ई-शासन से बेहतर हुआ गांवों का प्रशासन

ई-शासन व्यवस्था लागू होने से ग्रामीण प्रशासन सशक्त हुआ है। ग्राम पंचायत प्रशासन जहां सबूत पेश कर ग्रामीणों का विश्वास जीत रहा है वहीं अविश्वास की स्थिति में ग्रामीण ग्राम पंचायत की हर गतिविधि की जानकारी भी प्राप्त कर सकता है। तमाम सरपंचों का कहना है कि ई-शासन व्यवस्था ने उनकी प्रशासनिक क्षमता पर निखार लाने का काम किया है। ग्राम पंचायत स्तर की सभी सुविधाएं ग्रामीणों को तुरंत मिल पा रही हैं तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ई-शासन का उपयोग करके कई राज्यों में राशन की छीजत को रोका गया है। चेन्नई में ऑनलाइन बिलिंग मशीन का प्रयोग किया जा रहा है तो मध्य प्रदेश में बायोमैट्रिक राशनकार्ड डाटाबेस तैयार किया जा रहा है। स्टॉक होल्डर्स को एसएमएस सेवा से जोड़ा गया है। इस व्यवस्था के बाद वहां करीब 7 लाख फर्जी राशनकार्ड निरस्त किए गए हैं।विश्व के विभिन्न देशों के मध्य सिमटती दूरियों का एक प्रमुख कारक सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार की बढ़ती भूमिका है। देश में हुई सूचना क्रांति से ग्रामीण जनजीवन में भी बदलाव आया है। अब ग्रामीण महिलाएं भी घूंघट से बाहर आकर कम्प्यूटर और मोबाइल का उपयोग करने लगी हैं। सूचना क्रांति से ग्रामीणों के जीवन स्तर में भी सुधार आया है। ई-शासन ने रही-सही कसर को पूरा कर दिया है। ई-शासन से जहां आम जन की समस्याओं का त्वरित निस्तारण हो पा रहा है वहीं ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था को भी नई दिशा मिली है। इससे जहां ग्रामीण विकास को नया आयाम मिला है वहीं ग्रामीणों को शासन-प्रशासन की ओर से चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में तुरंत जानकारी मिल सकी है।

पारदर्शी, समयनिष्ठ व परेशानीरहित नागरिक सेवाएं प्रदान करने के लिए समाज के अंतिम तबके तक सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के लाभ पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने 90 के दशक के अंत में देश में ई-शासन योजना का शुभारंभ किया। उसके बाद, केंद्र सरकार ने भारत में ई-शासन पहल को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय ई-शासन योजना को 18 मई, 2006 को स्वीकृति प्रदान की, जिसमें 27 मिशन मोड परियोजनाएं और 8 भाग हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग तथा प्रशासनिक सुधार व लोक शिकायत विभाग ने राष्ट्रीय ई-शासन योजना का खाका तैयार किया। इस तरह अब ई-शासन के तहत ग्राम पंचायत स्तर पर मुख्य रूप से करीब 30 सूत्रीय कार्यक्रमों को जोड़ा गया है। इसके अलावा 150 अन्य योजनाओं को भी इसमें शामिल किया गया है। ग्राम पंचायतों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे 30 सुविधाओं पर विशेष ध्यान रखें और इस क्षेत्र में बेहतर कार्य करें।

इन प्रमुख 30 सूत्रीय कार्यक्रमों में ग्राम पंचायत प्रशासन, जल संसाधन, डेयरी, मत्स्य पालन, सामाजिक कार्य, चुनाव, लघु उद्योग, हाउसिंग, सड़क निर्माण, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, बाजार, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, महिला एवं बाल कल्याण, मजदूर कल्याण, लोक कल्याण आदि को शामिल किया गया है। इस तरह ग्राम पंचायतें ई-शासन के जरिए अपनी प्रशासनिक क्षमता का भी विकास कर रही हैं।

