हमारे पापों ने की गंगा मैली

राजस्थान पत्रिका आज से अक्षय तृतीया (आखा तीज) तक तीन दिन की एक विशेष शृंखला का प्रकाशन कर रहा है। इसमें पतित पावनी गंगा और शक्ति स्वरूपा स्त्री के सनातन और आधुनिक स्वरूप पर चिन्तन-मनन होगा। इसमें पाठकों को दोनों के भारतीय संस्कृति से जुड़े मौलिक स्वरूप और उनकी वर्तमान तस्वीर का ब्यौरा होगा। इसी के साथ इस बात का भी खुलासा होगा कि यदि हम इन दोनों के मौलिक स्वरूप से दूर हुए तो समाज और देश को क्या-क्या नुकसान होंगे। इसी तरह यह भी कि गंगा और स्त्री के पवित्र एवं कल्याणकारी उस स्वरूप से जुड़े रहने के लिये हम क्या करें? आज पहले दिन प्रस्तुत है, गोमुख से लेकर गंगासागर तक की जीवन्त गंगा यात्रा ‘पत्रिका संवाददाताओं’ के साथ। इसी के साथ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण से जुड़ी रोचक पौराणिक कहानियाँ। आदित्य पुराण के हिसाब से गंगा का पृथ्वी पर अवतरण भी अक्षय तृतीया को ही हुआ। इसी दिन वह स्वर्ग से शिवजी की जटाओं में आई। अन्य पुराणों के हिसाब से गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल दशमी यानी जेठ दशहरे के दिन माना गया है।

मोक्षदायिनी को चाहिए ‘मोक्ष’


राघवेन्द्र प्रताप सिंह

.गंगा की दुर्दशा की खबर की हकीक़त जानने के लिये जब लखनऊ से बनारस पहुँचा तो मन में कई तरह के विचार चलचित्र की तरह तेजी से आ और जा रहे थे। आधी रात को जब बस ने बनारस में उतारा तो कुछ जगहों की हलचल को छोड़कर बाबा विश्वनाथ की नगरी नींद की आगोश में थी और ज्यादातर सड़कें गाय-सांडों की गिरफ़्त में।

होटल पहुँचकर थोड़ा आराम के बाद जब मोक्षदायिनी की घाटों की तरफ बढ़ा तो सड़क पर हलचल बढ़ चुकी थी। कचौड़ी-चाय की दुकान गुलजार हो चुकी थीं। गलियों में बसे मन्दिरों से निकलने वाले घंटे-घड़ियालों की आवाज़ कानों में यूँ घुलते चले जा रहे थे मानो ये कुछ कहने-सुनने को बेताब हों। खैर, मैं दशाश्वमेध घाट की तरफ बढ़ चला। घाट की सीढ़ियाँ उतरते ही मन खट्टा हो गया।

गंगाजल को अपने सुनहरे रंग से रंगने की कोशिश करती सूर्य की किरणों की मोहकता पर यहाँ-वहाँ बिखरा पड़ा कूड़ा-कचरा भारी पड़ रहा था। घाटों की सीढ़ियों के किनारे सड़े-गले फूलों की लड़ियाँ और रामनामी लिखे मैले कपड़ों और तमाम दूसरी गन्दगी के कारण पानी का बदला रंग मन को कचोट रहा था। बनारस की मशहूर सुबह में वह सब कुछ था, जिसके लिये यह शहर विख्यात है, पर अगर कुछ नहीं था तो वह गंगा की शीतलता, घाटों की रुमानियत और आत्मा तक को पवित्र कर देने वाला नीला जल।

सूरज की किरणों की ताप बढ़ने के साथ घाटों पर गतिविधियाँ भी तेज होने लगी थीं। कुछ पण्डे गंगा में उतर कर घाटों से दूर तैर गए। किनारों से दूर स्नान करने के बाद ये पण्डे अपनी चौकियों, जिन्हें वे दुकान की तरह चलाते हैं, पर विराजमान होने लगे। माथे पर चन्दन-टीका और बदन पर रामनामी धारण कर ये अपने कामों में जुट गए और मैं इनसे आँखें फेर आगे को लपका। उम्मीद अभी थी कि कहीं तो कुछ बेहतर दिखेगा, लेकिन आँखें तरस गईं और ऐसा कुछ नहीं दिखा, जिससे लगे कि बनारस में गंगा को मोक्ष मिल सकता है।

