![हिंडन उद्गम दर्शन यात्रा-एक सुखद अनुभूति](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/Hindon%20Screen%20Shot%202021-03-20%20at%2016.33.24_3.png?itok=keh_a2BB)
जल संरक्षण के लिए कार्यशील ‘सेंटर फ़ॉर वॉटर पीस’ के अपने साथियों संजय कश्यप, सुदीप साहू, सुशील राघव, राजेश चंद्र शर्मा, विनोद त्यागी आदि के साथ कल हिंडन नदी के उद्गम स्थल की यात्रा की। सुबह 7 बजे ‘सेंटर फ़ॉर वॉटर पीस’ के लोहियानगर स्थित कार्यालय से शुरू हुई इस यात्रा में क़रीब 30 कार्यकर्ताओं ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। मुरादनगर-मोदीनगर पहुँचने पर सहयोगियों-समर्थकों द्वारा यात्रा में शामिल कार्यकर्ताओं का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया।
हिंडन नदी Source:इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी,फोटो
आगे बढ़ने पर मुज़फ़्फ़रनगर के अधिवक्ता साथियों ने हम सभी का स्वागत-सत्कार किया। तत्पश्चात् यात्रा अपने गंतव्य सहारनपुर स्थित गाँव कालू पहाड़ी की ओर रवाना हुई।इस गाँव में स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ उमर सैफ़ एवं सुनील गुप्ता अपनी टीम के साथ हमारा इंतज़ार कर रहे थे।यहाँ से यात्रा डॉ उमर सैफ़ के मार्गदर्शन में आगे बढ़ी।गाँव की सीमा पार करने के बाद जंगल क्षेत्र शुरू हो गया। महानगर की आपा-धापी से दूर हमारा क़ाफ़िला हिंडन की उद्गम घाटी की ओर बढ़ता जा रहा था।और फिर हम पहुँच गए लगभग सूखी हुई हिंडन नदी पर। स्थानीय नागरिकों व वन विभाग के कर्मचारियों की आवा-जाही से नदी के प्रवाह क्षेत्र में एक कच्चा रास्ता दिखाई दे रहा था। हमारी गाड़ियाँ ऐसे ही पथरीले रास्ते पर चलते हुए हिंडन की सुरम्य घाटी में पहुँच गईं।।यहाँ आकर गाड़ियों का क़ाफ़िला ठहर गया। डॉ उमर सैफ़ ने बताया कि यहाँ से आगे का सफ़र पैदल तय करना पड़ेगा।उत्साह व रोमांच बढ़ता ही जा रहा था।क़रीब 40 पदयात्री एक अनोखे अहसास के साथ क़दमताल करते हुए हिंडन के उद्गम स्थल के दर्शन करने के लिए उत्सुक थे।क़रीब एक किलोमीटर चलने के बाद आख़िर वह बिंदु आ ही गया जिसे हिंडन के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है।चारों तरफ़ शिवालिक रेंज की चट्टानों से घिरी इस घाटी में एक ऊँचाई से एक मनोहारी जलप्रपात अमृत की बूँदों की तरह गिर रहा था।पानी की मात्रा बहुत ज़्यादा बेशक न थी, लेकिन निरंतर बह रही उस जलधारा की वजह से पूरी घाटी जीवंतता से ओत-प्रोत महसूस हो रही थी।
पहाड़ से नीचे लगातार झरने के रूप में गिरता पानी,Source:इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी,फोटो
सतह पर बहती हुई छोटी सी धारा में एक ख़ास शैवाल व छोटी मछलियाँ दिखलाई पड़ रही थीं।इंडिया वॉटर पोर्टल के सक्रिय कार्यकर्ता केसर सिंह ने बताया कि शासन-प्रशासन में बैठे अधिकतर लोग हिंडन को सिर्फ़ एक बरसाती नदी मानते हैं।जबकि हिंडन शिवालिक पर्वतमाला के जल-प्रपातों से निकलने वाली एक सदानीरा नदी है।यह सही है कि बरसात के मौसम को छोड़कर शेष समय में इन जल प्रपातों में पानी की मात्रा काफ़ी कम हो जाती है और नदी की सतह लगभग सूखी हुई दिखाई पड़ती है।