इस कागज को बनाने के लिये चाय बागानों की देखभाल एवं रख-रखाव से जुड़े टी एस्टेटों तथा एलीफेंट पार्कों से हाथी की लीद इकट्ठा की जाती है। दिनभर में एक हाथी औसतन करीब 200 किलोग्राम तक लीद उत्पन्न करता है। इस लीद को पुनःचक्रण कर इसे विसंक्रमित यानी रोगाणुमुक्त किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त लुगदी से बिना रेसे वाले हिस्से को अलग कर उसे नरम करने के लिये उसमें रुई के फाहे और टुकड़े, कास्टिक सोडा तथा स्टार्च आदि मिलाया जाता है।
कागज बनने की होड़ में दिन-ब-दिन पेड़ कटते हैं। इससे वन क्षेत्र एवं पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। तभी आजकल कार्यालयों, कम्पनियों आदि द्वारा पेपरलेस कार्य को ही अधिक महत्व दिया जा रहा है। कम्पनियाँ ई-मेल के जरिए अपना वार्षिक प्रतिवेदन आदि भेजती हैं ताकि कागज की बचत हो सके और बदले में पेड़ों की भी रक्षा हो सके। हाथी की लीद से कागज बनाया जाना भी पेड़ों और इस प्रकार पर्यावरण को बचाने की मुहिम का एक हिस्सा है। इसका सामाजिक पक्ष भी है क्योंकि लोगों को रोजगार दिलाने में इसका एक अहम योगदान है।मन्नार, जो केरल का एक बहुत ही लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक इकाई यानी यूनिट द्वारा हाथी की लीद से कागज बनाने के काम को अंजाम दिया जा रहा है। इसे बनाने वाले हैं 37 कामगार जिनमें 16 स्त्रियाँ हैं जो या तो शारीरिक रूप से अपंग या मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। इस प्रकार यह यूनिट पर्यावरण अनुकूल कागज बनाने के साथ-साथ लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रही है। सृष्टि वेलफेयर सेंटर जिसे टाटा बेव्रेजिस का आर्थिक सहयोग प्राप्त है के अन्तर्गत कार्यरत ‘अतुल्य नामक’ यूनिट द्वारा ही इस हस्तनिर्मित यानी हैंडमेड कागज को बनाया जा रहा है।
इस कागज को बनाने के लिये चाय बागानों की देखभाल एवं रख-रखाव से जुड़े टी एस्टेटों तथा एलीफेंट पार्कों से हाथी की लीद इकट्ठा की जाती है। दिनभर में एक हाथी औसतन करीब 200 किलोग्राम तक लीद उत्पन्न करता है। इस लीद को पुनःचक्रण कर इसे विसंक्रमित यानी रोगाणुमुक्त किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त लुगदी से बिना रेसे वाले हिस्से को अलग कर उसे नरम करने के लिये उसमें रुई के फाहे और टुकड़े, कास्टिक सोडा तथा स्टार्च आदि मिलाया जाता है। इस प्रकार प्राप्त लुगदी को कागज की शीटों के रूप में सुखाया जाता है। हाथी की लीद से बना सह हस्तनिर्मित कागज ए-4 आकार के कागज से मोटा तथा उससे करीब चार गुना चौड़ा होता है। इस कागज को बनाने में लगने वाले श्रम को देखते हुए इसका दाम 50 रुपये प्रति शीट रखा गया है जो सुनने में अधिक जरूर लगता है लेकिन पर्यटक खासकर विदेशी पर्यटक इसे हाथों-हाथ खरीदते हैं। महीने भर में अतुल्य यूनिट करीब 500 से 1000 सीट तैयार कर लेती है।
हाथी की लीद के अलावा अतुल्य यूनिट कामगारों को अन्य सामग्रियों, जैसे कि रुई व पुराने कपड़ों, लेमनग्रास, यूकेलिप्टस के पत्तों चाय अपशिष्ट गेंदे की पंखुड़ियों, अनन्नास के पत्तों, प्याज के छिलकों यहाँ तक कि जलकुम्भियों तक से कागज बनाने का प्रशिक्षण देती हैं। हस्तनिर्मित कागज के अलावा ‘अतुल्य यूनिट’ कागज की थैलियों, लिफाफों, लिखने वाले पैडों तथा फाइलों को बनाने का प्रशिक्षण भी देती है। इन्हें स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों से ही बनाया जाता है। इसके लिये ऋतु के अनुसार सामग्री की उलब्धता देखी जाती है और उसी हिसाब से कागज आदि के निर्माण कार्य को अंजाम दिया जाता है।
लेखक परिचय
आभास मुखर्जी
43, देशबंधु सोसाइटी, 15, पटपड़गंज, नई दिल्ली 110 092, मो. - 9873594248; ई-मेल : abhasmukherjee.com
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