घाटों के किनारे कपड़ों की सफाई, साबुन लगाकर नहाते लोग, गंगा व उनके किनारों को कचरा करती भैंसें, मिट्टी-गन्दगी से भरे घाटों की सीढ़ियाँ, इसके अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था। जैसे-जैसे गंगा का किनारा पकड़ कर आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे सरकारों के भगीरथ प्रयास का मुलम्मा उतरता चला गया और असलियत सामने आती चली गई।

गंगा में गिरते कुछ छोटे-बड़े नाले और प्रवाहित की जाने वाली गन्दगी दिल को व्यथित कर रहा था, मन में कुछ था तो बस करोड़ों लोगों के जीवन को सहेजने-सम्भालने वाली गंगा को भगीरथ पुत्रों की तरह मुक्ति मिलने का सवाल कि आखिर गंगा मैया कब अपने पुराने स्वरूप में वापस आएँगी कब! कुछ अनसुलझे सवाल और मन में गुबार के साथ गंगा का हाल जानने अगली मंज़िल की तरफ बढ़ गया।

देश के चौथाई भूभाग पर गंगा


1. 2525 किमी गंगोत्री से गंगा सागर तक सफर तय करती है गंगा। इसका उद्गम स्थल पश्चिमी हिमालय है।
2. 10,80,000 वर्ग किलोमीटर इसका कुल जलसंग्रहण क्षेत्र है। इनमें से 8,60,000 वर्ग किलोमीटर भारत में है और शेष बांग्लादेश में।
3. 38,000 घनमीटर प्रति सेकेंड औसत बहाव है गंगा का। (अधिकतम 70,000 घनमीटर व न्यूनतम 180 घनमीटर प्रति सेकेंड) है।
4. 26 प्रतिशत देश के भू-भाग को पोषित करती है गंगा
5. 1986 के बाद पिछले लगभग 30 साल से किए जा रहे गंगा सफाई के प्रयास सारे ‘एक्शन प्लान’ के बाद भी जल प्रदूषण घटने के बजाय बढ़ा है।
6. 34 मीटर प्रतिवर्ष के दर से पिघल रहा है गंगोत्री ग्लेशियर
7. 3000 टन कीटनाशक प्रतिवर्ष प्रवाहित हो रहे हैं गंगा में

नदी नहीं, भगवान का शरीर है भागीरथी


स्वामी रामनरेशाचार्य
लेखक रामानन्द सम्प्रदाय के प्रधान हैं


देश में ज्ञान विज्ञान का जो विकास हुआ, उसमें गंगा का है बड़ा योगदान

अद्भुत है गंगा का वह उद्गम स्थल, जहाँ से गंगा जी का प्राकट्य होता है, उनका प्रथम दर्शन होता है, जिसे हम लोग गोमुख कहते हैं। जल के क्षय के इस युग में जल का स्वरूप संकुचित होता जा रहा है, इसके बावजूद वहाँ प्रवाह स्थल काफी बड़ा है, जहाँ से गंगा प्रकट होती है। वहाँ कोई मजबूत-से-मजबूत वस्तु टिक नहीं सकती, खूब आवाज़ करती गंगा प्रकट होती है और गंगोत्री और तमाम स्थलों को स्पर्श करते हुए, ऋषिकेश, हरिद्वार, प्रयाग, वाराणसी, पटना तक उसी रूप में गंगा सागर तक प्रवाह चलता है।

गंगा का जलीय स्वरूप बहुत बड़ा है, अनेक बड़े शहरों का निर्माण गंगा ने किया है। गंगा के साथ आप आगे चलेंगे, तो ऋषिकेश का बड़ा स्वरूप है, हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र है। शुकताल एक बड़ा तीर्थ है, जहाँ शुकदेव जी ने परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। आगे कानपुर है, विशाल उद्योग नगरी है, आगे तीर्थराज प्रयाग है, काशी है, बक्सर है, जहाँ वाल्मीकि जी जैसे ऋषि थे, गौतम जी का आश्रम था, जहाँ अहिल्या का राम जी ने उद्धार किया।

