तिब्बत के पठार तथा लगभग 3500 किलोमीटर लम्बी हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला, संयुक्त रूप से, उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव के बाद, दुनिया का स्वच्छ जल का सबसे बड़ा स्रोत है। ध्रुवों की तर्ज पर बर्फ का विशाल भंडार होने के कारण इस क्षेत्र को कुछ लोग तीसरा ध्रुव (The Third Pole) भी कहते हैं। अर्थात उसे यह नाम, उसमें संचित बर्फ की विपुल मात्रा के कारण मिला है। यह इलाका, मध्य एशिया का उच्च पहाड़ी इलाका है जिसमें हिन्दुकुश, काराकोरम और हिमालयीन क्षेत्र सम्मिलित है। इस इलाके का रकबा 42 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है और वह अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल, भारत, म्यांमार और चीन इत्यादि अनेक देशों में फैला है।
उल्लेखनीय है कि इस इलाके से दुनिया की दस प्रमुख नदियों (गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, इरावती, सलवान, मीकांग, यलो, यंगत्जे, अमुदरिया और तारिम) का उद्गम हुआ है। ये नदियाँ सदियों से अपने कछार के निवासियों को स्वच्छ पर्यावरण तथा आजीविका के इष्टतम अवसर उपलब्ध कराती रही हैं। इन नदियों का कछार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, चीन, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम तक में फैला है। मौजूदा वक्त में वे अपने कछार में सिंचाई जलविद्युत और धरती की 24 प्रतिशत से अधिक आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराती हैं। इन नदियों के बेसिन में लगभग 200 करोड़ आबादी निवास करती है। इस क्षेत्र में बायोडायवर्सिटी के चार वैश्विक हॉटस्पॉट हैं। यह इकॉलाजी का वैश्विक बफर है। इसकी पहचान दुनिया के सबसे बडे पर्वत समूह, दुनिया की सबसे ऊँची चोटियों, सबसे जुदा लोक संस्कृति, अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों, बोलियों, सबसे जुदा फ्लोरा-फौना (Flora and Fauns) और प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न इलाके के तौर पर है। आठ देशों में फैली यह पट्टी, पिछले कुछ सालों से, आजीविका, बायोडायवर्सिटी, ऊर्जा, भोजन और पानी का संकट झेल रहा है।
नेपाल के काठमान्डु नगर में,37 साल से भी अधिक पुराना, एक अन्तरराष्ट्रीय संगठन जिसका नाम 'इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेव्लपमेंट' - आईसीमोड’ है, नेपाल के काठमान्डु नगर में स्थित है। इस संगठन ने वर्ष 2013 से 2017 के बीच हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला का सघन अध्ययन किया है। उनके अध्ययन से पता चलता है कि हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रंखला के पठारी और तीखे तथा खड़े ढाल वाले पहाड़ी इलाकों के जंगलों की कटाई हुई है और टूरिज्म बढ़ा है। दूसरी समस्या, बाहरी लोगों द्वारा स्थानीय संसाधनों के उपयोग की नीति के निर्धारण के कारण पनपी है। विभिन्न कारणों से यहाँ का पर्यावरण प्रतिकूल तरीके से प्रभावित हुआ है। पठारी और पहाड़ी इलाकों में गरीबी बढ़ी है। आम जीवन दूभर हुआ है। आजीविका संकट ने पलायन को बढ़ावा दिया है। अनुमान है कि हिन्दुकुश हिमालय क्षेत्र की तीस प्रतिशत से अधिक आबादी खाद्य असुरक्षा से तथा लगभग पचास प्रतिशत महिलायें किसी न किसी रुप में कुपोषण से प्रभावित हैं। संक्षेप में पर्यावरण और आजीविका का यह संकट धीरे-धीरे पनपा है और उसे 'इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेव्लपमेंट' ने अपने अध्ययन द्वारा रेखांकित किया है।
'इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउन्टेन डेव्लपमेंट' ने 15 अक्टूबर, 2020 को आठ देशों (नेपाल, भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, बंगलादेश, चीन और भूटान) की सरकारों के प्रतिनिधियों /मंत्रियों की बैठक आहूत की। इस बैठक में सात देशों के मंत्रियों और चीन की विज्ञान अकादमी के उपाध्यक्ष ने शिरकत की। भारत का प्रतिनिधित्व केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने किया। बैठक में आठ देशों में फैली लगभग 3500 किलोमीटर लम्बी अन्तर्देशीय हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रंखला के पर्वतीय पर्यावरण और आजीविका के संकट को पहचाना गया और उसे बेहतर बनाने के लिए अविलम्ब कदम उठाने पर जोर दिया गया। उम्मीद है इस बैठक में लिए फैसलों पर अमल होगा। कोविड 19 के उपरान्त गति पकडेगा। निश्चय ही उसके सकारात्मक परिणाम जमीन पर नजर आवेंगे।
