हरि चादर में छेद

यमुना की रेती लेती न देती और कर देती है मालामाल। यह कहावत लोनी क्षेत्र के यमुना खादर क्षेत्र पर सटीक बैठती है। बागपत से लोनी तक के करीब 20 किलोमीटर तक यमुना किनारे रेत माफियाओं की ही तूती बोलती है। सरकार चाहे किसी की भी हो, माफिया को प्रशासन का कोई डर नहीं होता। रेत के धंधे से जुड़े लोगों की मानें तो शासन स्तर से ही रेत का काम सरकार से जुड़े हुए लोगों को ही मिलता है और वह अपना सिंडिकेट बनाकर काम करते हैं।।

पर्यावरण एवं भूजल की दृष्टि से एनसीआर की जीवन रेखा मानी जाने वाली अरावली हिल्स की हरी चादर में सरकारी मशीनरी की अकर्मण्यता के कारण जगह-जगह छेद हो रहे हैं। ताज़ा हाल यह है कि एक बड़ा वर्ग अरावली हिल्स बचाने के लिए विभिन्न स्तरों पर असंगठित तरीके से लड़ाई लड़ रहा है तो सरकार किसी भी हाल में खनन कार्य खुलवाने के लिए स्थानीय स्तर से सुप्रीम कोर्ट तक में एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। ज़मीनी हालात बेशक ही पूर्ण रूप से सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुरूप न हों लेकिन इसने अंधाधुंध पेड़ों की कटाई और खनन को काफी हद तक प्रतिबंधित कर दिया है। सरकारी स्तर पर अरावली हिल्स के माइनिंग बैन को खुलवाने के लिए किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं इसका अनुमान ‘ग्राउंड रियल्टी सर्वे’ से लगाया जा सकता है। पिछले दिनों हुए इस सर्वे ने वास्तव में सरकारी मंशा की ग्राउंड रियल्टी की पोल खोलकर रख दी। अरावली हिल्स के प्रत्येक गांव के रकबे की अलग-अलग तैयार हुई इस रिपोर्ट का मकसद अंततः एक ही है कि ‘खनन बंद होने से गांव के युवा बेरोजगार हो गए हैं, निजी व पंचायती आमदनी का कोई साधन नहीं रहा। इसलिए खनन से प्रतिबंध हटाया जाए।’ हरियाणा सरकार अरावली हिल्स को पर्यटन स्थल, रिजॉर्ट व खनन का अड्डा बनाने की मंशा पाले हैं।

संगठित तौर पर खनन करवाने में विफल सरकार ने अब मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के नाम पर खनन की अनुमति हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी है। कहीं पुरानों सड़कों के चौड़ीकरण-सुदृढ़ीकरण के लिए अरावली का सीना चीरा जा रहा है तो कहीं नई सड़कों का जाल बिछाने के लिए सीईसी से परमिशन मांगी जा रही है। सार्वजनिक सुविधा के मामले में सीईसी व सुप्रीम कोर्ट का रवैया नरम होने लाभ उठाकर प्रतिबंधित क्षेत्रों में भी सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। एक तरफ नेशनल हाईवे-8 से अमेटी यूनिवर्सिटी तक बिना किसी वैधपरमिशन के सड़क बना दी जाती है तो वहीं दूसरी तरफ सख्त निगरानी के बाद भी अरावली रिट्रीट-गैरतपुर बांस, गोल्डन हाइट्स, दमदमा व सांप की नंगली में आलीशान फार्म हाउस विकसित हो जाते हैं।

गुड़गांव-फ़रीदाबाद रूट पर पड़ने वाले क्षेत्रों में तो कहानी बेहद ताज्जुब भरी है। हजारों की संख्या में एक ही रात में पेड़ कट जाते हैं लेकिन जिला मुख्यालय पर बैठकर अरावली हिल्स को बचाने की ज़िम्मेदारी संभालने की योजना बनाने वाले वन विभाग के रेंज ऑफिसर से लेकर चीफ़ कंर्जवेटर तक को कानोकान खबर नहीं होती। अरावली के वनों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप के कारण यहां का जंगली जीवन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

अरावली हिल्स की हरियाली बचाने के भागीरथी प्रयास करने वाले आईएफएस अफसर डॉ. आर.पी. बलवान को सरकार की बेरुखी इस कदर चुभी की उन्होंने सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। डॉ. बलवान कहते हैं, ‘जब हालात सुधारने के जिम्मेदार ही अरावली को उजाड़ने पर तुले हों तो संरक्षण की उम्मीद करना बेकार है। नीचे से लेकर ऊपर तक कोई नहीं चाहता कि अरावली या हरियाली का संरक्षण हो। सभी की मंशा एक ही रही है कि खनन खुले और उनकी जेब मोटी हो।’