लेकिन हमें इस नदीं की संरचना को, उसके प्रवाह को समग्रता में देखने की ज़रूरत है।एक तो यह कि बरसाती नदी का भी एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र होता है।बरसात के चार महीनों के दौरान जब नदी में भरपूर जलराशि प्रवाहित हो रही होती है तब नदी अपनी तलहटी में भूमिगत जल के स्रोतों को जल प्लावित करती हुई बहती है।बरसात का मौसम गुजरने के बाद नदी की सतह के नीचे स्थित इन जल स्रोतों से नदी की सतह पर पानी रिसता रहता है और कम मात्रा में ही सही साल भर नदी में एक जल प्रवाह बना रहता है।
नदी की सतह पर पानी बहता हुआ,Source:इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी,फोटो
दूसरे, जब हमें नदी की सतह पर पानी बहता हुआ दिखाई न दे रहा हो तब भी यह मान कर नहीं चलना चाहिए कि नदी सूख गई है।दरअसल सतह की रेत के नीचे भी जलधाराएँ प्रवाहित रहती हैं।यदि आप नदी की सतह की रेत को दो-चार फ़ीट खोद कर देखेंगे तो आप को पर्याप्त नमी मौजूद मिलेगी।इतना ही नहीं कुछ देर में वह गड्ढा पानी से भर जाएगा।नदी-घाटी के प्रत्यक्ष दर्शन और इस विचार-विमर्श की प्रक्रिया के बाद कई अनजाने तथ्यों से मैं और मेरी साथी वाक़िफ़ हुए।सभी साथियों को पुख़्ता तौर पर यह बात समझ में आई कि नदी का बरसाती होने, साल के कुछ महीनों में सूखी दिखाई देने से उसका पर्यावरणीय महत्व कम नहीं हो जाता है।इस तरह की नदी का अपना एक विशेष पारिस्थितिकी तंत्र होता है।हमें नदी के उस प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को वैसा ही जैसा वह है संरक्षित रखने की आवश्यकता है।हम सभी लोग इस नतीजे पर भी पहुँचे की हिंडन नदी के प्रदूषण का कारण उसके किनारे बसे शहरों-क़स्बों से निकल कर गिरने वाले क़रीब 175 नाले हैं।इन नालों के द्वारा आबादी का मल-मूत्र व औद्योगिक अपशिष्ट बिना किसी उपचार के सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है।
संजय कश्यप,केसर सिंह हिंडन नदी के बारे मे जानकारी देते हुए,Source:इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी,फोटो
हिंडन नदी के अस्तित्व के लिए दूसरा सबसे बड़ा ख़तरा इसके किनारों पर अवैध रूप से किया जा रहा अतिक्रमण व स्थायी निर्माण है।उपरोक्त विचार-विनिमय के पश्चात हम सभी ने दोपहर का भोजन ग्रहण किया।स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था डॉ उमर सैफ़ व सुनील गुप्ता जी व उनके सहयोगियों के द्वारा की गई थी। मनोरम घाटी से आने का मन तो नहीं हो रहा था, लेकिन मजबूरी थी सो हम दोपहर बाद वहाँ से निकल आए।
पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ उमर सैफ़ एवं सुनील गुप्ता हिंडन नदी के बारे मे जानकारी देते हुए,Source:इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी,फोटो
अंत में यह तय हुआ कि हिंडन नदी-घाटी व नदी को संरक्षित करने के लिए ‘सेंटर फ़ॉर वॉटर पीस’ के कार्यकर्ता निंरतर अपने प्रयास जारी रखेंगे और जनसामान्य व शासन-प्रशासन का सहयोग भी प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।कुल मिलाकर बेहद सुखद अनुभूति के साथ यात्रा समाप्त हुई।
![]() |
ReplyForward |
/articles/haindana-udagama-darasana-yaataraa-eka-saukhada-anaubhauutai