भारतीय वन सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में कम घने वनों का क्षेत्रफल पिछले कुछ वर्षों से घटता जा रहा है। कम घने वनों का घटता क्षेत्रफल आबादी एरिया के आस-पास है। ऐसे में चौंकाने वाला तथ्य यह है कि बीते वर्षों में वनोपज का दोहन करने वाले उत्तराखंड वन विकास निगम की आमदनी लगातार बढ़ रही है। अपनी स्थापना के पहले वर्ष में जहाँ यूएफडीसी को 398.75 लाख रुपये की आमदनी हुई थी। वहीं वर्ष 2016-17 में यह आँकड़ा बढ़कर पाँच गुना से अधिक 2031.064 लाख पहुँच गया। हालाँकि सघन वनों में इस रिपोर्ट की बढ़ोत्तरी हुई है। चर्चा यह है कि कम घने वनों का घटता क्षेत्रफल कहीं आमदनी बढ़ाने की सोची समझी साजिश तो नहीं।
वन विभाग देता है काम
वन विकास निगम पूरी तरह से वन विभाग द्वारा उपलब्ध करवाये काम पर निर्भर रहता है। वन विभाग निर्माण कार्यों में आड़े आ रहे और पुराने या सूख चुके पेड़ों को ही निगम को सौंपता है। इन्हें टिम्बर और जलौनी लकड़ी के रूप में घन मीटर के हिसाब दिया जाता है। भारतीय वन सर्वेक्षण भी जंगलों की कमी के लिये विकास कार्यों को कारण मानता है।
दो बार होती है पैमाइश
वन विकास निगम के अधिकारी कहते हैं कि निगम को प्रति घनमीटर के हिसाब से पेड़ आवंटित किये जाते हैं। पेड़ काटने के बाद वन विभाग में फिर से पैमाइश करवानी पड़ती है, ऐसे में आवंटित से ज्यादा पेड़ों को काटना किसी भी हालत में सम्भव नहीं है। हालाँकि अधिकारी यह भी कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्र में पेड़ों की टहनियाँ वहीं छोड़ दी जाती हैं।
उत्तराखंड में कम घने जंगलों के क्षेत्रफल में कमी | |
2500 | नैनीताल |
2600 | उत्तरकाशी |
1500 | चमोली |
1400 | यूएसनगर |
1100 | चम्पावत |
1000 | बागेश्वर |
500 | पिथौरागढ़ |
300 | हरिद्वार |
आँकड़े हेक्टेयर में | |
वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा उत्तराखंड के वनों के क्षेत्रफल की वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट में सबसे ज्यादा उत्तरकाशी क्षेत्र में वनों का क्षेत्रफल कम हुआ है। इसके बाद नैनीताल, चमोली, यूएसनगर, चम्पावत, बागेश्वर, पिथौरागढ़ में वन क्षेत्र में कमी आई है। उत्तराखंड में सबसे कम हरिद्वार जिले में वन क्षेत्र कम हुआ है। |
विकास कार्य बड़ी वजह
वन विभाग और वन विकास निगम के अधिकारियों का कहना है कि कम घने वनों का क्षेत्रफल कम होने की सबसे बड़ी वजह विकास है। हालाँकि पेड़ काटने के सख्त नियम हैं, लेकिन पेड़ों के लिये विकास कार्यों को नहीं रोका जा सकता। आज लगभग सभी गाँव सड़क मार्ग से जुड़ गये हैं। एक किमी सड़क निर्माण में औसतन 150 पेड़ काटने पड़ते हैं।
साल-दर-साल बढ़ रही वन विकास निगम की आमदनी | |
398.757 | वर्ष 2001-02 |
36.800 | वर्ष 2002-03 |
331.084 | वर्ष 2003-04 |
2346.676 | वर्ष 2004-05 |
4628.068 | वर्ष 2005-06 |
5546.575 | वर्ष 2006-07 |
8534.186 | वर्ष 2007-08 |
3119.026 | वर्ष 2008-09 |
3791.719 | वर्ष 2009-10 |
3686.273 | वर्ष 2010-11 |
3463.743 | वर्ष 2011-12 |
2878.246 | वर्ष 2012-13 |
5683.076 | वर्ष 2013-14 |
3815.280 | वर्ष 2014-15 |
1447.440 | वर्ष 2015-16 |
2031.064 | वर्ष 2016-17 |
आँकड़े लाख रुपये में |
साल-देवदार के पेड़ सबसे महँगे
उत्तराखंड के वनों में साल और देवदार की लकड़ी से वन विकास निगम सबसे ज्यादा लाभ अर्जित करता है, जबकि चीड़ के पेड़ों से निगम को ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती। निगम के अधिकारी बताते हैं कि उनके काम केवल पेड़ों का मोटा हिस्सा ही आता है। ट्रांसपोर्ट के खर्च के कारण टहनियों को जंगलों में ही छोड़ दिया जाता है।
वन विभाग टिम्बर और जलौनी लकड़ी घन मीटर के हिसाब से देता है। इसके माप में पेड़ों की टहनियाँ भी शामिल होती हैं। मैदानी क्षेत्रों में तो पेड़ों की टहनियाँ भी उठा ली जाती हैं, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में टहनियों को छोड़ दिया जाता है, क्योंकि उनका ट्रांसपोर्टेशन इनकी कीमत से ज्यादा पड़ जाता है। - टीएसटी लेप्चा, प्रबंध निदेशक, उत्तराखण्ड वन विकास निगम
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