आमतौर पर हिंडन नदी दो बड़ी समस्याओं से जूझ रही है। एक है, शहर व औद्योगिक गंदे नालों से नदी में जाने वाला प्रदूषित पानी और दूसरी अंधाधुंध भूजल दोहन। इधर पिछले एक दशक में यह नदी एक नई समस्या से जूझ रही है और वह है नदी के दोनों तरफ हो रहा अवैध निर्माण। नदी की भूमि एवं नदी संरक्षित भूमि पर अवैध कालोनियां, बड़े बिल्डरों द्वारा सोसाइटियों एवं सरकारी योजनाएं खड़ी की जा रही हैं। इसके दो ताज़ा उदाहरण है। नोएडा एक्सटेंशन में कई नामी बिल्डरों के फ्लैट्स हिंडन डूब क्षेत्र में है। इसी प्रकार करहैड़ा गांव के निकट 132 केएवी का एक बड़ा बिजलीघर हिंडन डूब क्षेत्र में बनाया गया है। स्वार्थवश हम जीवनदायिनी नदी को ही खत्म करने में लगे हैं। यही कारण है कि आज हिंडन नदी का स्वरूप ही बदल गया है। पहले तो नदी में प्रदूषित पदार्थ डालकर उसे पूरी तरह से विषैली बना दिया गया। जब इससे भी मन नहीं भरा तो हमने नदी के किनारे अवैध कालोनी ही बसा डाली। डूब क्षेत्र में कई बड़ी-बड़ी इमारतें भी बना दी गई। इस क्षेत्र में अवैध निर्माण अभी भी जारी है। पर्यावरण सचेतक समिति के सर्वे में यह बात सामने आई है कि हिंडन नदी के बड़े हिस्से में अवैध कब्ज़ा हो चुका है। सर्वे रिपोर्ट यह भी कहती है कि अवैध कब्जों के लिए नगर निगम, जीडीए, सिंचाई विभाग व आवास विकास परिषद भी काफी हद तक जिम्मेदार है।
अवैध कब्जों का नतीजा है कि आज हिंडन नदी का बहाव कहीं दिखाई नहीं देता। दिखता है तो औद्योगिक इकाइयों से निकला बिना शोधित गंदा पानी व शहर के सीवर का गंदा पानी। साथ ही नदी के किनारे अवैध कालोनियों के बसने से नदी का क्षेत्र सिकुड़ रहा है स्थिति यह है कि जिस नदी का फैलाव कभी एक किलोमीटर तक था आज वह घटकर 50-100 मीटर तक ही रह गई है। इसके साथ ही नदी का उपयोग लोग गंदगी डालने के लिए कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि जिस हिंडन नदी का पानी कभी पीने योग्य था, आज वह नहाने लायक भी नहीं बचा है। हमेशा बहने वाली यह नदी अब गंदा नाला बनकर रह गई है। नदी के किनारे बसावट से आज भले ही नदी सकरी हो जाए, परंतु कभी बाढ़ आने की स्थिति में नदी अपना मुकाम हासिल कर ही लेगी। कभी ऐसी स्थिति आई तो जाहिर है बड़ी धन-जन की हानि को रोकना संभव नहीं होगा।
आमतौर पर हिंडन नदी दो बड़ी समस्याओं से जूझ रही है। एक है, शहर व औद्योगिक गंदे नालों से नदी में जाने वाला प्रदूषित पानी और दूसरी अंधाधुंध भूजल दोहन। इधर पिछले एक दशक में यह नदी एक नई समस्या से जूझ रही है और वह है नदी के दोनों तरफ हो रहा अवैध निर्माण। उच्च न्यायालय इलाहाबाद और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा है कि नदी के दोनों तरफ 400-400 मीटर तक किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। एक वाद विक्रांत बनाम भारत संघ आदि में तो ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदी पर बन रहे करहैड़ा पुल में अतिरिक्त पिलर जोड़ने तक के आदेश गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण को दिए ताकि नदी का बहाव पूर्व की भांति बना रहे। लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में नियमों व न्यायालयों के आदेशों की अवहेलना हो रही है।