आगे बढ़ते हुए गंगा पटना, भागलपुर को आबाद करते हुए आगे बढ़ रही हैं। गंगा का जो मैदान है, वह एशिया का सबसे बड़ा उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है। यदि काशी ज्ञान की बड़ी नगरी है, तो उसमें गंगा का बड़ा योगदान है। भारत का जो स्वर्ण युग है, मौर्य वंश, गुप्त वंश की राजधानी पाटलिपुत्र गंगा के किनारे ही थी। चाणक्य की भूमि है।

निश्चित रूप से गंगा की हवा, गंगा के अपने जलीय स्वरूप ने चाणक्य को भी प्रभावित किया होगा, गौतम बुद्ध, जैन धर्म के तीर्थकरों और आदि शंकराचार्य को भी प्रभावित किया होगा। देश में ज्ञान-विज्ञान का जो विकास हुआ, उसमें गंगा का बड़ा योगदान है। सिख धर्म की शक्ति में भी गंगा का बड़ा योगदान रहा। पटना साहिब गंगा के किनारे ही स्थित है।

गंगा में जब जल बढ़ता है, तो वह आस-पास के इलाकों को डुबो देती है और उसके बाद जब आप खेतों में बीज डालेंगे, तो खूब फसल होती है। गंगा किनारे पर बसे एक आदमी से मैंने पूछा,‘आपके कितने मकान बह गए? उसने कहा, ‘आठ बह गए, यह नौवाँ है। मैंने पूछा, तो गंगा के लिये क्या भाव है? उसने उत्तर दिया, ‘सर्वश्रेष्ठ भाव हैं, माँ के लिये खराब भाव होता है क्या? जब माँ देखती है कि बच्चे का विकास नहीं हो रहा है, बुराई की ओर जा रहा है, तब अनुशासित करती है।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘हम डंके की चोट पर कहते हैं कि गंगा के किनारे वाले लोग दूषित नहीं थे और जगह के लोग आए, तो बुराइयाँ आईं, नहीं तो यह गंगा लाखों लोगों को बेघर कर देती हैं।’

विगत् वर्षों में गंगा में नगरों के माध्यम से प्रदूषण आया है। निःसन्देह, गंगा में नालों की मात्रा बढ़ गई है। बनारस, पटना की आबादी बहुत बढ़ गई है। औद्योगिक शहर बढ़े हैं। राजधानियाँ बढ़ी हैं, तो नाले भी बढ़े हैं, इस पर सोचना चाहिए और आगे बढ़कर कदम उठाने चाहिए।

मैं क्यों काशी आया?


मेरी काशी में शिक्षा-दीक्षा हुई, अध्यापन के लिये हरिद्वार, ऋषिकेश आ गया। रामानन्दाचार्य जी की सेवा मिली, तो पुनः काशी आ गया। बाद में रामानन्दाचार्य जी का प्राकट्य धाम स्थल इलाहाबाद में मिला, तो वह भी बिल्कुल गंगा तट पर ही है। गंगा माँ ने अपनी कुछ ज्यादा ही गोद और छाया मुझे प्रदान की है। इसका एक कारण, मुझे ध्यान आता है। मैं छोटा था, घूमने-फिरने काशी आया था। सुबह के चार बजे गंगा तट पर गया, दशाश्वमेध घाट पर, पहली बार इस तरह के बड़े-बड़े मकान, गंगा का तट घाट, दिव्य वातावरण, बिजली जल रही है, गाँव का रहने वाला बच्चा और बड़े-बड़े मकान, शान्त वातावरण, आध्यात्मिक वातावरण। मुझे संकल्प नहीं होता, अभी भी नहीं होती कि किसी वस्तु को प्राप्त करना है पर तब तुरन्त एक आह निकली हृदय से कि कितना अच्छा होता, मैं भी यहीं होता। यह 1967 की बात है और उसके एक साल बाद 1968 में मैं भाग आया काशी। गंगा जी ने बुला लिया, अब पूरा जीवन गंगा जी में ही समाहित हो गया।

