ई-प्रशासन से गांवों का स्वरूप तेजी से बदला है। इसने आम आदमी की भी पहुंच को सरकार और उसकी गतिविधियों तक सुनिश्चित की है। अब गांव का एक युवक घर बैठे देश-विदेश की सेवाएं प्राप्त कर रहा है। चाहे रेल टिकट हो या आरक्षण की स्थिति जानना, किसी परीक्षा का फॉर्म भरना हो या परिणाम का पता लगाना, जन्म, आयु, आवासीय और जातीय प्रमाण-पत्र बनवाना हो या टैक्स जमा करना, ई-सेवा से यह सब उनके लिए आसान हुआ है। अभी ई-प्रशासन को और प्रभावी बनाने की जरूरत है, लेकिन जो सेवाएं मिल रही हैं, वे तेजी से गांवों को बदल रही हैं।
ई-प्रशासन में इसके उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को देखते हुए जिन गतिविधियों को इसमें शामिल किया गया है, उनमें नौकरशाही एवं शासन की गुणवत्ता में सुधार, ज्ञान की भागीदारी, सामाजिक सूचना की आॅनलाइन उपलब्धता तथा टेक्निकल संसाधनों का विकास एवं विस्तार शामिल है। इसके जरिये सरकारी कामकाज की निगरानी एवं एवं उनका मूल्यांकन किया जाता है। कानूनी कार्यवाही, जमीन के रिकॉर्ड, सरकारी कार्यालयों आदि के कार्यों का कंप्यूटरीकरण भी इसमें शामिल है। ई-प्रशासन इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन का संक्षिप्त रूप है। इसे इलेक्ट्रॉनिक आॅनलाइन सरकार तथा डिजिटल सरकार भी कहा जाता है। ई-प्रशासन का अर्थ सरकारी कामकाज में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना है, ताकि शासन सरल, नैतिक, उत्तरदायी और जवाबदेह बन सके। इसके माध्यम से सरकार और आम जनता के बीच इंटरनेट या कंप्यूटर नेटवर्क के जरिए सुरक्षित, विश्वसनीय और नियंत्रित संपर्क कायम करने का प्रयास किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का सबसे ज्यादा प्रभाव प्रशासन पर ही पड़ा है तथा प्रशासन भीइसके प्रभाव में आकर नागरिकों को बेहतर से बेहतर सेवा उपलब्ध कराने का कोशिश कर रहा है।
भारत में ई-प्रशासन की वास्तविक शुरुआत राष्ट्रीय सूचना केंद्र अर्थात एनआइसी की स्थापना (1976) से माना जा सकता है। उल्लेखनीय है कि एनआइसी की स्थापना संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और भारतीय इलेक्ट्रॉनिक आयोग के सहयोग से हुआ था। एनआइसी ने ही सर्वप्रथम देश के जिलों को इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से आपस में जोड़ने का काम किया। इसके बाद से रेलवे, चिकित्सा, शिक्षा एवं भूमि संलेखन आदि को जोड़ने का काम किया गया और सफल भी रहा।
इस सफलता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 1990 के दशक में ई-सरकार कार्यक्रम की शुरुआत की। इसी के तहत 15 अगस्त 2000 को केंद्र एवं राज्य सरकार के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने के लिए ई-सरकार केंद्र की स्थापना की गई थी। इसके बाद 2006 में राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना आरंभ की गई। तब से लेकर अब तक इसके लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। कॉमन सर्विस सेंटर भी उसी में से एक है।
ई-प्रशासन के जरिए सरकारी सेवाओं में सुधार लाने के लिए ग्रामीण इलाकों में कॉमन सर्विस सेंटर अलग-अलग नामों से स्थापित हो चुकी है। जैसे केरल में भूमि, बिहार में ई-शक्ति, राजस्थान में ई-मित्र, हिमाचल प्रदेश में लोकमित्र, मध्य प्रदेश में ज्ञानदूत, तमिलनाडु में स्टार, महाराष्ट्र में सरिता, आंध्र प्रदेश में एपी आॅन लाइन और कार्ड आदि।
वर्तमान में भारत में गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि की समस्या के साथ-साथ कई ऐसे कारण हैं, जिससे ई-प्रशासन की जरूरत पड़ी। ये कारण हैं :
