लगातार जनसंख्या वृद्धि एवं जल संसाधनो के असमान वितरण के कारण एक निरन्तर एवं टिकाऊ जल स्रोत की खोज के लिए जल से जुड़े वैज्ञानिकों एवं निर्णायकों को मजबूर व चिंतित किया हुआ है। देश के बहुत सारे भागों में सतही स्रोतों के दूषित, असुरक्षित एवं अशुद्ध होने के कारण जल से जुडे लोग भूजल से सम्बन्धित स्रोतों को जलापूर्ति के लिए एक टिकाऊ व निरन्तर स्रोत समझने लगे हैं जो अनुकूल दशाओं में हमारी आशाओं को पूरा कर सकतें है। घेराकार संग्राहक कुंआ भूजल से सम्बन्धित एक ऐसा टिकाऊ और निरन्तर पेयजल स्रोत है। इस अध्ययन में यमुना नदी के किनारे घेराकार संग्राहक कूंआ बनाकर हरियाणा के मेवात जिले के लिए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति करने की प्रस्तावना की गई हैं। मेवात जिले में पीने के पानी के लिए कोई उपयुक्त सतही स्रोत नहीं है।
इस क्षेत्र में भूजल खारा है इसलिए सरकार ने यह सोचा है कि यमुना के किनारे घेराकार संग्राहक कूंआ बनाकर शुद्ध पीने योग्य पानी को मेवात जिले के लोगों को दिया जाये। घेराकार संग्राहक कूंऐ में जल भण्डारण प्राकृतिक जल रिसाव से होता है। क्योंकि इसका स्रोत नदी है इसलिए यह एक निरन्तर स्रोत है। इसमें शुद्धिकरण प्राकृतिक विधि से होता है जिससे पेयजल शुद्धिकरण पर होने वाले खर्चे का बचाव होता है। इस प्रकार घेराकार संग्राहक कूंआ एक निरन्तर एवं टिकाऊ पेयजल स्रोत का काम करता है। भारत के कई प्रान्तों में घेराकार संग्राहक कूंऐ लगाऐ जा रहे हैं जो कि पेयजल समस्या के निदान में प्रभावी साबित हो रहे हैं। इस शेाध पत्र में घेराकार संग्राहक कूंऐ को पेयजल के एक वैकल्पिक टिकाऊ व निरन्तर स्रोत के रूप में दर्शाया गया है।
घेराकार संग्राहक कुआँ: पेयजल का एक वैकल्पिक स्रोत - एक विषय अध्ययन (Radial collector well as a sustainable source of water supply- A case study)
सारांश:
लगातार जनसंख्या वृद्धि एवं जल संसाधनों के असमान वितरण के कारण एक निरन्तर एवं टिकाऊ जलस्रोत की खोज के लिये जल से जुड़े वैज्ञानिकों एवं निर्णायकों को मजबूर व चिंतित किया हुआ है। देश के बहुत सारे भागों में सतही स्रोतों के दूषित असुरक्षित एवं अशुद्ध होने के कारण जल से जुड़े लोग भूजल से संबंधित स्रोतों को जलापूर्ति के लिये एक टिकाऊ व निरंतर स्रोत समझने लगे हैं जो अनुकूल दशाओं में हमारी आशाओं को पूरा कर सकते हैं। घेराकार संग्राहक कुआँ भूजल से सम्बन्धित एक टिकाऊ और निरंतर पेयजल स्रोत है। इस अध्ययन में यमुना नदी के किनारे घेराकार संग्राहक कुआँ बनाकर हरियाणा के मेवात जिले के लिये शुद्ध पेयजल की आपूर्ति करने की प्रस्तावना की गई है। मेवात जिले में पीने के पानी के लिये कोई उपयुक्त सतही स्रोत नहीं है। इस क्षेत्र में भूजल खारा है इसलिये सरकार ने यह सोचा है कि यमुना के किनारे घेराकार संग्राहक कुआँ बनाकर शुद्ध पीने योग्य पानी को मेवात जिले के लोगों को दिया जाए। घेराकार संग्राहक कुएँ में जल भण्डारण प्राकृतिक जल रिसाव से होता है। क्योंकि इसका स्रोत नदी है इसलिये यह एक निरन्तर स्रोत है। इसमें शुद्धिकरण प्राकृतिक विधि से होता है जिससे पेयजल शुद्धिकरण पर होने वाले खर्चे का बचाव होता है। इस प्रकार घेराकार संग्राहक कुआँ एक निरन्तर एवं टिकाऊ पेयजल स्रोत का काम करता है। भारत के कई प्रान्तों में घेराकार संग्राहक कुएँ लगाए जा रहे हैं जोकि पेयजल समस्या के निदान में प्रभावी साबित हो रहे हैं। इस शोधपत्र में घेराकार संग्राहक कुएँ को पेयजल के एक वैकल्पिक टिकाऊ व निरन्तर स्रोत के रूप में दर्शाया गया है।