1. 5.50 करोड़ हेक्टेयर बहुफसली सिंचित भूमि में 2.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र गंगा घाटी के क्षेत्र पर निर्भर है।
2. भारत स्वर्ण युग (मौर्य वंश व गुप्त वंश) गंगा के किनारे ही था
3. सिख सम्प्रदाय की शक्ति में भी गंगा का बड़ा योगदान। पटना साहिब गंगा किनारे ही है।

मन्दाकिनी भी स्याह


उरुक्रम शर्मा
भोपाल से करीब 1200 किलोमीटर का सफर तय करके हरिद्वार, ऋषिकेश होते हुए जब उत्तरकाशी पहुँचा तो मन गदगद हो गया। देखा तो सामने थी पावन, निर्मल माँ गंगा। उन्होंने मुझे देखा, मुस्कुराई और हाथ पकड़कर साथ ले लिया। फिर माँ गंगा ने शुरू की अपनी कहानी। कहा, यहाँ से 100 किलोमीटर दूर गंगोत्री धाम है, जहाँ मैं बिराजती हूँ। 18वीं शताब्दी में मेरे इस मन्दिर का यहाँ निर्माण कराया गया था। यह तीर्थ स्थल समुद्र तल से 3140 मीटर ऊँचाई पर स्थित है।

पुराणों में इसके बारे में कहा जाता है कि हिमालय की गोद में बसा यह तीर्थ ही वह स्थल है जहाँ माँ गंगा ने धरती को कृतार्थ किया था। सुरसरि का रूप लेकर राजा भगीरथ के पूर्वजों को पाप मुक्त किया था। पुराणों में मेरे बारे में यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने गंगा के वेग को कम करने के लिये उन्हें अपनी जटाओं में लिया था। वैसे तो मेरा उद्गम गोमुख से हुआ है, जो कि गंगोत्री से 18 किलोमीटर दूर बर्फ के पहाड़ों में हैं।

दुर्गम और जटिल रास्तों में बर्फ सबसे बड़ी बाधक होती है। वहाँ ऑक्सीजन भी कम हो जाती है। बीच में रुकने के इन्तजाम भी कम हैं। हाँ, यह जरूर है कि आज भी मेरे गोमुख से आगे तपोवन हैं, जहाँ अभी भी साधु-सन्त साधना में तल्लीन हैं। गोमुख तक जाने के लिये गंगोत्री से आगे मौनी बाबा का आश्रम है। वहाँ से आगे भोजवासा है जहाँ लाल बिहारी जी का आश्रम है। वहाँ ठहरकर गोमुख तक जाया जा सकता है। यहाँ चारों ओर जो बर्फ देख रहे हो, वो बर्फ नहीं। बल्कि मेरा रजत जड़ित मुकुट है। जो मुझे श्वेत रूप में बहते हुए देख रहे हो, वो मेरा चाँदी के आभूषणों से किया गया शृंगार है।

एक बात और बताती हूँ। अभी गोमुख मार्ग नहीं खुलने का कारण बताती हूँ। चारों ओर जिस तरह का प्रदूषण फैला हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति है। उसने सारे मौसम का तन्त्र बिगाड़ रखा है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक यहाँ शोध करने आते हैं। कोई कहता है कि ग्लेशियर पीछे की ओर सरक रहे हैं। मुझे भी यह लगता है।

कुछ वैज्ञानिक गोमुख पर चर्चा कर रहे थे, पिछले 30 साल में गोमुख करीब एक किलोमीटर पीछे सरक गया। सच्चाई तो मुझे भी लगती है। बाकी तो सब इस धरती के लोगों के शोध के विषय हैं। गंगा के मुख से कहानी सुनकर मैं स्तब्ध था। माँ ने कहा, पकड़ों हाथ और चलो आगे। हम शुरू करते हैं उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक का पूरा सफर। करीब 100 किलोमीटर के इस सफर में बहुत कुछ जानने का मौका मिलेगा। देवदार व चीड़ के वृक्ष, ऊँचे-ऊँचे कच्चे-पक्के पहाड़। पहाड़ों से दरकती शिलाएँ। दुर्गम रास्ते।

