घायल पर्यावरण को बचाने की गुहार

घायल पर्यावरण को बचाने की गुहार
घायल पर्यावरण को बचाने की गुहार

प्रकृति पंच तत्वों के बिना अधूरी है पंच तत्व अर्थात् पानी, हवा, नभ, अग्नि और भूमि ये तत्व ही सृष्टि का संचालन करते हैं। इनके बिना प्रकृति अधूरी है। इस विश्व में खुशहाल देश वही हुए हैं जहां पानी, हवा और भूमि का संरक्षण किया जाता है। हमारा देश भारत वनों, वन्यजीवों एवं विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के लिए प्रसिद्ध है। समस्त विश्व में अत्यंत ही अदभुत तथा आकर्षक वन्यजीव पाए जाते हैं। हमारे देश में भी वन्यजीवों की भांति-भांति की और विचित्र प्रजातियां पाई जाती हैं। इनके विषय में ज्ञान प्राप्त करना केवल कौतूहल की दृष्टि से ही जरूरी नहीं है अपितु यह बहुत काफी दिल बहलाने वाला और मनोरंजक भी हैं।

पृथ्वी पर जीवन कैसे पनपा, उसका विकास और इसमें मानव का क्या स्थान है? प्राचीन काल में अनेक भीमकाय जीव (डायना सोर) विलुप्त क्यों हो गए क्योंकि वह प्रकृति के अनुकूल जीव नहीं था इसलिए अंतरिक्ष से आये उल्का प्रपात ने उनको नष्ट कर दिया और इस पैमाने को मानदंड बनाया जाए तो इस दृष्टि से क्या अनेक वर्तमान वन्यजीवों के लोप होने की आशंका है। क्या मानव को भी कहीं प्रकृति नकार न दें? यदि वन्य जीव भू-मंडल पर न रहें, तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तेजी से बढ़ती हुई आबादी की प्रतिक्रिया वन्य जीवों पर क्या हो सकती हैं आदि प्रश्न गहन चिंतन और अध्ययन के हैं।

साथ ही यह जानना भी आवश्यक है कि सृष्टि- रचना चक्र में पर्यावरण का क्या महत्व है। पहले पेड़ या गतिशील प्राणी? फिर सृष्टि रचना की क्रिया में हर प्राणी, वनस्पति का एक निर्धारित स्थानरहा है। इस सृष्टि-रचना में मनुष्य का पदार्पण कब हुआ? प्रकृति के इस चक्र में विभिन्न जीव-जंतुओं में क्या कोई समानता है? वैज्ञानिक दृष्टि से उसको कैसे समझा जाए, जिससे हमें पता चले कि आखिर किसी प्रजाति के लुप्त हो जाने से मानव समाज और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि आखिर हम भी एक प्रजाति ही हैं।
आज पर्यावरण गंभीर रूप से घायल है उसे उपचार की जरूरत है, आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता को पर्यावरण के बारे में जागरूक करने की। सबसे पहले खुद पर पड़ रहे पर्यावरण के प्रभाव को जानना आवश्यक है। विभिन्न प्रकार के वायु प्रदूषक पर्यावरण को दुष्प्रभावित करते हैं। बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु कृषि की पैदावार बढ़ाने हेतु विषाक्त कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है। यह समस्या दिनोदिन गम्भीर रूप लेती जा रही है। इस समस्या से निपटने के लिए आज आवश्यकता है एक ऐसे अभियान की जिसमें हम सब स्वप्रेरणा से सक्रिय भागीदारी निभाएँ। इसमें हर कोई नेतृत्व करेगा क्योंकि जिस पर्यावरण के लिए यह अभियान है उस पर सबका समान अधिकार है। आइए, हम सब मिलकर इस अभियान में अपने आप को जोड़ें। इसके लिए आपको कहीं जाने या किसी रैली में भाग लेने की जरूरत नहीं, केवल अपने आस-पड़ोस के पर्यावरण का अपने घर जैसा ख्याल रखें जैसे कि घर के आसपास पौधारोपण करें। इससे आप - गरमी, भू-क्षरण, धूल इत्यादि से बचाव कर सकते हैं, पक्षियों को बसेरा दे सकते हैं और फूल वाले पौधों से अनेक कीट-पतंगों को आश्रय एवं भोजन दे सकते हैं।

