हरियाली गुरु का हरित अभियान

हरियाली गुरु का हरित अभियान
हरियाली गुरु का हरित अभियान


'हरियाली गुरु' किसी जंगल में नहीं रहते। 'हरियाली गुरु' उसी समाज का हिस्सा हैं, जहाँ अब प्रकृति प्रेम एक अभिनय है, जीवन का अंग नहीं। 'हरियाली गुरु हरित विचार को आगे और आगे ले जाने वाले एक प्रोफेसर हैं। 'हरियाली गुरु का वास्तविक नाम डॉ. नरसिंह बहादुर सिंह ( एन. बी. सिंह ) है, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर हैं। वो भले वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर हैं, लेकिन साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भी बराबर शरीक होते हैं। जनपक्षधर मनुष्य की भूमिका में मौजूद रहते हैं।

हम सब 21वीं सदी में हैं, जहाँ साइकिल से चलना हँसी, कमजोरी, उपेक्षा, मज़ाक और सहानुभूति का विषय हो चुका है, बावजूद इसके इसी दौर में हरियाली गुरु लाखों की तनख्वाह  पाने के बाद भी साइकिल से ही चलते हैं, कई साथी शिक्षक और कुछ बहुरूपिए पर्यावरण प्रेमी इस कारण उनका मज़ाक बनाते हैं, लेकिन उनका कहना है कि साइकिल का प्रयोग न केवल स्वास्थ्य को बेहतर और धन की बचत को प्रोत्साहित करता है, बल्कि पर्यावरण को बचाए और बनाए रखने में बेहद कारगर उपाय भी है। इसी वजह से हरियाली गुरु अपने घर से विभाग साइकिल से ही आते-जाते हैं। अपना अधिकांश कार्य साइकिल से ही संपन्न करते हैं।

प्रदूषण मुक्त भारत की सफलता में योगदान देने के लिए साइकिल से चलते हुए उन्होंने उस जमीन पर दौड़ लगाई है, जो बंजर है, उदास है, जहाँ पेड़ ही नहीं है। हरियाली गुरु पिछले 10 वर्षों में कई हजार पौधे अपनी साइकिल में लादकर लगा चुके हैं। उन्होंने अपनी साइकिल के अगले हिस्से में एक टोकरी लगवा रखी है, जिसमें वो पौधे रख लेते हैं, और जहाँ भी खाली जगह दिखी, वहाँ पेड़ लगाते हैं और उसकी बराबर देखभाल करते हैं। इलाहाबाद शहर में जब 2019 में कुंभ का आयोजन शुरू हुआ तो शहरों की दीवालों पर खूब रंग-रोगन हुआ, उसी लहर में शहर के अनेक पेड़ों को भी पेंट कर दिया गया। इस बात को लेकर हरियाली गुरु ने सख्त आपत्ति दर्ज की। उनका कहना था कि पेड़ों को पेंट कर देने से पेड़ों की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित हो जाएगी, जिससे वो जल्दी ही सूख जाएँगे । स्मार्ट सिटी के तहत सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया में सड़कों के किनारे लगे वर्षों पुराने पेड़ों की कटाई को लेकर वो बेहद आहत हुए। उन्होंने इस बात को लेकर भी हस्तक्षेप किया था।

हरियाली गुरु का आवास इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षक कालोनी में है, और अपने आवास के खाली जमीन में उन्होंने कई हजार पौधों की एक नर्सरी बना रखी है। एक दिन हरियाली गुरु के घरेलू पौधशाला में मेरा जाना हुआ, उनकी समृद्ध पौधशाला देखकर मन विस्मय और उत्साह से भर गया। उस नर्सरी की देखभाल वो स्वयं करते हैं, कोई नौकर नहीं रखा है। प्रकृति को बचाने और बनाए रखने की मुहिम में उन्होंने अपने पौधशाला में न केवल औषधीय पौधे लगाए हैं, बल्कि तमाम फलदार, छायादार और सुगंधित पौधों और पुष्पों की भरमार है, जिसमें मीठी नीम, सतावर, रीठा, सफेद मुसली, कंजी, बालमखीरा, हड़जोड़ के अलावा सीता अशोक, मौलश्री, गुलमोहर, पलाश, इंद्रबेला, केला, कल्पवृक्ष आदि उल्लेखनीय हैं।

अपनी नर्सरी से लोगों को कई हजार पौधे उपहारस्वरूप दे चुके हैं। वो पेड़ संस्कृति का विस्तार करना चाहते हैं, इसके लिए कई अभिनव और जरूरी पहल भी की हैं। जैसे, यदि उन्हें किसी आयोजन मसलन शादी, सालगिरह, जन्मदिन आदि समारोह में बुलाया जाता है तो वो प्लास्टिक से लपेटे हुए बासे फूलों का गुलदस्ता देने की बजाय कोई औषधीय, सुगंधित या छायादार पौधा भेंट करते हैं। वो इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं। हरियाली गुरु उपहारस्वरूप ज्यादातर सीता अशोक का पौधा देते हैं। कहते हैं कि यह पेड़ कम जगह घेरता है, ऑक्सीजन लेवल संतुलित रखता है, छायादार होता है और यह उत्तर प्रदेश का राजकीय पौधा भी है। पर्यावरणीय मुहिम को आगे बढ़ाने वाले सभी लोगों से वो कहते हैं कि ऐसे लोग आकर मेरी पौधशाला से निःशुल्क पौधे प्राप्त कर सकते हैं।

