गोबर गैस संयंत्र से शिक्षा

बायोडाइजेस्टर परियोजना
बायोडाइजेस्टर परियोजना

आधारशिला लर्निंग सेंटर में नई तालीम के प्रयोग का एक अनुभव

आधारशिला लर्निंग सेंटर की स्थापना जयश्री और अमित भटनागर ने 1998 में भारत के मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में एक स्थानीय आदिवासी संगठन और आस-पास के समुदायों की सहायता से की थी । स्कूल में अब कक्षा 1 से 8 तक लगभग 125-150 छात्र हैं। ज्यादातर छात्र आस-पास के समुदायों से आते हैं और स्कूल में रहते हैं। स्कूल के संचालन में छात्रों की भूमिका स्कूल की गायों और जैविक खेती की देखभाल से लेकर खाना पकाने और सफाई के कामों तक विस्तृत है। स्कूल परियोजना- आधारित शिक्षा के माध्यम से एक सार्थक सीखने के वातावरण का निर्माण करता है। उनके पाठ्यक्रम के कई पहलुओं को खेतों में काम करने के माध्यम से (जहाँ जीव विज्ञान, भूविज्ञान और गणित से संबंधित विषयवस्तु को आसानी से समझा जा सकता है) सीखा जाता है और प्रत्येक वर्ष छात्र किसी न किसी तरह की सामुदायिक अनुसंधान परियोजना में शामिल होते हैं। जयश्री और अमित दोनों ही नई तालीम समिति द्वारा दिए जाने वाले 'माँ बाबा पुरस्कार' से सम्मानित हैं।

कुछ हफ्ते पहले आधारशिला लर्निंग सेंटर के जीवंत वातावरण में तीन सप्ताह बिताने के लिए मैं वापस लौटा। मैंने इस दौरान मुख्य रूप से कक्षा 6 और 7 के लगभग 20 छात्रों के साथ मिलकर एक छोटे बायोगैस प्लांट (बायोडाइजेस्टर) का निर्माण करने, और वहाँ के कुछ सौर ऊर्जा चालित प्रकाश व्यवस्था के नवीनीकरण का काम किया। ये परियोजनाएं केवल सीखने-सिखाने के बारे में नहीं थीं, बल्कि स्कूल की आर्थिक और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए चुनी गईं थीं। खाना पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी खरीदने में होने वाले नियमित खर्च और लकड़ी की उपलब्धता की अनिश्चितता ने बायोगैस परियोजना को लागू करने के लिए प्रेरित किया था । प्रकाश परियोजना की आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि मुख्य ग्रिड से स्कूल की विद्युत आपूर्ति सीमित और अनिश्चित थी। तीन सप्ताह के दौरान छात्रों ने यह सीख लिया कि एक बायोडाइजेस्टर को कैसे बनाया और संचालित किया जाता है। इसके साथ ही उन्होंने बिजली और सौर ऊर्जा के बारे में अपनी जानकारी को और गहन करने के साथ-साथ अपने अंग्रेजी, गणित और विज्ञान संबंधी कौशलों को भी बेहतर बनाया।

https://schoolreformed.wordpress.com/category/models-from-india/

इस लेख को डॉ. क्रिसटियन कैसिलस के 2013 में लिखे गए एक लेख से लिया गया है, जिन्होंने 2012 में अधारशिला लर्निंग सेंटर में वहाँ के छात्रों की मदद से एक बायोगैस प्लांट (बायोडाइज़ेस्टर ) स्थापित करने का काम किया था। स्थापना के तीन साल बाद तक बायोगैस संयंत्र स्कूल की रसोई में दूध को गर्म करने और दाल पकाने के लिए ईंधन उपलब्ध कराने के साथ ही अच्छी गुणवत्ता वाली खाद प्रदान करने और बच्चों के शरीर व दिमाग को व्यस्त रखने का उपयोगी काम भी करता रहा।

