हिमालय बेसिन में हिमाच्छादित क्षेत्र के अपक्षय से वायुताप का संबंध

माध्य वायु ताप के प्रयोग से हिमाच्छादित क्षेत्र (एस.सी.ए) के अपक्षय के मूल्यांकन के लिए एक प्रणाली की रूपरेखा तैयार की गई तथा इसका परीक्षण किया गया। चूँकि हिम का अपक्षय हिमाच्छादित क्षेत्र तथा उसके आसपास की जलवायु की दशाओं का एक संचयी प्रभाव होता है, अतः एक निकटवर्ती स्टेशन के संचयी माध्य ताप (सी.टी.एम) को एस.सी.ए के अपक्षय को दर्शाना चाहिए। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में अवस्थित सतलुज बेसिन (22,305 वर्ग कि.मी.) के लिए अध्ययन किया गया। यहां पर मार्च के आरम्भ में हिम गलन शुरू होता है, अतः सी.टी.एम. के अभिकलन के लिए 01 मार्च को निर्देश तिथि माना गया। एस.सी.ए. तथा सी.टी.एम के बीच संबंध संस्थापित करने के लिए तीन अपक्षरण मौसमों (1987-1989) के आंकड़ों को प्रयोग में लाया गया। यह पाया गया कि एस.सी.ए. का अपक्षय सी.टी.एम (R2>0.98) सहसंबंधित है। पर्वतीय बेसिनों में हिम वितरण के आधार एस.सी.ए. के चरघातांकी घटौती की व्याख्या की जा सकती है।

इस प्रणाली में लुप्त आंकड़ों को आंकलित करने की क्षमता है। बेसिन में गलन मौसम के प्रथम चरण में जब एक बार अपक्षय प्रवृति संस्थापित हो जाती है, तो गलन मौसम की शेष अवधि के लिए सी.टी.एम. आंकड़ों के प्रयोग से एक यथार्थ रूप में एस.सी.ए. को भी अनुकारित किया जा सकता है। ऐसे अनुप्रयोगों से एस.सी.ए. संबंधी सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए अपेक्षित उपग्रह चित्रों की संख्या को कम किया जा सकता है। पूर्वानुमानित वायु तापों के प्रयोग से एस.सी.ए का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। गलन अवधि में एस.सी.ए. के अपक्षय पर मौसम परिवर्तन के प्रभाव यह दर्शाते हैं कि (1-30C) तापमान की वृद्धि पर हिम का गलन तापमान के अनुसार रेखाक्रम के अनुरूप बढ़ता है। 20C तापमान की वृद्धि पर हिम के गलन क्षेत्र के सम्पूर्ण गलन ऋतु के दौरान 5.1 प्रतिशत तक बढ़ता है।

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