भारतीय संविधान की धारा 243 जी के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय से संबंधित योजनाओं की तैयारी के लिए कार्य करना है। इसके अलावा उन पर संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में शामिल मुद्दों को लागू करने की भी जिम्मेदारी है। इसके अलावा अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर कर लगाने और इन्हें वसूलने की भी जिम्मेदारी पंचायतों की है। उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से दी जाने वाली आर्थिक सहायता का भी प्रबंधन करना होता है। जाहिर-सी बात है कि ऐसे में ग्राम पंचायतें सरकार की महत्वपूर्ण सामाजिक योजनाओं को लागू करने की एक नोडल एजेंसी बन गई हैं। इन ग्राम पंचायतों के जरिए ही केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजग़ार योजना (मनरेगा), सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील), एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) सहित तमाम योजनाओं का संचालन करना है। ऐसे में पंचायतों को ई-शासन का अंग बनाना जरूरी है। चार वर्षों में इस योजना पर करीब 6 हजार 989 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।

ग्राम पंचायतें सरकार की महत्वपूर्ण सामाजिक योजनाओं को लागू करने की एक नोडल एजेंसी बन गई हैं। इन ग्राम पंचायतों के जरिए ही केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजग़ार योजना (मनरेगा), सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील), एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) सहित तमाम योजनाओं का संचालन करना है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने जब संचार क्रांति का खाका तैयार किया था तो उन्होंने स्पष्ट किया था कि सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जब तक ग्रामीण पूरी तरह से वाकिफ नहीं होंगे तब तक न तो पंचायती राज की अवधारणा पूरी होगी और न ही संचार क्रांति का वास्तविक सपना पूरा हो सकेगा। निश्चित रूप से केंद्र सरकार की ओर से इसी सपने को साकार करने की दिशा में निरंतर प्रयास किया जा रहा है। विभिन्न योजनाओं के प्रचार-प्रसार के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, इसके बाद भी ग्रामीणों को पूरी जानकारी नहीं मिल पाती है। उदाहरण के तौर पर देखें तो केंद्र सरकार ने ग्रामीण स्तर की विभिन्न योजनाओं से लोगों को वाकिफ कराने के लिए वर्ष 2006-07 में 8207 करोड़, वर्ष 2009-10 में 1250 करोड़ रुपये खर्च किए। शहरों के साथ ही ग्रामीण इलाके में भी कम्प्यूटर आ गया है। खबर, सोशल नेटवर्किंग, चिकित्सा, मनोरजंन, ई-मेल और शिक्षा के क्षेत्र के साथ ही अब इसके जरिए हम बिजली, पानी का बिल जमा कर रहे हैं और अपने कृषि संबंधी उत्पादों की जानकारी भी ले रहे हैं।

इंटरनेट सरकारी दफ्तरों से निकल कर घर तक पहुंच चुका है। ऐसे में ई-शासन के जरिए विभिन्न योजनाओं को आम जन तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। ई-शासन की व्यवस्था लागू होने से हर व्यक्ति बिना किसी अड़चन के सरकारी योजनाओं के बारे में जान पा रहा है और योजनाओं का लाभ भी हासिल कर रहा है। आज भारत के करीब-करीब हर राज्य में ई-शासन को पूरी तरह से लागू करने की कोशिशें चल रही हैं। जिन स्थानों पर ई-शासन की व्यवस्था लागू हो चुकी है, वहां इसके परिणाम भी दिखने लगे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार के विकास को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए हैं जिससे सरकार की कार्यक्षमता व कार्यप्रणाली में सुधार होने के साथ विकास के लक्ष्यों में अपेक्षित वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री का यह मानना है कि ई-शासन से सुशासन को प्राप्त किया जा सकता है। इसे ग्राम पंचायत स्तर पर लागू किए जाने से ही आम जन को इसका लाभ मिल सकेगा।