1. सरकारी काम काजों में पारदर्शिता लाना।
2. प्रशासनिक प्रभावित में सुधार लाना।
3. सरकारी कार्यों के लागत में कमी लाना।
4. बिचौलियों को खत्म करना।
5. सरकार के उत्तरदायित्व और क्षमता में वृद्धि करना।
6. सरकार और नागरिकों के निर्णय प्रक्रिया की गुणवत्ता में सुधार लाना।
7. सूचना, संचार एवं नेटवर्क आधारित समुदाय की रचना करना तथा गरीबी, बेरोजगार, निरक्षरता में कमी लाने के साथ ही भ्रष्टाचार को खत्म करना।
ई-प्रशासन का उद्देश्य बिल्कुल साफ है। इसके जरिए आम नागरिकों को बेहतर शासन एवं सेवा उपलब्ध कराना, शासन के कार्य प्रणाली एवं उसके पारदर्शिता में सुधार, जवाबदेही का विकसत, नागरिकों का सशक्तीकरण, सरकार द्वारा दी जा रही सेवाओं की लागत एवं समय कम को करना, सरकारी संगठनों, विभागों एवं कार्यालय के बीच संचार के माध्यम से समन्वय स्थापित करना शासन का मकसद है। इसके जरिए सरकार और जनता के बीच बढ़ती खाई पाटी जा सकती है।
ई-प्रशासन में इसके उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को देखते हुए जिन गतिविधियों को इसमें शामिल किया गया है, उनमें नौकरशाही एवं शासन की गुणवत्ता में सुधार, ज्ञान की भागीदारी, सामाजिक सूचना की आॅनलाइन उपलब्धता तथा टेक्निकल संसाधनों का विकास एवं विस्तार शामिल है। इसके जरिये सरकारी कामकाज की निगरानी एवं एवं उनका मूल्यांकन किया जाता है।
कानूनी कार्यवाही, जमीन के रिकॉर्ड, सरकारी कार्यालयों आदि के कार्यों का कंप्यूटरीकरण भी इसमें शामिल है। इसके जरिए जिलों को राज्य मुख्यालय से सीधे संपर्क में लाया गया है। सामाजिक सेवा में भूमिका में सुधार का भी बड़ा माध्यम है। उल्लेखनीय है कि इन सब बातों के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में सुशासन को बढ़ावा देने, सेवा की क्षमता को बढ़ाने तथा दी जानेवाली सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाने का लक्ष्य रखा गया।
ई-प्रशासन के चार स्तंभ होते हैं : पहला नागरिक, व्यापारिक एवं अन्य प्रतिष्ठान, दूसरा टेक्नोलॉजी, तीसरा संसाधनों का समुचित उपयोग और चौथा प्रक्रिया। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे ठीक से लागू किया जाए। इसने गांवों के स्वरूप को भी बदला है। यह बदलाव इस तरह आया है कि सरकारी कामकाज के तरीकों, प्रक्रियाओं और संगठन को नए सिरे से पुनर्गठित किया गया। विभागों एवं संगठनों के बीच सूचना एवं संचार टेक्नोलॉजी का व्यवहार बढ़ा। इसके लिए अलग से कानूनी रूपरेखा तैयार की गई है।
हालांकि इसमें अब भी काम करने की जरूरत है। अब तक यह कोशिश की जाती रही है कि पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों को इसके अनुरूप सुदृढ़ किया जाए। यह गांवों को सशक्त करने की दिशा में बड़ी पहल है। अभी इस बात पर बहस जारी है कि इसे राजनीतिक समर्थन भी मिले तथा सूचना एवं संचार की गांवों में पहुंच और सुदृढ़ हो।
सच यह है कि तमाम बातों और कमियों के बावजूद सरकारी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों में ई- सेवा को लेकर सोच बदली है। इसके लिए ई-प्रशासन मिशन मोड़ की शुरुआत की गई।
केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना के तहत एक ई-प्रशासन मिशन मोड़ नामक परियोजना की रूप रेखा तैयार की है, जिससे आने वाले दिनों में तमाम प्रकार की जानकारियां आइसीटी के माध्यम से तुरंत दी जा सकती है।
