हिंदी पोर्टल का एनआईएच में दौरा

पोर्टल को बेहतर बनाने के उद्देश्य से हिंदी पोर्टल टीम जल विज्ञानियों के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाना चाहती थी ताकि पाठकों तक सही नोलेज पहुंचाई जा सके, इस संदर्भ में मैने रुड़की स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के डायरेक्टर डॉ आर डी सिंह से बात की और अपनी इच्छा जाहिर की।

हालांकि व्यस्तता के बावजूद भी उंहोंने हमें प्रोत्साहन दिया और रूड़की आने के लिए कहा। बस फिर क्या था, हमने आनन फानन में अपना सामान बांधा और रवाना हो लिए। मैं, पोर्टल के मैनेजर विजय कृष्णा, हिंदी पोर्टल के वेब एडिटर शिराज केसर के साथ सफर पर निकल पड़ी।

यह सब अचानक नहीं हुआ, दरअसल इसकी शुरुआत नबम्बर में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के दौरान दिल्ली में ही हुई थी। मेले में जल संसाधन मंत्रालय के पविलियन में एनआईएच के वैज्ञानिक हमारे सामने वाले स्टॉल पर ही थे, पंद्रह दिन मेले में साथ रहने से हमने उनकी गतिविधियों और ज्ञान को जाना और महसूस किया कि अगर वें सभी पोर्टल में सहयोग दें तो कईं मायनों में पोर्टल को आम आदमी के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। उनके शोध और सुझावों के आधार पर कईं समस्याओं के हल ढूंढे जा सकते हैं।

इसलिए हमने डायरेक्टर से मिलने की इच्छा जाहिर की। उसी समय हमारी ही साथी का विवाह उत्सव भी रुड़की में ही था सो हमने सोचा कि एक पंथ दो काज का अच्छा मौका है, फिर डायरेक्टर की अनुमति भी मिल गई थी। हम लोग 28 फरवरी की सवेरे ही शताब्दी से रुड़की के लिए रवाना हो गए, हरे हरे पेड़ों और बसंत ऋतु का आनंद लेते हुए हम रुड़की पहुंच गए, एनआईएच तक पहुंचने से पहले हमने गंगा कैनाल देखी और आईआईटी के कैंपस में तो बहुत से ऐसे पेड़ देखे जिनके बारे में हमें पता तक नहीं था, खैर घुमक्कड़ों की तरह पहले हम अपनी साथी के घर पहुंचे जहां नव विवाहित जोड़े के साथ साथ हम ऐसे कईं नए मित्रों से भी मिले जो पानी के विभिन्न आयामों पर काम कर रहे थे जैसे कोई पानी और स्वास्थ्य को लेकर तो कोई जलवायु परिवर्तन तो कोई सेनिटेशन का एक्सपर्ट था, आपस में खूब बातें हुई विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई, फिर खापीकर हम गैस्ट हाउस लौट गए, यह गैस्ट हाउस एनआईएच का ही था, यहां की व्यवस्था देखने का जिम्मा प्रकाश और प्रमोद का था दोनो ही बहुत अच्छे और अपने काम में तत्पर थे, उंहोने हमें कोई कमीं महसूस नहीं होने दी।

रात हुई और अब समय था विवाह के उपरांत रिसेप्शन का, विभिन्न व्यंजनों के स्वाद और सुगंध का रसास्वादन और वाटर और सेनिटेशन एक्सपर्टों से बात करते-करते कब आधी रात बीत गई पता ही नहीं चला। गैस्ट हाउस लौटे तब तक हम नींद और थकान से चूर थे लेकिन दिमाग यही सोच रहा था कि सुबह क्या होगा? क्या एनआईएच के बड़े-बड़े वैज्ञानिक हमारा साथ देंगे या फिर डायरेक्टर साहब हमें सुनेंगे? कैसा होगा उनका रिस्पोंस? यही सोचते सोचते सुबह हो गई, सवेरे नित्य क्रियाओं से निपटकर हमने डॉ सिंह से बात की तो उंहोने बताया कि सोमवार को उनकी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर पीएम ऑफिस में एक मीटिंग है इसलिए हम रविवार यानी छुट्टी के दिन भी उनसे ऑफिस में मिल सकते हैं, तो हम भी साहब बड़े ही चिपकू अंदाज में समय से कुछ पहले ही उनके ऑफिस के बाहर जा धमके, वहां उनके पीएस को हमने आने का उद्देश्य बताया तो उसने भी साहब के आते ही उनको खबर कर दी। डायरेक्यर ने हमें अंदर बुलाया और हम भी औपचारिकता निभाते हुए सामने रखी गद्देदार कुर्सियों पर विराज गए।

बातचीत का सिलसिला परिचय से शुरु हुआ और इंटरव्यू में बदल गया। स्वभाव से आर डी सिंह एक बहुत ही सज्जन व्यक्ति लग रहे थे उनके स्टाफ के लोग भी उनसे बहुत खुश हैं और उनकी तारीफ करते नहीं थकते। सच है कि अगर कोई कर्मी अपने बॉस की पीठ पीछे तारीफ करता है तो वास्तव में उस आदमी में कुछ बात तो होगी।

