हस्तक्षेप का हौसला

गाँव
गाँव


मेरे गांव के पड़ोस के गांव में एक दिन मल्लाहों की बस्ती में भयंकर आग लगी। शाम का समय था। मैं भी वहां पहुंचा। दृश्य अत्यन्त कारुणिक था। कोई 50 परिवारों की मल्लाहों की बस्ती मे 90 प्रतिशत घर घास-फूस और खरपतवार से बने होने के कारण पूरी तरह से जल कर समाप्त हो गये थे। वहां मैंने देखा कि एक 6 वर्षीय बालक ठंड में नंगे बदन खड़ा है। मैंने उसकी मां से कहा कि इसे कपडे पहना दो तो वह बोली, ”हमारे पास कपड़ा हो तब तो पहनाऊं, सब कुछ जल कर खाक हो गया।”

उसके उत्तर ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मेरे मन में उनके लिए कुछ करने की प्रेरणा जगी। मैं घर आया और अपने पांच घनिष्ठ मित्रों से कहा कि पास के गांव पर विपत्ति आई है। हमें उनकी सहायता स्वरूप कुछ सामान और वस्त्रों की व्यवस्था तत्काल करनी चाहिए। फिर हमने अपने गांव के हर दरवाजे से अन्न, वस्त्र और धन एकत्रित किया। पूरे दिन मेहनत करने के बाद सायं तक सैकड़ों किलो चावल, गेहूं, आटा, दाल, आलू, प्याज के साथ नये-पुराने हजारों वस्त्रों का ढेर हमारे सामने था। इसके अलावा एक अच्छी खासी नकद रकम भी थी। अगली सुबह उस रकम से नमक, माचिस और अन्य अत्यंत आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी कर हम एक टैरक्टर में सारा समान लेकर उस गांव में गये। प्राथमिकता के आधार पर उसकी सूची बनाकर सहायता सामग्रियों का वितरण किया गया। हम सभी को अत्यन्त आत्मिक संतुष्टि प्राप्त हुई। पहली बार हमने परमात्मा के अखण्डत्व का अनुभव किया। इसके बाद हम पांच मित्रों ने पुन: बैठक की और इस निश्चय पर पहुंचे कि हमें अपने व्यक्तिगत कार्यों में से समय निकाल कर अपने आस-पास के लिए कुछ करते रहना चाहिए।

दीवार लेखन :
शुरू-शुरू में हमने तय किया कि प्रेरक सद्वाक्यों को गांव की दीवारों पर लिखना चाहिए। इस तरह हम सुबह 6 बजे से 8 बजे तक प्रतिदिन अपने 40 हजार आबादी वाले गांव की दीवारों पर सद्वाक्य लिखने लगे। मिट्टी के छोटे पात्रों में गेरु का घोल बनाकर बांस की कूंची से दीवार पर लेखन का यह कार्य एक माह तक प्रतिदिन अनवरत चलता रहा। किसी ने बताया कि सामाजिक कार्य किसी संस्था के अंतर्गत करना ज्यादा उपयुक्त रहता है। सो, हमने जन कल्याण समिति, रेवतीपुर का गठन किया।

युवाओं के आदर्शवाद को सुगम करने, उन्हें पल्लवित-पुष्पित करने की बजाए हमारी भ्रष्ट व्यवस्था उनके मार्ग में कांटे बोती है। इसके बावजूद कुछ युवा समाज में सार्थक बदलाव के लिए हस्तक्षेप का हौसला रखते हैं। गाजीपुर के युवा राकेश राय ने अपने गांव की व्यवस्था को बदलना चाहा। इस दौरान उन्हें जो अनुभव हुए उसे देश के तमाम युवाओं को भी जानना चाहिए। सफलता और असफलता के बीच झूलते उनके प्रयास को आइए उन्हीं की जबानी सुनते हैं... ग्राम सर्वेक्षण :
तय हुआ कि हम अपने गांव को केन्द्र बनाकर समग्र विकास की दिशा में बढ़ेंगे। किसी भी विषय पर कार्य आरम्भ करने से पहले हमें अपने गांव का सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक लगा। प्रत्येक परिवार के भोजन, आवास की स्थिति के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि से संबंधित तथ्यों से अवगत होने के लिए एक चार पृष्ठों का प्रपत्रा तैयार किया गया और चल पड़ा हमारा कारवां। प्रत्येक सुबह हम 5-8 मित्रों के साथ 4-5 घंटे सर्वेक्षण कार्य करते। छ: माह की अवधि में यह कार्य समाप्त हुआ।