इस मिशन मोड़ के तहत एक हैंडबुक तैयार किया गया है, जिसमें विभिन्न देशों में सूचना एवं संचार के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों का उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही ई-कार्यालय की अवधारणा तथा ई-प्रशासन को कैसे उपयोगी बनाया जाए का भी उल्लेख किया गया है। विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के द्वारा प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को ई-सेवाओं के माध्यम से पहुंचाने के लिए उपाय को भी मिशन मोड़ में लाया गया है।
ई-प्रशासन को विस्तारित करने एवं उपयोगी बनाने के लिए द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने कई सिफारिशें किया है। आयोग ने ई-प्रशासन को सरकारी कार्यों में सुधार लाने के लिए एक अहम साधन माना है। आयोग ने शासन को सरल, पारदर्शी और जिम्मेवार बनाने के साथ ही केंद्रीय सेवाओं को प्रदान करने के लिए अधिकाधिक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग को स्वीकार किया है और कहा है कि जिस तरह सूचना का अधिकार भ्रष्टाचार और नौकरशाही के खिलाफ एक सशक्त कदम है।
उसी प्रकार ई-प्रशासन शासकीय पारदर्शिता, जवाबदेह और खुलापन का एक आयाम है, लेकिन आयोग ने कहा है कि इसे सफल बनाने के लिए मैनुअल प्रक्रियाओं में परिवर्तन करने की आवश्यकता है तथा सभी प्रक्रियाओं में इलेक्ट्रॉनिक पद्धति को अपनाया जाए।
वर्तमान में ई- प्रशासन समय की मांग है। इसकी प्रक्रिया से प्रशासनिक व्यवस्था में काफी बदलाव आया है। पंचायत, गांव और ग्रामीण समाज को काफी लाभ मिला है। इसे हम इस तरह देख सकते हैं :
1. आम जनता अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा जागरूक हुई है।
2. पहले की तुलना में सरकार से जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं।
3. लोग अब सरकार के कामकाज पर पैनी नजर रखने लगे हैं।
4. सरकार भी सामाजिक क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा व्यय कर रही है।
5. आम नागरिक अब आसानी से सरकारी विभागों के संपर्क में है।
6. पिछड़े राज्यों में समन्वय की कमी और नीतिगत खामियां दूर हुईं।
7. शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़े है। सरकार द्वारा ई-मित्र कियोस्क के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने जा रही है।
8. कंप्यूटर प्रशिक्षण, साइबर कैफे एवं मोबाइल मैकेनिक के रूप में कैरियर संवारने के लिए युवाओं को सरकार आसान किस्त पर ऋण दे रही है।
9. गांवों में वीपीओ खुल रहे हैं, जिनसे ग्रामीण युवाओं को रोजगार के लिए शहर का चक्कर नहीं काटना पड़ रहा है।
10. ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा से संबंधित सेवाओं को पहुंचाना आसान हुई है।
11. गांव कॉल सेंटर से जुड़े हैं। ग्रामीणों को छोटी-छोटी जानकारियों के लिए भटकना नहीं पड़ रहा है।
12. रोजगार आवेदन देने, एडमिट कार्ड प्राप्त करने, परीक्षा और रिजल्ट प्राप्त करने में सुविधा हुई है। यह सब कुछ आॅनलाइन हो रहा है।
13. सेंटर ई-चौपाल के जरिए किसान अपनी समस्याओं का निराकरण कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में इसका प्रयोग उपज को बढ़ाने व बेहतर मूल्य पाने, फसलों को रोगमुक्त रखने, मिट्टी परीक्षण एवं उनकी गुणवता में सुधार करने, उन्नत तकनीकी व बीजों के उपयोग करने आदि में कर रहे हैं।
14. टैक्स जमा करना, आयकर रिर्टन दाखिला करना, कर वापसी आसान हुआ है।
15. रेल, हवाई जहाज, बस के टिकटों के आरक्षण भी आसान हुआ है।
16. जन्म-मृत्यु, जातीय एवं आवासीय प्रमाण-पत्र आसानी से प्राप्त हो रहे हैं।
17. आरटीजीएस एवं एनएफएफटी के माध्यम से पैसा को एक से दूसरे जगह एवं खातों में भेजने में आसानी हुई है। इससे समय और लागत दोनों में बचत हुई है।