खैर आर डी सिंह ने उप निदेशक भीष्म कुमार से भी मिलवाया। सिंह ने पोर्टल के मैनेजर विजय कृष्णा से रूबरु होते हुए कहा कि आज देश में जल प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है, जल गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वाटर मॉनिटरिंग की जरूरत है। जहां कहीं भी जल प्रदूषण की समस्या है वहां लोगों को साफ और सुरक्षित पेयजल मुहैया कराया जाना चाहिए। विभिन्न स्थानों पर जल प्रदूषण के कारणों को जानकर उसके लिए भिन्न-भिन्न तरीकों से हल भी ढूंढे जाने चाहिए।

उंहोने कहा कि किसानों को जानकारी न होने की वजह से किसान फसलों में जरूरत से ज्यादा फर्टीलाइजर्स और पेस्टीसाइड का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसके अलावा म्युनिसिपल वेस्ट और औद्योगिक कचरा भी सीधे पानी में मिल रहा है।

समस्या का हल बताते हुए उंहोने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करके नदियों को प्रदूषण से रोका जाए ताकि राष्ट्रीय नदियों का अस्तित्व बना रहे।

जलवायु परिवर्तन के बारे में उनका मानना है कि अगर तापमान यों ही बढ़ता रहा तो जल स्रोत ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे।

तापमान में परिवर्तन होने से कईं तरह के मच्छर पनप रहे हैं, खेती में मौसमी असंतुलन होता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। इसे रोकने के लिए हमें अपनी जीवन पद्धति को ऐसा बनाना होगा कि तापमान में बढ़ोत्तरी न हो। सरकारी से लेकर वैयक्तिक स्तर पर जन जागरूकता के लिए प्रयास करने होंगे, उचित जल प्रबंधन करना होगा।

डॉ सिंह ने अन्य भी बहुत सी बातों पर चर्चा की और हमें अगले दिन पुनः आने के लिए कहा ताकि हम अन्य वैज्ञानिकों से रूबरू हो सकें। उनके इस खुशनुमा व्यवहार से प्रोत्साहित होकर हम वहां से सीधे हरिद्वार के लिए निकल गए। वहां मातृसदन के स्वामी दयानंद 23 दिन से अनशन पर बैठे हुए थे उनकी मांग है कि गंगा में खनन कार्य को रोका जाए और एक राष्ट्रीय नदी को यथोचित सम्मान दिया जाए।

वहां हम डॉ विजय और उनकी पत्नी वर्षा से मिले जिंहोने बहुत ही आत्मीयता दिखाई, दोनो पति पत्नी पोर्टल के नियमित पाठक हैं और पोर्टल से उनकी बहुत सी अपेक्षाएं भी हैं, स्वामी जी के आश्रम में बातचीत करने के बाद हम गंगा के घाट पर गए जहां गंगा में नाममात्र को ही पानी नजर आ रहा था, वहां से संध्या समय हर की पोड़ी पर गंगा के लावण्य को निहारा वहां से आंखे हटाने का मन तो नहीं था लेकिन रात हो रही थी और हमें फिर से रुड़की लौटना था। थके हारे वापिस लौट आए, सवेरे उठे और चल पड़े सभी वैज्ञानिकों से बातचीच करने। जल गुणवत्ता लैब के इंचार्ज डॉ मुकेश शर्मा ने सभी से हमारा परिचय कराया और बहुत ही अच्छे से डॉ सोमेश्वर राव, संजय कुमार जैन, रिनेश सिंघवी, सुभाष से मिलवाया जिंहोने बहुत ही उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराई और आगे भी सहयोग करने का वादा किया। अंत मे हम डॉक्यूमेंटेशन ऑफिसर सुखदेव सिंह कंवर से मिले, उंहोंने बहुत सी उपयोगी प्रकाशन सामग्री दिखाई और पोर्टल के लिए उपलब्ध भी कराई। सचमुच इस ट्रिप पर मैने वैज्ञानिकों के सानिध्य में जितनी आत्मीयता और कमर्ठता देखी शायद पहले कभी नहीं देखी।

बहां राजस्थान से कुछ प्रतिभागी भी कोर्स करने के लिए आए हुए थे हमारे निवेदन पर डॉ सुभाष और डॉ संजय जैन ने उन सभी को पोर्टल के बारे में बताने का मौका दिया। सभी ने बहुत ध्यान से सुना। विजय कृष्णा ने अंग्रेजी पोर्टल के बारे में बताया और मैने हिंदी पोर्टल से उंहें रूबरू करवाया।

इसके बाद हम सबसे विदा लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गए, और जुट गए अपने रोजमर्रा के कामों में।

Tags- NIH, National Institute of Hydrology, R. D. Singh, Rurkee

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