नदी की भूमि एवं नदी संरक्षित भूमि पर अवैध कालोनियां, बड़े बिल्डरों द्वारा सोसाइटियों एवं सरकारी योजनाएं खड़ी की जा रही हैं। इसके दो ताज़ा उदाहरण है। नोएडा एक्सटेंशन में कई नामी बिल्डरों के फ्लैट्स हिंडन डूब क्षेत्र में है। इसी प्रकार करहैड़ा गांव के निकट 132 केएवी का एक बड़ा बिजलीघर हिंडन डूब क्षेत्र में बनाया गया है। नदी का डूब क्षेत्र या दोनों तरफ 400 मीटर का क्षेत्र ना केवल इसलिए महत्वपूर्ण है कि बाढ़ आने पर जानमाल का नुकसान कम होगा बल्कि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में रेत की एक गहरी परत होती है जो नदी में बढ़ने वाले पानी को सोख कर भूजल स्तर बढ़ाने में मदद करती है। नदी के डूब क्षेत्रों अथवा नदी संरक्षित क्षेत्रों को बचाने का एक अच्छा तरीका यह हो सकता है कि उक्त भूमि पर सरकार विभाग पार्क बनवाएं एवं बड़ी संख्या में पेड़ पौधे लगाकर वन में परिवर्तित किया जाए।
आज हिंडन नदी का अस्तित्व खतरे में है, क्योंकि किनारों पर अवैध कब्ज़े तथा प्रदूषित औद्योगिक उत्प्रवाह इसको जहरीला बना रहा है। पिछले दिनों पर्यावरण सचेतक समिति ने बीएड के 100 प्रशिक्षणार्थियों से हिंडन के 260 किलोमीटर धाराप्रवाह का सर्वे कराया था। यह शोध 8 अप्रैल 2012 से लेकर 12 अप्रैल 2013 तक किया गया। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि भूमाफिया ने प्रशासन से मिलकर नदी क्षेत्र में सैकड़ों अवैध कालोनियां बसा दी हैं। हिंडन का शोषण इसी तरह होता रहा तो अगले 10 वर्षों में ये नदी अस्तित्वहीन होकर नक्शे में ही गाज़ियाबाद की शोभा बढ़ाएगी।
इस रिपोर्ट से यह भी साफ होता है कि अब हिंडन को बचाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश के साथ राज्य सरकार को भी बड़ी पहल करने की जरूरत है। दरअसल, हिंडन के 300 मीटर तक के दोनों तरफ आने वाले डूब क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया गया है। छह जिलों से होकर गुजरने वाली हिंडन पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण गाज़ियाबाद क्षेत्र में किया गया है। यहां 85 फीसद से ज्यादा हिस्से पर अतिक्रमण है। नोएडा अतिक्रमण करने के मामले में दूसरे नंबर पर है। नोएडा में 80 फीसद तक अतिक्रमण किया गया है। शोध में यह भी सामने आया है कि नोएडा में हिंडन के डूब क्षेत्र में छिजारसी और इसके आसपास वाले इलाके में स्टोन क्रेशर चल रहे हैं। अतिक्रमण कर लोग लगातार कंस्ट्रक्शन कर रहे हैं। जबकि, यह सब कुछ कानूनी तौर पर अवैध है। दरअसल, इन अवैध कालोनियों के गुलजार होने में बिजली बिजली कनेक्शन व रजिस्ट्री ने भी अहम भूमिका निभाई है। पैसा लगाने वालों को इसलिए भी कालोनी न टूटने का भरोसा बन गया, क्योंकि इनकी रजिस्ट्री हो जाती है। बिजली का कनेक्शन भी मिल जाता है।