ई-प्रशासन में इसके उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को देखते हुए जिन गतिविधियों को इसमें शामिल किया गया है, उनमें नौकरशाही एवं शासन की गुणवत्ता में सुधार, ज्ञान की भागीदारी, सामाजिक सूचना की आॅनलाइन उपलब्धता तथा टेक्निकल संसाधनों का विकास एवं विस्तार शामिल है। इसके जरिये सरकारी कामकाज की निगरानी एवं एवं उनका मूल्यांकन किया जाता है। कानूनी कार्यवाही, जमीन के रिकॉर्ड, सरकारी कार्यालयों आदि के कार्यों का कंप्यूटरीकरण भी इसमें शामिल है। ई-प्रशासन इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन का संक्षिप्त रूप है। इसे इलेक्ट्रॉनिक आॅनलाइन सरकार तथा डिजिटल सरकार भी कहा जाता है। ई-प्रशासन का अर्थ सरकारी कामकाज में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना है, ताकि शासन सरल, नैतिक, उत्तरदायी और जवाबदेह बन सके। इसके माध्यम से सरकार और आम जनता के बीच इंटरनेट या कंप्यूटर नेटवर्क के जरिए सुरक्षित, विश्वसनीय और नियंत्रित संपर्क कायम करने का प्रयास किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का सबसे ज्यादा प्रभाव प्रशासन पर ही पड़ा है तथा प्रशासन भीइसके प्रभाव में आकर नागरिकों को बेहतर से बेहतर सेवा उपलब्ध कराने का कोशिश कर रहा है।
ई-प्रशासन की शुरुआत
भारत में ई-प्रशासन की वास्तविक शुरुआत राष्ट्रीय सूचना केंद्र अर्थात एनआइसी की स्थापना (1976) से माना जा सकता है। उल्लेखनीय है कि एनआइसी की स्थापना संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और भारतीय इलेक्ट्रॉनिक आयोग के सहयोग से हुआ था। एनआइसी ने ही सर्वप्रथम देश के जिलों को इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से आपस में जोड़ने का काम किया। इसके बाद से रेलवे, चिकित्सा, शिक्षा एवं भूमि संलेखन आदि को जोड़ने का काम किया गया और सफल भी रहा।
इस सफलता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 1990 के दशक में ई-सरकार कार्यक्रम की शुरुआत की। इसी के तहत 15 अगस्त 2000 को केंद्र एवं राज्य सरकार के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने के लिए ई-सरकार केंद्र की स्थापना की गई थी। इसके बाद 2006 में राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना आरंभ की गई। तब से लेकर अब तक इसके लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। कॉमन सर्विस सेंटर भी उसी में से एक है।
कॉमन सर्विस सेंटर (सीएसएस) क्या है
ई-प्रशासन के जरिए सरकारी सेवाओं में सुधार लाने के लिए ग्रामीण इलाकों में कॉमन सर्विस सेंटर अलग-अलग नामों से स्थापित हो चुकी है। जैसे केरल में भूमि, बिहार में ई-शक्ति, राजस्थान में ई-मित्र, हिमाचल प्रदेश में लोकमित्र, मध्य प्रदेश में ज्ञानदूत, तमिलनाडु में स्टार, महाराष्ट्र में सरिता, आंध्र प्रदेश में एपी आॅन लाइन और कार्ड आदि।
ई-प्रशासन की आवश्यकता क्यों पड़ी
वर्तमान में भारत में गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि की समस्या के साथ-साथ कई ऐसे कारण हैं, जिससे ई-प्रशासन की जरूरत पड़ी। ये कारण हैं :
1. सरकारी काम काजों में पारदर्शिता लाना।
2. प्रशासनिक प्रभावित में सुधार लाना।
3. सरकारी कार्यों के लागत में कमी लाना।
4. बिचौलियों को खत्म करना।
5. सरकार के उत्तरदायित्व और क्षमता में वृद्धि करना।
6. सरकार और नागरिकों के निर्णय प्रक्रिया की गुणवत्ता में सुधार लाना।
