सारांश
प्राकृतिक जल संसाधनों के संरक्षण की अपेक्षा उनके लगातार और अत्यधिक दोहन से भूजल स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है जिसको दूर करने के लिए विभिन्न माध्यम से जल संरक्षण किया जाता है। परन्तु सबसे अधिक चिंता भूजल की तेजी से घटती गुणवत्ता को लेकर है जिसका मुख्य कारण उत्सर्जित पदार्थों को भूमि की गहरी पतों में विसर्जित करना, कीटनाशकों आदि का अत्यधिक उपयोग, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा कारखानों से निकले हानिकारक द्रव्यों को पुर्नचक्रित करने के स्थान पर सीधे जलाशयों में विसर्जित करना आदि हैं। इनके कारण भूजल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा खतरनाक स्तर तक कम होने के साथ-साथ उसमें आवश्यक खनिजों की समाप्ति, हानिकारक एवं अधिक अणुभार वाले तत्वों जैसे लैंड क्रोमियम, आयरन आदि की सामान्य से कई गुणा अधिक मात्रा का पाया जाना प्रमुख है। इस कारण से पेयजल हेतु भूजल पर निर्भर रहने वाली एक बड़ी जनसंख्या त्वचा एवं आंत के कैंसर से पीड़ित हो रही है। टाटा मेमोरियल सेंटर, मुम्बई में एक निरीक्षण के दौरान चर्चा हुई कि इस दिशा में जन जागरूकता तथा प्रदूषित भूजल को कैंसर के कारण के रूप में स्थापित कर इससे बचाव के तरीकों पर विचार करना आवश्यक है। जल की गुणवत्ता आने वाली पीढ़ियों के लिए एक चुनौती के रूप में उभर रही है जिस पर पैनी दृष्टि और समुचित राजनीतिक एवं सामाजिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हरी नीली शैवाल, जिनका उपयोग जैवउर्वरक के रूप में किया जाता है, भूजल की गुणवत्ता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं रासायनिक खादों व विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों के स्थान पर हरी नीली शैवालों से बने उर्वरक पूर्ण रूप से सुरक्षित, बेहतर पैदावार देने वाले तथा भूजल को प्रदूषण से रोकने वाले अवयव हैं जिनके उपयोग पर बल देना आवश्यक है।
Abstract
Ground water is being affected adversly due to poor water conservation and water extraction from soil. In order to restore ground water of this natural resource water conservation is practiced. Greatest concem is the deteorating quality of ground water which is caused due to the discharge of fecal matter, pesticides, factory effluents etc. rather than their recycling & reuse. Due to these practices, dissolved oxygen in water bodies is substantially reduce, essential minerals are lost, heavy metals like, lead chromium, iron mercury etc are increased multiple times. Due to these contaminants a larger human population which depends in soil water for drinking suffer from colorectal cancer. During visit to Tata Memorial Centre in Mumbai, it was discussed that more awareness is needed about water pollution and its impact on health. More emphasis be given on cancer causing contents of pollutes water and how to combat it because deteriorating quality of ground water is a challenge to the new generation and intense monitoring on political and social level is mandatory. Blue green algae, which is being used largely as a biofertilizer can be possible solution to improve soil water quality. This biofertilizer may completely replace the chemical fertilizers and pesticides as the biofertilizers may improve the yield and can prevent soil water pollution.
प्रस्तावना
भूमिगत जल का मुख्य स्रोत हाइड्रोलॉजिकल चक के फलस्वरूप हुए संघनन एवं वर्षा के जल को माना जाता है जो मिट्टी की विभिन्न पतों से छनकर पृथ्वी के विभिन्न जल स्तरों पर जमा हो जाता है। इस प्रकार मिट्टी की विभिन्न पर्ने जिनको मृदा प्रोफाइल भी कहा जाता है, एक प्रकार की छलनी या फिल्टर की तरह कार्य करती हैं।इस प्रक्रिया में अनेक प्रकार के हानिकारक तत्व पानी से अलग हो जाते हैं और शुद्ध पेयजल पृथ्वी की निचली सतह पर इकट्ठा हो जाता है। खनिज पदार्थों का स्रोत पर्वत श्रृंखलाएं होती हैं जो पानी में खनिज लवणों का समावेश करती हैं।
