देखते हुए मदद के मक्सद से केन्द्र के सामने झोली फैलाई जाए। झारखंड को अनाज और पशुओं के चारे के लिये मोहताज होने की नौबत आती दिखाई दे रही है। राज्य सरकार ने अपने स्तर से फसल के नुकसान का आकलन करने के बाद अब केन्द्र सरकार से टीम भेजकर जमीनी सर्वेक्षण करा लेने का अनुरोध किया जा रहा है।

गौरतलब है कि इस वर्ष झारखंड में आधे अगस्त तक अपर्याप्त वर्षा और फिर सूबे से मानसून के पूरी तरह मुँह फेर लेने के कारण सूखे की यह विभीषिका पैदा हुई है। कृषि विभाग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 6 नवंबर तक कुल 260 प्रखंडों में से 124 प्रखंडों में 50 फीसदी से अधिक फसलें तबाह हो चुकी थीं और बाकी प्रखंडों में भी बड़े पैमाने पर फसलें नष्ट हुई हैं। दरअसल बारिश न होने के कारण सितम्बर में ही धान की 37.7, मक्के की 27.1, तिलहन की 13.4 और दलहन की 16.8 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी थी। पूरी तरह से वर्षाजल पर आधारित खेती वाले पठारी प्रदेश झारखंड का अवर्षण के चलते हाल यह है कि पेयजल व स्वच्छता विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक भूगर्भ जलस्तर में तीन मीटर या इससे भी अधिक की गिरावट आई है। तालाबों में पानी की कमी के कारण आनेवाले दिनों में गम्भीर जल संकट की आशंका अभी से जताई जा रही है।

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