7. सूचना, संचार एवं नेटवर्क आधारित समुदाय की रचना करना तथा गरीबी, बेरोजगार, निरक्षरता में कमी लाने के साथ ही भ्रष्टाचार को खत्म करना।
क्या है ई-प्रशासन का उद्देश्य
ई-प्रशासन का उद्देश्य बिल्कुल साफ है। इसके जरिए आम नागरिकों को बेहतर शासन एवं सेवा उपलब्ध कराना, शासन के कार्य प्रणाली एवं उसके पारदर्शिता में सुधार, जवाबदेही का विकसत, नागरिकों का सशक्तीकरण, सरकार द्वारा दी जा रही सेवाओं की लागत एवं समय कम को करना, सरकारी संगठनों, विभागों एवं कार्यालय के बीच संचार के माध्यम से समन्वय स्थापित करना शासन का मकसद है। इसके जरिए सरकार और जनता के बीच बढ़ती खाई पाटी जा सकती है।
ई-प्रशासन में क्या-क्या शामिल
ई-प्रशासन में इसके उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को देखते हुए जिन गतिविधियों को इसमें शामिल किया गया है, उनमें नौकरशाही एवं शासन की गुणवत्ता में सुधार, ज्ञान की भागीदारी, सामाजिक सूचना की आॅनलाइन उपलब्धता तथा टेक्निकल संसाधनों का विकास एवं विस्तार शामिल है। इसके जरिये सरकारी कामकाज की निगरानी एवं एवं उनका मूल्यांकन किया जाता है।
कानूनी कार्यवाही, जमीन के रिकॉर्ड, सरकारी कार्यालयों आदि के कार्यों का कंप्यूटरीकरण भी इसमें शामिल है। इसके जरिए जिलों को राज्य मुख्यालय से सीधे संपर्क में लाया गया है। सामाजिक सेवा में भूमिका में सुधार का भी बड़ा माध्यम है। उल्लेखनीय है कि इन सब बातों के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में सुशासन को बढ़ावा देने, सेवा की क्षमता को बढ़ाने तथा दी जानेवाली सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाने का लक्ष्य रखा गया।
ई-प्रशासन के स्तंभ
ई-प्रशासन के चार स्तंभ होते हैं : पहला नागरिक, व्यापारिक एवं अन्य प्रतिष्ठान, दूसरा टेक्नोलॉजी, तीसरा संसाधनों का समुचित उपयोग और चौथा प्रक्रिया। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे ठीक से लागू किया जाए। इसने गांवों के स्वरूप को भी बदला है। यह बदलाव इस तरह आया है कि सरकारी कामकाज के तरीकों, प्रक्रियाओं और संगठन को नए सिरे से पुनर्गठित किया गया। विभागों एवं संगठनों के बीच सूचना एवं संचार टेक्नोलॉजी का व्यवहार बढ़ा। इसके लिए अलग से कानूनी रूपरेखा तैयार की गई है।
हालांकि इसमें अब भी काम करने की जरूरत है। अब तक यह कोशिश की जाती रही है कि पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों को इसके अनुरूप सुदृढ़ किया जाए। यह गांवों को सशक्त करने की दिशा में बड़ी पहल है। अभी इस बात पर बहस जारी है कि इसे राजनीतिक समर्थन भी मिले तथा सूचना एवं संचार की गांवों में पहुंच और सुदृढ़ हो।
सच यह है कि तमाम बातों और कमियों के बावजूद सरकारी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों में ई- सेवा को लेकर सोच बदली है। इसके लिए ई-प्रशासन मिशन मोड़ की शुरुआत की गई।
क्या है ई-प्रशासन मिशन मोड़
केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ई-प्रशासन योजना के तहत एक ई-प्रशासन मिशन मोड़ नामक परियोजना की रूप रेखा तैयार की है, जिससे आने वाले दिनों में तमाम प्रकार की जानकारियां आइसीटी के माध्यम से तुरंत दी जा सकती है।
इस मिशन मोड़ के तहत एक हैंडबुक तैयार किया गया है, जिसमें विभिन्न देशों में सूचना एवं संचार के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों का उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही ई-कार्यालय की अवधारणा तथा ई-प्रशासन को कैसे उपयोगी बनाया जाए का भी उल्लेख किया गया है। विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के द्वारा प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को ई-सेवाओं के माध्यम से पहुंचाने के लिए उपाय को भी मिशन मोड़ में लाया गया है।