यहां प्रशासनिक आधिकारी हाईकोर्ट के आदेश का भी पालन नहीं कर रहे हैं। वर्ष 2005 में मेरठ के एक संगठन ने हिंडन नदी में बढ़ते प्रदूषण के संदर्भ में जनहित याचिका डाली थी। जिसे संज्ञान में लेते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सीवेज और फ़ैक्टरियों से निकलने वाले अपशिष्ट को नदी में प्रवाहित होने पर स्पष्ट रूप से रोग लगाई थी। इसके बाद नोएडा और गाज़ियाबाद में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगे। बावजूद इसके अब भी काफी मात्रा में सीवेज बिना साफ हुए नदी में प्रवाहित हो रहा है। इसलिए अब अगर हिंडन को बचाना है तब सबसे जरूरी हो जाता है कि इसे राज्य नदी का दर्जा दिया जाए। यह दर्जा मिलने पर ही संरक्षण हो सकेगा। इसके अलावा नदी के आसपास वाटरबॉडी बनाई जाए ताकि, बारिश का पानी उसमें एकत्र हो सके।
सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता उप्र जल निगम के एसएल गोयल ने कहा कि हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र में बस रही कालोनियां कही ना कहीं से नदी की धारा को प्रभावित करेंगी। वैसे भी नदियां खुद अपना रास्ता बना लेती हैं और यदि इसी तरह हिंडन नदी के किनारे पर अवैध कब्ज़े होते रहे तो कभी बाढ़ आने पर उत्तराखंड जैसा मंजर यहां भी हो सकता है। मेरा मानना है कि हिंडन नदी के किनारों पर बसी अवैध कालोनियों को हटाया जाए और वहां पर भारी संख्या में वृक्ष लगाकर वन क्षेत्र विकसित किया जाए। वन क्षेत्र विकसित होने से अतिक्रमण की समस्या का निस्तारण खुद ही हो जाएगा।
हिंडन किनारे अवैध कालोनी बसने की एक खास वजह सरकारी तंत्र के माध्यम से कम आया वालों को शहर में आवास उपलब्ध नहीं करवा पाना भी है। इसी का परिणाम है कि न सिर्फ हिंडन किनारे, बल्कि तमाम अधिसूचित क्षेत्रों में अवैध कालोनियां तेजी से बस गईं। सस्ते रेट पर घर पाने की चाहत में लोग कालोनाइजरों के हाथों अपनी गाढ़ी कमाई दांव पर लगा दे रहे हैं। बिना यह सोचे की नदी के 300 मीटर के दायरे में आने वाले डूब क्षेत्र में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। जैसा कि अभी हाल में उत्तराखंड में देखने को मिला। नोएडा की स्थापना के शुरुआती दौर में श्रमिक कुंज, जनता फ्लैट, ईडब्ल्यूएस व एलआईजी फ्लैट बनाकर आवंटित किए गए, मगर प्राधिकरण यह काम कुछ ही वर्षों तक कर सका। उसके बाद आम जनता को रिहायश देने की बागडोर बिल्डरों के हाथों सौंप दी गई। किसानों से ज़मीन अधिग्रहित कर बिल्डरों को आवंटित की जाने लगी। बिल्डर फ्लैट बनाकर मनमानी दरों पर बेचने लगे। प्राधिकरण के रुख में इस बदलाव से एक बड़ा तबका अपने लिए छत पाने से वंचित हो गया। इस कारण भी लोगों ने हिंडन किनारे ही सस्ते में मकान खरीदने में परहेज नहीं किया। क्योंकि यहां कि संपत्ति की रजिस्ट्री भी हो गई और पानी-बिजली की सुविधा भी मिल गई।
हिंडन नदी जो सहारनपुर के पुरकाटांडा कालूवाला नामक स्थान से निकलकर कृष्णी, काली, चेचही, नागदेवी, पांवधोई और धमोला जैसी छोटी नदियों को अपने में समाहित कर मुज़फ़्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाज़ियाबाद होते हुए गौतमबुद्ध नगर के मोमनाथनपुर गांव के पास यमुना में मिल जाती है।
मूल स्रोत : सहारनपुर से
कुल लंबाई : 400 किमी
कुल छह जिलों से गुजरती है
नोएडा में छिजारसी से प्रवेश
जिला गौतमबुद्ध नगर में 28 किमी.