शैक्षणिक परिवेश निर्माण :
सर्वेक्षण के बाद अपने संसाधनों को ध्यान में रखते हुए हम सबने मिलकर छोटे स्तर पर पुस्तकालय और वाचनालय का आरम्भ किया। इसके लिए ग्रामसभा के दो मांजिले बड़े परिसर युक्त पंचायत भवन का उपयोग किया गया और सप्ताह में तीन दिन संचालन के निमित हम मित्रों ने अपनी दो सदस्यीय तीन समितियों का गठन किया। कालान्तर में पुस्तकालय, वाचनालय को प्रतिदिन संचालित करने के निमित्त एक विद्यालय में स्थानान्तरित कर दिया गया। पुस्तकालय एवं वाचनालय के संचालन के पीछे मुख्य उद्देश्य गांव के बेरोजगार शिक्षित युवकों की प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए विविध प्रतियोगी पत्रा-पत्रिकाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना था। साथ में गांव के बच्चों और युवकों के चारित्रिक विकास के लिए अच्छा साहित्य उपलब्ध करवाना था। इस सन्दर्भ में एक और कार्य आरम्भ किया गया। गांव के एक 50 परिवारों के मुहल्ले का चयन कर प्रत्येक रविवार को 8 वर्ष से 15 वर्ष के बच्चों को एकत्रित कर उनके मानसिक, बौध्दिक और आध्यात्मिक विकास के लिए कार्यक्रम चलाये गये। अभिभावाकों का इस प्रयास में सहयोग लिया गया। गांव के कुछ अन्य मुहल्लों में भी यह अभियान चलाया गया।

ग्राम स्वच्छता कार्य :
इसी बीच ‘चाचाजी’ के मार्गदर्शन में ‘ग्राम स्वच्छता’ विषय पर प्रति रविवार सुबह दो घंटे गली-रास्ताेंं की सफाई का कार्य मुहल्लेवार आरम्भ हुआ। 50-100 की सामूहिक संख्या में प्रत्येक रविवार को लोग अपना सहयोग देने लगे।

इसी दौरान गांव में विभिन्न पर्व-त्योहारों के अवसर पर चली आ रही स्वस्थ गतितिधियों की परम्पराओं के क्षरण और विकृत होते जा रहे स्वरूप को स्वस्थ करने की दिशा में भी कार्य किये गये। इन कार्यों का असर गांव में साफ नजर आया।

कृषि विकास :
गांव की रीढ़ कृषि है। अत: इस दिशा में पहल करने का निश्चय हुआ। हमने कुछ जागरूक किसानों के साथ खेती के वर्तमान घाटे वाले स्वरूप को लेकर चर्चा का एक विषद क्रम आरम्भ किया। व्यक्तिगत स्तर पर सैकड़ों जागरूक किसानों से मिलकर उनके बीच प्रतिनिधियों का चुनाव किया गया। अपने गांव के इतर पड़ोसी दर्जन भर गांवों में सामूहिक चर्चा के क्रम में प्रतिनिधियों का चुनाव किया गया। चुने हुए प्रतिनिधियों के साथ साप्ताहिक रविवारीय बैठकों का क्रम डेढ़ वर्षों तक अनवरत चलता रहा। फिर बैठकों का आयोजन विषय के आधार पर निर्धारित किया गया। विगत पांच वर्षों से जारी कृषि विकास के विविध प्रयत्नों का काफी उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुआ। इन बैठकों की उपलब्धियों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं में समेट सकते हैं-

1. पड़ोस एवं बाहर के जागरूक एवं सफल किसानों के साथ सम्पर्क, संवाद और सहयोग के वातावरण का सृजन।
2. कृषि के विकास के अद्यतन वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं तकनीकों तक तीव्र सम्पर्क हेतु सम्बन्धित कृषि विश्वविद्यालयों और शोध संस्थाओं के साथ सघन सम्पर्क, संवाद और सहयोग का शुभारम्भ।
3. कार्यकारिणी मण्डल के किसानों के समूह द्वारा राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर निरन्तर अध्ययन भ्रमण यात्रा।
4. प्रकृति पोषित एवं टिकाऊ खेती के स्वरूप के विकास में गोधन की अनेकविध उपादेयताओं के प्रति आग्रह निर्माण एवं जैविक खेती की दिशा में गति।
5. बागवानी, पशुपालन, डेयरी, औषधीय खेती, मसरूम उत्पादन, रेशम कीटपालन, मधुमक्खी पालन आदि सहायक कृषि गतिविधियों की दिशा में प्रशिक्षण और व्यावसायिक अथवा प्रयोगात्मक पहल की दिशा में लगातार वृध्दि का क्रम।
6. बाजार की शक्तियों के शोषण से संघर्ष का सामूहिक प्रयास और कृषि उत्पाद मूल्य संवर्धन हेतु लघु-दीर्घ प्रयास।
7. सहकारी खेती की दिशा में जोताई, सिंचाई आदि यंत्रों की सामूहिक स्तर पर व्यवस्था करने का प्रयास।

