प्रदेश में अप्रैल-मई माह के दौरान बिजली का उत्पादन कम हो सकता है। वजह यह है कि इस साल सर्दियों में बारिश और बर्फबारी कम हुई है। इस वजह से नदियों में पानी का प्रवाह कम होने की सम्भावना जताई जा रही है, जिसका विद्युत उत्पादन पर विपरीत असर पड़ सकता है।
प्रदेश की सभी जल विद्युत परियोजनाओं (हाइड्रो प्रोजेक्ट्स) के पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) का अध्ययन किया जायेगा। यह अध्ययन राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश की पालना के तहत किया जायेगा। अध्ययन रिपोर्ट के बाद सरकार नदियों में ई-फ्लो को बरकरार रखने का आदेश जारी कर सकती है।
जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर समय-समय पर यह सवाल उठते रहे हैं कि इनसे नदियों का ई-फ्लो प्रभावित हो रहा है। निर्धारित मात्रा से कम पानी छोड़े जाने की वजह से जलीय जीवों और वनस्पतियों पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है। इसको लेकर एनजीटी ने आदेश दे रखा है कि जल विद्युत परियोजनाओं का ई-फ्लो लीन सीजन का 15 फीसदी पानी होना चाहिए। यानि नदी में लीन सीजन (दिसम्बर से फरवरी) के औसत का 15 फीसदी से कम पानी नदी में नहीं होना चाहिए। एनजीटी के इस आदेश का पालन करने के लिये प्रदेश सरकार ने सभी जल विद्युत परियोजनाओं के ई-फ्लो का अध्ययन कराने का फैसला लिया है। अध्ययन करने की जिम्मेदारी उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम (यूजेवीएनएल) को सौंपी गई है। सूत्रों की मानें तो हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के लिये ई-फ्लो को बरकरार रखने का आदेश सरकार कभी भी जारी कर सकती है। शासन स्तर पर इसकी तैयारी पूरी हो गई है।
नदियों का ई-फ्लो कम होने से प्रभावित होता है जलीय संसार
नदियों का पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) कम होने का सर्वाधिक विपरीत असर जलीय संसार पर पड़ता है। नदियों का जलस्तर एक निश्चित मात्रा से कम होने की स्थिति में जलीय जन्तु और वनस्पतियाँ प्रभावित होती हैं। नदियों का ई-फ्लो कम होने की वजह से कई जलीय जन्तु और वनस्पतियाँ विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई हैं। जबकि नदियों के जल पर सबसे पहला हक इनका ही होता है।
वैसे तो प्रदेश में छोटी-बड़ी नदियों का जाल बिछा हुआ है। जल शक्ति प्रदेश की पहचान है, लेकिन जल सम्पदा से भरपूर राज्य की नदियों का ई-फ्लो कम होना खतरे की घंटी है। जब नदियों में उद्गम के बाद ही पानी का प्रवाह कम होगा तो अपने अन्तिम छोर तक पहुँचते-पहुँचते नदियाँ सूख जायेंगी। नदियों में उद्गम से लेकर समुद्र तक के मार्ग और उसके बाढ़ क्षेत्र के वेटलैंडों, नम इलाकों में सम्पन्न होने वाली इकोलॉजिकल प्रक्रियाओं के लिये पर्यावरणीय प्रवाह की आवश्यकता है। इसलिये उसे किसी भी परिस्थिति में लक्ष्मण रेखा या न्यूनतम स्तर के नीचे नहीं जाना चाहिए। उसका लक्ष्मण रेखा के नीचे उतरना नदी तंत्र के लिये उतना ही घातक है, जितना मनुष्यों के लिये कोमा में चले जाना।
इस कारण प्रवाह की अविरलता और उसकी सुरक्षा को नदी तंत्र के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण माना गया है। ई-फ्लो कम होने की वजह से प्रदेश की कई नदियाँ सूखने के कगार पर पहुँच गई हैं। इस स्थिति ने पर्यावरणविदों की चिन्ता बढ़ा दी है।
ई-फ्लो को लेकर सरकार ने स्थिति साफ की
नदियों के ई-फ्लो को लेकर प्रदेश सरकार ने अपनी स्थिति साफ कर दी है। सरकार ने इसको लेकर निर्देश जारी कर दिया है कि पर्यावरण के मानकों का हर हाल में पालन किया जायेगा। ई-फ्लो के मानकों का कड़ाई से पालन कराया जायेगा। प्रदेश में बिजली के उत्पादन को पर्यावरण के मानकों का पालन करते हुए बढ़ावा दिया जायेगा।
गर्मियों में घट सकता है विद्युत उत्पादन
प्रदेश में अप्रैल-मई माह के दौरान बिजली का उत्पादन कम हो सकता है। वजह यह है कि इस साल सर्दियों में बारिश और बर्फबारी कम हुई है। इस वजह से नदियों में पानी का प्रवाह कम होने की सम्भावना जताई जा रही है, जिसका विद्युत उत्पादन पर विपरीत असर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में बिजली की माँग और आपूर्ति के बीच के अन्तर को पाटने के लिये सेंट्रल पुल से बिजली की खरीद करनी पड़ेगी।
हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के ई-फ्लो का अध्ययन किया जायेगा। प्रदेश में जितने भी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, सभी का अध्ययन किया जायेगा। प्रदेश में जितने भी प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, सभी का अध्ययन किया जायेगा। इसका मकसद नदियों के ई-प्रवाह को बनाये रखना है। हाइड्रो प्रोजेक्ट्स का संचालन पर्यावरण के मानकों के अनुरूप किया जायेगा। -राधिका झा, ऊर्जा सचिव
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