उल्लेखनीय है कि हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रंखला से निकलने वाली नदियों के कछारों को, मौटे तौर पर पठारी क्षेत्र, तीखे तथा खडे ढ़ाल वाले पहाड़ी क्षेत्र और कम ढ़ाल वाले मैदानी इलाकों में विभाजित किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि इस पर्वतीय पट्टी का पर्यावरणी बिगाड और उसके निवासियों की आजीविका का संकट पिछले कुछ सालों की देन है। वह अचानक नहीं हुआ। वह धीरे-धीरे पनपा है। उसमें कुदरत की नहीं अपितु मौटे तौर पर मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका अधिक है। कुदरती घटक यथा जलवायु परिवर्तन तो कास्मिक कारणों से भी होते हैं। बाढ़ और भूमि कटाव भी कुदरती है। यदि कुदरत उन्हें गलत मानती तो धरती पर उनका अस्तित्व नहीं होता। पृथ्वी के जन्म से लेकर आज तक, मनुष्य को छोडकर, धरती पर अस्तित्व में रहीं सभी प्रजातियों ने बाढ़ तथा भूमि कटाव के साथ जीवन जिया है।
लेखक की निजी राय है कि हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला के पर्वतीय पर्यावरण और आजीविका को बेहतर बनाने के लिए हमारे पास मौटे तौर पर दो विकल्प हैं। यह विकल्प, मौटे तौर पर सभी देशों पर लागू किए जा सकते हैं जिन्होंने काठमांडू में आयोजित बैठक में भाग लिया था तथा अपनी प्रतिबद्धता रेखांकित की है।
पहला विकल्प-
बाहरी लोगों द्वारा प्लानिंग तथा प्लानिंग आधारित बाजारोन्मुखी योजनाओं को चालू रखना
लेखक को लगता है कि हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला के पर्यावरण में बिगाड़ का मुख्य कारण वह प्लानिंग है जिसे, बाजारोन्मुखी योजनाओं के माध्यम से बाहरी लोगों ने इस संवेदनशील इलाके की धरती पर उतारा। बाहरी लोगों द्वारा बनाई असंगत योजनाओं के क्रियान्वयन तथा अन्य हस्तक्षेपों के कारण इस इलाके के पर्यावरणीय संतुलन की अनदेखी हुई। कुदरती संसाधनों का लालची दोहन हुआ। धन का प्रवाह पहाड़ी इलाकों से नगरीय इलाकों को हुआ तथा आजीविका का परम्परागत ‘कालजयी मॉडल’ क्षतिग्रस्त हुआ। गरीबी बढ़ी। बाढ़, जैवविविधता और कुदरती जल उपलब्धता के संकट जैसी समस्यायें पनपी। गरीबी और पलायन उसका प्रतिफल है। सम्पूर्ण घटनाक्रम तथा बदलावों को समझने की आवश्यकता है। अनुचित के प्रतिकार की आवश्यकता है। यदि मौजूदा विकल्प उपयुक्त है तो अपनाने की आवश्यकता है। यदि नहीं तो नकारना अनुचित नहीं होगा। इसी तरह ऊर्जा के लिए पनबिजली की जगह, सोलर पावर बेहतर विकल्प है।
दूसरा विकल्प -
स्थानीय समाज द्वारा प्लानिंग, हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला के परम्परागत मॉडल की फिलॉसफी की बहाली तथा धन के प्रवाह की दिशा परिवर्तन
लेखक को लगता है कि हिन्दुकुश हिमालय पर्वत श्रृंखला के परम्परागत मॉडल की फिलॉसफी पर आधारित एवं पर्यावरण से तालमेल बिठाते कामों तथा आजीविका के विकल्पों को एक बार फिर मुख्यधारा में लाना बेहतर विकल्प हो सकता है। इस हेतु स्थानीय परिवेश को ध्यान में रख, छोटी-छोटी इकाइयों के लिए माइक्रो प्लानिंग करना होगा। स्थानीय उत्पादों के लिए बाजार खोजना होगा। नुस्खा पद्धति के आधार पर की जाने वाली प्लानिंग से बचना होगा। इसके लिए स्थानीय दलों को सक्रिय करना होगा जो बिसराई परम्परागत प्रणालियों को समाज की सहभागिता से चिन्हित कर लागू करेंगे। इस व्यवस्था से बाहरी लोगों की दखलंदाजी समाप्त होगी। विदित है कि परम्परागत मॉडल में धन का प्रवाह नगरों से गांवों की ओर होता है। अर्थात इस पट्टी की मौजूदा समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कालजयी परम्परागत पद्धति को अपनाना होगा तभी इस क्षेत्र को गरीबी, पलायन तथा खाद्य संकट मुक्त समृद्ध समाज, जल स्वावलम्बन, ऊर्जा बहुल परिस्थितियाँ और जलवायु परिवर्तन के आपात संकट से मुक्ति मिलेगी।
200 करोड़ से ज्यादा लोगों की पानी की निर्भरता हिंदुकुश हिमालय पर है। बावजूद इसके किसी के भी प्लानिंग में हिमालय नहीं है। सही योजनाओं का अभाव पूरे हिंदुकुश हिमालय के इलाके को अस्थिर और खतरनाक बना रहा है। ‘हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र’ को समझे बिना हम दुनिया के खूबसूरत थर्ड-पोल को बचा नहीं पाएंगे।
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