हिमयुग में खो जाएगा वसंत

Ice age
Ice age
वसंत... इस शब्द के साथ ही रंगों और सुगंधों का एक पूरा मौसम जाग पड़ता है, लेकिन मौसम की बदलती आहटें संकेत दे रही हैं कि जीवन की बस्ती से वसंत के रंग अब अलविदा कहने वाले हैं। विश्व भर में रिकॉर्ड तोड़ शीत का आलम देखते हुए मौसमविद चेतावनी दे रहे हैं कि वासंती मौसम जल्दी ही हिमयुग में तब्दील हो जाएगा...

नासा की भविष्यवाणियों के मुताबिक 2022 इस सदी का सबसे ठंडा साल होगा। ये भविष्यवाणियां इसलिए भी की जा रही हैं क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र में चौंकाने वाले परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। बारिश कम हो रही है। गर्मी और सर्दी दोनों की प्रचंडता रिकॉर्ड तोड़ रही है। प्राकृतिक संपदा का हर रूप खतरे में है। फसलों के समय में बदलाव आ रहा है। फूल देरी से या समय से पहले ही खिल रहे हैं। बहुत सी वनस्पतियां विलुप्त हो चुकी हैं, बहुत-सी विलुप्त होने की कगार पर हैं। यही हाल वन्य जीवों और पक्षियों का है। कितना फर्क है ना! कभी फलनी मंजरी वसंत की खबर देती थी और अब कैलेंडर देता है। कभी-कभी खयाल जागता है कि अगर कैलेंडर भी न रहे तो??? इसे खबर कहें, भविष्यवाणी कहें या अफवाह लेकिन चर्चा यही है कि वासंती रुत अब हमारे बीच नहीं रहेगी। अब तक कहा जा रह था कि ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर पिघलेंगे और दुनिया पानी-पानी हो जाएगी और अब खबरें आ रही हैं कि दुनिया पिघलने नहीं, जमने जा रही है।

हम हिमयुग के मुहाने पर खड़े हैं और शीघ्र ही वहां पहुंचने वाले हैं, जहां ध्रुवीय प्रदेशों की तरह सब तरफ बर्फ का मंजर होगा। ग्लोबल वार्मिंग से ध्रुवीय प्रदेशों की बर्फ पिघलेगी और समुद्री तट के तमाम द्वीप जम जाएंगे। इस प्राकृतिक स्थिति का असर सारी धरती पर पड़ेगा। पृथ्वी की कक्षा से ली गई तस्वीरें भी चेतावनी दे रही हैं कि बारहों मास बर्फ से ढका रहने वाला अटलांटिक महासागर पिघल रहा है। यह पिघलाव निरंतर बढ़ेगा और इसका अंत बेहद भयावह होगा।

भयावह... क्योंकि तब पल-पल रंग बदलने वाले मौसम का केवल एक ही रंग होगा। तब न पुरवाई का इंतजार बचेगा, न शिशिर का खुमार। बचेगा तो सिर्फ एक तत्व... जल और हिम। उस स्थिति में उसे जड़ या चेतन कहने, मानने या समझने वाला मानव जीवन भी शायद न रहे। वैज्ञानिकों का मानना है कि डायनासोर युग का अंत भी ठीक ऐसे ही हुआ था।

ये सारी स्थितियाँ हमें एक बार फिर उसी युग में ले जाएंगी जहां से जीवन शुरू हुआ था, तब...जब जीवन के चिन्ह पृथ्वी पर कहीं नहीं थे। सैंडी, लैला और नीलम जैसे सुपरस्टॉर्मस तो बस एक झलक भर है। कल इन आपदाओं का जो अंतिम रूप सामने आएगा उसकी व्यापकता और गहराई आंकने के लिए हमारे पास विशेषण भी नहीं बचेंगे।

आंकड़ों की मानें तो 1960 की तुलना में प्राकृतिक आपदाओं का ग्राफ तिगुना चढ़ा है। ऑक्सफोर्ड वैज्ञानिक माइंस एलन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन व मौसमी आपदाओं के बीच गहरा रिश्ता होता है। इसीलिए मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुए ये आशंकाएं दोगुनी हो रही हैं। नासा की भविष्यवाणियों के मुताबिक 2022 इस सदी का सबसे ठंडा साल होगा।

ये भविष्यवाणियां इसलिए भी की जा रही हैं क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र में चौंकाने वाले परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। बारिश कम हो रही है। गर्मी और सर्दी दोनों की प्रचंडता रिकॉर्ड तोड़ रही है। प्राकृतिक संपदा का हर रूप खतरे में है। फसलों के समय में बदलाव आ रहा है। फूल देरी से या समय से पहले ही खिल रहे हैं।

बहुत सी वनस्पतियां विलुप्त हो चुकी हैं, बहुत-सी विलुप्त होने की कगार पर हैं। यही हाल वन्य जीवों और पक्षियों का है। कितने ही नाम दुर्लभ प्रजातियों की सूची में जा लगे हैं और तो और पक्षियों के मीठे स्वर भी कर्कश हो रहे हैं।