बायोडाइजेस्टर परियोजना

आधारशिला में लगभग 125-150 छात्र हैं, और यह स्कूल एक बंजर स्थान जहाँ वनों को भारी मात्रा में काटा जा चुका है वहाँ स्थित है। वर्तमान में स्कूल पास के शहर से जलाऊ लकड़ी खरीदता है और यहाँ अधिकांश भोजन लकड़ी के चूल्हों पर पकाया जाता है। हमारे बायोडाइज़ेस्टर में एक बड़ा, पूर्णतः बंद टैंक शामिल था जिसमें पानी और कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण को रखा जा सकता था। टैंक के अंदर, अवायवीय जीवाणु उस मिश्रण का विघटन करते हैं और मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड (बायोगैस) के मिश्रण का निर्माण करते हैं, जिसे खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

बायोडाइज़ेस्टर के निर्माण में केवल डेढ़ दिन का समय लगा, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान कई छोटी परियोजनाएं सामने आईं। बच्चों ने अपने दैनिक भोजन पकाने के लिए काम में आने वाली जलाऊ लकड़ी की मात्रा को निर्धारित करने में कई दिन लगाए, और स्कूल के परिसर में जैविक अपशिष्ट, कूड़े के निपटारे व निकासी को चिह्नित किया।

आधारशिला में 'कूड़ा' बहुत कठिनाई से दिखाई देता है। जूठा व बचा हुआ भोजन केंद्र की तीन गायों को दे दिया जाता है, जिनका गोबर स्कूल के जैविक खेत में खाद के रूप में काम आता है। विभिन्न जैव ईंधन स्रोतों से गैस उत्पादन के बारे में हमें जो भी चार्ट और तालिकाएं मिलीं, उनमें से कोई भी स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री और क्षेत्र के गर्म तापमान के साथ ठीक-ठीक मेल नहीं खाती थीं। इसलिए यह निर्धारित करने के लिए हमें एक छोटा-सा प्रयोग करना पड़ा कि किस तरह के अपशिष्टों का मिश्रण बायोगैस का अधिक उत्पादन करेगा। बायोगैस उत्पादन के दर का मोटा अनुमान लगाने के लिए बच्चों ने सावधानीपूर्वक तौले गए जैव ईंधन के साथ सात मिनी- डाइजेटर बनाए। हमने समीक्षा की कि मात्रा कैसे मापी जाए, माप और अवलोकनों को रिकॉर्ड करने के महत्व पर जोर दिया।

बायोगैस और सौर परियोजनाओं को बच्चों के पाठ्यक्रम के साथ समायोजित करना आसान था। उन्होंने अंग्रेजी के नए शब्दों की एक लंबी सूची तैयार की, और बायो गैस और सौर ऊर्जा के बारे में पूरे वाक्य में सवालों का जवाब देने का अभ्यास किया। बड़े छात्रों ने सीखा कि टैंक के अंदर गैस का अनुमान लगाने के लिए एक सिलेंडर के आयतन को कैसे मापा जाए और एक अज्ञात चर के लिए किसी समीकरण को किस तरह से हल किया जाए, जबकि छोटे बच्चों ने दशमलव के साथ बीजगणित का अभ्यास किया।

काम की पद्धति

बायोगैस और सौर परियोजनाओं दोनों के दौरान, मेरे पास आमतौर पर तीन से दस छात्रों का एक समूह होता था जो मेरे साथ जुड़कर काम करते थे। यह ध्यान रखना दिलचस्प था कि कौन से छात्र थे जो लगातार शामिल रहते थे, कौन से केवल कुछ समय के लिए दिखाई देंगे, और कौन लोग हाथ से काम करने के अवसर पर पल्ला झाड़ लेंगे। सौर उपकरणों को लगाने के दौरान हमने साथ की दीवारों पर उस सिस्टम के विवरण को चित्रित करने का निर्णय लिया। अचानक ऐसे छात्र मदद करने के लिए आगे आने लगे जिन्होंने पहले दिलचस्पी नहीं ली थी। यह दिखाता है कि ऐसी परियोजना के विभिन्न घटक अलग-अलग बच्चों की उत्सुकता को किस तरह से जागृत कर सकते हैं ( किस तरह से अलग-अलग बच्चों के ध्यान को आकर्षित कर सकते हैं) ।

