केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बुधवार को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र का उद्घाटन किया। संस्थान के जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने इस संयंत्र को तैयार किया है।
संस्थान की कृषि कुंज कॉलोनी के लगभग 1200 आवासीय इकाइयों का दूषित जल इस संयंत्र में जमा होता है जिससे बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के शुद्ध किया जाता है और फिर इससे फसलों की सिंचाई की जाती है।
परियोजना निदेशक रविदंर कौर ने बताया कि इस संयंत्र में प्रति दिन 22 लाख लीटर दूषित जल जमा होता है जिसे 75 से 85 प्रतिशत तक शुद्ध कर इससे 132 हेक्टेयर में फसलों की सिंचाई की जाती है।
उन्होंने बताया कि लगभग चार एकड़ में फैले इस संयंत्र में पटोरा घास की मदद से दूषित जल को साफ किया जाता है। दूषित जल में बड़े पैमाने पर भारी धातु की मात्रा मिली होती है जिससे फसलों की सिंचाई होने पर लोगों में कैंसर जैसी बीमारी फैलने का खतरा रहता है।
उन्होंने बताया कि पटोरा घास में दूषित जल को साफ करने तथा भारी धातु के सोख लेने की क्षमता है। इसके अलावा सूरज की रोशनी का भी पानी को शुद्ध करने में मदद ली जाती है। उन्होंने बताया कि दूषित जल बड़े पैमाने पर मृदा स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है जिसे रोकने की जरूरत है।
देश में प्रति दिन 40 अरब लीटर दूषित जल नदी-नालों में बहाया जाता है जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। उन्होंने बताया कि जल शुद्ध करने की परंपरागत विधि खर्चीली और ऊर्जा की खपत वाली है लेकिन नई तकनीक से काफी कम खर्च में दूषित पानी को काफी हद तक साफ कर उसे फसलों की सिंचाई योग्य बनाया जा सकता है।
संस्थान की कृषि कुंज कॉलोनी के लगभग 1200 आवासीय इकाइयों का दूषित जल इस संयंत्र में जमा होता है जिससे बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के शुद्ध किया जाता है और फिर इससे फसलों की सिंचाई की जाती है।
परियोजना निदेशक रविदंर कौर ने बताया कि इस संयंत्र में प्रति दिन 22 लाख लीटर दूषित जल जमा होता है जिसे 75 से 85 प्रतिशत तक शुद्ध कर इससे 132 हेक्टेयर में फसलों की सिंचाई की जाती है।
पटोरा घास से दूषित जल का उपचार
उन्होंने बताया कि लगभग चार एकड़ में फैले इस संयंत्र में पटोरा घास की मदद से दूषित जल को साफ किया जाता है। दूषित जल में बड़े पैमाने पर भारी धातु की मात्रा मिली होती है जिससे फसलों की सिंचाई होने पर लोगों में कैंसर जैसी बीमारी फैलने का खतरा रहता है।
उन्होंने बताया कि पटोरा घास में दूषित जल को साफ करने तथा भारी धातु के सोख लेने की क्षमता है। इसके अलावा सूरज की रोशनी का भी पानी को शुद्ध करने में मदद ली जाती है। उन्होंने बताया कि दूषित जल बड़े पैमाने पर मृदा स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है जिसे रोकने की जरूरत है।
देश में प्रति दिन 40 अरब लीटर दूषित जल नदी-नालों में बहाया जाता है जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। उन्होंने बताया कि जल शुद्ध करने की परंपरागत विधि खर्चीली और ऊर्जा की खपत वाली है लेकिन नई तकनीक से काफी कम खर्च में दूषित पानी को काफी हद तक साफ कर उसे फसलों की सिंचाई योग्य बनाया जा सकता है।
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