हिमाचल शब्द संस्कृत के दो शब्दों हिमा (बर्फ) और अचला (पर्वत) से बना है, जिसका अर्थ है बर्फीले-पहाड़ या बर्फीली-श्रृंखला। इसी प्रकार हिमालय शब्द हिमा और आलय (निवास) से बना है, जिसका अर्थ है घर या बर्फ का निवास।
हिमाचल प्रदेश देश के सबसे सुरम्य क्षेत्रों में से एक है, शक्तिशाली नदियों और बर्फ की भूमि, भारत के सुदूर उत्तर-पश्चिम में हिमालय पर्वतमाला की गोद में स्थित है, और उत्तर में जम्मू और कश्मीर, पश्चिम में पंजाब से घिरा है और दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में उत्तर प्रदेश और पूर्व में तिब्बत। यह 32 डिग्री, 22' 40 से 330 डिग्री 12,40, उत्तरी अक्षांश और 75 डिग्री,47'55 से 79 डिग्री 04'22 पूर्वी देशांतर के बीच औसत समुद्र तल से 350 मीटर से 6,975 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित है।
हिमाचल प्रदेश, जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, हिमालय की गोद में स्थित है। इसकी जलवायु परिस्थितियाँ, वनस्पति और जीव-जंतु, लोगों का जीवन और दृष्टिकोण काफी हद तक उसी एक कारक से प्रभावित होते हैं। यहां प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत अनुपम है। मीलों-मील तक ऊँची -ऊँची पहाड़ियाँ, बीच-बीच में मनमोहक पहाड़ी जलधाराएँ; मौसम में, फूल प्रचुर मात्रा में होते हैं, और सर्दीयों में यहाँ बर्फबारी होती है, जिससे पूरा प्रदेश सफेद रंग की चमकती चादर से ढक जाता है, नदियों में मछलियों से झीलें नौकायन और मछली पकड़ने तक की सारि क्रियाएं होती हैं; और जंगलों में बड़ी संख्या में आइबैक्स, थार, गोरल भालू और कुछ क्षेत्र में हिम तेंदुए के वन्य जीवन पाए जाते हैं।
राज्य का मुख्यालय 'पहाड़ों की रानी' शिमला में स्थित है। राज्य को तीन प्रभागों में विभाजित किया गया है। संभाग को आगे 12 जिलों में विभाजित किया गया है; बिलासपुर, चंबा, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल और स्पीति, मंडी, शिमला, सिरमौर, सोलन और ऊना।
इस पहाड़ी राज्य से होकर पाँच नदियाँ बहती हैं; कुल्लू, मंडी और कांगड़ा में ब्यास; किन्नौर, शिमला और बिलासपुर में सतलुज, चंबा में रावी, शिमला और सिरमौर में यमुना की सहायक नदियाँ हैं और सिरमौर की सीमाओं के साथ बहती हैं और अंत में चिनाब लाहौल-स्पीति और चंबा जिलों से होकर बहती है।
परन्तु ऐसा प्रतीत होता है जैसे यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को मनुष्य की अनंत लालसाओं की नज़र लग गयी है और अब मानव गतिविधियों के कारण यहाँ प्राकृतिक घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। हिमाचल प्रदेश में हाल ही में असामान्य बर्फबारी हो रही है और इसके कारण चिनाब नदी का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है। इस बारिश और बर्फबारी के चलते कई जिलों में हिमस्खलन की घटनाएं भी हो रही हैं। लाहौल-स्पीति जिले में तीन दिनों में तीन फीट से अधिक बर्फबारी दर्ज