पौराणिक मान्यता में इसे हरनंदी कहते थे, लेकिन अंग्रेजों ने अपभ्रंश कर हिंडन कर दिया।
पांच नदियां सहायक, यमुना में मिलती है।
प्रदूषण के कारण हिंडन देश में विलुप्त होने वाली नदियों की सूची में शामिल।
हिंडन नदी के डूब क्षेत्र में या नदी को संरक्षित करने के लिए यूं ही ना छोड़ा जाए, बल्कि उस भूमि पर सरकार पार्क बनवा कर पौधे लगवाए। इससे न केवल पर्यावरण संतुलन में मदद मिलेगी, बल्कि अवैध कब्जों से भी बचाव होगा। डूब क्षेत्र में निर्मित होने वाले मकानों की रजिस्ट्री पर भी रोक लगाई जाए तो भी अवैध कालोनियों के बसने या अवैध कब्ज़े पर रोक लग सकती है। साथ ही अवैध कालोनियों में बिजली, पानी का कनेक्शन नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार को अवैध कब्ज़े किए जाने की अवधि के दौरान नियुक्ति अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए।
अवैध कब्जों का नतीजा है कि आज हिंडन नदी का बहाव कहीं दिखाई नहीं देता। दिखता है तो औद्योगिक इकाइयों से निकला बिना शोधित गंदा पानी व शहर के सीवर का गंदा पानी। साथ ही नदी के किनारे अवैध कालोनियों के बसने से नदी का क्षेत्र सिकुड़ रहा है स्थिति यह है कि जिस नदी का फैलाव कभी एक किलोमीटर तक था आज वह घटकर 50-100 मीटर तक ही रह गई है। इसके साथ ही नदी का उपयोग लोग गंदगी डालने के लिए कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि जिस हिंडन नदी का पानी कभी पीने योग्य था, आज वह नहाने लायक भी नहीं बचा है। हमेशा बहने वाली यह नदी अब गंदा नाला बनकर रह गई है। नदी के किनारे बसावट से आज भले ही नदी सकरी हो जाए, परंतु कभी बाढ़ आने की स्थिति में नदी अपना मुकाम हासिल कर ही लेगी। कभी ऐसी स्थिति आई तो जाहिर है बड़ी धन-जन की हानि को रोकना संभव नहीं होगा।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों पर नहीं हो रहा अमल : विक्रांत शर्मा
आमतौर पर हिंडन नदी दो बड़ी समस्याओं से जूझ रही है। एक है, शहर व औद्योगिक गंदे नालों से नदी में जाने वाला प्रदूषित पानी और दूसरी अंधाधुंध भूजल दोहन। इधर पिछले एक दशक में यह नदी एक नई समस्या से जूझ रही है और वह है नदी के दोनों तरफ हो रहा अवैध निर्माण। उच्च न्यायालय इलाहाबाद और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा है कि नदी के दोनों तरफ 400-400 मीटर तक किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। एक वाद विक्रांत बनाम भारत संघ आदि में तो ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदी पर बन रहे करहैड़ा पुल में अतिरिक्त पिलर जोड़ने तक के आदेश गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण को दिए ताकि नदी का बहाव पूर्व की भांति बना रहे। लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में नियमों व न्यायालयों के आदेशों की अवहेलना हो रही है।
नदी की भूमि एवं नदी संरक्षित भूमि पर अवैध कालोनियां, बड़े बिल्डरों द्वारा सोसाइटियों एवं सरकारी योजनाएं खड़ी की जा रही हैं। इसके दो ताज़ा उदाहरण है। नोएडा एक्सटेंशन में कई नामी बिल्डरों के फ्लैट्स हिंडन डूब क्षेत्र में है। इसी प्रकार करहैड़ा गांव के निकट 132 केएवी का एक बड़ा बिजलीघर हिंडन डूब क्षेत्र में बनाया गया है। नदी का डूब क्षेत्र या दोनों तरफ 400 मीटर का क्षेत्र ना केवल इसलिए महत्वपूर्ण है कि बाढ़ आने पर जानमाल का नुकसान कम होगा बल्कि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में रेत की एक गहरी परत होती है जो नदी में बढ़ने वाले पानी को सोख कर भूजल स्तर बढ़ाने में मदद करती है। नदी के डूब क्षेत्रों अथवा नदी संरक्षित क्षेत्रों को बचाने का एक अच्छा तरीका यह हो सकता है कि उक्त भूमि पर सरकार विभाग पार्क बनवाएं एवं बड़ी संख्या में पेड़ पौधे लगाकर वन में परिवर्तित किया जाए।