विभिन्न राज्यों में ई-प्रशासन एवं सूचना प्रौद्योगिकी परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए चार समितियों का गठन किया गया है- ई-प्रशासन परिषद, राज्य-स्तरीय समिति, ई-प्रशासन परियोजना लक्ष्य दल एवं राज्य-स्तरीय ई-प्रशासन लक्ष्य दल। सभी विभागों के करीब तीन से पांच प्रतिशत बजट का उपयोग सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार के विकास के लिए करने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह व्यवस्था देश के करीब-करीब हर राज्यों में लागू की गई है। यह अलग बात है कि कुछ राज्यों ने ई-शासन के क्रियान्वयन में काफी तेजी दिखाई है, वे 10 फीसदी तक बजट ई-शासन में खर्च करके उसका लाभ भी हासिल कर रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से ऐसे राज्यों को निरंतर प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। जिन राज्यों ने ई-शासन व्यवस्था को ग्राम पंचायत स्तर पर लागू करने में तेजी दिखाई हैं, उन्हें पुरस्कृत भी किया जा चुका है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने जब संचार क्रांति का खाका तैयार किया था तो उन्होंने स्पष्ट किया था कि सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जब तक ग्रामीण पूरी तरह से वाकिफ नहीं होंगे तब तक न तो पंचायती राज की अवधारणा पूरी होगी और न ही संचार क्रांति का वास्तविक सपना पूरा हो सकेगा।जैसाकि गत दिनों राजस्थान सरकार के ई-प्रशासन एवं सूचना प्रोद्यौगिकी विभाग को ई-प्रशासन के राष्ट्रीय सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ स्टॉल एवं ई-संसार के लिए सम्मानित किया गया। इस विभाग के संरक्षण में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल ने इंडिया सॉफ्ट 2010 कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें 50 देशों के 250 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस तरह देखा जाए तो ई-शासन व्यवस्था के फायदे को देखते हुए केंद्र सरकार के साथ ही विभिन्न संस्थाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। यही वजह है कि अब किसी तरह की पत्रावलियों के लिए ग्रामीणों को तहसील से लेकर जिला मुख्यालय तक चक्कर नहीं काटना पड़ता है बल्कि वे ग्राम पंचायत से ही सभी पत्रावलियों को प्राप्त कर लेते हैं।

मालूम हो कि विश्व के 42.4 फीसदी यूजर्स अकेले एशिया में हैं। आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सूचना नेटवर्क को ‘सूचना सुपर हाइवे’ कहा जाने लगा है। अब इसे औद्योगिक एवं सामाजिक क्रांति के रूप में भी देखा जा रहा है। इसका असर दिल्ली, मुंबई से होते हुए अब गांव स्तर पर पहुंच चुका है। वर्ष 2005 में प्रधानमंत्री ने ई-पंचायत की घोषणा की। आईटीसी के 5400 ई-चौपाल कियोस्क खुले। अब यह सुविधा ग्राम पंचायत स्तर तक पहुंच चुकी है। कुछ राज्य सरकारों ने इसे व्यापक स्तर पर लागू किया है तो कुछ स्थानों पर अभी काम चल रहा है। इसके पीछे सरकार की मंशा है कि केंद्र की ओर से जो भी योजनाएं चलाई जाएं वह सीधे ग्राम पंचायत स्तर पर पहुंचे। ग्राम पंचायत को सरकार से जुडऩे में किसी तरह की दिक्कतें न आए। इसलिए हर ग्राम पंचायत में पंचायत भवन को पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत किया जा रहा है। अगर हम इसके विस्तार पर गौर करें तो अब हर काम इंटरनेट के जरिए हो रहा है। ऐसे में ग्राम पंचायतों को हाइटेक बनाने और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए ई-गवर्नेंस की व्यवस्था का महत्व बढ़ गया है। इसके जरिए हम तत्काल किसी भी वितरण के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं। यही वजह है कि इसकी बढ़ती उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने ई-शासन का प्रावधान किया। वास्तव में जवाबदेह, पारदर्शी एवं संवेदनशील प्रशासन सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए जनता को सूचना संचार तकनीक आधारित सेवाएं उपलब्ध कराना भी केंद्र सरकार का एक प्रमुख लक्ष्य है। यही वजह है कि देश के ज्यादातर जिलों में ई-मित्र परियोजना लागू कर दी गई है। स्वास्थ्य मित्र परियोजना के अंतर्गत सहभागिता से टेलिमेडीसन को साकार किया जा रहा है।