Abstract
Continued population growth and uneven distribution of water resources have forced the hydrologists and decision makers to search for continuous and sustainable sources of water supply. In India as the surface water sources are becoming more and more inadequate and unsafe due to contamination the decision makers are looking towards the groundwater as a sustainable source of drinking water. Radial collector well can be used as a sustainable source of water supply provided other conditions are favourable. In this study, a radial collector well installed near river Yamuna in Mewat district of Haryana to provide safe and adequate drinking water has been discussed. In Mewat district, there is no surface source for drinking water supply. The groundwater is mostly brackish in nature and is not fit for drinking. Water of river Yamuna is highly polluted. The water from the river cannot be supplied directly for domestic purposes. In radial collector well, the polluted water is filtered by the natural filtration process. Since the source of raw water is river, hence it is a continuous source. Further as the water is treated through natural filtration process, the cost of treatment is low. Thus, radial collector well is a continuous and sustainable source of water supply. As these are effective and sustainable sources of water supply, such radial collector wells are being constructed in many parts of the country. In this study, radial collector well is advocated as an altemate, continuous and sustainable source of water supply for Mewat district of Haryana.
प्रस्तावना
जल, हवा के बाद मुख्य कीमती स्रोत है। जल की न्यूनता और कीमती सामान के कारण इसका उपयोग सुनियोजित प्रबन्धित एवं संरक्षित तथा पर्यावरणीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए करना पड़ता है क्योंकि जल एक मुख्य जरूरत है, इसलिये हर इंसान को इसका उपयोग गुणवत्ता और विकास को मद्देनजर रखते हुए करना है।
पहले भारतीय संविधान में जलापूर्ति एवं स्वच्छता का जिम्मेदारी राज्य सरकारों को दी गई थी लेकिन 73वें और 74वें संवैधानिक सुधार के बाद जलापूर्ति एवं स्वच्छता की जिम्मेदारी पंचायतीराज संस्थान और शहरी सामान्य लोगों को दी गई। आजकल राज्यों में जलापूर्ति की योजना में कार्यावधि योजना और पारित को जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, पंचायतीराज तथा जल बोर्ड करते हैं।
जनगणना 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्या 1,21,01,93,422 है जिसमें से 72 प्रतिशत आबादी गाँवों तथा 28 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है। वर्तमान में पेयजल की मात्रा में जलापूर्ति एवं जल गुणवत्ता गाँवों और शहरी जनसंख्या के लिये अपर्याप्त है। जल दबाव के कारण जनसंख्या वृद्धि, व्यापार गतिविधियों का विस्तार, त्वरित गति से बढ़ता शहरीकरण, वातावरण परिवर्तन, जल संग्रहण की न्यूनता, प्रदूषण, जल बचाव एवं जल विवाद।
