हरमू नदी की जीवन्तता बचना चुनौती

हरमू नदी के प्राकृतिक परिवेश की ​विकास के साथ यह सन्देश है कि प्राकृतिक सन्तुलन के उदाहरण के रूप में जाना जाने वाला सूबा झारखण्ड जो देश के जीवन हेतु ऑक्सीजन उत्पादक राज्य है, नदियों के संरक्षण के लिए एक मिशाल बने। कहा जाता है कि दुनिया का तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए ही होगा। हमारा समाज पानी बचाने वाला समाज रहा है। अपने इलाके के मौसम, जलवायु चक्र, भूगर्भ, धरती- धन, पानी की माँग और आपूर्ति का गणित जानने वाले समाज की इस पीढ़ी को इसके लिए आगे आना होगा ताकि राँची का मौसम पहले की तरह ही खुशगवार रहे। जल हमारे लिए ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। 'जल' किसी वस्तु या पदार्थ का नहीं, परब्रह्म का वाचक है। दुनिया की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुईं हैं। भारत की सभ्यता भी गंगा ​सहित अनेक नदियों के किनारे ही बसी। यही कारण है कि वैदिक वाङ्मय में जबकि एक सौ पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया गया है। आधुनिक ​​विज्ञान भी कहता है कि हमारे शरीर का तीन-चौथाई भाग 'जलमय' है। जल है तो हम हैं, जल नहीं तो हम भी नहीं। संसार का प्रत्येक जीवधारी, प्रत्येक प्राणी जल का तलबगार है।

हरमू नदी भी राँची की लाइफलाइन है, जिसे हमने स्वार्थवश आज नाले से भी बदतर बना दिया है। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हमारी जीवनदायिनी नदियाँ हमसे रुठकर दूर चली जाएँ तो हम अपने ​​अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।

अर्थववेद में कहा गया है कि ''धरती हमें माँ समान सुरक्षा देती है। अत: धरती मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ।'' जाहिर है कि धरा की कल्पना नदियों के बिना अधूरी है। झारखण्ड की राजधानी में भी जीवन की अनुकूलता के लिए हरमू नदी जीर्णोंद्धार तथा संरक्षण जरूरी है।

कहने की बात सिर्फ हरमू की ही नहीं, राज्य की तमाम नदियों, तालाबों, बावड़ियों, पोखरों को बचाने की जरूरत है, ताकि हमारे हलक न सूखें, पक्षियों, जानवरों, वन्यजीवों को पानी मिले। खेतों को पानी मिले, औद्योगिक ईकाइयों को पानी मिले, ताकि झारखण्ड का जनजीवन ख़ुशियों से लहलहाए।

आज जरूरत है कि नदियों के साथ हम अपने नैसर्गिक सम्बन्ध को महसूस करें। पानी भी बाजार का हिस्सा हो गया है। तालाब, कुएँ, पोखर, नदियों की उपेक्षा का ही नतीजा है कि आज बोतलबन्द पानी हर जगह, हर मौके पर उपलब्ध है- 'पैसा फेंको तमाशा देखो।

देश को यह समझने की जरूरत है कि हमारी परम्परागत छोटी- छोटी जल संरचनाएँ ही हमें वह सब लौटा सकती हैं, जिसे हमने खोया है। इसे नजरअन्दाज करना खतरे का आमन्त्रण है। जिसका ख़ामियाज़ा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। इसी सन्दर्भ में राँची को बचाने के मकसद से हरमू नदी के जीर्णोंद्धार और संरक्षण का बीड़ा हमने उठाया है।

हरमू नदीराँची राजधानी के कई इलाकों में भूजलस्तर खतरनाक स्थिति में है। राँची की प्राणवाहिनी हरमू नदी वर्षाजल को भूगर्भीय जल में परिणत करने का माध्यम है जिसे कूड़े-कचरे और अतिक्रमण से हमने बदतर स्थिति में पहुँचा दिया।

हरमू नदी अपने दोनों ओर के पठारीय संरचना की सबसे निम्न भूमि है, जिसके किनारों पर पठारी जल का प्रवाह होता रहा है। इसे पुन: जीवन्त करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है। राँची का सौंदर्य इसकी प्राकृतिक नैसर्गिकता एवं निरन्तरता में है। राँची का प्राकृतिक गौरव वापस करने के लिए हरमू नदी का पानीदार होना जरूरी है।

हरमू नदी के प्राकृतिक परिवेश की ​विकास के साथ यह सन्देश है कि प्राकृतिक सन्तुलन के उदाहरण के रूप में जाना जाने वाला सूबा झारखण्ड जो देश के जीवन हेतु ऑक्सीजन उत्पादक राज्य है, नदियों के संरक्षण के लिए एक मिशाल बने। कहा जाता है कि दुनिया का तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए ही होगा। हमारा समाज पानी बचाने वाला समाज रहा है।

अपने इलाके के मौसम, जलवायु चक्र, भूगर्भ, धरती- धन, पानी की माँग और आपूर्ति का गणित जानने वाले समाज की इस पीढ़ी को इसके लिए आगे आना होगा ताकि राँची का मौसम पहले की तरह ही खुशगवार रहे। हरमू के जीर्णोंद्धार के लिये नगर ​​विकास विभाग ने एमओयू किया है। कोशिश शुरू हुई है पर सभी लोगों को इसके लिए आगे आना होगा।

(लेखक झारखण्ड के मुख्यमन्त्री हैं।)

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