हवा में जहर

वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपने रीयल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ा दी है। 2010 में जहाँ 10 शहरों में ऐसे स्टेशन थे, वहीं ये अब बढ़कर 50 से अधिक हो गये हैं। इन स्टेशनों से शहरों में हवा की गुणवत्ता की जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है, वह बेहद चिन्ताजनक है। सीपीसीबी 10 बड़े शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स रिपोर्ट प्रतिदिन जारी करता है।

इस रिपोर्ट पर नजर डालने पर विभिन्न प्रदूषकों का चिन्ताजनक स्तर देखा जा सकता है। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10 में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के मिलने से गर्मियों (अप्रैल से 27 मई 2018) में चुनौती मिलती है। गर्मियों और सर्दियों में सबसे खराब हवा की गुणवत्ता लखनऊ में दर्ज की गई। यहाँ नवम्बर और दिसम्बर 2017 के पूरे 61 दिनों तक हवा की गुणवत्ता गम्भीर और निम्न दर्जे की थी। गर्मियों में 57 से 31 दिन (अप्रैल से 27 मई 2018) हवा की गुणवत्ता का स्तर निम्न और बेहद निम्न था। बंगलुरु जैसे शहरों में भी कुछ दिन ही संतोषजनक और औसत दर्ज किये गये। हालांकि ये दिन भी साँस सम्बन्धी बीमारियों के लिये माकूल हैं।

हवा की गुणवत्ता की मॉनीटरिंग करने वाले 54 शहरों की सूची में शामिल कोलकाता में ठंड के महीनों-नवम्बर और दिसम्बर का कोई आँकड़ा मौजूद नहीं था। गर्मियों के दिनों की वायु में प्राथमिक प्रदूषकों के तौर पर पीएम 10, पीएम 2.5, O3, NO2 और CO पाया गया है। पटना के वायु प्रदूषण की निगरानी में ठंड के 15 दिनों के आँकड़े प्राप्त नहीं हो पाए जबकि गर्मियों में ऐसे दिनों की संख्या 6 थी। मुम्बई में गर्मी के 16 दिनों और ठंड के एक दिन का आँकड़ा हासिल नहीं हो पाया। कोलकाता में अधिकांश दिनों के आँकड़े उपलब्ध न होने के कारण वायु प्रदूषण की गुणवत्ता का विश्लेषण नहीं किया जा सका। मुम्बई और बिहार में भी आँकड़ों की विसंगतियाँ देखी गईं। आँकड़ों की कमी हाल ही में लॉन्च किये गये राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को प्रभावित कर सकता है। इस कार्यक्रम के तहत शहरों को शहर आधारित एक्शन प्लान बनाने को कहा गया है।

प्रदूषण का कहर

हवा की खराब गुणवत्ता के कारण दिल्ली हमेशा खबरों में बनी रहती है। लेकिन सर्दियों (नवम्बर-दिसम्बर 2017) और गर्मियों (अप्रैल से 27 मई 2018 तक) में हवा की गुणवत्ता का विश्लेषण बताता है कि 10 राजधानियाँ प्रदूषण के संकट से जूझ रही हैं। यह हवा इन राजधानियों में रहने वाले लोगों के सामने स्वास्थ्य का संकट पैदा कर रही है। कोलकाता, बिहार और मुम्बई जैसी राजधानियों में तो आँकड़ों की विसंगतियाँ देखी गईं। कोलकाता में तो नवम्बर और दिसम्बर के आँकड़े ही नहीं मिले।

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