दुनिया का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दुखद और चिन्ताजनक बात ये है कि कम हो रहे भू-जल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई भी ठोस पहल होती नहीं दिखी है। ये एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भू-जल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। हालाँकि ऐसा कतई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है।
प्राणी मात्र के जीवन के लिए वायु के बाद अगर किसी चीज की सर्वाधिक आवश्यकता होती है तो वो है पानी। स्थिति ये है कि बिना पानी के मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी, पेड़-पौधों तक किसी के भी जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। लेकिन, आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरन्तर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भू-जल का स्तर गिरता जा रहा है।
पिछले एक दशक के भीतर भू-जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिए समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहाँ 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहाँ अब पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है। साफ है कि बीते दस सालों में दुनिया का भू-जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर घट रहा है, जो कि बड़ी चिन्ता का विषय है।
केवल भारत की बात करें तो भारतीय केन्द्रीय जल आयोग द्वारा बीते वर्ष यानि 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर वर्ष 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था। आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई।
आयोग की तरफ से ये भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था। लेकिन, 2014 में वो गिरकर तब से भी कम हो गया है। गौरतलब है कि केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भण्डारण क्षमता की निगरानी करता है। हालाँकि घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदें द्वारा चिन्ता जताई जाती रही हैं, लेकिन जलस्तर को सन्तुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर भू-जल स्तर के इस तरह निरन्तर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है? अगर इस सवाल की तह में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो तमाम बातें सामने आती हैं। घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियन्त्रित और अनवरत दोहन ही है।
आज दुनिया अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भू-जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, अब एक तरफ तो भू-जल का ये अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ औद्योगीकरण के अन्धोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों-पहाड़ों आदि में कमी आने के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है। धरती को भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है।
सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है। बस, यही वो प्रमुख कारण है जिससे कि दुनिया का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दुखद और चिन्ताजनक बात ये है कि कम हो रहे भू-जल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई भी ठोस पहल होती नहीं दिखी है।
ये एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भू-जल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। हालाँकि ऐसा कतई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि बारिश के पानी का समुचित संरक्षण किया जाए और उसी पानी के जरिये अपनी अधिकाधिक जल जरूरतों की पूर्ति की जाए।
बरसात के पानी संरक्षण के लिए उसके संरक्षण माध्यमों को विकसित करने की जरूरत है, जो कि सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का भी दायित्व है। अभी स्थिति ये है कि समुचित संरक्षण माध्यमों के अभाव में वर्षा का बहुत ज्यादा जल, जो लोगों की तमाम जल जरूरतों को पूरा करने में काम आ सकता है, खराब और बर्बाद हो जाता है।
अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल संरक्षण के लिए एक-दो टंकियां लग जाएं व घर के आस-पास कुएँ आदि की व्यवस्था हो जाए, तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा, जिससे जल-जरूरतों की पूर्ति के लिए भू-जल पर से लोगों की निर्भरता भी कम हो जाएगी तो भू-जल का स्तरीय सन्तुलन कायम रह सकेगा।
जल संरक्षण की यह व्यवस्थाएं हमारे पुरातन समाज में थी, पर विडम्बना यह है कि आज के इस आधुनिक समय में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गम्भीर नहीं है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि जल संरक्षण के लिए लोगों को सबसे पहले जल के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।
जल को खेल-खिलवाड़ की गम्भीर दृष्टि से देखने की बजाय अपनी जरूरत की एक सीमित वस्तु के रूप में देखना होगा। हालाँकि, ये चीजें तभी होंगी जब जल की समस्या के प्रति लोगों में आवश्यक जागरूकता आएगी और ये दायित्व दुनिया के उन तमाम देशों जहाँ भू-जल स्तर गिर रहा है, सरकार समेत सम्पूर्ण विश्व समुदाय का है।
प्राणी मात्र के जीवन के लिए वायु के बाद अगर किसी चीज की सर्वाधिक आवश्यकता होती है तो वो है पानी। स्थिति ये है कि बिना पानी के मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी, पेड़-पौधों तक किसी के भी जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। लेकिन, आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरन्तर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भू-जल का स्तर गिरता जा रहा है।
पिछले एक दशक के भीतर भू-जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिए समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहाँ 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहाँ अब पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है। साफ है कि बीते दस सालों में दुनिया का भू-जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर घट रहा है, जो कि बड़ी चिन्ता का विषय है।
केवल भारत की बात करें तो भारतीय केन्द्रीय जल आयोग द्वारा बीते वर्ष यानि 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर वर्ष 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था। आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई।
आयोग की तरफ से ये भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था। लेकिन, 2014 में वो गिरकर तब से भी कम हो गया है। गौरतलब है कि केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भण्डारण क्षमता की निगरानी करता है। हालाँकि घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदें द्वारा चिन्ता जताई जाती रही हैं, लेकिन जलस्तर को सन्तुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर भू-जल स्तर के इस तरह निरन्तर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है? अगर इस सवाल की तह में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो तमाम बातें सामने आती हैं। घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियन्त्रित और अनवरत दोहन ही है।
आज दुनिया अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भू-जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, अब एक तरफ तो भू-जल का ये अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ औद्योगीकरण के अन्धोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों-पहाड़ों आदि में कमी आने के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है। धरती को भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है।
सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है। बस, यही वो प्रमुख कारण है जिससे कि दुनिया का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दुखद और चिन्ताजनक बात ये है कि कम हो रहे भू-जल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई भी ठोस पहल होती नहीं दिखी है।
ये एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भू-जल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। हालाँकि ऐसा कतई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि बारिश के पानी का समुचित संरक्षण किया जाए और उसी पानी के जरिये अपनी अधिकाधिक जल जरूरतों की पूर्ति की जाए।
बरसात के पानी संरक्षण के लिए उसके संरक्षण माध्यमों को विकसित करने की जरूरत है, जो कि सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का भी दायित्व है। अभी स्थिति ये है कि समुचित संरक्षण माध्यमों के अभाव में वर्षा का बहुत ज्यादा जल, जो लोगों की तमाम जल जरूरतों को पूरा करने में काम आ सकता है, खराब और बर्बाद हो जाता है।
अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल संरक्षण के लिए एक-दो टंकियां लग जाएं व घर के आस-पास कुएँ आदि की व्यवस्था हो जाए, तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा, जिससे जल-जरूरतों की पूर्ति के लिए भू-जल पर से लोगों की निर्भरता भी कम हो जाएगी तो भू-जल का स्तरीय सन्तुलन कायम रह सकेगा।
जल संरक्षण की यह व्यवस्थाएं हमारे पुरातन समाज में थी, पर विडम्बना यह है कि आज के इस आधुनिक समय में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गम्भीर नहीं है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि जल संरक्षण के लिए लोगों को सबसे पहले जल के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।
जल को खेल-खिलवाड़ की गम्भीर दृष्टि से देखने की बजाय अपनी जरूरत की एक सीमित वस्तु के रूप में देखना होगा। हालाँकि, ये चीजें तभी होंगी जब जल की समस्या के प्रति लोगों में आवश्यक जागरूकता आएगी और ये दायित्व दुनिया के उन तमाम देशों जहाँ भू-जल स्तर गिर रहा है, सरकार समेत सम्पूर्ण विश्व समुदाय का है।
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