वर्ष 2005 में प्रधानमंत्री ने ई-पंचायत की घोषणा की। आईटीसी के 5400 ई-चौपाल कियोस्क खुले। अब यह सुविधा ग्राम पंचायत स्तर तक पहुंच चुकी है। कुछ राज्य सरकारों ने इसे व्यापक स्तर पर लागू किया है तो कुछ स्थानों पर अभी काम चल रहा है। इसके पीछे सरकार की मंशा है कि केंद्र की ओर से जो भी योजनाएं चलाई जाएं वह सीधे ग्राम पंचायत स्तर पर पहुंचे। ग्राम पंचायत को सरकार से जुडऩे में किसी तरह की दिक्कतें न आए। ज्यादातर राज्यों के चिकित्सा महाविद्यालय तथा जिला चिकित्सालय और संभागीय मुख्यालयों को भी ई-शासन व्यवस्था से जोड़ा जा रहा है। मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के करीब-करीब सभी कार्यालय कम्प्यूटर सेवा से जोड़ दिए गए हैं। भू-धारकों के रिकॉर्ड कम्प्यूटरीकृत किए जा चुके हैं। वैट स्वचालित तंत्र भी आरंभ किया जा चुका है जिसमें ई-पेमेंट और ई-रिटर्न की सुविधा भी है। सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार के विस्तार के लिए आवश्यक संरचना का भी विकास किया जा रहा है। जिला कलेक्टर कार्यालयों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा राज्य सचिवालय से जोड़ा जा चुका है। सचिवालय में उचित उपकरणों के वितरण के साथ-साथ सेक्रेटेरियल लोकल एरिया नेटवर्क को सक्रिय किया जा चुका है। जिलों में एनआईसी नेटवर्क के द्वारा आईपी फोन स्थापित किए जा चुके हैं। नागरिकों को विभिन्न सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध कराने के लिए स्टेट डाटा सेंटर क्रियाशील करने के अलावा नागरिक सेवा केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। कुछ राज्यों में दूरस्थ क्षेत्रों के निवासियों का सरकार से संवाद सुगम बनाने के लिए मोबाइल वी-सैट वैन की सुविधा आरंभ की गई है। सरकारी कार्यालयों में क्षमता निर्माण एवं क्षमता संवर्धन के प्रयास किए जा रहे हैं और सूचना प्रौद्योगिकी को शैक्षणिक संस्थाओं में प्रोत्साहित किया जा रहा है। राष्ट्रीय ई-प्रशासन परियोजना को राज्यव्यापी नेटवर्क, राज्य सेवा डिलीवरी गेटवे तथा ई-जिलों की योजना को भी कार्य रूप दिया जा रहा है। वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल, टच-स्क्रीन कियोस्क, सूचना के अधिकार का पोर्टल और ई-संचार आरंभ किए जा चुके हैं। कुछ अभिनव योजनाओं को भी क्रियान्वित करने का प्रयास किया जा रहा है जैसे सुगम, जिसमें नागरिकों की सुविधा के लिए एक राज्य-स्तरीय कॉल सेंटर स्थापित किए गए हैं।

सेवा वितरण केंद्र


वर्तमान में खासकर दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को किसी सरकारी विभाग या उसके स्थानीय कार्यालय से कोई सेवा लेने के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। नागरिक सेवाएं प्राप्त करने में लोगों का काफी समय तथा पैसा खर्च होता है। इस समस्या से निबटने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ई-शासन योजना के एक भाग के रूप में प्रत्येक छह गांवों के लिए एक कंप्यूटर तथा इंटरनेट आधारित साझा सेवा केन्द्रों की स्थापना की योजना शुरू की गई है ताकि ग्रामीण जन इन सेवाओं को आसानी से अपने निकटवर्ती केंद्र से प्राप्त कर सकें।

क्षमता निर्माण कार्यक्रम


राष्ट्रीय ई-शासन योजना के तहत 20 केंद्रीय विभाग, 35 राज्य व केंद्रशासित प्रदेश तथा इन राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के 360 विभाग और लगभग 500 क्रियान्वयन एजेंसियां शामिल हैं। कुल मिलाकर लगभग 70,000 मानव वर्ष की आवश्यकता का अनुमान है। इस तरह राष्ट्रीय ई-शासन योजना के लिए अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए जिन क्षमता की कमियों को दूर किया जाना है उनमें शामिल हैं- विशेषज्ञों की नियुक्ति, कौशल का विकास तथा प्रशिक्षण देना।