सीमा सड़क संगठन के बनाए सुगम रास्ते। जगह-जगह बहते झरने उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री अभी मनुष्य की निगाहें नहीं पड़ी। किसी ने कल कारखाने या उद्योग लगाने की कोशिश नहीं की। यहाँ के लोग भी बहुत समझदार हैं। वे गंगा को मैली नहीं होने देते, चाहे कुछ भी हो जाए। पर हरिद्वार, ऋषिकेश से जो मुझे मैला करने का सिलसिला शुरू होता है, वो इलाहाबाद, बनारस पहुँचते-पहुँचते मेरे धवल स्वरूप को पूरी तरह से स्याह कर देते हैं।

अब देखो, उत्तरकाशी के मजिस्ट्रेट ने नियम बना दिये कि उत्तरकाशी पवित्र तीर्थ स्थल में पर्यावरण एवं साफ सफाई के लिये धारा 144 लागू है। इसके तहत पॉलीथिन, कैरीबैग और प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबन्ध है। उल्लंघन करने पर आईपीसी धारा 188 के तहत छह महीने की सजा और एक हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।

आगे बढ़ते हुए माँ गंगा ने कहा, मनेरी से चार किलोमीटर पहले रास्ते संकरे हैं। एक वाहन बमुश्किल निकल सकता है। जरा सी असावधानी बड़ा हादसा कर सकती है। पर घबराने और विचलित होने की जरूरत नहीं है। यह तो सतत् प्रक्रिया है। आगे चलो, यह जगह है भटवाड़ी। यहाँ देखो, गंगा का पानी कितना निर्मल है। जबकि अभी गंगोत्री दूर है। यहाँ लोग रहते हैं पर गंगा की स्वच्छता पर आँच नहीं आने देते। यहाँ भी गंगा का पानी दूध सा ही श्वेत नजर आता है। गंगनानी, यह वो अद्भुत स्थल है, जहाँ माँ गंगा का दूसरा स्वरूप है। शीतल, शान्त गंगा उष्ण (गर्म) रूप में बहती नजर आती है।

हर्षिल की ओर जब बढ़े तो माँ गंगा ने कहा, देखो, सामने पहाड़ी पर मेरा रजत मुकुट सजा हुआ दिख रहा है। दूसरी पहाड़ियों ने भी श्वेत शृंगार किया है। देवदार के पेड़ों ने भी इसी चाँदी से खुद को सजाया है। लोहाली नागा में मेरे पानी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट लगा दिया। इससे पहले मनेरी में भी बाँध बाँधकर मेरे पानी को रोकने की कोशिश की गई है। कितना भी कुछ कर लो पर मेरे साथ चलकर तुमने देखा ना, चारों ओर मैं ही मैं बह रही हूँ।

गंगोत्री से पहले बाल शिव का प्राचीन मन्दिर है। इसे बाल कण्डार मन्दिर के रूप में भी जाना जाता है। इसके बारे में पुजारी कमलकान्त से पूछा तो उसने बताया कि गंगोत्री धाम का प्रथम पूजा स्थल यही है। गंगा माँ के दर्शन से पहले बाल शिव के दर्शन जरूरी माने जाते हैं। इसके बिना यात्रा अधूरी होती है। यह मन्दिर 1442 ई. का है। थोड़ा आगे बढ़े तो लंका घाटी आ गई। माँ ने मुस्कुरा कर कहा, देखे। कौन साधु बैठा है।

इससे भी जरा पूछ लो। मैंने वहाँ श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के महन्त श्री विजय गिरी जी से मुलाकात की। वो बताते हैं कि पिछले 75 साल का तो मुझे याद है, यहाँ माँ की अखण्ड ज्योत जलती है, इससे पहले का पता नहीं। उन्होंने कहा कि बेटा, यहाँ अभी मनुष्य के कारोबारी कदम नहीं पड़े, वरना यह जगह भी हरिद्वार, ऋषिकेश, बनारस और इलाहाबाद बन जाती। जैसे ही हाथ पकड़कर गंगोत्री की ओर बढ़े तो सामने देखा पहाड़ियों के बीच में से गंगा तेजी से बहती हुई आ रही है। इतना स्वच्छ पानी जिसके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

कैसे रखते हैं गंगोत्री साफ?