की गई ,जो आम जनमानस के लिए बड़ी चुनौतियों का सामना करने की वजह बन रही है। इसके अलावा चंबा जिले में भी 516 फीसदी से अधिक बर्फबारी और बारिश दर्ज की गई। भारी बर्फबारी के कारण प्रदेश के विभिन्न जिलों में हिमस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। लाहौल-स्पीति जिले के जसरथ गांव के पास दारा झरने के प्रवाह को कुछ दिन पहले हुए हिमस्खलन की वजह से चिनाब नदी का प्रवाह 15 घंटे से अधिक समय तक रुका रहा। इससे नदी के निचले इलाकों के लोगों में दहशत का माहौल बना रहा। भारी बर्फबारी की वजह से पर्यटन स्थल मनाली के सोलंगनाला में हिमस्खलन की वजह से 5 गाड़ियां चपेट में आ गई और तांदी पुल के पास हिमस्खलन में 5 दुकानों को भारी नुकसान हुआ।
भारी बर्फबारी के कारण लाहौल घाटी पूरी तरह से शेष दुनिया से कट गई है। आपदा प्रबंधन के आंकड़ों के अनुसार एकदम हुई इस बर्फबारी और बारिश की वजह से हिम लाहौल-स्पीति जिले में बर्फबारी रिकॉर्ड सामान्य से अधिक की दर्ज की गई। सामान्य परिस्थितियों में यहां 20.8 सेंटीमीटर बर्फबारी होती है, लेकिन इस बार 131 सेंटीमीटर से अधिक बर्फबारी दर्ज की गई। लाहौल में बर्फबारी रिकॉर्ड से 700 फीसदी अधिक है, और चंबा जिले में भी 516 फीसदी से अधिक बर्फबारी और बारिश दर्ज की गयी। पूरे प्रदेश में 508 फीसदी से अधिक बारिश और बर्फबारी दर्ज की गई है.
हिमाचल प्रदेश में पिछले चार दिनों में पर्याप्त बर्फबारी और बारिश हुई है। जनजातीय जिलों किन्नौर और लाहौल और स्पीति में 1 से 3 मार्च, 2024 तक तीन फीट से अधिक बर्फबारी हुई, जिससे स्थानीय निवासियों को बड़ी चुनौतियां का सामना करना पद रहा है। इस दौरान, 350 सड़कें, जिसमें चार राष्ट्रीय राजमार्ग भी शामिल हैं, यातायात के लिए बंद कर दी गई हैं। शिमला के मौसम विज्ञान केंद्र ने आंधी, बिजली, ओले और भारी बारिश के लिए लाल चेतावनी जारी किया,यहां तक कि तेज हवाओं की गति 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच सकती है। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण रास्तों को बंद कर दिया गया और तेज़ हवाओं और भारी बारिश के चलते ट्रांसफॉर्मर्स भी असंचालित हो गए। इसके साथ ही, रोहतांग पास की भी बंदी हो गई।
लाहौल और स्पीति में गोंडला में 61.2 सेमी की बर्फबारी और मनाली में 84 मिमी वर्षा दर्ज की गयी है, जो राज्य में सबसे अधिक है। इस बारिश और बर्फबारी का प्रभाव रविवार तक जारी रहा। मध्य और निम्न पहाड़ों में मार्च 4-5 के दौरान मौसम सूखा रहा, जबकि उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी और वर्षा जारी रही।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, लाहौल और स्पीति जिले में औसत से 530 प्रतिशत से अधिक बर्फबारी हुई है जबकि सामान्य परिस्थितियों में लाहौल स्पीति में आमतौर पर 20.8 सेंटीमीटर बर्फबारी और बारिश होती है, लेकिन इस अवधि के दौरान 131 सेंटीमीटर से ज्यादा बर्फबारी दर्ज की गई.
