जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) का स्पेशल सेंटर फाॅर डिजास्टर रिसर्च हर हफ्ते क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग-सिस्टम प्रमोशन काउंसिल के साथ विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के लिए वेबिनार का आयोजन कर रहा है। सेमिनार की 12वीं सीरीज में हिमालयी पर्यावरण पर चर्चा की गई। देश के 40 से ज्यादा प्रतिभागियों ने वेबिनार में भाग लिया, जिसमें चार पैनलिस्ट गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रो. बीडी जोशी और प्रो. पीसी जोशी, कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के प्रो. पीसी तिवारी और भारत मौसम विज्ञान विभाग के डाॅ. आनंद शर्मा ने कोविड-19 के परिदृश्य में हिमालयी पर्यावरण पर विस्तार से अपने विचार रखे।
प्रो. बीडी जोशी ने गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की। साथ ही हाल ही में लाॅकडाउन के कारण गंगा में आए बदलावों पर भी उन्होंने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि गंगा और उसके आसपास के इलाकों में मानवीय गतिविधियां कम होने से गंगा नदी को कुछ राहत जरूर मिली है। पहले के मुकाबले गंगा का पानी 50 प्रतिशत तक साफ हुआ है, लेकिन गंगा की स्वच्छता को हमे लाॅकडाउन के बाद भी इसी प्रकार बनाए रखना होगा, जिसके लिए अहम कदम उठाने की आवश्यकता है। प्रो. पीसी तिवारी ने कहा कि लाॅकडाउन के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक वापस लौट रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में करीब 1.75 लाख प्रवासी श्रमिक लौटेंगे, जो कि एक चिंता का विषय है। बड़ी संख्या में लोगों के वापस लौटने से खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ेगी। इसके लिए सरकार को आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को मजूबत करने की जरूरत है, जिसके लिए प्रदेश में कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित करना होगा। प्रो. पीसी जोशी ने कहा कि हिमालय अपनी विभिन्न और प्राकृतिक परिवेश के कारण जाना जाता है। एक प्रकार से हिमालय को हम प्राणदाता भी कह सकते हैं, क्योंकि हिमालय से नदियों का ही नहीं, बल्कि नदियों और शुद्ध हवा के रूप में जीवन का भी उद्गम होता है। उन्होंने कहा कि हिमालय में हरित आवरण और औषधीय पौधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। हिमालय की जैवविविधता और प्राकृतिक परिवेश को बनाए रखने में इनका बहुत महत्व है। डाॅ. आनंद शर्मा ने जलवायु परिवर्तन और परिवर्तनशीलता का उल्लेख किया।
वेबिनार से ये बात निकलकर सामने आई कि हिमालय को विभिन्न गतिविधियों और विकास की एक स्थानीय योजना की आवश्यकता है, जो हिमालय की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई जाए। सरकार और नीति-निर्माताओं को हिमालय के संवेदनशील वातावरण के लिए उच्च स्तर पर चिंता दिखानी चाहिए। इसके अलावा, पर्यटन को हम राजस्व का अहम स्रोत मानते हैं, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों में लगातार तेजी से बढ़ती पर्यटको की संख्या से समस्या खड़ी कर दी है। पर्यटकों की संख्या हिमालय क्षेत्रों की कैरिंग कपैसिटी के अनुसार ही होनी चाहिए। चारधाम यात्रा के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्कता है। सरकार चारधाम यात्रा के दिनों को बढ़ाने के बारे में विचार कर सकती है, ताकि श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को प्रबंधित किया जा सके। श्रद्धालुओं और अन्य पर्यटकों के लिए बुनियादी ढांचे को पर्यावरण के अनुकूल बनाने की जरूरत है। इसके लिए हमें मेट्रो-शहरों से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी है। इससे हिमालयी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए आजीविका के बेहतर विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं।
आईएमडी के पूर्व महानिदेशक डाॅ. केजे रमेश ने कहा कि पानी के प्राकृतिक स्रोतों और झरनों को पुनर्जीवित या उनका कायाकल्प करने के प्रयास किए जाने चाहिए। स्थानीय समुदायों को सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि सतत विकास के सभी पहलुओं को सरकार की सभी योजनाओं में शामिल किया जाए। सीआरआपीसी के कर्नल संजय श्रीवास्तव ने कहा पंतजलि की भांति ही हिमालय के अन्य भागों में पहल की जानी चाहिए। इससे न केवल स्थानीय समुदायों का एंगेजमेंट बढ़ेगा, बल्कि रोजगार भी उपलब्ध होगा। डाॅ. सुनीता रेड्डी ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि शेष भारत के लिए हिमालय ‘जीवन’ है। इसलिए अच्छे पर्यावरणीय सेटअप को बनाए रखना जरूरी है। जेएनयू के प्रो. पीके जोशी ने कार्यक्रम का समन्वयन किया।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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