होली झर को करो विचार


होली झर को करो विचार, सुभ और असुभ कहा फल सार।
पश्चिम बायु बहै अति सुन्दर, समयो निपजै सजल बसुंधर।।

पूरब दिसि के बहै जो बाई, कछु भींजै कछु कोरो जाई।
दक्खिन बाय बहे वध नास, समया निपजे सनई घास।।

उत्तर बाय बहे दड़बड़िया, पिरथी अचूक पानी पड़िया।
जोर झकोरै चारो बाय, दुख या परघा जीव डराय।।

जोर झलो आकासै जाय, तो पृथवी संग्राम कराय।।


शब्दार्थ- कोरे-खाली। बध-मृत्यु। अचूक-निश्चय।

भावार्थ- होली की लपट अथवा होली के दिन बहने वाली हवा पर विचार कर लेना चाहिए क्योंकि उस दिन की लपट या हवा पर शुभ और अशुभ फल निर्भर होते हैं। यदि हवा पश्चिम की बहे तो शुभ होगी धरती पर वर्षा होगी, उत्पादन अच्छा होगा और हवा यदि पूरब की बहे तो कुछ वर्षा एवं कुछ सूखे का योग होता है। यदि हवा दक्षिण की बहे तो मनुष्यों का वध एवं विनाश होगा। खेती में सनई और घास अधिक पैदा होगी। हवा यदि उत्तर की तेज झोंकों के साथ बही तो पृथ्वी पर पानी अवश्य बरसेगा। यदि हवा चारों दिशाओं की चले अर्थात् चौवाई चले तो समय खराब होगा, दुःख मिलेगा और जीवों में भय होगा। हवा यदि नीचे से ऊपर की ओर जोर से जाये या लपट आकाश में जाये तो निश्चय ही पृथ्वी पर संग्राम होगा। ऐसा ज्योतिष भड्डरी का मानना है।

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Post By: tridmin
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