आप सबसे हम अपील करते हैं कि पूरे देश में इस संदेश को पहुंचा दीजिए कि हम यह परमाणु परियोजना नहीं चाहते हैं।
जैतापुर में प्रस्तावित 9900 मेगावाट परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए कुल 938 हेक्टेयर जमीन ली जानी है, जिसमें 669 हेक्टेयर जमीन हमारे गांव मडवन की है। यह संयंत्र हमारे लिए षडयंत्र है। हमारे गांव के लोग बिल्कुल इसके लिए तैयार नहीं हैं। सरकार हमसे इस विषय पर बात करना चाहती है, लेकिन जब उसने फैसला कर लिया है कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए मडवन की जमीन ही ली जानी है तो कहिए बातचीत का क्या लाभ? वैसे इस तरह के व्यवहार को तानाशाही कहा जा सकता है, इस परियोजना का जब गांव के लोगों ने विरोध किया तो गांव वालों को पुलिसिया ज्यादती का शिकार होना पड़ा। लगभग दो सौ लोगों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमा चल रहा है। आधा दर्जन से अधिक लोगों को तडीपार घोषित किया जा चुका है। इरफान जो इस आंदोलन में हमारे साथ था, पुलिस की गाड़ी के नीचे आने से उसकी मौत हुई। अब इन सारी बातों का हम क्या अर्थ निकाले? ऐसे बच्चों को पुलिस अपने साथ गांव से उठाकर ले गई जो स्कूल से लौटे थे। बच्चों ने पुलिस को बस का टिकट भी दिखलाया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हम गांव वालों का स्पष्ट मानना है कि सरकार चाहे तो हमारी हत्या कर वह जमीन हमसे छीन ले लेकिन जीते जी हम यह जमीन उन्हें नहीं सौंप सकते हैं।
मडवन परियोजना के विरोध में लगभग एक दर्जन पंचायतें अब तक भंग हो चुकी हैं। हम सभी लोगों ने मिलकर तय किया है, परियोजना की जमीन पर चौकसी में लगे पुलिस वालों को गांव के लोग किसी प्रकार का सहयोग नहीं करेंगे। मडवन हमारे लिए क्यों जरुरी है, और हम इस परियोजना को अपने गांव में क्यों नहीं चाहते, इसे लेकर हम लोगों ने सिमित संसाधनों में एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म भी बनवाई है। हमारा क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज अति संवेदनशील है। सरकार को चाहिए, इस परियोजना को मालाबार के तट पर लेकर जाए। तमाम तरह की समितियों की रिपोर्ट आप देख लीजिए। इस जमीन को किसी भी प्रकार से परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए उपयुक्त जमीन नही मानी जा रही है। रत्नागिरी जिले के अलावा सिंधुदुर्ग और रायगढ़ में भी कई प्रदूषण फैलाने वाली परियोजनाओं पर एक साथ काम हो रहा है। हमें फिक्र है कि इन परियोजनाओं की वजह से इन जिलों में रहने वाले लोगों का स्वास्थ, समुन्द्री जीव जन्तु और जैव विविधता पर असर पड़ेगा। लेकिन महाराष्ट्र की सरकार ने इस जमीन के मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। यदि मडवन में यह संयंत्र बन गया तो यह सिर्फ हमारे गांव के जनजीवन को नहीं बल्कि पूरे कोंकण के जनजीवन को प्रभावित करेगा।
वर्ष 2003 में ही हमने पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभू से इस संकट को लेकर बातचीत की थी। उस वक्त हमारे गांव मं आकर वे बोलकर गए थे कि यह सिर्फ अफवाह है। ऐसी कोई परियोजना शुरु नहीं हो रही। उस दिन के बाद वे कभी हमारे गांव में लौटकर नहीं आए। महाराष्ट्र में मराठी मानुष की राजनीति करने वाले भी इस मामले में दो कदम पीछे खड़े हो गए। जबकि इस मामले में शत प्रतिशत मराठी मनुष्यों की ही जमीन जा रही है। हमें कदम-कदम पर छला गया और धोखे में रखा गया है। तारापुर परियोजना के लिए बताया गया कि वहां सब अच्छा चल रहा है। मैं खुद उस गांव में गया। वहां की स्थिति बिल्कुल दयनीय है। वहां सिर दर्द, घुटनों में दर्द और गर्भपात की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। गांव में कमजोर बच्चे पैदा हो रहे हैं। परियोजना से पहले इस गांव में मछली पकड़ने के लिए 48 लॉंच थे, अब सिर्फ दो ही रह गए हैं। मैं स्वष्ट शब्दों में कह देना चाहता हूं, हम गांव वाले जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना बिल्कुल खिलाफ हैं। आप सबसे हम अपील करते हैं कि पूरे देश में इस संदेश को पहुंचा दीजिए कि हम यह परमाणु परियोजना नहीं चाहते हैं। हमें इस परमाणु बिजली वाली परियोजना से बचाइये। इसी में हमारा भविष्य सुरक्षित है।
(प्रवीण गावणकर जनहित सेवा समिति, मडवन के संयोजक हैं. ये बातें उन्होंने आशीष कुमार 'अंशु' से बातचीत में कही हैं।)
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