हॉकी वर्ल्ड कप में प्रयोग हो रहा हवा से बना पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में कितना होगा असरदार

हवा से बना पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में कितना होगा असरदार, (PC:-twitter Hockey India))
हवा से बना पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में कितना होगा असरदार, (PC:-twitter Hockey India))

क्या हमें घर और ऑफिस में सीधे हवा से पीने का पानी मिल सकता है? अब ऐसा संभव हो सकता है  क्योंकि भारत में पहली बार इसे काफी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इस साल भारत में आयोजित पुरुष हॉकी विश्व कप में ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि भुवनेश्वर और राउरकेला के स्टेडियमों में दर्शक हवा से बने पानी का लुत्फ उठा रहे है। हॉकी स्टेडियम में इंस्टाल हुई यह शानदार तकनीक न केवल कीमती भूजल को बचा रही है बल्कि हवा को भी साफ कर रही है। 

इन स्टेडियमों में हर कोने कोने में इस तकनीक को लगाया गया है जैसे ही आप स्टेडियम के अंदर प्रवेश करेंगे तो आपको सामने ही एक डिस्पेंसर मिल जायेगा। हर मंजिल पर डिस्पेंसर मिलेंगे  यहां तक ​​कि मीडिया और वीआईपी लाउंज भी इससे अछूते नहीं है। वही बाते करे इन डिस्पेंसर कि तो यह डिस्पेंसर विशाल स्टील टैंक से जुड़े होते हैं जो स्टेडियम परिसर के भीतर हवा से चौबीसों घंटे पैदा होने वाले पानी को इकट्ठा करते हैं। 

इस तकनीक को स्थापित करने वाली इजरायली कंपनी वाटरजेन का पिछले साल ही भारत में आगमन हुआ है इससे पहले यह कंपनी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, संयुक्त अरब अमीरात और वियतनाम सहित 90 से अधिक देशों में अपनी ये हाई टेक्नोलॉजी वाली मशीनें स्थापित कर चुकी हैं। कंपनी वायुमंडलीय जल जनरेटर (AWG) में अग्रणी है जो आर्द्रता को ताजे पेयजल में बदल देती है।

पिछले साल वाटरजेन ने भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम और राउरकेला के बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम में 13 जनवरी से 29 जनवरी तक चलने वाले हॉकी  विश्व कप के दर्शकों को पानी उपलब्ध कराने के लिए हॉकी इंडिया के साथ एक समझौता किया था। हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने वाटरजेन को नियुक्त करने का कारण बताते हुए कहा, "पानी किसी भी खेल का अभिन्न अंग है और चूंकि लाखों लोग खेलों का अनुसरण करते हैं, इसलिए हॉकी इंडिया नई तकनीकों को अपनाकर दुनिया को इन्हें अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है ।"

वही पहली बार इतने बड़े पैमाने पर इस तकनीक को प्रयोग में लाने वाले वाटरजेन के सीईओ मायन मुल्ला ने कहा हम इस दूरदर्शी कदम को हमारे साथ लेने के लिए हॉकी इंडिया का आभार व्यक्त करना चाहते हैं यह हॉकी विश्व कप खेलों में दुनिया का पहला जल-टिकाऊ विश्व कप होगा। " 

कैसे काम करती है मशीन 

अब सवाल  यह है कि आखिर ये मशीन  हवा से पानी कैसे बनाती  है जिसके बारे वाटरजेन इंडिया के प्रतिनिधियों ने विस्तार से बताते हुए कहा कि  हवा से पानी उत्पन्न करने के लिए सबसे पहले अशुद्ध हवा को पहले दो फिल्टरों का उपयोग करके प्रदूषक सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2. 5) को  हटाते हैं, इसके बाद शुद्ध हवा को हीट एक्सचेंजर में भेजा जाता है जहां इसकी नमी पानी में परिवर्तित हो जाती है। भुवनेश्वर स्टेडियम में वाटरजेन के प्रतिनिधियों का कहना है कि शुद्धिकरण और खनिजीकरण के लिए पानी चार फिल्टर से होकर जाता है। फिर आप हवा से बना शुद्ध पेयजल प्राप्त करते हैं जो सभी प्रकार की अशुद्धियों से सुरक्षित होता है।"

मशीन को इंस्टाल करने में कितनी लागत 

वही बात करे खर्चे की तो वाटरजेन का कहना है कि  दोनों स्टेडियमों में सभी विद्युत जल जनरेटर स्थापित करने की कुल लागत 6 करोड़ रुपये तय की गई है यदि मशीनें सौर या पवन ऊर्जा पर चलती हैं, तो यह शून्य-कार्बन प्रक्रिया बन जाती है। यह पानी की कमी वाले ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक अच्छा विकल्प बनाता है। स्टेडियमों में पानी के उत्पादन के लिए ग्रिड बिजली की लागत, पैदा किये गए पानी की मात्रा पर निर्भर करती है 

इस प्रक्रिया का एक अन्य लाभ यह है कि यह लोकप्रिय आरओ प्रक्रिया की तरह पानी की बर्बादी नहीं करती है। इसके अलावा जहां ये स्थापित होते हैं वहाँ ये स्वच्छ हवा को वापस वातावरण में छोड़ते हैं, जिससे सूक्ष्म पर्यावरण की वायु गुणवत्ता में सुधार होता है । वाटरजेन का दावा है कि इसकी प्रक्रिया कार्बन सघन आपूर्ति श्रृंखलाओं और पर्यावरण के लिए हानिकारक प्लास्टिक कचरे (बोतल) को समाप्त करती है। वाटरजेन ने दोनों स्टेडियम में अलग-अलग क्षमता के उपकरण लगाए हैं। इनमें दो GEN-L बड़ी मशीनें शामिल हैं जो प्रतिदिन 6,000 लीटर पानी का उत्पादन करती हैं,  GEN-M Pro मध्यम मशीनें है  जो 900 लीटर तक पानी का उत्पादन करती हैं और तीसरी  30 GENNY एक छोटी  मशीनें है जो लगभग प्रतिदिन 30 लीटर तक पानी का उत्पादन कर सकती हैं । एक अनुमान के मुताबिक दोनों स्टेडियम में ये मशीने 16 दिवसीय विश्व कप के दौरान तकरीबन 2 लाख लीटर से अधिक पानी उत्पन्न कर सकती है।  

वही ग्रामीण क्षेत्रों में इन मशीनो को लगाने के सवाल पर वाटरजेन के सीईओ मायन मुल्ला ने कहा  “हम बिजली की लागत को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का उपयोग करने की सलाह देते हैं। जमीन, सरकार या पंचायत को उपब्ध करानी  होगी। हम प्रत्येक मशीन के रखरखाव, संचालन और छोटी तकनीकी समस्याओं के निवारण के लिए एक या दो स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करेंगे  लेकिन इनका खर्चा सरकार या पंचायत को देना पड़ेगा वही  कॉरपोरेट भी अपने सीएसआर बजट का उपयोग स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कर सकते हैं। 

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Post By: Shivendra
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