पंचायत सशक्तिकरण :हम सभी मित्रा राजसत्ता के नैतिक पतन और उसके लोकसत्ता पर पड़ रहे प्राणघातक प्रभावों से अवगत थे। अपनी बैठकों में इस बात पर हमारी चिंता भी जाहिर होती रहती थी। हमारे एक मित्रा का मानना था कि हममें से कुछ लोगों को राजसत्ता की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत में प्रवेश कर परिवर्तन की प्रक्रिया आरम्भ करनी चाहिए।

इसके विपरीत दूसरा मत था कि भ्रष्ट हो चुके राजनीतिक माहौल में हम प्रवेश करेंगे तो अपने लक्ष्यों की पूर्ति में हमें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। विचार-विमर्श के क्रम में यह निर्धारण हुआ कि विगत वर्षों का हमारा रचनात्मक कार्य उस न्यूनतम स्तर पर वातावरण को निर्मित कर चुका है, जिसके कारण हम संसदीय लोकतंत्रा तो नहीं परन्तु लोकतंत्रा के सबसे नीचली इकाई ग्राम पंचायत के ढांचे को पंचायती राज के मूल उद्देश्यों की दिशा में परिणामजनक बनाने हेतु प्रयोग और पहल कर सकते हैं।

इस क्रम में ग्राम पंचायत के कार्य समिति के सदस्य के रूप में हमारे एक मित्रा का चयन हुआ। लेकिन, पंचायत के माध्यम में गांव में विकास कार्य करवाने में हमें समाज, शासन और प्रशासन की तरफ से काफी अड़चनों का सामना करना पड़ा। अपने प्रयास में अध्यक्ष के साथ अन्य पंचायत सदस्यों की ओर से प्रतिरोध का ही वातावरण बनता दिखा। अध्यक्ष पद एक ऐसे व्यक्ति के पास था, जिसका चुनाव आरक्षण व्यवस्था के तहत अनुसूचित जाति से किया गया था। उस व्यक्ति में गांव की विभिन्न समस्याओं के प्रति अत्यन्त सतही दृष्टिकोण था। थोड़े ही समय में वह व्यक्ति गांव के प्रभुवर्ग के गिरफ्त में आकर ग्राम पंचायत की शक्तियों का उनके निहित स्वार्थों की पूर्ति में उपयोग करने लगा। फिर भी सामूहिक रूप से एक साथ बैठकर चर्चा करने से कई चीजें नियंत्राण में थीं। लेकिन, बैठक और प्रस्तावों पर चर्चा कर निर्णय लेने की प्रक्रिया में तब सबसे बड़ा प्रतिरोध पैदा हुआ जब पुराने ग्राम पंचायत अधिकारी ऋसचिव) के स्थानान्तरण के बाद एक ऐसे व्यक्ति का सचिव के रूप में पदस्थापन हुआ, जो जनपद भर में सरकारी धन और योजनाओं के साथ भ्रष्टाचार करने में अपना डंका बजवा चुका था। उसने यहां भी अपना रंग दिखाया और पंचायत के सभी सदस्यों, गांव के असामाजिक तत्वों और प्रभावशाली लोगों को अपने साथ मिलाकर भ्रष्टाचार के नए-नए कारनामें करने लगा।हमने निश्चित किया कि पंचायत में हो रहे इस अनाचार को जनता तक पहुंचाएंगे और इसमें सहभागी, सहयोगी, संरक्षी प्रत्येक कारकों का चरित्रा चित्राण सप्रमाण प्रस्तुत करेंगे। हमने बी.डी.ओ. से सूचना अधिकार अधिनियम के तहत ग्राम पंचायत के अभिलेखों को मांगा। इन्दिरा आवास के मद में लगभग 425 आवास आबंटित हुए थे, जिनमें लाभार्थियों के चयन में घोर अनियमितता की गयी थी। लाभार्थियों से दो से पांच हजार रुपया तक रिश्वत भी खुले तौर पर एजेंटों के माध्यम से लिया गया था। बी.डी.ओ. को दिये जांच आवेदन पर गांव में जांच अधिकारी के सामने पीड़ित लोगों ने लिखित रूप से रिश्वत देने की बात स्वीकार की। जांच अधिकारी ने जांच रपट में यह बात स्पष्ट रूप से दर्शा दी, परन्तु बी.डी.ओ. के स्तर पर बारम्बार स्मृति पत्रा भेजने के बावजूद किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गयी। इसी बीच हम एक स्थानीय नेताजी से मिले। वे स्थानीय विधायक के बड़े भाई थे। हमने उन्हें बताया कि हमारा उद्देश्य गांव को बेहतर बनाना है और इस लक्ष्य की प्राप्ति में ग्राम पंचायत का वर्तमान सचिव विधायक का संरक्षण प्राप्त कर बड़ी बाधा बना हुआ है। हम चाहते हैं कि फिलहाल इस सचिव का तबादला हो। इस संबंध में गांव की 99 प्रतिशत जनता हमारे साथ है। नेताजी ने हमसे शिकायती फाइल लेकर तत्काल कार्यवाही की बात कही। परन्तु महीनों बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। उल्टे हमारी उत्तेजित मन:स्थिति को शीतल करने की नीति अपनाई गई। स्थानीय प्रशासन और नेताजी का आचरण देख हम लोकसत्ता में जाने को बाध्य हुए। 15 दिनों तक प्रतिदिन एक सभा के हिसाब से गांव के पन्द्रहों वार्डों में हमने जनसभाओं का आयोजन किया। लोगों के सामने पंचायती राज के मूल आदर्श स्वरूप को रखकर व्यवहार में उसके विकृत स्वरूप का चित्राण किया और निदान के लिए आम जन की सक्रिय भागीदारी की मांग की।