ई-शासन और ग्राम प्रशासन


ई-शासन के जरिए ग्राम पंचायत के लोगों को केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक की योजनाओं के बारे में आसानी से जानकारी मिल रही है। सूचना का अधिकार लागू होने के बाद हर नागरिक ग्राम पंचायतों से विभिन्न तरह की सूचनाओं के बारे में जानकारी हासिल कर रहा है। हर व्यक्ति राजकीय आर्थिक सहायता योजना, स्वास्थ्य, सफाई, रोजगार, अनाज की कीमत, शिक्षा के बारे में जानकारी चाहता है। सूचना अधिकार एक्ट के अनुसार वैसे भी यह सूचना उपलब्ध करवानी सरकार की जिम्मेदारी भी है जोकि इंटरनेट की सहायता से ऑनलाइन गवर्नमेंट द्वारा सही-सही मिलना संभव है। पंचायतों में ई-शासन व्यवस्था होने से हर काम की रिपोर्ट सरकार तक पहुंच सकती है। कितनी सड़कें टूटी हैं और कितनी सड़कों पर काम चल रहा है, कहां, किस तरह की जरूरत है, इसके बारे में ग्राम पंचायत से लेकर केंद्र सरकार तक के आंकड़ें प्राप्त किए जा सकते हैं। इसी तरह स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के बारे में सरकार की ओर से मिलने वाली विभिन्न तरह की सहायता के बारे में भी हर व्यक्ति जानकारी प्राप्त कर सकता है। जिसे भी किसी भी मामले में आशंका होती है अथवा जानने की इच्छा होती है वह ग्राम पंचायत में स्थापित कियोस्क पर जाकर जानकारी हासिल कर ले रहा है।

किसान की समस्या का समाधान


ई-शासन होने से उपज के रेट भी खुले रहेंगे। ऐसे में ग्राम पंचायत प्रतिनिधि अपने गांव के किसानों को इस बात से अवगत करा सकेंगे कि आज किस उपज का क्या रेट चल रहा है। ऐसे में जिस दिन उचित लगे उस दिन किसान अपनी उपज को मंडी में बेच सकते हैं। ई-शासन व्यवस्था होने से ग्राम पंचायत पर चौपाल आयोजित करना काफी आसान हो गया है। ग्राम पंचायत प्रशासन अपने गांव के किसानों को प्रतिदिन की स्थिति से अवगत कराते हैं। उन्हें बताते हैं कि सरकार की ओर से किसानों के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं। साथ ही किसानों की ओर से पूछे जाने वाले सवालों का भी तत्काल निस्तारण किया जा सकता हैं। जिन सवालों का तुरंत जवाब नहीं मिलता, उनके सवाल ग्राम पंचायत की मेल के जरिए संबंधित विभाग को भेजा जा सकता है। ऐसे में दूसरे दिन संबंधित किसान की समस्या का समाधान हो जाता है। इस तरह देखा जाए तो किसानों की समस्या का निस्तारण करना ग्राम पंचायत की प्रमुख जिम्मेदारी होती है। ई-शासन के जरिए ग्राम पंचायत किसानों के मामले में पूरी तरह प्रशासनिक क्षमता का विकास भी कर सकता है और समस्या का समाधान भी।

रोजगार के खुले द्वार


ई-शासन व्यवस्था होने से ग्राम पंचायत स्तर पर रोजगार की जानकारी मिल सकेगी। ग्राम पंचायत प्रतिनिधि ग्राम पंचायत भवन में बैठकर यह तय कर सकते हैं कि किस विभाग में और किस पद के लिए भर्ती निकली है। ऐसे में वे अपनी ग्राम पंचायत के बेरोजगारों को संबंधित पद के लिए आवेदन भरने और उन्हें प्रोत्साहित कर सकेंगे। ऐसे में एक तरफ जहां बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा वहीं ग्राम पंचायत की छवि जनता के बीच बेहतर बनती है। इसी तरह प्राइवेट कंपनियों में भी रोजगार खोज सकते हैं। अब तो विभिन्न कंपनियों की ओर से ऑनलाइन आवेदन मांगे जाते हैं। ऐसे में इस सुविधा का सबसे ज्यादा लाभ बेरोजगारों को मिल रहा है। इतना ही नहीं जिन लोगों के पास अपना कम्प्यूटर नहीं हैं, वे ग्राम पंचायत की मदद से ई-मेल सुविधा का लाभ ले सकेंगे। क्योंकि तमाम प्राइवेट कंपनियों की ओर से ई-मेल पर नियुक्ति संबंधी जानकारी दी जाती है।