रोहतांग दर्रा मनाली से जुड़ा हुआ है और यह लाहौल और स्पीति की ऊंची पर्वतमाला के कारण शेष दुनिया से अलग है। इसकी ऊंचाई 3,978 मीटर (13,051 फीट) है और यह कुल्लू घाटी को लाहौल और स्पीति से अलग करता है। यह जिला तिब्बत के साथ पूर्व में मिलता है, उत्तर में लद्दाख भू-भाग (जम्मू और कश्मीर में स्थित) है और किन्नौर और कुल्लू के साथ दक्षिण में सीमित है। यातायात के लिए यहां लाहौल के अवधाव और भूस्खलन के लिए प्रसिद्ध है, और इस कारण कई यात्री इस रास्ते से गुजरते हुए मारे गए हैं। इसकी स्थानीय महत्वता के कारण, यहां बनी नई पक्की सड़क मई से नवम्बर तक खुली रहती है, जो लद्दाख तक जाती है। रोहतांग दर्रे के नीचे एक सुरंग भी बन रही है, जिसकी अनुमानित पूर्णता 2012 तक होने की आशा है। हर साल, यहां आलू और मटर की खेती होती है, जो अब यहां की प्रमुख फसलें हैं।
हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति में हुए हिमस्खलन के कारण चेनाब नदी का प्रवाह 15 घंटे से अधिक समय तक रुका रहा है। इससे नदी के निचले इलाकों में रहने वाले लोगों में दहशत की स्थिति बनी रहती है। भारी बर्फबारी के कारण मनाली के पर्यटन स्थल सोलंगनाला में भी हिमस्खलन की चपेट में 5 वाहन आए और तांदी पुल के पास 5 दुकानें क्षतिग्रस्त हुई। इसी बर्फबारी के कारण लाहौल घाटी बाकी दुनिया से पूरी तरह कट गई।
आपदा प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रकार की आपदाओं से होने वाली हानि को न्यायसंगत रूप से प्रबंधित और कम करना है। यह प्रक्रिया आपदा से पूर्व, आपदा के समय और उसके आपदा के पश्चात् योजनाओं का निर्माण करने और कदम उठाने में शामिल होती है। आपदा प्रबंधन के तीन मुख्य चरण होते हैं:
आपदा से पूर्व/पूर्वानुमान अवस्था: इस चरण में आपदा घटित होने से पहले कार्ययोजना बनाने पर केंद्रित होता है। इसका मुख्य उद्देश्य मानवीय क्षति को कम करना है। इसमें सूचना प्रणाली विकसित करना, संसाधन जुटाना, जोखिमों का आकलन करना, विभिन्न संचार चैनलों के माध्यम से चेतावनी जारी करना और सुरक्षित स्थानों पर लोगों को पहुँचाने के लिए सुरक्षित परिवहन को सुनिश्चित करना शामिल है।
आपदा के समय और सहभागिता अवस्था: यह चरण महत्वपूर्ण होता है और इसमें आपदा-पूर्व चरण में की गई तैयारियों पर निर्भर करता है। इसमें आपदा-ग्रस्त क्षेत्रों में पीड़ितों की सहायता के लिए त्वरित कार्रवाई करना, उन्हें सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करके उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना, और भोजन, कपड़े, और स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यकताओं को पूरा करना शामिल है।
आपदा उपरान्त या पुनः प्राप्ति अवस्था: इस चरण में मौसम वैज्ञानिक राजेश सिंह राणा ने संवाददाता को बताया कि एक ही समय में अधिक बर्फबारी और बारिश होना असामान्य है। इसका कारण सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ, अरब सागर से आने वाली नम हवाएँ और पंजाब और राजस्थान से आने वाली हवाएँ हैं, जिसके कारण राज्य ने इस घटना का सामना किया।
किन्नौर के सांगला निवासी विपिन नेगी के अनुसार, मार्च में हो रही बर्फबारी असामान्य है। इस अचानक बर्फबारी के परिणामस्वरूप, पूरे क्षेत्र की पानी और बिजली व्यवस्था प्रभावित हुई। इसके अलावा, लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँचने में भी समस्याएँ हो रही हैं। बर्फबारी के दौरान यह समस्याएँ आम होती हैं, लेकिन इस बार यह असामान्य रूप से बढ़ गई।
बर्फबारी के मायने वातावरण में वाष्पकण के कारण होते हैं। जब बर्फ पिघलती है, तो मिट्टी में नमी जाती है और फसलों को उगने में मदद मिलती है। ठंड के दिनों में बर्फबारी बढ़ते मौसम के दौरान यह भी मदद करती है, क्योंकि बर्फ पिघलने के साथ ही मिट्टी में चली जाती है। वहीं, बिना जुताई वाले खेत बर्फ को रोकने में मदद करते हैं और बहाव को कम करते हैं। इस असामान्य बर्फबारी के बावजूद, यह खेती को हमेशा नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि इसके फायदे भी होते हैं।
स्रोत-हिंदुस्तान टाइम्स
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