प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशें
ई-प्रशासन को विस्तारित करने एवं उपयोगी बनाने के लिए द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने कई सिफारिशें किया है। आयोग ने ई-प्रशासन को सरकारी कार्यों में सुधार लाने के लिए एक अहम साधन माना है। आयोग ने शासन को सरल, पारदर्शी और जिम्मेवार बनाने के साथ ही केंद्रीय सेवाओं को प्रदान करने के लिए अधिकाधिक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग को स्वीकार किया है और कहा है कि जिस तरह सूचना का अधिकार भ्रष्टाचार और नौकरशाही के खिलाफ एक सशक्त कदम है।
उसी प्रकार ई-प्रशासन शासकीय पारदर्शिता, जवाबदेह और खुलापन का एक आयाम है, लेकिन आयोग ने कहा है कि इसे सफल बनाने के लिए मैनुअल प्रक्रियाओं में परिवर्तन करने की आवश्यकता है तथा सभी प्रक्रियाओं में इलेक्ट्रॉनिक पद्धति को अपनाया जाए।
ई- प्रशासन ने डाला प्रभाव
वर्तमान में ई- प्रशासन समय की मांग है। इसकी प्रक्रिया से प्रशासनिक व्यवस्था में काफी बदलाव आया है। पंचायत, गांव और ग्रामीण समाज को काफी लाभ मिला है। इसे हम इस तरह देख सकते हैं :
1. आम जनता अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा जागरूक हुई है।
2. पहले की तुलना में सरकार से जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं।
3. लोग अब सरकार के कामकाज पर पैनी नजर रखने लगे हैं।
4. सरकार भी सामाजिक क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा व्यय कर रही है।
5. आम नागरिक अब आसानी से सरकारी विभागों के संपर्क में है।
6. पिछड़े राज्यों में समन्वय की कमी और नीतिगत खामियां दूर हुईं।
7. शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़े है। सरकार द्वारा ई-मित्र कियोस्क के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने जा रही है।
8. कंप्यूटर प्रशिक्षण, साइबर कैफे एवं मोबाइल मैकेनिक के रूप में कैरियर संवारने के लिए युवाओं को सरकार आसान किस्त पर ऋण दे रही है।
9. गांवों में वीपीओ खुल रहे हैं, जिनसे ग्रामीण युवाओं को रोजगार के लिए शहर का चक्कर नहीं काटना पड़ रहा है।
10. ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा से संबंधित सेवाओं को पहुंचाना आसान हुई है।
11. गांव कॉल सेंटर से जुड़े हैं। ग्रामीणों को छोटी-छोटी जानकारियों के लिए भटकना नहीं पड़ रहा है।
12. रोजगार आवेदन देने, एडमिट कार्ड प्राप्त करने, परीक्षा और रिजल्ट प्राप्त करने में सुविधा हुई है। यह सब कुछ आॅनलाइन हो रहा है।
13. सेंटर ई-चौपाल के जरिए किसान अपनी समस्याओं का निराकरण कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में इसका प्रयोग उपज को बढ़ाने व बेहतर मूल्य पाने, फसलों को रोगमुक्त रखने, मिट्टी परीक्षण एवं उनकी गुणवता में सुधार करने, उन्नत तकनीकी व बीजों के उपयोग करने आदि में कर रहे हैं।
14. टैक्स जमा करना, आयकर रिर्टन दाखिला करना, कर वापसी आसान हुआ है।
15. रेल, हवाई जहाज, बस के टिकटों के आरक्षण भी आसान हुआ है।
16. जन्म-मृत्यु, जातीय एवं आवासीय प्रमाण-पत्र आसानी से प्राप्त हो रहे हैं।
17. आरटीजीएस एवं एनएफएफटी के माध्यम से पैसा को एक से दूसरे जगह एवं खातों में भेजने में आसानी हुई है। इससे समय और लागत दोनों में बचत हुई है।
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Post By: Shivendra