ई-शासन से गांव में मिलने वाली प्रमुख सुविधाएं<br><br>

1. ऑनलाइन पंजीकरण<br><br>

2. जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त करना<br><br>

3. मृत्यु प्रमाणपत्र प्राप्त करना<br><br>

4. ऑनलाइन आवेदन पैन नंबर की सुविधा।<br><br>

5. पैन आवेदन की स्थिति की ऑनलाइन जांच<br><br>

6. कर कटौती खाता संख्या (टैन) के लिए ऑनलाइन आवेदन<br><br>

7. पासपोर्ट आवेदन की स्थिति की ऑनलाइन पूछताछ<br><br>

8. ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करना<br><br>

9. वाहन पंजीकरण<br><br>

10. चोरी के वाहनों की ऑनलाइन स्थिति<br><br>

11. न्यायालय संबंधी फैसले



भारत में इंटरनेट की पहुंच (प्रतिशत में)

दिल्ली

12.9

तमिलनाडु

12.6

उत्तर प्रदेश

8.5

पश्चिम बंगाल

7.0

राजस्थान

3.0

गुजरात

3.0

हरियाणा

2.9

मध्य प्रदेश

2.3



भूमि संबंधी समस्या का समाधान


ग्राम पंचायत स्तर पर अक्सर भूमि विभाग के मामले सामने आते रहते हैं। ई-शासन व्यवस्था होने से विवाद की स्थिति में तुरंत ग्रामीणों को उनकी भूमि की स्थिति से अवगत कराकर ग्राम पंचायत प्रशासन विवाद का समाधान कर सकता है। क्योंकि ई-शासन की व्यवस्था होने से किसानों के खेती संबंधी सभी रिकॉर्ड कम्प्यूटराइज्ड कर दिए गए हैं। ऐसे में विवाद की स्थिति में उनका त्वरित निस्तारण किया जा सकता है। इस तरह ई-शासन व्यवस्था के जरिए ग्राम पंचायत प्रशासन विभिन्न विवादों को त्वरित निस्तारित करके जहां बेहतर प्रशासनिक क्षमता दर्शाता हैं वहीं अदालतों पर बढ़ते भार को भी कम करता है। इसके अलावा रिकॉर्ड की जरूरत पड़ने पर किसान को सभी रिकॉर्ड मिल जाते हैं। भू-स्वामियों को नाममात्र दर पर अधिकारों का इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्रदान किया जाता है। भूमि प्रशासन में मूल्यवर्धन और आधुनिकीकरण के बारे में जानकारी ली जा सकती है।

संपत्ति का लेखा-जोखा


ग्राम पंचायत प्रशासन के पास एक बड़ी जिम्मेदारी होती है विभिन्न संपत्तियों की रक्षा करना। इसमें सरकारी संपत्ति तो होती ही है साथ ही ग्राम पंचायत में रहने वाले हर व्यक्ति की संपत्ति की रक्षा करना और संपत्ति संबंधी विवादों का निस्तारण करना भी पंचायत प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी होती है। ई-शासन व्यवस्था लागू होने से इस समस्या के समाधान में काफी सहयोग मिला है। चूंकि संपत्ति खरीदने पर संबंधित प्राधिकरण में पंजीकृत कराना होता है, जिसके जरिए कानूनी स्वामित्व का हक मिलता है। पहले इसमें काफी समय लगता था, लेकिन अब चंद मिनटों में ही यह सारी कार्यवाही हो जाती है। कम्प्यूटरीकृत भूमि और संपत्ति पंजीकरण सिस्टम के तहत पंजीकरण करना आसान है। इससे विवाद को जन्म नहीं मिलता। यदि किसी कारण से विवाद होता है तो ग्राम पंचायत उसका त्वरित निस्तारण कर सकती है। ई-शासन के जरिए वह दोनों पक्षों को बैठाकर ऑनलाइन कानून व्यवस्था की भी जानकारी दे सकती है और वास्तविक स्थिति क्या है, इससे दोनों पक्षों को वाकिफ कराकर तनाव खत्म कर सकती है।