प्राचीन समय से पेयजल, सिंचाई एवं औद्योगिक उपयोगों के लिये जलापूर्ति नदी, बावड़ी और कृत्रिम संचयन से की जाती रही है परंतु पानी की उपलब्धता समय और जगह के साथ परिवर्तित होने के कारण, जलापूर्ति कृत्रिम संचयन जलस्रोतों से करनी पड़ती है क्योंकि नदी, बावड़ी आदि में पानी की कमी रहती है। लेकिन कृत्रिम जल संचयन के लिये एक बाँध बनाना पड़ता है। बाँध की ऊपरी तरफ में एक बड़ा जल भण्डारण बनाना पड़ता है जो महँगा बनता है और बहुत कीमती होता है तथा सिंचाई को छोड़कर अन्य उपयोगों में एकत्रित पानी को मटमैला व जीवाणु रहित बनाने के लिये पानी शुद्धिकरण की लागत बहुत ज्यादा आती है। इन्हीं लागतों के बहुत ज्यादा होने के कारण जलापूर्त्रि नदियों बावड़ियों आदि में उपलब्ध नहीं होती हैं। इसलिये यह हमको भूमिगत जलस्रोतों के बारे में सोचने के लिये मजबूर कर देता है क्योंकि भूमिगत जल स्रोतों से जो जल मिलता है वो लगभग शुद्ध और स्वच्छ होता है उसमें जल शुद्धिकरण एवं जल एकत्रण की लागत कम आती है तथा उपभोक्ता को पानी बिना किसी शुद्धिकरण के सीधा दे सकते हैं। विभिन्न प्रकार के जलस्रोतों को चित्र 1 में दर्शाया गया है।
भूजल निष्कर्षण के मुख्य तरीकों में ऊर्ध्वाधर कुएँ, रिसाव गैलरी नलीदार कुएँ घेराकार संग्राहक कुएँ हैं। भूजल स्रोतों के लाभ व हानि इस प्रकार हैंः रेत अथवा बालू रहित पानी तथा अंतर्वाह का वेग कम करने के लिये ऊर्ध्वाधर कुएँ में पानी कुएँ के तल से प्रवेश करता है तथा कुएँ के प्रवाह को बढ़ाने के लिये समस्त कुएँ आपस में रन्ध्रित नलिकाओं से सम्बन्धित रहते हैं तथा रिसाव गैलरी भी ऊर्ध्वाधर कुएँ के सिद्धांत पर काम करती है लेकिन रिसाव को जल भण्डारण में संकरी खाई की तरह ढालते हैं और रोड़ी पत्थर से ढक देते हैं।
नलीदार कुआँ गहराई से पानी निष्कर्षित करता है लेकिन गहरे जल भण्डारण भारत में कुछ ही जगहों पर स्थित हैं। उस स्थिति में जहाँ मोटे जल भण्डारण कम गहराई में पाये जाते हैं वहाँ पर कोई भी जलस्रोतों में से जलापूर्ति के स्रोत लगा सकते हैं परंतु कुछ भूगर्भिक पर्यावरण में जलसंग्राहक की मोटाई पर्याप्त न होने से वो ऊर्ध्वाधर कुँओं से पानी की आपूर्ति नहीं कर पाता है। यद्यपि वो नजदीकी सतही जलस्रोतों से जुड़ा हुआ है क्योंकि जल भण्डारण में जमे हुए अवसादों की जलीय पारगम्यता दर बहुत अच्छी है परंतु जल संचारित करने की दर सख्त कम है, वह सख्त कम इसलिये है क्योंकि अवसादों का जमाव पतला है। इसका उदाहरण नदी घाटी से पतला जमा हुआ जलोढ़ है जो तलीय चटटान को ढकता है। इस स्थिति में अगर गहरे ऊर्ध्वाधर और अन्य कुएँ लगायें तो पानी की गुणवत्ता को लवणीय पानी की ऊर्ध्वाशंकीकरण के गुण को नष्ट कर देते हैं। तो यह स्थिति हमें मजबूर करती है कि घेराकार संग्राहक कुआँ ही अति उत्तम जलापूर्ति का स्रोत है। चित्र 2 में संग्राहक कुआँ व उसकी उपयुक्त जगह दर्शाई गई है। अन्य स्रोत इस स्थिति के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