एमसी मेहता, चेतन अग्रवाल सरीखे से दर्जनों पर्यावरण प्रेमी अरावली के चीरहरण के खिलाफ कभी गाँवों के लोगों को जागरूक करते हैं तो कभी अदालत में सथानीयजनों के विरोध के बावजूद अरावली के हक की निजी रूप से लड़ाई लड़ते हैं। ये लोग तीन दशक पुरानी हरियाली वापस लाने के प्रयास में जुटे हैं तो ईशानी माथुर सरीखी बहादुर फिल्म निर्माता अपनी शॉर्ट फिल्म ‘मांगर-द लॉस्ट फॉरेस्ट’ के जरिए अरावली की दशा का वर्णन करती हैं।

यमुना की रेती से मालामाल


यमुना की रेती लेती न देती और कर देती है मालामाल। यह कहावत लोनी क्षेत्र के यमुना खादर क्षेत्र पर सटीक बैठती है। बागपत से लोनी तक के करीब 20 किलोमीटर तक यमुना किनारे रेत माफियाओं की ही तूती बोलती है। सरकार चाहे किसी की भी हो, माफिया को प्रशासन का कोई डर नहीं होता। रेत के धंधे से जुड़े लोगों की मानें तो शासन स्तर से ही रेत का काम सरकार से जुड़े हुए लोगों को ही मिलता है और वह अपना सिंडिकेट बनाकर काम करते हैं। बाकायदा प्वाईंट निर्धारित कर एजेंटशिप दी जाती है और यमुना की रेती से मोटा पैसा कमाया जाता है। इसमें पुलिस की अहम भूमिका होती है।

लोनी बॉर्डर का क्षेत्र ऐसा है जहां ज्यादातर बालू पड़ोसी राज्यों की सीमाओं से आता है। यमुना के किनारे पचायरा सूंगरपुर, बदरपुर, मीरपुर हिंदू तथा बागपत सीमा से लगा सुभानपुर गांव रेत निकासी के बड़े प्वाईंट हैं। इन गाँवों के खेत भी रेत से सराबोर हैं। यमुना खादर में माफिया अपने प्वाइंट को छोड़ कर दूसरी जगह खनन करते हैं ताकि उनके अपने पट्टों का खनन बचा रहे। यहां दिन में ज्यादा चौकसी होती है और लोगों की निगाहें चौकन्नी रहती हैं इसलिए माफिया रेत का कारोबार रात में करता है।

अरावली पर बड़ा फैसला


देश की सर्वोच्च अदालत ने 7 मई 1992 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अरावली हिल्स पर किसी भी प्रकार का गैर वनिक कार्य पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इन आदेशों में गैर वनिक कार्यों का अर्थ भी विस्तारपूर्वक बताया गया है। इसके तहत किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य, खुदाई, खनन, पेड़ों की कटाई या इससे जुड़े किसी भी कार्य को अवैध करार दिया गया है। इसके बाद एमसी मेहता की याचिका पर सुनवाई करते हुए 18 मार्च 2004 को हरियाणा की सीमा में पड़ने वाली अरावली हिल्स में खनन कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।

सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेशों के बावजूद मेवात और मेवात से सटे राजस्थान इलाके की अरावली पर्वत श्रृंखला में अवैध खनन बेरोकटोक जारी है। इस पर रोक लगाने के सारे प्रयास विफल ही हुए हैं।

अवैध खनन में इस्तेमाल डंपर तीन पुलिस कर्मियों की जान ले चुके हैं। कई बार जान से मारने की कोशिश भी की गई है। हद तो यह है कि अब दिनदहाड़े अवैध खनन करने में भी कोई हिचक नहीं है। इतना जरूर है कि खनन माफ़िया रात में डंपरों से और दिन में ट्रैक्टरों से माल ढोते हैं।

अवैध खनन से जहां वातावरण प्रदूषित हो रहा है, वहीं पहाड़ में रहने वाले पशु-पक्षी भी सुरक्षित नहीं हैं। रात के समय पहाड़ों में पत्थर तोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बारूद के धमाकों की वजह से लकड़बग्घे, चीते, तेंदुए जैसे जानवर गांव का रुख करने को मजबूर हैं। अब तक कई तेंदुए, लकड़बग्घे, चीते लोगों को घायल कर चुके हैं। कई को तो ग्रामीणों ने मार गिराया जबकि कई को पकड़कर विभाग के हवाले कर दिया।

नगीना इलाके में हरियाणा और राजस्थान के पहाड़ की सीमा पड़ती है। नगीना के गांव सकरपुर और राजस्थान के अलवर जिले के गांव बालौज में जमकर अवैध खनन हो रहा है। अवैध खनन रोकने के लिए राजस्थान पुलिस ने गांव बालौज में दो महीने पहले चौकी बना दी थी लेकिन अब उसे हटा लिया गया है। (यूनुस अलवी)

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