वार्ड सभाओं में हमने संबंधित ग्रामपंचायत सदस्यों को उनके मतदाताओं के द्वारा बाध्य किया कि वे हमारे आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी करें। इस प्रकार प्राय: 20 दिनों में प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से हमने ग्राम पंचायत के 15 में से 10 सदस्यों की सक्रिय भागीदारी सहित हजारों लोगों से लिखित और मौखिक जनादेश प्राप्त किया।

एक ओर आम जनता थी तो दूसरी ओर गांव के स्वार्थी तत्व, प्रशासन, सचिव और विधायक आदि थे। आगे कार्रवाई करने से पहले हमने पुन: नेताजी से भेंट की। हमने उन्हें बताया कि ग्राम समुदाय के गिनती के 50 लोगों को छोड़ पूरी जनता हमारे साथ है। हम उसी जन आकांक्षा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अपने कथन के प्रमाण स्वरूप हमने 10 ग्राम पंचायत के सदस्यों के साथ समग्र गांव से क्षेत्राीय आधार पर प्रतिनिधित्व कराते हुए 1580 लोगों की एक आम सभा का आयोजन किया जिसको उन्हीं नेताजी ने संबोधित किया। उन्होंने आम सभा में कहा कि मैं गांव के साथ हूं। हमारी लड़ाई में हर कदम पर साथ देने का उन्होंने वादा किया।

जनता के जबर्दस्त दबाव के कारण सचिव का तबादला हो गया। इसी बीच कई महीने बीत गए, लेकिन नये सचिव ने पदभार ग्रहण नहीं किया। स्थितियां बदल गयी थीं। सचिव के स्थानान्तरण को ग्राम समुदाय के प्रभु वर्ग ने अपनी प्रभुसता पर सीधा हमला मानते हुए विधायक के यहां हमारे विरोध में तीव्र पैरवी शुरू कर दी। उन्होंने सचिव के जाने की बात को अपने सम्मान से जोड़कर प्रस्तुत किया। उनकी आशंका थी कि इस सफलता से ये लड़के किंगमेकर की भूमिका में आ जायेंगे। आशंका सत्य थी। चौधरी संस्कृति की भी इस प्रक्रिया में जड़ खोदी जा रही थी।

क्षेत्रा के विधायक को गांव के प्रभु वर्ग के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना पड़ा। भले ही वह ग्राम समुदाय के 99 प्रतिशत आम जन के शोषण पर आधारित था। एक बार पुन: उस सचिव को उच्च न्यायालय से उसके तबादले के विरुध्द स्थगन आदेश उपलब्ध करवाकर थोड़े समय बाद फिर से पदभार ग्रहण करवा दिया गया। प्रचंड जनमत का सशक्त प्रत्यक्षीकरण होने के बावजूद लज्जाहीनता की पराकाष्ठा पर पहुंचकर जन विश्वास के साथ छल किया गया था।