आमतौर पर घेराकार संग्राहक कुआँ ‘‘रेनी कुआँ’’ कहलाता है जिसमें लगी हुई छिद्रित नलिकाएं पानी को एकत्रित करती हैं। घेराकर संग्राहक कुआँ एक ऐसा कुआँ होता है जो एक दिन में 10 लाख गैलन से ज्यादा पानी की उपज देता है। रिसाव गैलरी की तरह यह भी नदियों और सतही जलस्रोतों पर अथवा पास में निर्धारित होता है।
स्पीरदोनोफ के अनुसार घेराकार संग्राहक कुएँ की तुलना में ऊर्ध्वाधर कुएँ के लाभ:
1. घेराकार संग्राहक कुएँ में लगे हुए छिद्रित संग्राहक पाइप जल भण्डारण से ज्यादा जल का निकास व जल भण्डारण का हनन करते हैं जबकि ऊर्ध्वाधर कुँओं में यह गुण नहीं होता।
2. घेराकार संग्राहक कुआँ बनने के बाद में, यह कुआँ छोटे-छोेटे छने हुए निकास की तरह कार्य करता है।
3. छिद्रित त्रिज्य जल संग्राहक जो छोटे बालू व ग्रेवल के कणों को हटाकर एक कृत्रिम जल भण्डार बनाते हैं उस भण्डार की जल पारगम्यता दर बंजर मृदा के भण्डारण से ज्यादा होती है।
4. घेराकार संग्राहक कुआँ में ज्यादा छिद्रण होने के कारण वह ज्यादा जल भण्डारण के क्षेत्र से जल देता है।
यमुना नदी के समीप घेराकार संग्राहक कुएँ का विषय अध्ययन
मेवात हरियाणा राज्य का एक जिला है। इसका मुख्यालय नूह में स्थित है। हरियाणा का मेवात भारत के पहले कन्ट्री क्लब के लिये जाना जाता हैं मेवात भौगोलिक विषमताओं से भरा हुआ है। यहाँ पर कहीं खुले मैदान हैं तो कहीं अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियाँ देखी जा सकती हैं। स्थानीय निवासी मिओ आदिवासियों के वंशज हैं। मेवात के लोगों का मुख्य कार्य कृषि पर आधारित है। कृषि के बाद यहाँ सबसे ज्यादा लोग दुग्ध उद्योग में लगे हुए हैं। आधुनिक मेवात की स्थापना 1 नवम्बर 1966 ई. को फरीदाबाद और गुड़गाँव के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर की गई। नूह, तवंडू, नगीना, फिरोजपुर, जिरखा, पुनहाणा और हाथिन इसके मुख्य खण्ड हैं।
मेवात क्षेत्र हरियाणा के अतिसुन्दर, सहस्त्राब्दि शहर गुड़गाँव से 30 किमी दूरी पर है। लेकिन मेवात क्षेत्र का विकास गुड़गाँव के विकास की तरह नहीं हो रहा है। हरियाणा में गुड़गाँव एवं फरीदाबाद के बीच विस्तारित मेवात क्षेत्र 1870 वर्ग किमी. में पाँच कस्बे क्रमशः नूह, फिरोजपुर, तवडू, हाथिन, पूनाह हैं। वहाँ के लोग भूजल पर दौड़ लगा रहे हैं। उपलब्ध भूजल खारा अथवा गन्दा है खारे पानी की समस्या के कारण मेवाती औरतें पीने का पानी 2किमी. से 3 किमी. तक रोजाना सर पर उठा कर लाती हैं तथा वहाँ के किसान भी फसल को जमीन के हिसाब से नहीं उगा पाते हैं।
वहाँ के लोगों ने यह सोचा है कि मेवात क्षेत्र में जलापूर्ति यमुना नदी से करेंगे। लेकिन यमुना नदी का पानी बहुत ही दूषित है। यह पानी सीधा लोगों को पीने के लिये उपयुक्त भी नहीं है। पूरे यमुना के पानी को शुद्ध करने के लिये बहुत ज्यादा पैसा चाहिए, जो शुद्ध किया हुआ पानी मेवात के लोगों के लिये उपयुक्त हो।
यह 1870 वर्ग किमी. में पानी शुद्ध करने का पैसा मेवाती लोगों के पास नहीं है। तो मेवातियों के पास एक ही रास्ता है की यमुना के पास घेराकार संग्राहक कुएँ लगाकर अच्छी गुणवत्ता का पानी प्राप्त करें।