इस बात ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया कि सामग्री और विषयवस्तु की बजाय खुद करने की प्रक्रिया ने छात्रों को अधिक आकर्षित किया। कुछ छोटे बच्चे जिनके पास अंग्रेजी और विज्ञान की बुनियादी जानकारी थी, और साथ ही एक बच्चा जो गणित और विज्ञान में बहुत अच्छा था, उन्होंने बिना किसी मदद के अपने स्वयं के मिनी-बायोडाइजेस्टर का निर्माण किया। उनके व्यक्तिगत प्रयोगों को पास के पेड़ों के नीचे देखने के बाद मैंने सोचा कि क्या समूह में होने वाला काम बहुत तेज़ या बहुत धीमा था या उसमें होने वाली भागीदारी इन बच्चों को अपने तरीके से सीखने का पर्याप्त मौका नहीं दे पा रही थी।

हम किस तरह से सीखना पसंद करते हैं उसके बारे में सभी के अंदर स्वाभाविक और अनुकूलित दोनों तरह के रुझान होते हैं। प्रधान शिक्षक अपने अवलोकन के आधार पर सीखने को लेकर कुछ बच्चों की प्रवृत्तियों को बता पा रहे थे। जैसे 'यह बच्चा बौद्धिक कार्यों में अधिक रुचि रखता है, लेकिन हाथ से करने वाले काम में इसके योगदान देने की बहुत कम संभावना है', या 'लगातार मार्गदर्शन ना देने पर उसका ध्यान बहुत जल्दी भटक जाता है।' विविध परियोजनाओं में भागीदारी, विशेष रूप से ऐसी जिनकी रूपरेखा उन्हें खुद बनानी हो, नन्हें छात्रों में अपनी रुचि को पहचानने और उन्हें विकसित करने की संभावनाएं पैदा करती है।

मार्गदर्शक के लिए मार्गदर्शन का क्या अर्थ होना चाहिए?

पिछले कई हफ्तों ने मुझे अपनी खुद की सीखने की प्रवृत्ति का, साथ ही साथ सिखाने की मेरी चाह को पुनः जाँचने का मौका दिया। अनुभव से सीखना मुझे खुद बहुत प्रेरित करता है। मुझे सीखना अच्छा लगता है,और मैं स्वयं करके सबसे बेहतर सीख पाता हूँ। लगभग तीन सालों से मैं बायोडायजिस्ट्स के बारे में पढ़ता और उसकी रूपरेखा की गणना करता रहा हूँ, मगर मुझे खुद से एक बनाकर देखने का मौका नहीं मिला था।

बायोगैस टैंक के बनने को देखने का रोमांच, गैस ट्यूब में पानी के संघनन को देखना, और अपने हाथों से गोबर को मिलाकर टैंक में डालने ने अचानक ही मेरे किताबी ज्ञान में कई नई जानकारियों व बारीकियों को जोड़कर उसे जीवंत बना दिया। इन विवरणों को केवल पढ़ने या चर्चा के माध्यम से नहीं समझा जा सकता था। इसके अलावा, कई जिज्ञासु मस्तिष्कों के साथ सीखने की प्रक्रिया ने मेरी अपनी समझ को बढ़ाया। अब जब भी बच्चे या शिक्षक मुझसे कोई सवाल पूछेंगे, मैं आमतौर पर एक उपयुक्त उत्तर देने में सक्षम रहूंगा, लेकिन तब मैं रुकूंगा और स्वीकार करूंगा कि, 'मैंने कभी ऐसा किया नहीं है इसलिए वास्तव में मैं नहीं जानता हूं कि हम इसकी जाँच कैसे कर सकते हैं?

