भारत की आत्मा गाँवों में बसती है और जब तक गाँवों का उत्थान नहीं होगा, तब तक सही मायने में विकास की कल्पना बेमानी है। इसी सूत्र वाक्य के तहत पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी की अगुवाई में हिमालयन एनवायरनमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन (हेस्को) उत्तराखण्ड समेत हिमालयी राज्यों के गाँवों की तरक्की के लिये मुहिम में जुटा हुआ है। हिमालयी राज्यों के करीब 10 हजार गाँवों में हेस्को की ओर से किये गए विकास कार्यों की बदौलत पाँच लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लाभ मिल रहा है।
यही नहीं, सेना के साथ मिलकर सीमावर्ती इलाकों में ‘शान्ति के लिये तकनीकी पहल’ (टीआईपी) मुहिम के तहत इन क्षेत्रों के उत्थान को मुहिम छेड़ी गई है। घराटों और जल-स्रोतों को पुनर्जीवित करने की दिशा में हेस्को ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
ऐसे अस्तित्व में आया हेस्को
पौड़ी जिले के कोटद्वार निवासी डॉ. अनिल प्रकाश जोशी को पहाड़ के गाँवों की दुर्दशा हर वक्त बेचैन किये रहती थी। वर्ष 1976 में डॉ. जोशी को राजकीय महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति मिली, लेकिन मन में हिमालय और पहाड़ की चिन्ता कौंधती रही। वर्ष 1979 में उन्होंने एक संगठन बनाकर इस दिशा में कार्य करने की ठानी। लम्बे मन्थन के बाद वर्ष 1983 में हेस्को का उदय हुआ। तब डॉ. जोशी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार में प्राध्यापक थे। गाँवों में स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार और विज्ञान व नई तकनीकी विकसित करने की मुहिम में जब सरकारी नौकरी बाधा बनी तो वर्ष 1992 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से जुट गए गाँवों और समाज की सेवा में।
सफर चार दशक का
हेस्को के जरिये न सिर्फ उत्तराखण्ड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल के साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों में गाँवों के उत्थान के लिये मुहिम तेज की गई और 35 साल के इस सफर में एक के बाद एक अनेक उपलब्धियाँ हेस्को के खाते में जुड़ती चली गईं। डॉ. जोशी का मानना है कि स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाकर ही गाँव की आर्थिकी को बढ़ाया जा सकता है।
‘लोकल नीड मीट लोकली’ का नारा
इसी कड़ी में ‘लोकल नीड मीट लोकली’ नारे के तहत हेस्को ने मुहिम को आगे बढ़ाया और करीब 10 हजार गाँवों में पाँच लाख लोग विकास कार्यों का लाभ उठा रहे हैं। इसमें लोक विज्ञान व विज्ञान का समावेश किया गया, जिसके तहत परम्परागत घराटों (एक तरह की पनचक्की) को जीवित किया गया। घराटों को नई तकनीकी से जोड़ा गया, जिससे सम्बन्धित गाँवों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार आया है। गाँवों में पारम्परिक खेती को बढ़ावा दिया गया तो स्वरोजगार के लिहाज से स्थानीय उत्पादों को भी प्रोत्साहित किया गया।
शान्ति के लिये तकनीकी पहल
डॉ. जोशी बताते हैं कि टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव फॉर पीस (शान्ति के लिये तकनीकी पहल) हेस्को की अहम मुहिम है। इसके तहत 11 राज्यों में बॉर्डर एरिया में सेना के साथ मिलकर स्थानीय समुदाय के उत्थान का कार्य किया गया। इस कड़ी में युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया। इससे न सिर्फ ग्रामीणों को लाभ पहुँचा, बल्कि नीति निर्धारकों और अधिकारियों का ध्यान भी गाँवों की तरफ केन्द्रित हुआ। यही नहीं, इस मुहिम के दौरान जल-स्रोतों को पुनर्जीवित करने का कार्य भी प्रारम्भ किया गया और अब तक 17 जल-स्रोत जीवित हो चुके हैं।
जीईपी को सरकार ने भी स्वीकारा
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तर्ज पर सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) के लिये भी डॉ. जोशी ने मुहिम छेड़ी। उनका कहना है कि जीडीपी के साथ जीईपी का भी देश के विकास में समानान्तर उल्लेख होना जरूरी है। डॉ. जोशी की पहल पर इस दिशा में कार्य शुरू हुआ और फिर हिमालय दिवस मनाने की पहल की गई। हेस्को ने स्कूलों के जरिए भी गाँवों को गोद लेने की शुरुआत की, जिसमें देश के नामी स्कूल शामिल हैं।
आज मिलेगा आइआइपीए अवार्ड
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, आइआइपीए) प्रत्येक वर्ष प्रशासनिक सेवा में बेहतर कार्य करने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत करता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव पर वह निजी क्षेत्र की संस्थाओं को भी इस मर्तबा पुरस्कार देने जा रहा है। उत्तराखण्ड की संस्था हिमालयन एनवायरनमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन (हेस्को) के साथ नागालैंड की एलोथिरीज क्रिश्चन सोसाइटी को भी आइआइपीए ने इस पुरस्कार के लिये चुना है।
ग्राम्य विकास
1. सीमान्त क्षेत्रों में सेना के साथ मिलकर ग्रामीण इलाकों के उत्थान को छेड़ी गई है मुहिम
2. करीब 10 हजार गाँवों के पाँच लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हो रहे लाभान्वित
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