हिंडन को राज्य नदी का दर्जा मिले : विजय पाल बघेल
आज हिंडन नदी का अस्तित्व खतरे में है, क्योंकि किनारों पर अवैध कब्ज़े तथा प्रदूषित औद्योगिक उत्प्रवाह इसको जहरीला बना रहा है। पिछले दिनों पर्यावरण सचेतक समिति ने बीएड के 100 प्रशिक्षणार्थियों से हिंडन के 260 किलोमीटर धाराप्रवाह का सर्वे कराया था। यह शोध 8 अप्रैल 2012 से लेकर 12 अप्रैल 2013 तक किया गया। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि भूमाफिया ने प्रशासन से मिलकर नदी क्षेत्र में सैकड़ों अवैध कालोनियां बसा दी हैं। हिंडन का शोषण इसी तरह होता रहा तो अगले 10 वर्षों में ये नदी अस्तित्वहीन होकर नक्शे में ही गाज़ियाबाद की शोभा बढ़ाएगी।
इस रिपोर्ट से यह भी साफ होता है कि अब हिंडन को बचाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश के साथ राज्य सरकार को भी बड़ी पहल करने की जरूरत है। दरअसल, हिंडन के 300 मीटर तक के दोनों तरफ आने वाले डूब क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया गया है। छह जिलों से होकर गुजरने वाली हिंडन पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण गाज़ियाबाद क्षेत्र में किया गया है। यहां 85 फीसद से ज्यादा हिस्से पर अतिक्रमण है। नोएडा अतिक्रमण करने के मामले में दूसरे नंबर पर है। नोएडा में 80 फीसद तक अतिक्रमण किया गया है। शोध में यह भी सामने आया है कि नोएडा में हिंडन के डूब क्षेत्र में छिजारसी और इसके आसपास वाले इलाके में स्टोन क्रेशर चल रहे हैं। अतिक्रमण कर लोग लगातार कंस्ट्रक्शन कर रहे हैं। जबकि, यह सब कुछ कानूनी तौर पर अवैध है। दरअसल, इन अवैध कालोनियों के गुलजार होने में बिजली बिजली कनेक्शन व रजिस्ट्री ने भी अहम भूमिका निभाई है। पैसा लगाने वालों को इसलिए भी कालोनी न टूटने का भरोसा बन गया, क्योंकि इनकी रजिस्ट्री हो जाती है। बिजली का कनेक्शन भी मिल जाता है।
यहां प्रशासनिक आधिकारी हाईकोर्ट के आदेश का भी पालन नहीं कर रहे हैं। वर्ष 2005 में मेरठ के एक संगठन ने हिंडन नदी में बढ़ते प्रदूषण के संदर्भ में जनहित याचिका डाली थी। जिसे संज्ञान में लेते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सीवेज और फ़ैक्टरियों से निकलने वाले अपशिष्ट को नदी में प्रवाहित होने पर स्पष्ट रूप से रोग लगाई थी। इसके बाद नोएडा और गाज़ियाबाद में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगे। बावजूद इसके अब भी काफी मात्रा में सीवेज बिना साफ हुए नदी में प्रवाहित हो रहा है। इसलिए अब अगर हिंडन को बचाना है तब सबसे जरूरी हो जाता है कि इसे राज्य नदी का दर्जा दिया जाए। यह दर्जा मिलने पर ही संरक्षण हो सकेगा। इसके अलावा नदी के आसपास वाटरबॉडी बनाई जाए ताकि, बारिश का पानी उसमें एकत्र हो सके।
डूब क्षेत्र के मकानों से हो सकती है बड़ी तबाही : एसएल गोयल
सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता उप्र जल निगम के एसएल गोयल ने कहा कि हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र में बस रही कालोनियां कही ना कहीं से नदी की धारा को प्रभावित करेंगी। वैसे भी नदियां खुद अपना रास्ता बना लेती हैं और यदि इसी तरह हिंडन नदी के किनारे पर अवैध कब्ज़े होते रहे तो कभी बाढ़ आने पर उत्तराखंड जैसा मंजर यहां भी हो सकता है। मेरा मानना है कि हिंडन नदी के किनारों पर बसी अवैध कालोनियों को हटाया जाए और वहां पर भारी संख्या में वृक्ष लगाकर वन क्षेत्र विकसित किया जाए। वन क्षेत्र विकसित होने से अतिक्रमण की समस्या का निस्तारण खुद ही हो जाएगा।
इसलिए भी बढ़ता गया अतिक्रमण
हिंडन किनारे अवैध कालोनी बसने की एक खास वजह सरकारी तंत्र के माध्यम से कम आया वालों को शहर में आवास उपलब्ध नहीं करवा पाना भी है। इसी का परिणाम है कि न सिर्फ हिंडन किनारे, बल्कि तमाम अधिसूचित क्षेत्रों में अवैध कालोनियां तेजी से बस गईं। सस्ते रेट पर घर पाने की चाहत में लोग कालोनाइजरों के हाथों अपनी गाढ़ी कमाई दांव पर लगा दे रहे हैं। बिना यह सोचे की नदी के 300 मीटर के दायरे में आने वाले डूब क्षेत्र में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। जैसा कि अभी हाल में उत्तराखंड में देखने को मिला। नोएडा की स्थापना के शुरुआती दौर में श्रमिक कुंज, जनता फ्लैट, ईडब्ल्यूएस व एलआईजी फ्लैट बनाकर आवंटित किए गए, मगर प्राधिकरण यह काम कुछ ही वर्षों तक कर सका। उसके बाद आम जनता को रिहायश देने की बागडोर बिल्डरों के हाथों सौंप दी गई। किसानों से ज़मीन अधिग्रहित कर बिल्डरों को आवंटित की जाने लगी। बिल्डर फ्लैट बनाकर मनमानी दरों पर बेचने लगे। प्राधिकरण के रुख में इस बदलाव से एक बड़ा तबका अपने लिए छत पाने से वंचित हो गया। इस कारण भी लोगों ने हिंडन किनारे ही सस्ते में मकान खरीदने में परहेज नहीं किया। क्योंकि यहां कि संपत्ति की रजिस्ट्री भी हो गई और पानी-बिजली की सुविधा भी मिल गई।
हिंडन नदी की भौगोलिक स्थिति
हिंडन नदी जो सहारनपुर के पुरकाटांडा कालूवाला नामक स्थान से निकलकर कृष्णी, काली, चेचही, नागदेवी, पांवधोई और धमोला जैसी छोटी नदियों को अपने में समाहित कर मुज़फ़्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाज़ियाबाद होते हुए गौतमबुद्ध नगर के मोमनाथनपुर गांव के पास यमुना में मिल जाती है।
हिंडन नदी : एक नजर
मूल स्रोत : सहारनपुर से
कुल लंबाई : 400 किमी
कुल छह जिलों से गुजरती है
नोएडा में छिजारसी से प्रवेश
जिला गौतमबुद्ध नगर में 28 किमी.
पौराणिक मान्यता में इसे हरनंदी कहते थे, लेकिन अंग्रेजों ने अपभ्रंश कर हिंडन कर दिया।
पांच नदियां सहायक, यमुना में मिलती है।
प्रदूषण के कारण हिंडन देश में विलुप्त होने वाली नदियों की सूची में शामिल।
समाधान
हिंडन नदी के डूब क्षेत्र में या नदी को संरक्षित करने के लिए यूं ही ना छोड़ा जाए, बल्कि उस भूमि पर सरकार पार्क बनवा कर पौधे लगवाए। इससे न केवल पर्यावरण संतुलन में मदद मिलेगी, बल्कि अवैध कब्जों से भी बचाव होगा। डूब क्षेत्र में निर्मित होने वाले मकानों की रजिस्ट्री पर भी रोक लगाई जाए तो भी अवैध कालोनियों के बसने या अवैध कब्ज़े पर रोक लग सकती है। साथ ही अवैध कालोनियों में बिजली, पानी का कनेक्शन नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार को अवैध कब्ज़े किए जाने की अवधि के दौरान नियुक्ति अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए।
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