घिनौची पर गगरियाँ
एक-दूसरे से पनघट का
किस्सा चाल रही हैं
और बहुरियों की प्यास कहते-कहते
हँस रही हैं लहालोट
अपने पानी को सहेजे
घिनौची पर सजी-धजी बैठी गगरियाँ
इतनी खुश हैं कि जेठ की दुपहर में भी
पानी पीते हुए जुड़ाकर तिरपित हो रही है आत्मा
आँगन की घिनौची से
कुआँ तक जा रहा है
गगरियों का हँसी-मजाक!
जिसके सहारे कुआँ भी
गर्मी के दिन-दोपहर, रात-बिरात बिताता
भीतर ही भीतर बुदबुदा रहा है
ठण्डक देता जलसूक्त!
एक-दूसरे से पनघट का
किस्सा चाल रही हैं
और बहुरियों की प्यास कहते-कहते
हँस रही हैं लहालोट
अपने पानी को सहेजे
घिनौची पर सजी-धजी बैठी गगरियाँ
इतनी खुश हैं कि जेठ की दुपहर में भी
पानी पीते हुए जुड़ाकर तिरपित हो रही है आत्मा
आँगन की घिनौची से
कुआँ तक जा रहा है
गगरियों का हँसी-मजाक!
जिसके सहारे कुआँ भी
गर्मी के दिन-दोपहर, रात-बिरात बिताता
भीतर ही भीतर बुदबुदा रहा है
ठण्डक देता जलसूक्त!
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