मछलियों समेत सभी जलचरों का अस्तित्व गहरे संकट में है। नदियां सिकुड़ रही हैं। हिमालय प्रदूषित है। उसकी सांसों में धुएं का जहर है। क्योटो प्रोटोकॉल लागू हुए सालों बीत चुके हैं, लेकिन ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कोई कमी नहीं आई है।

आर्कटिक व अटलांटिक महासागर में ग्रीनलैंड की हिमनदियों के सर्वेक्षण दल में शामिल अमेरिकी नौसेना के मौसम विज्ञानी माइकल जोसेफ ने पिछले दिनों हिमयुग संबंधी कुछ महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत किए।

सर्वेक्षण दल ने बर्फ में जगह-जगह छेद करके भीतर के तापमान अनुमान लगाने की कोशिश की तो पाया कि पृथ्वी पर मौजूद बर्फ और भीतर से प्राप्त बर्फ के तापमान में कोई बड़ा भारी अंतर नहीं था। दोनों की तुलना करने पर यह निष्कर्ष निकला कि दुनिया बहुत तेजी से हिमयुग की गर्त में जा रही है।

माइकल जोसेफ टिपिंग प्वाइंट : द कमिंग ग्लोबल वेदर क्राइसिस नामक शोध पुस्तक में लिखते हैं, ‘जैसे गर्मी के बाद सर्दी आती है वैसे ही हिमयुग भी एक चक्रीय प्रक्रिया है, लेकन हिमयुग क्यों आते हैं, इसके बारे में कोई सही-सही जानकारी नहीं दी जा सकती है। बहरहाल हम जिस अवस्था में हैं वो निश्चित रूप से उच्चतम और निम्नतम तापमान से ठीक पहले की अवस्था है।’

अगर अतीत खंगालें तो लगभग 4 लाख वर्षों के इतिहास में बहुत अविश्वसनीय तरीके से उच्चतम के बाद निम्नतम तापमान की ओर बढ़ते हुए हम चौथी बार हिमयुग में प्रवेश करने जा रहे हैं। इन तमाम आशंकाओं को लेकर अमेरिकी रक्षातंत्र पेंटागन खासा सतर्क है। मौसम के मिजाज को पकड़ने-समझने के लिए 34 नए उपग्रह तैनात किए गए हैं।

नासा का एडवांस्ड माइक्रोवेव स्कैनिंग रेडियोमीटर सेंसर तकनीक से लैस उपग्रह ‘एक्वा’ मौसम की धड़कनों पर दिन रात नजर रखें हैं। इसके अलावा जापान की नेशनल स्पेस एजेंसी भी जुटी हुई है। अगर अपने देश की बात करें तो बेशक पर्यावरण हमारी चर्चाओं में है, भाषणों में है, दिवसों में है, लेकिन सारी बातें व्यवहार से नदारद हैं। लगता है जैसे हमें आने वाले खतरे की सुध ही नहीं है।

देश के मौसम विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर समुद्रों का जलस्तर अचानक बढ़ता है तो हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। हिमयुग का मंजर कैसा होगा? इस सवाल पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी पहले बहुत गर्म होगी। गर्मी से बर्फ पिघलेगी और फिर सब ओर फैलते हुए यही बर्फ जीवनचक्र को अंत की ओर ले जाएगी।

यों ये सब कहना बहुत आसान है, लेकिन उस स्थिति को झेलना कितना खौफनाक होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह समय चिंतन से ज्यादा व्यवहार में अमल का है। भले सृष्टि की चक्रीयता का सिद्धांत कहता है कि यह होना ही है, लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि इस ‘होने’ के केंद्र में कहीं न कहीं हमारी बड़ी भूलें होंगी।

हिमयुग वापस आ रहा हैक्या कभी कल्पना की है कि कल अगर वसंत की मीठी-पीली गुनगुनी हूक बर्फ की सफेदी में हमेशा के लिए सो गई, तो क्या होगा? आइए, अब तो जागें कि प्रगति की बदहवास में प्रकृति से खेलते हुए हम उस प्रलयंकारी चरम की ओर जा रहे हैं जहां वसंत शायद कैलेंडर में न बचेगा। अगर कुछ बचेगा तो वह होगा जल और हिम। कामायनी का प्रयल प्रवाह... आइए, एक मुट्ठी वसंत मन की मुट्ठी में संजो लें, इसलिए नहीं कि कल इसे विलुप्त हो जाना है, बल्कि इसलिए कि कल इसी एक मुट्ठी वसंत से वसंत की फसलें लहराएंगी... मौसम बदले, जीवन बदले पर मन की माटी में गुंथा वसंत कभी न रीते... आमीन, एवमस्तु।

हिमयुग क्यों और कैसे


1. हिमयुग को लेकर कई सिद्धांत और परिकल्पना है, लेकिन सच यह है कि इसका आदि और अंत दोनों अब तक रहस्यमय है। गहन शोध के आधार पर वैज्ञानिकों के कुछ मुख्य बिंदु इंगित किए हैं-

