हमारे पेट में जगह बनाने लगा प्लास्टिक

प्लास्टिक खाते जानवर
प्लास्टिक खाते जानवर

यूरोप और एशिया के लोग भोजन के साथ प्लास्टिक भी खा रहे हैं। प्लास्टिक कचरा हमारी भोजन शृंखला में शामिल होने लगा है। दो अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के शोध में यह तथ्य सामने आया है। हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय दोनों शोधों को लेकर फिलहाल किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा है। विभिन्न जगहों पर आगे का शोध शुरू हो गया है।

पर्यावरणविद अरसे से चेताते रहे हैं कि प्लास्टिक का कचरा हमारी भोजन शृंखला में शामिल हो सकता है। दो संस्थाओं में शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने इंसानी मल में माइक्रो प्लास्टिक के कण मौजूद पाए। फिलहाल, सेहत पर असर के बारे में भी आगे शोध शुरू हो गया है।

विएना से जारी खबर ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों और आहार विशेषज्ञों के बीच बहस शुरू कर दी है। ‘मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना’ और ‘एनवायरनमेंट एजेंसी ऑफ आस्ट्रिया’ के शोधकर्ताओं ने यूरोप और एशिया के विभिन्न हिस्सों से आठ लोगों को चुना।

इस शोध में ब्रिटेन, फिनलैण्ड, इटली, नीदरलैण्ड, पोलैण्ड, रूस और आस्ट्रिया के आठ शाकाहारी और मांसाहारी लोगों को शामिल किया गया। सभी के शरीर से नौ विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के कण मिले। उन्हें एक हफ्ते तक अपनी ‘भोजन डायरी’ तैयार करने को कहा गया। उसके बाद उनके शरीर की जाँच की गई। उन सभी के मल की जाँच की गई, जिसमें प्लास्टिक के कण मिले। पता चला कि नौ तरह की प्लास्टिक के कण खाने-पीने व अन्य तरीकों से इंसान के पेट में पहुँच रहे हैं। इनमें से कुछ टुकड़े मल के जरिए शरीर से बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कई कण शरीर में ही रह जाते हैं और रक्त में मिलकर प्रवाहित होने लगते हैं। शोध में शामिल कुछ लोगों के पेट से इंसानी बाल की मोटाई से तीन गुना छोटे कण मिले हैं, जो धूल और सिन्थेटिक कपड़ों के जरिए साँस लेने पर शरीर में पहुँच रहे हैं।

शोध टीम के प्रमुख डॉक्टर फिलिप श्वाबल के मुताबिक नतीजों ने मानव स्वास्थ्य को लेकर नई चिन्ताओं को जन्म दिया है। माइक्रो प्लास्टिक के कण शरीर में रह जाते हैं और रक्त के साथ प्रवाहित होने लगते हैं। ये लीवर तक पहुँच सकते हैं। आँतो और पेट की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिये इस तरह की स्थितियाँ खतरनाक मानी जाती हैं। डॉक्टर फिलिप श्वाबल के मुताबिक, “हमने प्लास्टिक खतरे को लेकर पहली बार सबूत जुटाया है।” शोधकर्ताओं के मुताबिक, प्लास्टिक की पानी की बोतल, खाने में प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल, खाना रखने के डिब्बे, डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ और मछलियों के जरिए प्लास्टिक कण पेट में पहुँच रहे हैं।

धूल और सिन्थेटिक कपड़ों से भी प्लास्टिक फाइबर सांस लेने पर इंसान के शरीर में पहुँच जाता है। नॉर्वे की यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के बॉयोलॉजिस्ट मार्टिन वैगनर मानते हैं कि अभी जो शोध आए हैं, जो लघु स्तर के और प्रतिनिधि मूलक हैं। उनसे किसी नतीजे पर पहुँचना ठीक नहीं। अभी इसमें और शोध की जरूरत है।

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