हरसूद के बाद


बहते पानी के किनारे बसने वाला समाज सूखी और दलदली भूमि में बदलता जा रहा है। जिन स्थानों से नहरें निकली हैं उनसे लगी हुई जमीनें तेजी से दलदली भूमि में बदलती जा रही है। दरअसल नहरों का रखरखाव लापरवाही की हद तक बेकार है, जहाँ–जहाँ नहरें टूटी हैं वहाँ पानी जमीन को दलदली बना दे रहा है। खंडवा में लगातार बढ़ते आन्दोलन बता रहे हैं कि लोगों का सब्र अब चुक रहा है और बाँधों के बैक वाटर की विशाल झीलों का शान्त पानी अपने भीतर हरसूद जैसे कई सवालों को समेटे है जो लगातार उबल रहे हैं, बाहर आने के लिये। नर्मदा की सम्पदा से लबालब खंडवा जिला यानी पूर्वी निमाड़ में पानी का कष्ट पिछले दो दशकों में उजागर हुआ है जब यहाँ इन्दिरा सागर और ओमकारेश्वर बाँध की नींव रखी गई। पानी ठहर गया और सरकारी मैनेजमेंट का हिस्सा बनकर लोगों की पहुँच से दूर होता गया। अब ये दावा अलग है कि इन बाँधों से कितने हजार हेक्टेयर पर सिंचाई हो रही है लेकिन पीने के पानी की किल्लत और सिंचाई के लिये बाट जोहते किसान बड़े पैमाने पर नजर आते हैं।

खंडवा एक बार फिर सुर्खियों में है। शहर में पानी के लिये मचे हाहाकार से तीन साफ संकेत नजर आते हैं। पहला, नर्मदा अब इनकी अपनी नदी नहीं रही, सरकारी हो गई है। दूसरा, बहते पानी को रोकना, जल संकट का समाधान नहीं हो सकता और तीसरा, पानी के सरकारी लालच की सबसे बड़ी विस्थापन त्रासदी झेलने वाली धरती अपने अहिंसक आन्दोलन से एक कदम आगे बढ़ रही है।

शहर को पीने के पानी की सप्लाई की पाइप लाइन लीक होना या टूट जाना सामान्य बात मानी जाती है लेकिन जब ये घटनाएँ लगातार होने लगे और दिन में कई बार होने लगे तो मामला असामान्य हो जाता है। सड़कों पर उतरे और शासन-प्रशासन का घेराव करते जल के लिये तरसते लोगों का सब्र अब चुक रहा है।

नर्मदा-तवा पर बने चारखेड़ा इंटेकवेल में पानी का स्तर लापरवाही की हद तक नीचे चला गया है। लगातार लीकेज से पानी बर्बाद हो जाता है और शहर को सप्लाई नहीं हो पाती। प्रशासन और इंटेकवेल का मेनटेनेंस देखने वाली विश्वा कम्पनी यह बात अच्छी तरह जानती है कि मानसून की शुरू होते ही ये सवाल भी पानी की तरह ही बह जाएँगे।

शासन का ध्यान बारिश से होने वाली दिक्कतों की तरफ हो जाएगा और प्यासी जनता कुछ समय के लिये अपना दर्द भूल जाएगी। लेकिन खंडवा, जहाँ बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिये विशालकाय इन्दिरासागर और ओमकारेश्वर बाँध बने हुए हैं, यदि वह शहर पानी के लिये तरसता है तो सवाल उठेंगे और बार-बार उठेंगे, एक ना एक दिन देश को इसका जवाब ढूँढना होगा कि हरसूद जैसे भरे पूरे कस्बे को पानी के भीतर समा कर हमने क्या पाया है? सरकारी अधिकारियों का घेराव कर उनसे मारपीट करते चेहरे खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।

तस्वीर का एक और पहलू देखिए। इन्दौर से करीब 40 किलोमीटर पहले खंडवा रोड पर एक सूखी नदी अचानक लबालब हो गई। इसका कारण था एक लीकेज जो नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना की पाइप लाइन में लगे एयर वॉल्व से हो रहा था। इस लीकेज से उस सूखी नदी के किनारे बसे ग्रामीणों के चेहरे खिल गए, इन ग्रामीणों को ना तो इन्दिरा सागर की सिंचाई परियोजना का कोई लाभ मिला था ना ही ओमकारेश्वर परियोजना से। उन्हें लगा जैसे उनकी अपनी नर्मदा माई सारे बन्धन तोड़ कर उनके खेतों को लहलहाने आई हैं।

यानी जहाँ से नर्मदा – क्षिप्रा लिंक निकाली गई है खंडवा के उसी हिस्से में किसान पानी के लिये परेशान हैं। बहरहाल अधिकारियों को सिंहस्थ स्नान के लिये पानी की इन्तजाम हर हाल में करना था तो आनन-फानन में लीकेज ठीक किया गया और गाँव वालों पर यह इल्जाम भी लगाया गया कि उन्होंने ने ही वॉल्व से छेड़छाड़ की है।

अधिकारियों ने अब लाखों की लागत वाली नई योजना बनाई है जिसमें सभी वॉल्वों को क्रंकीट से घेरा जाएगा। वैसे खंडवा का यह इलाका जंगल से घिरा हुआ है और एक समय था जब यह सुखड़ी नदी साल भर पानी से भरी रहती थी। यहाँ के पानी को सिंहस्थ तक पहुँचाया गया। सिंहस्थ कितना सफल रहा यह किसी से छुपा नहीं है। नर्मदा–क्षिप्रा लिंक के समय दावा यह किया गया था कि इससे क्षिप्रा नदी को पुनर्जीवित किया जा सकेगा लेकिन अब यह धार्मिक स्नानों के लिये पानी आपूर्ति की पाइप लाइन बनकर रह गई है।

नर्मदा की सम्पदा से लबालब खंडवा जिला यानी पूर्वी निमाड़ में पानी का कष्ट पिछले दो दशकों में उजागर हुआ है जब यहाँ इन्दिरा सागर और ओमकारेश्वर बाँध की नींव रखी गई। पानी ठहर गया और सरकारी मैनेजमेंट का हिस्सा बनकर लोगों की पहुँच से दूर होता गया। अब ये दावा अलग है कि इन बाँधों से कितने हजार हेक्टेयर पर सिंचाई हो रही है लेकिन पीने के पानी की किल्लत और सिंचाई के लिये बाट जोहते किसान बड़े पैमाने पर नजर आते हैं।

बहते पानी के किनारे बसने वाला समाज सूखी और दलदली भूमि में बदलता जा रहा है। जिन स्थानों से नहरें निकली हैं उनसे लगी हुई जमीनें तेजी से दलदली भूमि में बदलती जा रही है। दरअसल नहरों का रखरखाव लापरवाही की हद तक बेकार है, जहाँ–जहाँ नहरें टूटी हैं वहाँ पानी जमीन को दलदली बना दे रहा है। खंडवा में लगातार बढ़ते आन्दोलन बता रहे हैं कि लोगों का सब्र अब चुक रहा है और बाँधों के बैक वाटर की विशाल झीलों का शान्त पानी अपने भीतर हरसूद जैसे कई सवालों को समेटे है जो लगातार उबल रहे हैं, बाहर आने के लिये।

Path Alias

/articles/harasauuda-kae-baada

Post By: RuralWater
×