शहरी पर्यावरण में रहने वाले पशु-पक्षियों जैसे गोरैया, कबूतर, कौवे, मोर, बंदर, गाय, कुत्ते आदि के प्रति सहानुभूति रखें व आवश्यकता पड़ने पर दाना-पानी या चारा उपलब्ध कराएँ। मगर यह ध्यान रहे कि ऐसा उनसे सम्पर्क में आए बिना करना अच्छा रहेगा, क्योंकि अगर उन्हें मनुष्य की संगत की आदत पड़ गई तो आगे चलकर उनके लिए घातक हो सकती है।

भारत की संख्या दिन दूनी रात चौगनी हो रही है, जिसके कारण भी पर्यावरण चोटिल हो रहा है, अब मैं इसके अधिक विस्तार में नहीं जाना चाहूंगा इसके लिए हमारी सरकार को कड़वे फैसले लेने पड़ेंगे जो जनसंख्या आजादी के समय थी, वह अनुपात लाने में पूरी 21वीं सदी लगेगी और यह कार्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी आने वाली सरकारों को करना होगा, किसी भी प्रकार के धर्म को पर्यावरण के मामले के आड़े नहीं आना चाहिए और जनसंख्या के मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा, कड़े कानूनों की आवश्यकता है, एक नई जनसंख्या नीति भारत को बनानी होगी अपितु समस्त विकासशील देशों को भी अपनानी होगी और वे देश जनसंख्या के मामले में भारत का अनुसरण करें क्योंकि इस पृथ्वी नामक ग्रह की अपनी कुछ सीमाएं हैं अतः संतुलन आवश्यक है, यह सही है कि नश्वरता अनिवार्य है परंतु जीवन भी अनंत है अतः संतुलन अखिल ब्रह्मांड एवं असंख्य आकाश गंगाओं में भी होगा तभी तो जीवन कायम है।

आज घायल पर्यावरण मानवता से अपने को बचाने की गुहार लगा रहा है और शायद यह बयां कर रहा है कि पर्यावरण पर बड़ी-बड़ी बातें करने से पहले हमें कुछ आदतें अपनानी होंगी व उनका पालन करना होगा, क्योंकि स्थितियाँ बदलने की सबसे अच्छी शुरुआत स्वयं से होती है। हमें हवा में घुलते विष और रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोकना होगा। अगर हम कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेंगे तो भारत की विशाल जनसंख्या का भरण-पोषण संभव नहीं हो पाएगा। साथ ही अधिक जनसंख्या अधिक मात्रा में ठोस अपशिष्ट पदार्थ अधिक मात्रा में जलीय अपशिष्ट पदार्थ छोडते हैं। अतः आज हमें कीटनाशकों के विष को कम करना होगा, इस विषय पर अनुसंधान की आवश्यकता है ताकि हम मृदा प्रदूषण पर काबू पा सकें ताकि आहार की स्वच्छता एवं पोषकता बनी रहे। सौर ऊर्जा, अपनाकर हम पर्यावरण को क्षति से बचाते हैं। उज्ज्वल भविष्य हेतु अधिक वृक्ष लगाएं ताकि हवा में घुलते विष को रोक सके एवं साथ ही वन्यजीवों एवं वास्तविक संपदा अर्थात प्रकृति को बचाना होगा। कहते हैं लहराते वृक्ष राष्ट्र की प्रगति दर्शाते हैं। एक बार पुनः यह दुहराते हुए कि हम विकास करें लेकिन ऐसा विकास नहीं जो विनाश करे ऐसा विकास जो पर्यावरण की रक्षा कर सके। आइये हम प्रण लेते हैं कि न केवल भारत वर्ष ही अपितु समस्त विश्व के पर्यावरण की रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व है। क्योंकि मुनष्य ही पर्यावरण को आज इस कगार पर पहुंचाने वाला है।

 

स्रोत- हिंदी पर्यावरण पत्रिका, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय

Path Alias

/articles/ghayal-paryavaran-ko-bachaane-ki-guhar

Post By: Shivendra
×