हमने इस स्थिति में एक छोटी सभा की और जनता से कहा कि ग्राम पंचायत लुटेरों के गिरोह में परिवर्तित हो चुकी है और इसको विघटित कर नये चुनाव होने चाहिए। हमारे कहने पर पंचायत कार्यकारिणी के 15 में से 10 सदस्यों ने शपथ-पत्रा पर अपना त्याग-पत्रा हमें सौंप दिया। हमने अन्य सदस्यों और पंचायत अध्यक्ष को भी बाध्य किया कि उन्होंने जन विश्वास खो दिया है और उनको जनता के द्वारा दिये गये दायित्व से चिपके रहने का नैतिक अधिकार नहीं रह गया है। परन्तु बेशर्मी का परिचय देते हुए पंचायत अध्यक्ष मात्रा पांच सदस्यों के साथ ही पंचायत का चीरहरण करता रहा।

इन नयी स्थितियों पर विचार करने के लिए एक और सभा हुई। आम जनमत प्रचलित प्रतिकार के स्वरूप धरना-प्रदर्शन और चक्काजाम जैसी गतिविधियों की ओर झुक रहा था। परंतु हमारे सामने जनाक्रोष को स्वस्थ अहिंसक प्रतिकार करने के लिए तैयार करना था। हमने अहिंसक रास्ता ही चुना। लेकिन ग्राम पंचायत के सदस्यों के त्यागपत्रा देने के बाद जिलाधिकारी स्तर पर महीनों कई स्मृति-पत्रों के द्वारा अपनी बात पहुंचाने के बावजूद किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं हो सकी। अब हमारे पास उग्र आन्दोलन का ही विकल्प शेष रह गया था। उग्र आन्दोलन के परिणम को विचार कर भय भी होने लगा तथा लक्ष्य से भटक जाने की सम्भावना भी दिखने लगी। इस कारण विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हुए बौध्दिक वर्ग के व्यक्तियों को इस आन्दोलन से जोड़ने की तीव्र आवश्यकता प्रकट हुई।

लक्ष्य निर्धारण- चरित्रा निर्माण :इसी बीच जातीय आधार पर नजदीकी जाहिर करते हुए समझौते की कोशिश की गयी। लेकिन हमने इनकार कर दिया। तब नेता जी ने एक और दांव फेंका। उन्होंने विधायक जी के साथ सारी फाइल लेकर लखनऊ स्थित ग्राम विकास मंत्राी से शिकायत करने को कहा। हम लखनऊ गये। विधायक जी के पैड पर ग्राम विकास मंत्राी से ग्राम सचिव के विरुध्द शिकायत की गयी। उसके बाद नेताजी ने कहा कि आपलोग निश्चिंत रहिए। इसे मैं दण्डित करवाकर ही दम लूंगा। आप रचनात्मक कार्यों में लगे रहिये। उस समय हमें इसका आभास भी नहीं हुआ कि इस व्यक्ति की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। आज तक सचिव के खिलाफ कोई कार्रवायी नहीं हुयी है।

इस प्रकरण ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया था। हमारे पास फिर आंदोलन करने का रास्ता था। लेकिन हमने तय किया कि आगे का रास्ता तय करने के पहले अच्छे से सोच लिया जाए। महीने भर की चर्चा में हम गांव की समस्याओं की चर्चा करते-करते कब स्वयं की वृत्तियों की चर्चा करने लगे, पता ही नहीं चला। स्वयं की वृत्तियों पर दृष्टि जाना और उन पर चर्चा स्वयं के विकास का नया पट खोल रही थी। इन चर्चाओं में 3-4 घंटे मौन बैठे रह जाना हमारे जीवन का सहज क्रम बन गया। इस बीच कुछ आध्यात्मिक अनुभूतियों ने हमें उत्साहित ही किया और क्रमश: वे अनुभव हमारे आचरण का भी नियमन करने लगे।

हमने तय किया है कि गांव से जुड़े मुद्दों पर गांव के और लोग भी सामने आएं। बदलाव की भूख जब और लोगों में जगेगी, तभी वास्तविक बदलाव होगा। हम सभी मित्रा गांव वालों में उसी भूख को जगाने के लिए प्रयासरत हैं।

संपर्क : ग्राम पंचायत-रेवतीपुर, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
 

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