इस पेयजल का अत्यधिक दोहन तो एक समस्या है किन्तु औद्योगिक अपशिष्टों का रिसाव, शहरीकरण के कारण जल में प्रवाहित किए जा रहे अपशिष्ट, खेती में अत्यधिक मात्रा में प्रयुक्त हो रहे कीटनाशकों का भूजल में समाहित होना तथा कई नवनिर्मित कालोनियों का मानव अपशिष्ट सीधे भूजल में प्रवाहित किए जाने से परिस्थितियां भयावह रूप ले चुकी हैं। मानव ने अपने आसपास के जल स्रोतों को गंदे नालों में परिवर्तित कर दिया है और घरेलू अपशिष्टों को उसमें प्रवाहित कर उसको यूट्राफिकेटेड तालाब में परिवर्तित कर दिया है। इसी प्रदूषित जल के प्रयोग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांव कैंसर, सांस एवं त्वचा की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।
परिणाम एवं विवेचना
अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनीवर्सिटी में चूहों पर किए गये अनुसंधान में पाया गया कि एक कीटनाशक मिश्रित रासायनिक उर्वरक चूहों के रोग प्रतिरोधक तंत्र, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों तथा तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है जिससे वह चूहे विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।
सामान्यतया फसलों की अच्छी पैदावार के लिए किसान यूरिया (NH, Co-NH_) का प्रयोग करते हैं जो पानी में विघटित होकर अमोनिया का उत्पादन करता है, अम्लीय वर्षा का कारण बनता है तथा डीनाइट्रीफिकेशन द्वारा बनी नाइट्रस ऑक्साइड से ओजोन परत का क्षरण करता है।
कृषि के क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से न केवल मृदा प्रदूषित हो रही है वरन भूमिगत जल के प्रयोग से गैस्ट्रिक कैंसर, घेंघा (गोइटर), जन्तजात कुरूपता, शारीरिक विकृतियां, अण्डकोश कैंसर, आमाशय एवं बड़ी आंत का कैंसर सरीखी जानलेवा बीमारियां बड़ी आबादी को संक्रमित कर रही हैं। भूजल में पाया जाने वाला सीसा, क्रोमियम, मरकरी, कॉपर, मैग्नीज जैसे घातक तत्व आंतों में पाये जाने वाले ई. कोलाई नामक सहजीवी जीवाणु को नष्ट कर कैंसर की शुरूआत करते हैं।
उर्वरकों में अत्यधिक नाइट्रोजन होने के कारण सांस, हृदय तथा अनेक प्रकार के कैंसर हो सकते हैं। नाइट्रोजन की अधिक सांद्रता से कारक (बैक्टेरिया) जनित रोगों की कार्यिकी प्रभावित होती है जैसे बैस्ट नाइल विषाणु, मलेरिया, कालरा आदि रासायनिक उर्वरकों से भूजल को प्रदूषित करने के कारण मैट हीमोग्लोबीनीमिया अथवा ब्ल्यू बेबी सिन्ड्रोम नामक घातक रोग होता है जो कि शिशुओं में अत्यधिक नाइट्रोजन युक्त जल के कारण होता है। इसमें शिशु के रक्त में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है जिससे त्वचा का रंग नीला या सिलेटी हो जाता है। कोमा में पहुंचे ऐसे शिशु को वैन्टीलेटर पर रखना पड़ता है।
अत्यधिक यूरिया से प्रदूषित भूजल श्मेरिन डेड जोन बनाने का कार्य करता है। जल में घुलनशील नाइट्रेट पौधों की वृद्धि के साथ-साथ काई की अनियंत्रित वृद्धि जिसे एल्गल ब्लूम भी कहते हैं को बढ़ावा देते हैं। शैवालों या काई की मात्रा बेहद अधिक होने से इनका अपघटन होता है जिसके फलस्वरूप मृत शैवाल जलाशयों की तलहटी में जमा होकर कार्बोनिक पदार्थों को बढ़ाने तथा ऑक्सीजन की कमी लाने का काम करते हैं। इन यूट्राफिकेटेड जलाशयों में मछलियाँ, जलीय जीव जन्तु एवं क्रस्टेशियन समाप्त होने लगते हैं और व्यापक जलीय असंतुलन का कारण बनते हैं।
ऐसे नाइट्रोजन अथवा नाइट्रेट से प्रदूषित जलशयों के पानी से अनेक प्रकार के कैंसर, असामान्य प्रजनन, मधुमेह, न्यूरल ट्यूब रोग, थायराइड जैसी समस्यायें उत्पन्न होती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांवों में प्रदूषित जल के कारण अनेक परिवार पूरी तरह से कैंसर की चपेट मे आ रहे हैं। भूजल की इतनी भयावह स्थिति पर वैज्ञानिकों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को राष्ट्रीय स्तर पर सुदृढ़ नीति बनानी होगी। अन्यथा जल का बढ़ता प्रदूषण मानव सभ्यता के लिए दुरूह स्थिति पैदा कर देगा।
संदर्भ
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लेखक परिचय : सुबोध भटनागर, मुक्ता गंगवार एवं रिजवाना तबस्सुम जैवप्रौद्योगिकी संभाग, स.व.प. कृषि एवं प्री.वि.वि., मेरठ 250001 (उ.प्र.) , वनस्पति विज्ञान विभाग, बरेली कालेज, बरेली 243 001 (उ.प्र.), बायोइन्फॉर्मेटिक्स प्रयोगशाला, आई.बी.आर.आई., इज्जतनगर, बरेली 243 001 (उ.प्र.)
स्रोत :- भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका वर्ष 24 अंक 2 दिसम्बर 2016 पू. 205-206
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