ई-शासन के क्षेत्र में सरकारी प्रयास


केंद्र सरकार की ओर से ई-शासन के विस्तारीकरण की दिशा में कई तरह की पहल की गई हैं। राज्यों को निर्देश दिया गया है कि जिन राज्यों में अभी तक ई-शासन व्यवस्था को पूरी तरह से अमलीजामा नहीं पहनाया है वे जल्द से जल्द जनता से जुड़े राजस्व, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज तथा नगरीय विकास व आवास, तहसीलों, सब रजिस्ट्रार कार्यालय, राष्ट्रीय भूमि सुधार प्रबंधन परियोजनाओं सहित सभी विभागों में ई-शासन को लागू करने के साथ ही इससे आमजन को लाभान्वित करें। खासतौर से लोगों को पंचायत स्तर पर भू-अभिलेख वाजिब लागत पर उपलब्ध कराया जाए, साथ ही इन अभिलेखों की ऑनलाइन उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाए। ज्यादातर राज्यों में यह व्यवस्था लागू भी हो चुकी है। कुछ स्थानों पर यह कार्य तेजी से चल रहा है और राज्य सरकारें अपने बजट में इस मद में भरपूर पैसे का इंतजाम कर रही हैं।

बायोमैट्रिक सिस्टम से होगी हाजिरी


ई-शासन सुविधा लागू करने के साथ ही बायोमैट्रिक सिस्टम से विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मियों की हाजिरी लेने की तैयारी है। डिजिटल सिग्नेचर, बैकेण्ड ऑटोमेशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। गांवों में ग्रामस्तरीय कर्मचारियों की उपस्थिति की निगरानी भी बायोमैट्रिक व्यवस्था से करने की तैयारी चल रही है। निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा और सरकारी कामकाज में तेजी आएगी। इस व्यवस्था का सबसे ज्यादा फायदा गांवों में प्रशासनिक व्यस्था को बेहतर बनाने में मिलेगा क्योंकि अभी भी अक्सर शिकायत रहती है कि ग्रामीण इलाके की प्रशासनिक व्यवस्था बेपटरी रहती है। कभी लेखापाल गायब रहता है तो कभी ग्राम पंचायत अधिकारी। बायोमैट्रिक सिस्टम लागू होने से सभी कर्मचारियों का ग्राम पंचायत में उपस्थित होना अनिवार्य-सा हो जाएगा क्योंकि उनकी निगरानी टॉप टू बॉटम होने लगेगी। ऐसे में गांवों में बेहतर प्रशासन व्यवस्था लागू होगी।

विभिन्न राज्यों में रुकी धांधली


दिल्ली में 400 निजी अस्पताल एवं नर्सिंग होम्स में जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण की ऑनलाइन व्यवस्था की गई है, इससे लोगों को नगर निगम के चक्कर नहीं काटने पड़ते। हालांकि अब यह व्यवस्था सभी स्थानों पर लागू की जा रही है। देश के करीब-करीब हर अस्पताल को ऐसी सुविधा देने के लिए भारत सरकार की ओर से पाबंद किया जा रहा है।

