स्वच्छ दून का सपना कैसे हो साकार कूड़ा निस्तारण व्यवस्था का बंटाधार

स्वच्छ दून का सपना कैसे हो साकार कूड़ा निस्तारण व्यवस्था का बंटाधार
स्वच्छ दून का सपना कैसे हो साकार कूड़ा निस्तारण व्यवस्था का बंटाधार

स्वच्छ दून, सुंदर दून का स्लोगन तो वर्षों से सुनते आए आए हैं, लेकिन धरातल पर यह नारा साकार होता नजर नहीं आता। दून में सफाई गजा व्यवस्था बड़ी चुनौती बना हुआ है।हालांकि, जिम्मेदार कूड़ा निस्तारण और साफ-सफाई व्यवस्था चाक-चौबंद करने के दावे तो करते हैं, लेकिन कूड़ा शहर के लिए नासूर बन हुआ है। सड़कों, बाजारों में कूड़ा और गंदगी पसरना आम बात है। घर-घर कूड़ा उठान हो या डंपिंग जोन से प्लांट में कूड़े के निस्तारण की बात, सभी मोर्चों पर निगम के दावे हवाई साबित होते हैं। हालांकि, कूड़ा फैलाने में आम लोगों की लापरवाही भी सामने आती है। स्वच्छ सर्वेक्षण में देहरादून 69 स्थान पर है और शीर्ष 10 में आने की फिलहाल कोई उम्मीद भी नजर नहीं आती।

देहरादून के सभी 100 वार्ड में प्रतिदिन करीब साढ़े चार सौ टन कूड़ा उत्सर्जित होता है। इसमें घर-घर कूड़ा उठान से लेकर बड़े कूड़े दानों में जमा कूड़ा और सड़कों व गली- मोहल्लों से सफाई के दौरान एकत्रित कूड़ा शामिल है। इसके निस्तारण के लिए न तो नगर निगम के पास उचित व्यवस्था है और न ही नियमित रूप से कूड़ा उठान हो पा रहा है। घर-घर कूड़ा उठान को अनुबंधित तीन कंपनियों के पास 98 वार्डों की जिम्मेदारी है, लेकिन अक्सर विभिन्न क्षेत्रों से कई-कई दिन तक कूड़ा उठान वाहन न आने की शिकायतें आती हैं। इसके अलावा शहर में जगह-जगह सार्वजनिक स्थलों पर भी कूड़े के ढेर दिख जाते हैं। नगर निगम के सार्वजनिक शौचालयों का आलम यह है कि आम आदमी यहां जाने में हिचकता है।

शहर के नदी-नाले बन गए कूड़ेदान 

शहर में रिस्पना और बिंदाल समेत कई छोटी-बड़ी नदियां व नाले हैं, जो अक्सर कुड़े से पटे नजर आते हैं। आसपास के क्षेत्र के लोग घर का कूड़ा नदी-नालों में फेंक देते हैं और नगर निगम मूकदर्शक बना रहता है। कोई ठोस कार्रवाई न होने के कारण कूड़ा डालने वाले बाज नहीं आ रहे हैं। सहर के ज्यादातर नाले तो कूड़ेदान बन चुके हैं। निगम लोहे की जाली और हरे पर्दै लगाकर जरूर नदी-नालों के कूड़े को छिपाता है, लेकिन जगह-जगह नदी-नालों की बदहाली नजर आ ही जाती है।

मुख्य मार्गों के फुटपाथ व कालोनी में प्लाट भी बन गए डंपिंग जोन

शहर में कई स्थान ऐसे हैं, जहां सड़क किनारे व खाली प्लाट में कूड़ा डंप किया जा रहा है। धीरे-धीरे यह स्थान कूड़े के मैदान बनने लगे हैं। नगर निगम की ओर से ऐसे स्थानों से कभी-कभी कूड़ा उठान करा दिया जाता है, लेकिन डंप करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।

कूड़ा निस्तारण की निगरानी पर भी लाखों खर्च : नगर निगम की ओर से घर-घर कूड़ा उठान से लेकर शीशमबाड़ा प्लांट में कूड़ा निस्तारण को लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके अलावा कूड़ा प्रबंधन एवं निस्तारण के कार्य निगरानी के लिए भी एजेंसी नियुक्त कर लाखों का भुगतान हो रहा है। जबकि निजी कंपनियों के कार्य से जनता तक खुश नहीं है। हालांकि, नगर निगम का स्वास्थ्य अनुभाग अनुबंधित कंपनियों के लापरवाह रवैये पर चुप्पी साधे बैठा है। निगरानी कर रहीं कंपनियों को हर माह 12 से 13 लाख का भुगतान किया जा रहा है।

ट्रांसफर सेंटर पर कूड़े का अंबार, सड़ांध से लोग परेशान 

निगम के डंपिंग जोन बने नासूर नगर निगम की ओर से कारगी चौक - के पास कूड़ा ट्रांसफर सेंटर बनाया गया है। - जहां आधे शहर का कूड़ा डंप किया जाता है और यहां से कूड़े को वाहनों के जरिये - शीशमबाड़ा प्लांट तक पहुंचाया जाता है। कारगी चौक के पास स्थित इस डंपिंग जोन से क्षेत्रवासियों का जीना मुहाल हो चुका है। यहां कूड़े के पहाड़ के कारण स्वच्छता पर तो बट्टा लग ही रहा है, दुर्गंध से क्षेत्र में सांस लेना भी मुहाल हो गया है।

गीला-सूखा कूड़ा पृथक करने में दून फिसड्डी 

सेग्रीगेशन (पृथकीकरण) में दून अब भी फिसड्डी है। रोजाना उत्सर्जित 450 टन कूड़े में से महज 10 प्रतिशत कूड़ा ही सेग्रीगेट (पृथक) हो पा रहा है। जिससे शत-प्रतिशत कूड़ा निस्तारण की राह कठिन हो जाती है। इसमें निगम के साथ ही आमजन को भी अहम भागीदारी निभानी होगी। दून में कूड़े का सेग्रीगेशन 10 प्रतिशत और प्रोसेसिंग 78 प्रतिशत है। सेग्रीगेशन के मामले में दून राज्य के औसत (17 प्रतिशत) से भी पीछे है। गीला-सूखा कूड़ा - अलग-अलग न होने के कारण निगम के - प्लांट पर पहाड़ बनता जा रहा है।

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Post By: Shivendra
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