आज की स्थिति में मेवात क्षेत्र में 28 नलीदार कुएँ व 8 घेराकार संग्राहक कुएँ 10 किमी. की दूरी पर बारोली व माहौली गाँवों के बीच हस्नापुर खण्ड में लगाने का प्रस्ताव है। कुछ नालीदार कुएँ व घेराकार संग्राहक कुएँ पिछले कुछ वर्षों में लगाये गये हैं। तथा बाकी लगाने का कार्य चल रहा है। जो संग्राहक कुएँ लगाए गये हैं वो काफी अच्छा कार्य कर रहे है। एक घेराकार संग्राहक कुएँ से 10 मिलियन लीटर प्रतिदिन से भी ज्यादा पेयजल निष्कर्षित किया जा रहा हैं चित्र 4 में वहाँ पर लगाये गए एक घेराकार संग्राहक कुएँ का अभिकल्प विवरण दिया गया है।
कंक्रीट मुख्य कुआँ का आंतरिक व्यास |
5 मी. |
कंक्रीट मुख्य कुआँ कैसिन की मोटाई |
1 मी. |
कुएँ की गहराई |
25 मी. |
क्षैतिज छिद्रित पाइप |
दो सतहों में (एक सतह में 12 घेराकार पाइप) |
घेराकार त्रिज्य पाइप का व्यास |
0.32 मी. |
त्रिज्य पाइप की लम्बाई |
30 मी. |
पाइप में छिद्रण |
16 प्रतिशत 50 प्रतिशत रुकाव के साथ (8 प्रतिशत प्रभावी) |
जल भण्डारण की मोटाई |
7.6 मी. |
कुएँ में अधिकतम जलक्षति |
7.5 मी. |
प्रवेश वेग की दर |
0.03 मी./से. से कम |
अक्षीय वेग की दर |
0.9 मी/से. कम |
बहाव की दर |
25 मिलियन गैलन प्रतिदिन से ज्यादा |
संग्राहक पाइपों की संख्या |
12 एक संग्राहक का व्यास 0.3 मी. व एक संग्राहक की लम्बाई 30 मी. |
उपसंहार
इस अध्ययन में घेराकार संग्राहक कुएँ की घरेलू व औद्योगिक उपयोगों के लिये एक वैकल्पिक पेयजल के स्रोत के रूप में वकालत की गई है। यह स्रोत उन सभी शर्तों अथवा दशाओं के लिये विशेष स्रोत हैं जहाँ पर सतही स्रोत बहुत दूषित तथा शुद्धिकरण की लागत ज्यादा होती है। घेराकार संग्राहक कुआँ नदी तट छनन विधि से पानी लेता है तो यह धीरे रेत के शुद्धकर की तरह कार्य करता है तथा कम लागत व दक्षित वैकल्पिक जल शुद्धिकरण प्रयोगों का स्रोत है।
इस वैकल्पिक स्रोत का टिकाऊपन जलीय-भूगर्भिक दशाओं तथा नदी में उपलब्ध बहाव पर निर्भर करता है। घेराकार संग्राहक कुएँ की स्थिति नदी में प्रदूषण व बहाव के लिये उपयुक्त ड्राडाउन पर निर्भर करती है। यह अध्ययन यमुना नदी के पास हस्नापुर खण्ड, जो मेवात जिले में है, घेराकार संग्राहक कुएँ के ऊपर किया गया है।
संदर्भ
1. राय सी, मैलिन, जी, एवं लिंसकी आर बी, ‘‘नदीतट निस्यन्दनः स्रोत जल गुणवत्ता में सुधार’’ कलूवर एकेडमिक पब्लिशर्स (2002).
2. स्पीरदोनोफ एस वी, ‘‘रेडियल कल्क्टर कूपों का प्रयोग एवं अभिकल्प’’ जर्नल ऑफ ए.डब्ल्यू.डब्ल्यू.ए., जनवरी (1964) 689-698.
3. मिश्रा जी सी एवं कंसल एम एल, ‘‘जलापूर्ति के वैकल्पिक स्रोत के रूप में रेडियल कलक्टर कूप एक विषय विशेष अध्ययन’’ जर्नल ऑफ इण्डियन बिल्डिंग कांग्रेस 12, (2005)1.
4. हुसमन एल एवं ओल्सथ्रौन टी एन ‘‘कृत्रिम भूजल पुनःपूरण’’ पिटस्मेन बुक, लंदन (1983).
5. भारतीय जनगणना, ‘‘जनगणना 2011’’ http://www.censusofindia.in
6. भारत सरकार, ‘‘राष्ट्रीय नीति की रूपरेखा के मार्गदर्शी सिद्धांत राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम’’ पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय http://www.ddws.nic.in
सम्पर्क
एम एल कंसल, जी सी मिश्रा एवं कैलाश बिश्नोई
जल संसाधन विकास एवं प्रबन्धन विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-247 667 रुड़की
ML Kansal, GC Mishra & Kailash Bishnoi
Water resource development & management, Indian Institute of Technology, Roorkee-247667
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