1. नासा के भौतिक वैज्ञानिक का कहना है यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो इतनी परमाणु ऊर्जा निकलेगी कि आसमान में कालिख ही कालिख भर जाएगी। यह कालिख सूरज की रोशनी और धरती के बीच जम जाएगी और इसके साथ शुरू होगा हिमयुग।

2. वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि वातावरण में मौजूद गैसों के अनुपात में बदलाव और पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा के मार्ग में परिवर्तन जैसी स्थितियां हिमयुग की नींव रखेंगी।

3. पृथ्वी का 1/3 भाग जमीन है और शेष पानी। यही पानी पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करता है। समुद्री पानी की ऊपरी परतें ही गर्म और निचल परतें ठंडी रहती हैं। पिछले कुछ समय में ये ऊपरी गर्म परतें पतली हो रही हैं, जिससे महासागर ठंडे हो रहे हैं और तापमान में गिरावट आ रही है।

अब तक के हिमयुग


माना जाता है कि आखिरी हिमयुग अब से लगभग 20,000 साल पूर्व था, जो लगभग 12,000 वर्ष पूर्व समाप्त हो गया, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका पर अभी भी बर्फ की चादरें मिलना इस बात का संकेत है कि यह हिमयुग अपने अंतिम चरणों में है और समाप्त नहीं हुआ है।

1. ह्यूरोनाई हिमयुग : 2.4 से 2.1 अरब युग पूर्व सबसे लंबा।
2. क्रायोजनाई हिमयुग : 85 से 65 करोड़ वर्ष पूर्व।
3. एंडीयाई सहाराई हिमयुग : सबसे छोटा हिमयुग था। 46-43 वर्ष पूर्व।
4. कारू हिम : 36-20 वर्ष पूर्व।
5. क्वार्टनरी हिमयुग : 25 लाख वर्ष पूर्व।

चुप हो रहे हैं वासंती गीत


पक्षी इकोसिस्टम का अविभाज्य हिस्सा है। मानव जाति के अस्तित्व को बचाने के लिए इनका बचे रहना जरूरी है। अगर ये ना रहे तो कोमलता, सुकून और मिठास का एक बड़ा हिस्सा खाली रह जाएगा।

1. हर वर्ष होता है टुंड्रा प्रदेश में – ‘नार्वे अमेरिकन ब्रीडिंग बर्ड सर्वे’। उस सर्वे का आयोजन सबसे पहले 1966 में अमेरिकन फिश एंड वाइल्ड लाइफ सर्विस द्वारा पक्षियों की संख्या व नस्ल पता लगाने के लिए हुआ। जिसे बाद में BBS (ब्रीडिंग बर्ड सर्वे) का नाम दिया गया। इस सर्वे के अनुसार पूर्वी उत्तरी अमेरिका में गाने वाली प्रवासी चिड़ियाओं की 200 नस्लों में से अधिकतर लुप्तप्राय हो चली है। कारण है- जंगलों का कटना।

2. गाने वाली इन चिड़ियाओं को कुछ वैज्ञानिक ‘नव कटिबंधीय (निओट्रापिकल ) प्रवासी कहते हैं। ओसीन, थ्रशेज, टेनेजर्स, ग्रोस, बीकस, बारबलर्स, केबर्ड्स, बटिंग्स आदि 200 से भी अधिक रंग व स्वभाव की जातियां हैं इन गायक चिड़ियाओं की जनका जीवन खतरे में है।’

3. वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले समय से जंगली चिड़ियाओं की संख्या में 40 प्रतिशत, सुनहरे परों वाली ‘वारबलर’ में 46 प्रतिशत, ईस्टर्न वुडपीवी में 33 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।

टूटे कितने रिकॉर्ड


1. शीत का तांडव विश्व के हर कोने में महसूस किया जा रहा है। द टेलीग्राफ, द टाइम्स, द इंडिपेडेंट जैसे अखबारों में शीत का प्रकोप बना फ्रंट पेज हेडलाइन।
2. ब्रिटेन के मौसमविद जोनाथन पॉवेल ने विगत 100 वर्षों के इतिहास में इस वर्ष को ‘हॉरर फ्रीजिंग ईयर’ की संज्ञा दी है।
3. 2014 में उत्तरी अमेरिका में भारी हिमपात के साथ शीत का कहर चरम अवस्था में पहुंचा। यूएस और कनाडा में 1870 से अब तक की रिकॉर्ड तोड़ ठंड दर्ज की गई।
4. चीन में पिछले 28 सालों का रिकॉर्ड टूटा। तापमान पहुंचा माइनस 15.3 डिग्री सेल्सियस।

5. 1938 के बाद इस साल रूस के कुछ भागों में दर्ज हुआ माइनस 50 डिग्री सेल्सियस।

6. पिछले 44 सालों में इस साल भयंकर सर्दी का रिकॉर्ड रहा उत्तरी भारत में।

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