हर की पौड़ी, हरिद्वार में गंगा आचमन लायक हो गई है, बताती है यूपीसीबी की रिपोर्ट

गंगा
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देहरादून आईटी पार्क स्थित ‘उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ की प्रयोगशाला ने गंगाजल के अलग-अलग स्थानों से लिए गए पानी के नमूनों की जांच की और 14 अप्रैल 2020 को उन्होंने अपनी रिपोर्ट जारी की। देवप्रयाग डाउनस्ट्रीम से लेकर जगजीतपुर हरिद्वार तक की गंगा पर आई यह रिपोर्ट बताती है कि गंगा की सेहत में सुधार है। ‘उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ द्वारा देवप्रयाग से हरिद्वार तक कराए गए गंगा जल की गुणवत्ता के नमूनों की जांच रिपोर्ट में यह संकेत मिल रहे हैं। हरिद्वार में ‘हर की पौड़ी’ में भी गंगा के पानी की गुणवत्ता A-श्रेणी की दर्ज की गई है। हालांकि पूर्व के दिनों में ‘हर की पौड़ी’ में गंगाजल की गुणवत्ता अधिकांशतः बी श्रेणी की ही रही है।

15 अप्रैल 2020 देहरादून के दैनिक जागरण में छपी खबर बताती है कि उत्तराखंड देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है, जहां गंगा की स्वच्छता निर्मलता को ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ चल रहा है। इसके तहत गंगा से लगे 15 शहरों और कस्बों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण कार्य करीब 90 फ़ीसदी पूर्ण हो चुका है। इसके अलावा गंगा में गिर रहे गंदे नाले भी टैप किए गए हैं। इन कार्यों के सकारात्मक नतीजे ये आए कि गोमुख से लेकर ऋषिकेश के अपर-स्ट्रीम तक गंगा के जल की गुणवत्ता पहले ही ए-श्रेणी की हो गई थी। यानी कि इस पानी को पीने के उपयोग में लाया जा सकता है। अलबत्ता ऋषिकेश के डाउनस्ट्रीम पशुलोक से लेकर हरिद्वार तक गंगाजल की गुणवत्ता बी-श्रेणी की थी, वहां के पानी का उपयोग नहाने में ही लाया जा सकता है।

हर की पौड़ी, हरिद्वार में गंगा आचमन लायक हो गई है, बताती है यूपीसीबी की रिपोर्ट

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य पर्यावरण अधिकारी एवं बोर्ड की केंद्रीय प्रयोगशाला के प्रभारी एसएस पाल कहते हैं कि लॉकडाउन अवधि में गंगा के जल की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। यह सही है कि पहली बार हरिद्वार में ‘हरकी पौड़ी’ में गंगा के पानी की गुणवत्ता ए श्रेणी की आई है। फिर भी हरिद्वार में बिंदुघाट, जगजीतपुर में गुणवत्ता हालांकि बी-श्रेणी की है, लेकिन वहां भी फीकल-कॉलीफॉर्म यानी मानवमल से प्राप्त होने वाले बैक्टीरिया की गिनती में कमी दर्ज की गई है।

क्या हाल था

मई 18 मई 2017 को अंग्वाल न्यूज़ में छपी एक खबर गंगा के दो-तीन साल पहले की स्थिति के बारे में बताती है। सीपीसीबी ने उत्तराखंड में गंगोत्री से हरिद्वार के बीच 11 जगहों से गंगाजल के नमूने जांच के लिए एकत्रित किए थे, यहां गंगा की लंबाई लगभग 294 किलोमीटर है। आरटीआई में इन नमूनों के परीक्षण की रिपोर्ट मांगी गई थी सीपीसीबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर्यन भारद्वाज ने बताया कि गंगाजल की गुणवत्ता चार मानकों पर मापी गई। इसमें डीजॉल्व्ड ऑक्सीजन (डिओ), बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और तापमान शामिल है। जांच में पता चला कि हरिद्वार के आसपास गंगाजल में बीओडी और दूसरे जहरीले पदार्थों की मात्रा बहुत ज्यादा है। सीपीसीबी के मानकों के अनुसार नहाने के 1 लीटर पानी में बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम से कम होना चाहिए। जबकि गंगा के पानी के नमूनों में यह 6.4 मिलीग्राम से ज्यादा पाया गया था। वहीं ‘हर की पौड़ी’ के प्रमुख घाटों सहित गंगा के पानी में कोलीफॉर्म भी काफी ज्यादा मात्रा में पाया गया। हर 100 मिलीमीटर पानी में कोलीफॉर्म 90 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) होना चाहिए यह 1600 एमपीएन पाया गया था।

‘उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ की रिपोर्ट यहां संलग्न है। जो भी इस रिपोर्ट को देखना चाहते हों, वह रिपोर्ट को डाउनलोड करके देख सकते हैं।

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