पंजाब के बंटवारे में झेलम और चेनाब अलग हुई तो दुख सहलाने को मालवा व बांगर को अलग करने वाले घग्गर दरिया को याद कर कहा जाने लगा कि आज भी हमारे पास चार नदियां तो हैं। लेकिन बंटवारे को एक शताब्दी भी न बीती कि सदियों से मालवा की लाइफ लाइन बनी घग्गर नदी गंदे नाले में कब बदल गई किसी को खबर नहीं हुई।
मुनाफा कमाने वाले उद्योगों ने इसकी दुगर्ति कर दी। इसे प्रदूषित करके। रही-सही कसर रेत बजरी के धंधेबाजों ने पूरी कर दी। अवैध खनन खनन करके। घग्गर बिखर गई, बिलख गई। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले की डगशाई की 1927 मीटर की ऊंचाई के अपने उद्गम स्थल से मात्र 10 किलोमीटर आगे बढ़ते ही यह फैक्टि्रयों के प्रदूषित व स्थानीय निकाय के अनट्रीटेड सीवरेज से गंदे नाले में बदलना शुरू होती है। पंजाब में इसका स्वागत एसएएस नगर के सुखना चो (नाले) के साथ आए मनीमाजरा, पंचकुला, जीरकपुर और अंबाला-चंडीगढ़ के सीवरेज भी आ मिलते हैं। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से किए गए एक सर्वे के अनुसार यहां पुल पर बीओडी व सीओडी की मात्रा 132 व 240 एमजी और कैल्शियम व मैग्नीशियम 160 व 52 एमजी पर आ जाता है। इससे पहले नाईकेटा पेपर मिल मुबारिकपुर से पहले लिए गए सैंपलों में आर्गेनिक तत्वों में बीओडी, सीओडी की मात्रा क्रमश 4.2 व 10 माइक्रो ग्राम, जिंक 0.46एमजी, कैल्शियम 28 एमजी,व मैग्नीशियम 20 एमजी पाया गया।
चंडीगढ़ के ढ़कांसू नाले के इसमें मिलने के बाद जल जीवन 60 फीसदी से गिर कर 20 फीसदी रह जाता है। इस पानी में किसी भी तरह की मछली 96 घंटे में मर जाती है। स्पष्ट है कि अपनी शुरूआत से दस किलोमीटर पर सीवरेज में बदलना शुरू हुई घग्गर का पानी यहां तक आते आते तेजाबी हो चुका है। राजस्व विभाग पंजाब के आंकड़े बताते हैं कि घग्गर नदी में पटियाला के समाना शहर से आगे गुरदयाल पुरा बीड़ तक में भी मछलियां पकड़ने के ठेके दिए जाते रहे हैं। खन्नौरी व मूणक के सीवरेज, शराब फैक्टि्रयों, गन्ना मिलों के अपशिष्ट पदार्थो के मिलने के बाद पानी की हालत इस कदर बिगड़ जाती है कि इसके सींचे जल से पैदा हुई सब्जियों में शीशा, कैडमियम, क्रोमियम, लोहा तय सीमा से कहीं अधिक पाया गया। नदी के दोनो ओर 250 मीटर की सीमा में नलकूपों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है, हालांकि धरती अभी बची हुई है। बारिश के दिनों में इसके तेजाबीपन में 20 फीसदी की कमी आ जाती है।
इन दिनों में कीड़े मकोड़ों के रूप में जीवन पलना शुरू होता है लेकिन इस सीजन के अलावा हरियाणा से आने वाले बुड्ढा नाला के गांव सागरा के पास मिलने के बाद इसमें से जीवन सौ फीसदी समाप्त है। जानवरों के खुर तक गला देने वाला पानी पंजाब ही नहीं, राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में पीलिया फैलने, पशुओं में मुंह-खुर की बीमारियों का कारण बनता है। प्रदूषण की मार तो पड़ी ही, कमाई के चक्कर में अवैध खनन करने वालों ने भी इस नदी के किनारों को खोखला कर दिया। पहाड़ से उतर तलहटी में आते ही इसके किनारे दिन रात चोरी छिपे लगे ट्रैक्टरों- ट्रालियों ने नदी का वेग बिगाड़ा।
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