गंगोत्री धाम मन्दिर के पुजारी राजेश कुमार सेमवाल और मन्दिर कमेटी के कमल नयन सेमवाल ने बताया कि पण्डा समाज, व्यापार मण्डल, समिति सदस्य मिलकर हर हफ्ते-दस दिन में गंगोत्री की सफाई करते हैं। तभी तो देख लो, गंगा यहाँ बिल्कुल साफ है। ना गन्दगी करते ना ही यात्रियों को गन्दगी करने देते हैं।

अब नहीं ले जाते गंगाजल


राजीव हर्ष


गंगा का एक नाम है हुगली। इसी हुगली के किनारे पर बसा है पश्चिम बंगाल का सघन आबादी वाला औद्योगिक शहर हावड़ा। कभी स्वच्छ जल से भरी रहने वाली यह नदी आज बेहद दूषित और मटमैले जल से भरी है। इसका पानी पीने और नहाने योग्य तो दूर खेती में काम लेने लायक भी नहीं बचा है।

उत्तर हावड़ा अंचल में अठारहवीं सदी से ही कल कारखानों की भरमार रही है। इस अंचल में सबसे ज्यादा कल कारखाने लिलुआ, बेलूर, घुसुड़ी इलाकों में हैं। घुसुड़ी के डॉनबास्को इलाके में स्थित जगन्नाथ घाट ऐतिहासिक घाट है। लोग बड़ी श्रद्धा के साथ यहाँ स्नान करने आते हैं। यहीं पर चार फीट से अधिक व्यास का गन्दे पानी का नाला चौबीसों घंटे गंगा को प्रदूषित करता है।

उत्तरी हावड़ा में 8 किमी


उत्तर हावड़ा में गंगा की लम्बाई आठ किलोमीटर है। इस आठ किलोमीटर के फासले में बाली घाट, गोसाई घाट, जे.एन. मुखर्जी रोड घाट, हनुमान जूट मिल घाट, सोलाकुठी घाट, जगन्नाथ घाट, फूलतल्ला घाट, बांधाघाट, तेलकट घाट, कमरसाल (लोहारघाट), साधु घाट, बाँसगोला और नमकगोला घाट बने हुए हैं। सभी घाटों पर गंगा जल बेहद प्रदूषित हो चुका है। घाटों के आस-पास गन्दगी और कूड़ा कचरे के अम्बार हैं।

आठ किलोमीटर की दूरी में गन्दे पानी के चार विशाल नाले हैं जो शहर का जल मल गंगा में हर समय डाल रहे हैं। गुरुवार दोपहर ग्यारह बजे मैं जगन्नाथ घाट पहुँचा, कुछ बच्चे घाट पर स्नान कर रहे थे, घाट के मुहाने पर शैवाल व जलकुम्भी का जमाव था। पास ही एक बड़े नाले से कई रंगों में रंगा प्रदूषित जल गंगा में विष घोल रहा था। इसी तरह का नज़ारा हनुमान जूट मिल के घाट के पास नजर आया। उत्तर हावड़ा के इस अंचल का 60 प्रतिशत से भी ज्यादा अपशिष्ट सीधे गंगाजल में प्रवाहित हो रहा है। गन्दे पानी के नाले हर घाट पर हैं।