मुझे जल्दी ही मार्गदर्शन और कक्षा-कक्ष शिक्षण के बीच के बुनियादी अंतर का भी पता चल गया। सीखने के इच्छुक छात्रों की सीमित संख्या के साथ काम करना संतोष देने वाला और मज़ेदार होता है। रुचि ना रखने वाले लोगों के एक बड़े समूह को सीखने के लिए प्रेरित करने के प्रयास की बात दूसरी होती है। प्रभावी कक्षा शिक्षक आमतौर पर अच्छे कक्षा प्रबंधक और सिखाने वाले दोनों होते हैं। जब मुझे सभी बच्चों को सक्रिय रूप से सीखने में शामिल करने का काम सौंपा गया था (उदाहरण के लिए जब हमने मिनी-बायोडाइजेस्टर का निर्माण किया था), तब मैंने एक स्पष्ट आंतरिक संघर्ष को महसूस किया। मेरी हताशा इस बात से पैदा हो रही थी कि मैं अपने तय किए हुए काम में बच्चों के रुचि लेने की अपेक्षा कर रहा था, और फिर मुझे अपने दोहरे व्यवहार के कारण खुद पर गुस्सा आ रहा था। जब मैं खुद की जिज्ञासा से प्रेरित होकर काम करना पसंद करता हूँ, तो मुझे बच्चों को जबरदस्ती सिखाने की कोशिश क्यों करनी चाहिए?

परियोजना- आधारित सीखना और मार्गदर्शन

शिक्षा के कक्षा शिक्षण पर आधारित मॉडल का एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि उसमें अनुभव से सीखने के अवसरों का अभाव होता है। एक परंपरागत पाठ्यक्रम हमें शब्दों, संख्याओं और चित्रों का उपयोग करके एक सरलतम वर्णन के माध्यम से वास्तविकता को समझने की कोशिश करने के लिए प्रशिक्षित करता है। हमारे जटिल सामाजिक और प्राकृतिक परिवेश में छोटी समस्याओं के उभरने के बाद ही गहन और महत्वपूर्ण बारीकियाँ हमारे सामने आ पाती हैं। हालांकि, अनुभवजन्य और अमूर्त शिक्षा दोनों ही महत्वपूर्ण और एक-दूसरे की पूरक हैं। एक परियोजना-आधारित पाठ्यक्रम उन दोनों पर जोर देने का अवसर प्रदान करता है।

मार्गदर्शन को शैक्षिक कौशल निर्माण के साथ जोड़ने के दो अतिरिक्त लाभ हैं। एक तो यह बच्चों में अपने पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनाने की क्षमता पैदा करता है, और दूसरा मेरे जैसे उत्साही, जो कि मानकीकृत पाठ्यक्रम और कक्षा-कक्ष प्रबंधन से ऊब जाते हैं, उसके लिए नए दरवाजे खोलता है ताकि हम अपनी सीखने की यात्रा को युवाओं के साथ साझा कर सकें।

जब मैं एक बस में सौर उपकरणों को लेकर आधारशिला वापस आ रहा था तो दो लड़कों ने मुझसे बातचीत की। यह पता चला कि वे दोनों एक स्थानीय कॉलेज में अंतिम वर्ष के इंजीनियरिंग के छात्र थे, और उनमें से एक अपनी अंतिम परियोजना के लिए एक मिनी- बायोडाइजेस्टर बनाने वाला था। जब उसे पता चला कि मैं इसी पर काम कर रहा हूँ, तो उसने मुझ पर सवालों की बौछार कर दी। मैं यह सोचकर मुस्कुराए बिना नहीं रह सका कि गाँव के 12 साल के बच्चों का समूह उनमें से अधिकांश सवालों का जवाब दे पाने में सक्षम है। मुझे यह जानकर अच्छा लग रहा था कि जल्दी ही यह इंजीनियर हाथों से काम करके अपने अनुभवों से कुछ सीख रहा होगा ।

लेखक परिचय : वर्तमान में सांता फे, न्यू मैक्सिको में रहते हैं जहाँ जलवायु नीति और इक्विटी के मुद्दों पर स्थानीय सरकारों के साथ काम करते हैं और स्कूलों में बेघरों के आश्रयों की सुविधा उपलब्ध करवाते हैं।

संपर्क: cecasillas@gmail.com

स्रोत-शिक्षा विमर्श मार्च-अप्रैल, 2021 

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