"कहा जाता है कि जो प्रकृति की धड़कन और जज्बात को महसूस कर सकता है, समझ सकता है, उसका प्रेम मानव जाति से भी उतना ही अगाध होता है। इस कसौटी पर भी हरियाली गुरु खरे उतरते हैं, मानवीय मूल्यों से उनका सरोकार कोरोना काल में और अधिक सक्रिय रूप में दिखा। दोनों हाथ में पूरे बाँह का ग्लब्स लगाए, चेहरा ढके और मास्क के साथ सड़कों पर चल रहे बेबस मजदूरों को उन्होंने अपने पैसे का राशन बाँटा इस बात की तस्दीक उनकी अनुपस्थिति में स्वयं दुकानदार से हुई। बकौल दुकानदार, हरियाली गुरु ने मेरी दुकान से मार्च-अप्रैल 2020 में एक लाख से अधिक का राशन खरीदा। हरियाली गुरु पाँच कि.ग्रा. सामग्री का एक पैकेट तैयार करवाते थे, जिसमें आटा, एक पाव दाल, छोटा वाला सरसों का तेल, सब्जी मसाला की पाँच पुड़िया होती थीं।"

इतना ही नहीं, हरियाली गुरु अपने शोध, अध्ययन और प्रयोग के बूते खतरनाक साँपों को पकड़ लेते हैं, और उसे जंगल में छोड़ आते हैं। दरअसल, जंगल और बगीचों का क्षेत्रफल जैसे-जैसे सिकुड़ता जा रहा है, साँप सहित अन्य जंगली जीव मैदानी इलाकों की ओर चले आ रहे हैं, इन स्थितियों में मनुष्यों का जीवन संकट में पड़ जाता है। हालाँकि, इन स्थितियों के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है। खैर, जब भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय या इसके कम-से-कम 20 कि.मी. के परिक्षेत्र में कहीं कोई खतरनाक साँप खासकर अजगर निकलता है तो लोग हरियाली गुरु को याद करते हैं। इस तरह की सूचना मिलते ही हरियाली गुरु साइकिल का पैडल मारते हुए वहाँ पहुँच जाते हैं।

कहा जाता है कि जो प्रकृति की धड़कन और जज्बात को महसूस कर सकता है, समझ सकता है, उसका प्रेम मानव जाति से भी उतना ही अगाध होता है। इस कसौटी पर भी हरियाली गुरु खरे उतरते हैं, मानवीय मूल्यों से उनका सरोकार कोरोना काल में और अधिक सक्रिय रूप में दिखा। दोनों हाथ में पूरे बाँह का ग्लव्स लगाए, चेहरा ढके और मास्क के साथ सड़कों पर चल रहे बेबस मजदूरों को उन्होंने अपने पैसे से राशन बाँटा इस बात की तस्दीक उनकी अनुपस्थिति में स्वयं दुकानदार से हुई। बकौल दुकानदार, हरियाली गुरु ने मेरी दुकान से मार्च-अप्रैल 2020 में एक लाख से अधिक का राशन खरीदा। हरियाली गुरु पाँच कि.ग्रा. सामग्री का एक पैकेट तैयार करवाते थे, जिसमें आटा, एक पाव दाल, छोटा वाला सरसों का तेल, सब्जी मसाला की पाँच पुड़िया होती थीं। कोरोना काल में जब सड़कों पर केवल पैदल चलते मजदूर या एंबुलेंस दिखाई देती थी, उस समय हरियाली गुरु सड़कों पर उतर कर लोगों की मदद कर रहे थे । प्रशासन इनसे सहयोग ले रहा था। कई युवाओं को उन्होंने अपने साथ जोड़ रखा था।

हरियाली गुरु न केवल अपने विषय को पढ़ते-पढ़ाते हैं, बल्कि उस विषय को जीते भी हैं। वो चाहते तो बस अपने विषय, शोध और सिद्धांत तक सीमित रह सकते थे, लेकिन उन्होंने प्रकृति को बचाए रखने के लिए भाषण, सेमिनार और बजट के मोह में पड़ने के बजाय श्रम का रास्ता चुना हरियाली गुरु इलाहाबाद विश्वविद्यालय के परिसर के हरित सौंदर्यीकरण अभियान के दौरान मजदूरों के साथ खुद हँसिया, फावड़ा, कुदाल चलाने लगते हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि वो अपनी कक्षाओं में समय से उपस्थित होते हैं, पढ़ाते हैं। उनके निर्देशन में जो भी शोधार्थी, शोध कार्य कर रहे हैं, वो उन्हें पूरा समय भी देते हैं। उनके कार्यों का सतत मूल्यांकन भी करते हैं।

हरियाली गुरु के पर्यावरणीय मुहिम और कथनी-करनी की एकरूपता का प्रभाव इस कदर है कि इलाहाबाद के अलावा बाहर के भी कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इनके कार्यों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। वास्तव में प्रेरक पथ का निर्माण 'हरियाली गुरु' जैसे लोग ही करते हैं।

लेखक :- धीरेंद्र धवल
जन्म : 03 जून, 1990, इलाहाबाद।
शिक्षा : एम. फिल. डी. फिल., पी-एच.डी., नेट एवं जेआरएफ (हिंदी), अनुवाद में डिप्लोमा । संप्रति युवा अध्येता एवं रचनाकार
प्रकाशन कविताओं एवं कहानियों सहित दो पुस्तकों का संपादन व अनुवाद, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध आलेख प्रकाशित, दूरदर्शन से भेंटवार्ता प्रसारित ।
संपर्क मोबाइल 9415772386
ई-मेल: academicdhirendra@gmail.com

स्रोत :-   पुस्तक सांस्कृति जनवरी- फरवरी 2022 

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Post By: Shivendra
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