श्री रामपुर से रिषड़ा


श्रीरामपुर से हावड़ा तक हुगली नदी के दोनों किनारों पर जूट मिलों सहित छोटी-बड़ी कई औद्योगिक इकाइयाँ हैं जिनका कचरा सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है। इसके अतिरिक्त 21 किलोमीटर के नदी मार्ग में हर घाट पर नाले बने हुए हैं और नालों से दूषित पानी सीधे नदी में गिर रहा है। श्रीरामपुर और रिषड़ा के घाटों का भ्रमण करने के दौरान इण्डिया कॉटन मिल्स, वेलिंग्टन जूट मिल और हेस्टिंग्स जूट मिल से निकलने वाले कचरे को गंगा में सीधे प्रवाहित होते देखा। हेस्टिंग्स घाट रोड, चतरा खाल, बागखाल, तेलकल घाट, जगन्नाथ घाट, सदगोप पाड़ा (भागीरथी) लेन, आशुतोष चटर्जी लेन, दे स्ट्रीट इलाकों में बने नाले शहर की गन्दगी को नदी में प्रवाहित कर रहे थे।

कारखानों से निकला अपशिष्ट भी गंगा में प्रवाहित हो रहा था। इससे पानी पर तेल की परत सी बन गई है। कुछ बच्चे इस तेल को कपड़े की मदद से निकालने का प्रयास कर रहे थे। विगत् कई वर्षों से हर रोज सुबह गंगा स्नान के लिये जाने वाले भोला यादव (59) प्रदूषण से बेहद आहत दिखे। भोला ने बताया कि गंगा के दूषित जल में स्नान करने का मन नहीं करता। उद्योगों का जहरीला अपशिष्ट और नालों का गन्दा पानी नदी में मिलने से गंगाजल को पूजा के लिये वे अब घर भी नहीं ले जाते।

टीटागढ़ से गंगा


उत्तर 24 परगना जिले के टीटागढ़ में गंगा को बड़ी बेदर्दी से प्रदूषित किया जा रहा है। केल्विन जूट मिल के बगल से एक बड़ा नाला रुइया इलाके से निकलकर सीधे गंगा में मिल रहा है। काले रंग का प्रदूषित पानी प्लास्टिक व कचरे के साथ जहाँ गंगा में गिर रहा है, वहाँ दुर्गन्ध इतनी कि खड़े होना भी मुश्किल है। एक नाला बैरकपुर के कई क्षेत्रों का कचरा समेट जवाहर कुंज के नज़दीक गंगा में गिरता है।

इलाके में कुल तीन घाट रासमणि घाट, अन्नपूर्णा घाट, गाँधी घाट हैं, रोज़ाना सैकड़ों लोग इन घाटों पर स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं, लोग गंगा के किनारे ही मल-मूत्र त्याग करते हैं। ज्वार के समय किनारे फैले मल-मूत्र गंगा में समाहित हो जाते हैं। टीटागढ़ औद्योगिक इलाका है। यहाँ कई जूट मिलें हैं। इनमें से किनीशन, केल्विन, एम्पायर गंगा के किनारे पर हैं। टीटागढ़ वैगन लि. भी गंगा के किनारे पर हैं। इन कारखानों का जहरीला अपशिष्ट सीधे गंगा में मिल रहा है।

सुबह लगभग 7.30 बजे मैं रासमणि घाट पहुँचा। उस समय 50 से अधिक लोग गंगा में स्नान कर रहे थे। कुछ ही दूरी पर लोग मल त्याग करते दिखे। वहाँ से मैं केल्विन मिल के अन्दर से जेट्टी पर गया। जेट्टी के किनारे नाले का काले रंग का गन्दा पानी गंगा में गिरते हुए देखा। केल्विन मिल से निकल कर जवाहर कुंज के नज़दीक गया वहाँ भी गंगा के पवित्र जल में नाले का गन्दा जल गंगा में गिरते देखा।

1. 43 प्रतिशत देश की आबादी गंगा के जल पर निर्भर है। अर्थात लगभग 50 करोड़ से अधिक आबादी गंगा और सहायक नदियों पर आश्रित हैं। 2. 8 राज्यों में फैली है गंगा प्रणाली पूरे देश में 3. 60 प्रतिशत से अधिक अपशिष्ट उत्तर हावड़ा का सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है।
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Post By: RuralWater
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