ई-शासन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली


लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे, पूरे महीने सेवाओं की उपलब्धता रहे, बोगस व दोहरे कार्ड पर रोक तथा खाद्य सामग्री का रिसाव रोक में ई-शासन व्यवस्था का प्रमुख योगदान है। बीपीएल लिस्ट की समय-समय पर समीक्षा कर अपात्र व्यक्ति को हटाकर पात्र व्यक्तियों का चयन, बीपीएल परिवारों की दी जा रही सुविधाओं का पुनरावलोकन, राशनकार्ड से वितरित की जाने वाली खाद्य सामग्री का वितरण परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर करने में भी ई-शासन व्यवस्था के जरिए सहयोग मिल रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जिन राज्यों में ई-शासन व्यवस्था लागू करने में सक्रियता दिखाई है वहां इसके परिणाम भी दिख गए हैं। वास्तव में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ई-शासन का उपयोग करके कई राज्यों में राशन की छीजत को रोका गया है। इसके लिए चेन्नई में राशन की दुकानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। तमिलनाडु में अगस्त, 2009 से राशनकार्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे हैं, वहीं चेन्नई में ऑनलाइन बिलिंग मशीन का प्रयोग किया जा रहा है। इसी तरह मध्य प्रदेश में बायोमैट्रिक राशनकार्ड डाटाबेस तैयार किया जा रहा है। स्टॉक होल्डर्स को एसएमएस सेवा से जोड़ा गया है। इस व्यवस्था के बाद वहां करीब 7 लाख फर्जी राशनकार्ड निरस्त किए गए हैं, इससे 14 करोड़ रुपये प्रतिमाह की बचत हो रही है। अरुणाचल प्रदेश में भी बायोमैट्रिक सिस्टम को लागू किया गया है, वहां भी करीब 8 हजार राशनकार्ड निरस्त किए गए हैं। आंध्र प्रदेश में राशन कार्ड का डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है। वहां बारकोडिंग व हॉलोग्राम के जरिए फर्जी राशनकार्डों पर रोक लगाई जा रही है।

ई-गवर्नेंस के तहत बनने वाले पोर्टल


इसमें सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के संकलन, सामाजिक जनसंख्या आंकड़े, लोक ढांचा और सेवा, तथा पंचायतों की भौगोलिक सीमा का ग्राम्यवार विवरण होगा। पंचायतों की संपत्ति और उनकी उपयोगिता के बारे में सूचना के प्रबंधन में मदद मिलेगी। एक प्लान से संबंधित पोर्टल रहेगा, जिसमें निचले स्तर से जि़लावार कार्ययोजना बनाने में मदद मिलेगी। विभिन्न योजनाओं के लिए कोष को एकीकृत करने, धन के प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करने, धन के आने और खर्च करने का हिसाब और इसके स्रोत का विवरण रखा जाएगा। इसकी पंचायतवार कार्ययोजना बनाने में आसानी, मसौदा योजना, कार्य-योजना और जिन कार्यों में धन खर्च होना है उसके खर्च के अनुमानों के अनुरूप बजट बनाने में मदद मिलेगी। इसी तरह पीआरआईए सॉफ्ट भी होगा, जिसमें धन की प्राप्ति और खर्च का विवरण होगा। स्वतः ही कैश बुक रजिस्टर निर्मित करेगा। योजनाओं के उपयोग संबंधी प्रमाणपत्र देगा। केवल कुछ सामान्य जानकारी दर्ज करते ही ये सभी आवश्यक जानकारी उपलब्ध करा देगा। एक्शन प्लान पोर्टल कार्ययोजना लागू करने और उनकी निगरानी के लिए उपयोग में लाया जाएगा। परिभाषित मानकों के अनुसार पंचायतों को योजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति के बारे में सूचना देने में मदद मिलेगी। ये सभी केंद्रीय/राज्य की योजनाओं और स्थानीय पंचायत योजनाओं द्वारा प्रयुक्त की जा सकेंगी। शिकायत निवारण पर क्लिक करके आम नागरिक अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे। इसमें नागरिक पंचायतकर्मियों के खिलाफ या किसी तरह के कदाचार के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकेंगे। इसमें मामले के अंत तक शिकायत निवारण प्रणाली की समीक्षा की जा सकेगी। इसी तरह एक पंचायत पोर्टल है, जिसमें प्रत्येक पंचायत की वेबसाइट बनाई जाएगी जिसे पंचायत की अन्य सॉफ्टवेयर प्रयोग प्रणाली के साथ जोड़ा जाएगा जिससे कि ये सिंगल डिलीवरी साइन-ऑन गेट-वे की तरह काम करे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल: chandra.akhilesh829@gmail.com

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Post By: pankajbagwan
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